Friday, 14 April 2023

भारत के यशस्वी सपूत- डॉ . भीमराव अंबेडकर

 

भारत के यशस्वी सपूत- डॉ .  भीमराव   अंबेडकर



 

अगाध   ज्ञान   के   भंडार ,  घोर   अध्यवसायी ,  अदभुत   प्रतिभा ,  सराहनीय   निष्ठा ,  न्यायशीलता   तथा   स्पष्टवादिता   के   धनी   डॉ .  भीमराव   अंबेडकर    एक   विधिवेत्ता ,  अर्थशास्त्री ,  समाज   सुधारक ,  संविधान   शिल्पी   और   राजनीतिज्ञ   थे।   अंबेडकर    जी   का   संपूर्ण   जीवन   भारतीय   समाज   में   सुधार   के   लिए   समर्पित   था।   अस्पृश्यों   तथा   दलितों   के   वे   मसीहा   थे।   उन्होंने   उनके   विरूद्व   होने   वाले   अत्याचारों ,  शोषण- अन्याय   तथा   अपमान   से   संघर्ष   करने   के   लिए    शिक्षा   रूपी   शक्ति   दी।   उनके   अनुसार   सामाजिक   प्रताड़ना   राज्य   द्वारा   दिए    जाने   वाले   दंड    में   भी   कहीं   अधिक   दुःखदायी   हैं।   उन्होंने       सिर्फ   समाज   में   वंचितों   की   स्थिति   में   सुधार   के   लिए    कार्य   किया,   अपितु   श्रमिकों ,  किसानों ,  महिलाओं   तथा   समाज   के   प्रत्येक   वर्ग   के   अधिकारों   और   उनकी   शिक्षा   के   लिए    कार्य   किया।   अंबेडकर    जी   द्वारा   किए    गये   कार्यों    के   कारण   ही   उन्हें    भारत   का   अब्राहम   लिंकन   और   मार्टिन   लूथर   कहा   गया   है   तथा   उन्हें   बोधिसत्व   की   उपाधि   से   भी   विभूषित   किया   गया।

डॉ .   भीमराव   अंबेडकर    जी   के   शैक्षिक   विचार-

डॉ .   अंबेडकर    भारत   माता   के   ऐसे   प्रभावशाली   मेघावी   एवं   यशस्वी   सपूत   हैं,   जिनकी   अप्रतिम   सेवाओं   के   लिए देश   चिरकाल   तक    ऋणी   रहेगा। आवश्यक   सुविधाओं   से   वंचित   रहते   हुए    तथा   बचपन   से   ही  अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी उन्होंने   एम . ए . ,  पीएच . डी . ,एम . एस . सी . ,डी . एस . सी .  डी . लिट.    जैसी   शिक्षा   की   उच्चतम   उपाधियां    प्राप्त   करना   उनके   अदम्य   साहस ,  लगन,   निष्ठा ,  धैर्य   और   शिक्षा   के   प्रति   गहनतम   लगाव   महत्वपूर्ण   उदाहरण   है।   अपने   जीवन   में   उन्होंने   जो   भी   उपलब्धि   प्राप्त   की,   वह   शिक्षा   के   बल   पर   ही   प्राप्त   की   थी  इसलिए    उन्होंने    हर   प्रकार   के   विकास   के   लिए    शिक्षा   को   एक   अमोध   अस्त्र   बताया   तथा   शिक्षा   को   मानव   जीवन   का   अभिन्न   अंग   माना   है।

डॉ. अंबेडकर    का   मानना   था   कि   शिक्षा   ही   एकता ,  बंधुता   और   देशप्रेम   के   विवेक   को   जन्म   देती   है।   सभ्यता   और   संस्कृति   का   भवन   शिक्षा   के   स्तंभ   पर   ही   बनता   है।   शिक्षा   ही   मनुष्य   को   मनुष्यत्व   प्रदान   करती   है   तथा   शिक्षा   के   अभाव   में   मानव   पशुतुल्य   होता   है।   बाबा   साहब   ने   कहा   है   कि   ‘शिक्षा   वह   शेरनी   का   दूध   है,   जो   पिएगा,   वही   दहाड़ेगा|’  और   उन्होंने    शिक्षा   को   सामाजिक   समरसता      व्यक्ति   में   सात्विक   गुणों   का   विकास   करने   वाला अस्त्र   बताया   है।

