एकांत
विश्व
विख्यात कवि और उपन्यासकार डी.एच लॉरेंस की प्रसिद्ध रचना है-सॉलीट्यूड, जिसके अंश से एकांत की बात आरंभ करते हैं-
लोग
अकेलेपन की शिकायत करते हैं
मैं
समझ नहीं पाता
वे
किस बात से डरते हैं
अकेलापन
तो जीवन का
चरम
आनंद है, जो है निःसंग
सोचो
तो, वही है स्वच्छंद
जो
है अकेला
झांककर
देखता है आगे की राह को
पहुंच
से बाहर की दुनिया अथाह को
तत्वों
के केंद्र-बिंदु से होकर एकतान
बिना
किसी बाधा के करता है ध्यान
विषम
के बीच छिपे सम का
अपने
उद्गम का ।
वास्तव में
एकांत ढूँढने के कई सकारात्मक कारण हैं
। एकांत की चाह किसी घायल मन की आह भर नहीं, जो जीवन के कांटों से बिंध कर घायल हो चुका है, एकांत सिर्फ उसके लिए शरण मात्र नहीं । यह उस
इंसान की ख्वाहिश भर नहीं, जिसे
इस संसार में ‘फेंक दिया गया हो’ और वह फेंक दिए जाने की स्थिति से भयभीत होकर
एकांत ढूंढ रहा हो । हम जब एकांत में होते हैं, वही वास्तव में होते हैं ।एकांत हमारी चेतना की
अंतर्वस्तु को पूरी तरह उघाड़ कर रख देता है ।
अंग्रेज़ी का एक शब्द है-आइसोनोफीलिया । इसका
अर्थ है-अकेलेपन, एकांत
से गहरा प्रेम । पर इस शब्द को गौर से समझें, तो इसमें अलगाव की एक परछाई भी दिखती है ।
एकांत प्रेमी हमेशा ही अलगाव की अभेद्य दीवारों के पीछे छिपना चाह रहा हो, यह ज़रूरी नहीं । एकांत की अपनी एक विशेष सुरभि
है । जो भीड़ के अशिष्ट प्रपंच में फंस चुका हो, ऐसा मन कभी इसका सौंदर्य नहीं देख सकता । एकांत
और अकेलेपन में थोड़ा फ़र्क समझना ज़रूरी है । एकांतवासी में कोई दोष या मनोमालिन्य
नहीं होता ।वह किसी
भी व्यक्ति या
परिस्थिति के तंग आकर एकांत की शरण
में नहीं
जाता । न ही
आततायी नियति के विषैले बाणों से घायल होकर वह एकांत की खोज करता है ।
अंग्रेज़ी कवि लॉर्ड बायरन ऐसे एकांत की बात करते हैं । वे कहते हैं कि ऐसा नहीं कि
वे इंसान से कम प्रेम करते हैं, बस
प्रकृति से ज़्यादा प्रेम करते हैं ।
बुद्ध अपने शिष्यों से कहते हैं कि वे जंगल में
विचरण करते हुए गैंडे के सींग की तरह अकेले रहें । वे कहते हैं-‘प्रत्येक जीव जंतु
के प्रति हिंसा का त्याग करते हुए किसी की भी हानि की कामना न करते हुए, अकेले चलो-फिरो, वैसे ही जैसे किसी गैंडे के सींग । हक्सले
‘एकांत के धर्म या रिलिजन ऑफ़ सॉलिट्यूड’ की बात करते हैं । वे कहते हैं, जो मन जितना ही अधिक शक्तिशाली और मौलिक होगा, एकांत के धर्म की तरफ उसका उतना ही अधिक झुकाव
होगा । धर्म के क्षेत्र में एकांत, अंधविश्वासों, मतों और धर्मांधता के शोर से दूर ले जाने वाला
मंत्र होता है । इसके अलावा एकांत धर्म और विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्दृष्टियों
को भी जन्म देता है । ज्यां पॉल सार्त्र इस बारे में बड़ी ही खूबसूरत बात कहते हैं
। उनका कहना है-ईश्वर एक अनुपस्थिति है। ईश्वर है इंसान का एकांत । गुरुवर रवींद्र
नाथ टैगोर ’एकला चौलो रे !’ कहकर एकांत का ही प्रतिपादन करते दीखते हैं ।
क्या एकांत लोग इसलिए पसंद करते हैं कि वे किसी
को मित्र बनाने में असमर्थ हैं ? क्या
वे सामाजिक होने की अपनी असमर्थता को छुपाने के लिए एकांत को महिमामंडित करते हैं ? वास्तव में एकांत एक दुधारी तलवार की तरह है ।
लोग क्या कहेंगे इसका डर भी हमें अक्सर एकांत में रहने से रोकता है । यह बड़ी अजीब
बात है क्योंकि जब आप वास्तव में अपने साथ या अकेले होते हैं, तभी इस दुनिया और कुदरत के साथ अपने गहरे संबंध
का एहसास होता है । इस संसार को और अधिक गहराई और अधिक समानुभूति के साथ प्रेम
करके ही हम अपने दुखदाई अकेलेपन से बाहर हो सकते हैं । इसीलिए बच्चन जी कहते हैं-
तट
पर है तरुवर एकाकी,
नौका
है, सागर में,
अंतरिक्ष
में खग एकाकी,
तारा
है, अंबर में,
भू
पर वन, वारिधि पर बेड़े,
नभ
में उडु खग मेला,
नर
नारी से भरे जगत में
कवि
का हृदय अकेला!
-मीता
गुप्ता 8126671717
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