रील्स के चक्कर में रियल
की मौत
रील (Reels) एक प्रकार की छोटी, संक्षिप्त वीडियो होती है, जिसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर साझा किया जाता है। रील
बनाने का प्रारंभिक इतिहास टिक्टॉक के साथ जुड़ा हुआ है, जिसने दुनिया भर में छोटी-छोटी वीडियो बनाने का
ट्रेंड शुरू किया। इस प्लेटफार्म पर उपयोगकर्ता 15-30 सेकंड की वीडियो बनाकर
विभिन्न संगीत, डायलॉग्स, और प्रभावों के
साथ उसे साझा कर सकते थे। टिक्टॉक की लोकप्रियता के बाद, इंस्टाग्राम और यू ट्यूब ने भी अपने
प्लेटफार्म पर रील्स और शॉर्ट्स जैसे फीचर्स शुरू किए, जिससे उपयोगकर्ता छोटे वीडियो बनाकर पोस्ट कर
सकें।
रील्स ने निश्चित रूप से
युवाओं को अपनी रचनात्मकता दिखाने का मंच दिया है, लेकिन इसके साथ
ही इसके दुष्परिणामों को समझना और उनसे बचाव करना भी आवश्यक है। जिम्मेदारीपूर्वक
रील्स का उपयोग करना चाहिए ताकि यह मनोरंजन के साथ-साथ सकारात्मक योगदान दे सके। सोशल
मीडिया के चलते बच्चों और युवाओं में सामाजिक दिखावे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही
है। युवा फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए एक-दूसरे की देखादेखी कर रहे हैं। उन्हें नहीं
पता होता कि इसका नतीजा क्या होगा। उन्हें वास्तविकता का पता नहीं है।
युवा अभी रियल नहीं रील
लाइफ जी रहा है। एक असल दुनिया है और एक आभासी दुनिया। युवा इस आभासी दुनिया यानी
रील पर ज्यादा लाइक्स के चक्कर में खुद को जोखिम में डाल रहे हैं। भारत में टिकटॉक
पर बैन लगने के बाद रील्स और मीस बनाने का चलन सामने आया। इसके बाद लोग
इंस्टाग्राम पर वीडियो डालने लगे। रील्स में इंफॉर्मेशनल, फनी, मोटिवेशनल और डांस समेत
कई तरह के वीडियो होते हैं। रील्स एक तरह का इंस्टाग्राम पर शॉर्ट वीडियो होता है।
शुरुआत में यह रील्स 30 सेकंड का होता
था, लेकिन अब इसे
बढ़ाकर 90 सेकंड का कर
दिया है। रील बनाने का युवाओं के बीच ऐसा क्रेज आजकल है कि वो कहीं भी रील बनाने
लग जाते हैं। कई बार इस रीलबाजी के चक्कर में लोग अपना ही नुकसान भी करा बैठते
हैं। सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बढ़ाने के शगल के कारण युवा जिंदगी में रील बनाने का
क्रेज बढ़ता जा रहा है। कब यह शौक सनक की हद तक पहुंच जाता है, पता ही नहीं चलता। नियमों
को ताक पर रखकर रील बनाने के जुनून में जान तक गंवा देते हैं। शहर में ही युवाओं
को फेसबुक से लेकर इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए जान जोखिम में डालकर
रेलवे ट्रैक, फ्लाई ओवर पर, चलती रेल में कोच के
डिब्बे के बीच खड़े होकर या बाइक चलाते हुए रील बनाते देखा जा सकता है।
युवाओं में रील्स का आकर्षण कुछ मुख्य कारणों
से बढ़ा, जिनमें कम समय में मनोरंजन, क्रिएटिविटी, प्रसिद्धि पाने
का अवसर, इंस्टैंट फीडबैक और मान्यता और बढ़ता सोशल
कनेक्शन है। इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी नहीं, टू मिनट्स मैगी हो। लोकप्रियता हासिल करने के लिए कभी कोई
रेलवे ट्रैक पर ट्रेन के सामने पहुंच जाता है तो कभी कोई बहुमंजिला इमारत पर खड़े
होकर वीडियो बनाता है। कभी वाहन चलाते समय स्टंटबाजी, कभी सड़कों व चौक-चौराहों
पर डांस, स्टंट करना और बांध पर खड़े होकर रील्स बनाना। कभी किसी पहाड़ पर खड़े
होकर अजीब हरकतें करना। कहीं झरनों व जलाशयों के बीचोंबीच जाकर पानी में बेपरवाह
मस्ती करते हुए रील्स बनाना। कभी रेलवे ट्रैक पर जाकर या प्लेटफार्म या चलती ट्रेन
में दरवाजे पर खड़े होकर रील्स बनाना।