बाबा   साहब   प्रचलित   शिक्षा   तथा   शिक्षण   पद्वति   को   बदलना   चाहते   थे।   उनका   मानना   था   कि   समरसता   निर्माण   करने   वाली      लोकतान्त्रिक   मूल्यों   की   भावना   का   विकास   करने   वाली   शिक्षा      पाठ्यक्रम   को   ही   पढ़ाया   जाना   चाहिए।   उनका   ये   दृढमत   था   कि   समाज   में   ऐसी   शिक्षा   व्यवस्था   होनी   चाहिए   जिसकी   समय   के   अनुकूल   आवश्यकता   है।   वे   मानते   थे   कि   शिक्षा   का   माध्यम   मातृभाषा   में   होना   चाहिए ,  जिससे   बालक   में   रूचि   से   पढ़ने   का   स्वभाव   का   निर्माण   हो।   उनका   मानना   था   कि   विघालय   समाज   का   एक   लघुरूप   होता   है   तथा   उन्होंने    अपने   छात्र   जीवन   से   ही   यह   महसूस   किया   था   कि   विघालय   में   रहकर   सामूहिक   अवधारणाओं   को   समाप्त   किया   जा   सकता   है।

डॉ .   अंबेडकर    जी   भारत   के   शिल्पकार   के   साथ - साथ   एक   महान   शिक्षक   भी   थे।   उनका   मानना   था   कि   शिक्षा   से   ही   ज्ञान   का   ताला   खुलता   है।   वे   शिक्षक   को   राष्ट्र   निर्माता   मानते   थे।   शिक्षक   के   सम्बन्ध   में   उन्होंने    कहा   है   कि   शिक्षक   ज्ञान   पिपासु ,  अनुसंधान   करने   वाला      आत्म   विश्वासी   होना   चाहिए।   उनका   मानना   था   कि   शिक्षा      बिना   कोई   भी   समाज   आगे   नहीं   बढ   सकता   है।   अंध   विश्वासों   से   मुक्ति ,  अज्ञानता,  अन्याय   और   शोषण   के   विरू़द्व   ललकारने   की   ताकत   भी   शिक्षा   से   ही   संभव   है।   भारत   सैकड़ों   वर्षो   तक   विदेशी   सत्ता ,  शासकों   के   पराधीन   रहा ,  जिससे   भारत   में   पतन   और   अवनति   का   दौर   अनंतकाल   तक   चलता   रहा   और   बाबा   साहब   यह   मानते   थे   कि   देश   की   इस   पराधीनता   का   कारण   शिक्षा   भी   है   और   मुख्यतः   महिला   शिक्षा   का      होना।   इसलिए    उन्होंने    स्त्री   शिक्षा   पर   भी   बहुत   बल   दिया   और   विशेषकर   वंचित   महिलाओं   की   शिक्षा   पर   अधिक   बल   दिया।   उनका   स्पष्ट   मत   था   कि   यदि   वंचित   समाज   की   महिलायें   शिक्षित   होगी   तो   वे   अपनी   संतानों   को   भी   शिक्षित      संस्कारवान   बना   सकती   है।

अंबेडकर    जी   ने   वंचितों   की   शिक्षा   की   भी   वकालत   की।   उनका   मानना   था   कि   इस   वर्ग   के   माथे   पर   लगे   अज्ञानता   के   टीके   और   समाज   में   फैली   उनकी   दुर्भावना   से   निकलने   का   एक   ही   मार्ग   था   कि   वे   पढ   लिखकर   अपनी   मुक्ति   का   रास्ता   प्रशस्त   करें।   इसलिए   वे  ऐसे   समाज   के   उद्वार   में   शिक्षा   को   एक   बड़ा   स्त्रोत   मानते   थे।   बाबा   साहब   के   शिक्षा   संबंधी   विचार   देश ,  काल ,  परिस्थिति   के   प्रभाव   से   परे   है।   उनके   विचार      केवल   तत्कालीन   परिस्थितियों   में   प्रासंगिक   थे   अपितु   हर   काल   समय   अथवा   आज   भी   उतने   ही   समीचीन   है।   उनके   द्वारा   दिया   गया   मंत्र   शिक्षित   बनो ,  संघर्ष   करो ,  संगठित   रहो  में   ही   उनके   संघर्षपूर्ण   जीवन   का      उनके   शैक्षिक   विचारों   का   सारांश   है।  बाबा   साहब   ने      केवल   वंचित   समाज   की   शिक्षा   पर   बल   दिया   बल्कि   समाज   के   प्रत्येक   वर्ग   के   साथ   सभी   महिला      पुरूषों   के   समान   शिक्षा   की   भी   स्पष्ट   बात   की।   उनका   मानना   था   कि   यदि   स्वाभिमान   शून्य   समाज   की   अपने   जीवन   को   पुनः   चलायमान   रखना   है,   तो   उसकों   शिक्षित   होना   ही   होगा।

