यादें......
चल, चल के देख लें उनको,
अभी जो अपने थे...
सुबह गुलाबी धूप से,
रातों में आंखों के सपने थे ।
माना सफ़र नहीं था मीलों का,
माना कोई शिकारा न था, झीलों का,
चंद लम्हों का यह सफर
बना यादगार,
कुछ आगे बढ़ने की सीख,
कुछ आपके विचार ।
आपसे रोशन थी सारी फ़िज़ां,
खुशी से चहकती थी हर दिशा ।
अब तो यही लगता है
कि खुशियां घर छोड़ चलीं.....
अब तो यही लगता है कि
गलियां भी मुंह मोड़ चलीं....
रह गया यहां पर
कुछ बिखरा सामान,
आप...आपकी यादें...
और...और.....
यह सूना-सूना जहान.....!!!
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