और इससे हो क्या रहा है? इससे युवाओं का आत्मसम्मान प्रभावित हो रहा है। सोशल
मीडिया की दुनिया में परफेक्ट दिखने की होड़ में जब उनकी पोस्ट को वांछित
प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे निराश हो
जाते हैं। इसका सीधा असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है, जिससे वे और ज्यादा सोशल
मीडिया पर सक्रिय हो जाते हैं और इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। इन सबसे वे अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है, वे दबाव और नकारात्मक
प्रतिस्पर्धा में जी रहे हैं, उनकी गोपनीयता और
सुरक्षा खतरे में है और उनमें अनेक प्रकार की विकृतियां दबे पांव आती जा रही हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है
कि इस समस्या से निपटने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों को मिलकर युवाओं को वास्तविक
जीवन के महत्व का अहसास कराना चाहिए।टेलेंट है तो बहुत से विषय हैं रील बनाने
केयदि किसी में टेलेंट है, तो जान को जोखिम में
डालने वाली रील बनाने की बजाय मोटिवेशनल, संगीत, नृत्य, तकनीकी ज्ञान, सेहत से जुड़ी टिप्स, धर्म, विज्ञान, फिटनेस, हास्य-व्यंग्य, खान-पान सहित सैकड़ों विषयों पर रील बनाकर ख्याति अर्जित कर
सकता है। रील्स की बजाय अपने दोस्तों के साथ समय गुजारें, मॉर्निंग वॉक के साथ व्यायाम करने में समय बिताएं। रील्स
देखने के कारण बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं, उन्हें मोबाइल से दूर
रखें। बच्चों के सामने कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करेंबच्चों को वक्त दें, उनसे पारिवारिक बातें
करें।
फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए टेलेंट
होना बहुत जरूरी है। यदि आपके अंदर टेलेंट है तो फाॅलोअर्स अपने आप ही बढ़ जाएंगे।
यदि युवा ट्रैक पर खड़े होकर रील बना रहे है तो बहुत गलत है। इससे दूसरे बच्चों पर
भी गलत असर पड़ेगा। रील बनाने वालों के साथ उनकी वीडियो देखने वालों की भी मूर्खता
है। इनका विरोध करना चाहिए। युवा जल्दी फेमस होने के लिए रील बना रहे हैं, जोकि बहुत गलत है। मैं कई
जगह रेलवे ट्रैक और फ्लाई ओवर पर रील बनाते हुए युवाओं को देखता हूं। उन्हें रील
बनानी है तो सबसे पहले सुरक्षित जगह चुनें। बच्चे रेलवे ट्रैक या फिर रिस्क वाली
जगह पर रील बना रहे हैं तो माता-पिता को इन पर निगरानी रखनी चाहिए।
सोशल मीडिया के चलते
बच्चों और युवाओं में सामाजिक दिखावे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। युवा
फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए एक-दूसरे की देखादेखी कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता होता कि
इसका नतीजा क्या होगा। उन्हें वास्तविकता का पता नहीं है। बच्चे अपने माता-पिता की
बात नहीं मानते हैं। जो उम्र पढ़ने की होती है उसमें रील बना रहे हैं। रिस्क भी
ज्यादा लेते हैं। ऐसे बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों की भी काउंसिलिंग की जरूरत
है। युवाओं के साथ-साथ अब छोटे बच्चों में भी मोबाइल पर रील्स बनाने की आदत होने
लगी है। बच्चे घर पर अकेले रहते हैं सोशल मीडिया का अट्रैक्शन है। सबको अच्छा लगता
है कि उन्हें लोग पसंद करे,
तारीफ करें। इससे
बचने का यही उपाय है कि बच्चों को मोबाइल का प्रयोग कम करने दे। मोबाइल देखते समय
बड़े उनके साथ ही रहें, जिससे वो कुछ गलत
ना कर सके। शायद ऐसा करके हम अपने बच्चों को रील्स की दुनिया से रियल दुनिया में
ला सकेंगे।
डॉ मीता गुप्ता