डॉ .   अंबेडकर    जी   के   सामाजिक   विचार

अंबेडकर    जी   का   संपूर्ण   जीवन   भारतीय   समाज   में   सुधार   के   लिए    समर्पित   था।   वंचितों   के   वे   मसीहा   थे।   उन्होंने    सदियों   से   पद - वंचित   वर्ग   को   सम्मानपूर्वक   जीने   के   लिए    एक   सुस्पष्ट   मार्ग   दिया।   उनके   अनुसार   सामाजिक   प्रताड़ना   राज्यों   द्वारा   दिए    जाने   वाले   दंड    से   भी   कहीं   अधिक   दुःखदायी   है।  उन्होंने    प्राचीन   भारतीय   ग्रंथों   का   विशद   अध्ययन   कर   यह   बताया   कि   भारतीय   समाज   में   वर्ण   व्यवस्था ,  जाति   प्रथा   तथा   अस्पृश्यता   का   प्रचलन   समाज   में   कालांतर   में   आई   विकृतियों   के   कारण   उत्पन्न   हुई   है ,     कि   यह   यहां   के   समाज   में   प्रारंभ   से   ही   विद्यमान   थी।   उन्होंने    वंचित   वर्ग   पर   होने   वाले   अन्याय   का   विरोध   ही   नहीं   किया   अपितु   उनमें   आत्म - गौरव ,  स्वावलंबन ,  आत्मविश्वास ,  आत्मसुधार   तथा   आत्मविश्लेषण   करने   का   शक्ति   प्रदान   की।

डॉ .   अंबेडकर    ने   भारतीय   आर्यों   के   सामाजिक   संगठन   का   आधार   रही   चातुर्वर्ण   व्यवस्था   का   विरोध   किया   तथा   उसकी   कटु   आलोचना   की।   उनके   अनुसार   यह   विभाजन   श्रम   के   विभाजन   पर   आधारित   ने   होकर   श्रमिकों   के   विभाजन   पर   आधारित   था।   उनका   मत   था   कि   उन्नत   तथा   कमज़ोर   वर्गो   में   जितना   संघर्ष   भारत   में   है,   वैसा   विश्व   के   किसी   अन्य   देश   में   नहीं   है।   डॉ .  अंबेडकर    ने   जाति   व्यवस्था   के   बारे   में   यह   स्पष्ट   किया   कि   यह   भारतीय   समाज   की   एक   बहुत   बड़ी   विकृति   है,   जो   दुःखभाव   समाज   के   लिए    बहुत   ही   घातक   है।   उनके   अनुसार   जाति   व्यवस्था   ने   केवल   हिंदू   समाज   को   ही   दुष्प्रभावी   नहीं   किया,   अपितु   भारत   के   राजनीतिक,  आर्थिक   तथा   नैतिक   जीवन   में   भी   जहर   घोल   दिया।   उन्होंने    समाज   में   प्रचलित   कुरीतियों   को   अन्यायपूर्वक   मानते   हुए    उसका   प्रबल   विरोध   किया।   उनका   दृष्टिकोण   था   कि   यदि   हिंदू   समाज   का   उत्थान   करना   है,   तो   इन कुरीतियों   का   जड़   से   निराकरण   आवश्यक   है।   उन्होंने    इसके निवारण   के   लिए    सामाजिक ,  राजनीतिक ,  आर्थिक   नैतिक      शैक्षणिक   आदि   स्तरों   पर   रचनात्मक   कार्यक्रम   तथा   संगठित   अभियान   का   आग्रह   किया।   उनका   मानना   था   कि   हिंदू   समाज   मे   स्वतंत्रता ,  समानता   तथा   न्याय   पर   आधारित   व्यवस्था   स्थापित   करने   के   लिए    कठोर   नियमों   में   संशोधन   आवश्यक   है।   वे   जातीय   बंधन   को   समाप्त   करने   के   समर्थक   थे।   उन्होंने    स्वयं   अंतर्जातीय   विवाहों   तथा   सहभोजों   को   प्रोत्साहित   किया।   वे   दलितों   में   शिक्षा   के   प्रसार   को   महत्वपूर्ण   मानते   थे ,  वे   उन्हें    केवल   औपचारिक   शिक्षा   देने   की   नहीं   बल्कि   अनौपचारिक   शिक्षा   की   भी   बात   करते   थे।

अंबेडकर    जी   का   मानना   था   कि   वंचित   वर्ग   को   अपने   हितों   की   रक्षा   के   लिए       विधायी   कार्यों    को   अपने   पक्ष   में   प्रभावित   करने   के   लिए    राजनीति   में   पर्याप्त   प्रतिनिधित्व   मिलना   चाहिए।   इसलिए    उनका   मानना   था   कि   केंद्रीय   तथा   प्रांतीय   विधानमण्डलों   में   दलितों   की   भागीदारी   हेतु   पर्याप्त   प्रतिनिधित्व   के   लिए    कानून   बनाया   जाना   चाहिए।   वह   दलितों   को   सरकारी   सेवाओं   में   पर्याप्त   प्रतिनिधित्व   तथा   आरक्षण   की   भी   बात   करते   थे।   उन्होंने    भारतीय   समाज   में   विद्यमान   स्त्रियों   की   हीन   दशा   की   कटु   आलोचना   की।   उन्होंने    हमेशा   स्त्री - पुरूष   समानता   का   व्यापक   समर्थन   किया।   यही   कारण   है   कि   उन्होंने    स्वतंत्र   भारत   के   प्रथम   विधिमंत्री   रहते   हुए    हिंदू   कोड   बिल   संसद   में   प्रस्तुत   करते   समय   हिंदू   स्त्रियों   के   लिए    न्याय   सम्मत   व्यवस्था   बनाने   के   लिए    विधेयक   में   व्यापक   प्रावधान   रखे।

डॉ .   अंबेडकर    के   सामाजिक   दर्शन   में   वंचितों तथा   शोषित   वर्ग   के   उत्थान   के   लिए    व्यापक   कार्य   झलकते   है।   वे   उनके   उत्थान   के   माध्यम   से   एक   ऐसा   आदर्श   समाज   स्थापित   करना   चाहते   थे।   जिसमें   स्वतंत्रता ,  समानता   तथा   भ्रातृत्व   के   तत्व   समाज   के   आधारभूत   सिद्वांत   हो।

अध्ययन   का   महत्व

वंचितों  के   मसीहा   कहे   जाने   वाले   डॉ .   भीमराव   अंबेडकर    जी   के   सामाजिक   और   शैक्षिक   विचारों   के   अध्ययन   के   महत्व   को   निम्नलिखित   बिंदुओं   के   माध्यम   से   स्पष्ट   रूप   से   समझा   ला   सकता   हैः -

अंबेडकर    जी   ने   शिक्षा   को   समाज   के   विकास   का   सबसे   बड़ा   हथियार   बताया   है।   उनके   अनुसार   बिना   शिक्षा   के   मनुष्य   पशु   समान   होता   है।

अंबेडकर    जी   के   शैक्षिक   विचारों   के   कारण   ही   उन्हें    अमेरिका   द्वारा   ज्ञान   का   प्रतीक  ( Symbol of Knowledge )  की   उपाधि   से   विभूषित   किया   गया   है।

भारतीय   समाज   में   अंबेडकर    जी   के   विचारों   के   द्वारा   ही   समानता   के   बीज   पडे़   है।

सामाजिक   कार्यों    में   सर्वप्रमुख   महिला   शिक्षा   और   महिलाओं   को   समानता   का   अधिकार   दिलाने   का   कार्य   बाबा   साहब   द्वारा   किया   गया।

वर्तमान   समाज   में   वंचित ,  श्रमिक ,  किसान      शोषित   वर्ग   यदि   समानता   के   साथ   प्रत्येक   वर्ग   के   साथ   रह   रहा   है ,  तो   उसमें   अंबेडकर    जी   के   विचारों   और   उनके   द्वारा   कृत्य   कार्यों       प्रयासों   का   अतुलनीय   योगदान   है।

 

       मीता गुप्ता

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