Tuesday, 28 November 2023

ख़ुद को समय देना भी संतुष्टि है

 

ख़ुद को समय देना भी संतुष्टि है:वो काम करें जिसे करने से खुशी मिले

और खुद के लिए वक्त भी

आज के समय में हम काम और ज़िम्मेदारियों में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि निजी ज़िंदगी कहीं खो-सी गई है। पिछले हफ्ते हमने इसी विषय पर बात की थी। अपना काम ज़िम्मेदारी के साथ करना अच्छी बात है, परंतु संतुष्टि का ध्यान रखना भी ज़रूरी है।

काम में संतुष्टि होना हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे हमें यह पता चलता है कि हम अपने काम को लेकर जो रुचि ले रहे हैं उसका हमारे कॅरियर और जीवन पर कितना फ़र्क़ पड़ रहा है। यह हमें सफलता के नज़दीक ले जाने में सहायक भी सिद्ध होता है। हम सोचते हैं कि काम में पूरा मन और जी जान लगा देना ही सफलता है, परंतु हम यह ध्यान नहीं देते कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं उसमें हमारी रुचि कितनी है और उस काम को करने के बाद संतुष्टि मिल भी रही है या नहीं।

काम में संतुष्टि क्यों ज़रूरी?

ज़रा सोचिए, यदि काम के बाद हमें संतुष्टि न मिले तब वह हमारे लिए और हमारी सफलता के लिए कितनी मायने रखती है? संतुष्टि से हमारा मानसिक स्वास्थ्य और बेहतर होता है। मन में चिंता, भय, आशंका से मुक्ति मिलती है और जब मन संतुष्ट होता है तो हम शारीरिक तौर पर भी स्वस्थ रहने लगते हैं। इस समय समाज में प्रतिस्पर्धा की धारणा और तेज़ हो चुकी है। ऐसे में इस दौड़ से हटकर अपने काम में संतुष्ट होना बहुत आवश्यक है और यही सफलता का मूल मंत्र भी होना चाहिए।

इन तरीक़ों से संतुष्टि पा सकते हैं

काम का निर्धारण

आप जो भी काम कर रहे हैं उसका निर्धारण अपनी रुचि को ध्यान में रखकर करें न कि किसी दबाव में आकर। काम का निर्धारण ही आपके कार्य के प्रति संतुष्टि का पहला क़दम होता है। यदि आप अपने काम में रुचि सिर्फ़ इसलिए ले रहे हैं कि आपको ज़्यादा पैसा कमाना है, उस क्षेत्र में ज़्यादा अवसर हैं या फिर घर का वह कार्य जिसे करना ज़िम्मेदारी समझते हैं, तो आपको वह कार्य शुरुआत में भले ही ठीक लगे पर कुछ समय बाद उससे ऊब होने लगेगी। इसके बाद न ही अपने काम में संतुष्टि मिलेगी और न ही जीवन को लेकर संतुष्ट हो पाएंगे।

ख़ुद को समय दें

ज़िंदगी में सबसे बड़ी संतुष्टि तब होती है जब आप ख़ुद के लिए समय निकाल पाते हैं। दिनभर काम करने के बाद जब आराम से एक कप चाय पीते हैं तो दिनभर की सारी थकान और तनाव दोनों ही दूर हो जाते हैं। इससे आप काम करने की क्षमता, नई ऊर्जा महसूस करेंगे और काम में भी संतुष्टि मिलेगी।

दबाव न बनाएं

कुछ लोग बिना रुके लगातार काम करते जाते हैं। इससे काम ठीक से पूरा नहीं हो पाता है और मानसिक दबाव भी बढ़ता जाता है। काम घर का हो या दफ़्तर का, बीच-बीच में आराम करके पूरा करें। वहीं घर के कामों से महिलाएं भी ऊब जाती हैं, लेकिन ज़िम्मेदारी है इसलिए नज़रअंदाज़ करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। परंतु बदलाव कर सकती हैं, जैसे यदि आज खाना बनाने का मन नहीं है तो बाहर से मंगवा सकती हैं। घर के कामों से एक दिन का विराम लेने से भी संतुष्टि प्राप्त होगी।

 

Thursday, 16 November 2023

विकासोन्मुख भारत की नींव- नई शिक्षा नीति

 

विकासोन्मुख भारत की नींव- नई शिक्षा नीति



मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते। कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।।

लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् I किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।।

 

अर्थात व्यक्ति के जीवन में विद्या माता की तरह रक्षा करती है एवं जिस प्रकार पिता अपनी संतानों का भला करते हैं, उसी प्रकार विद्या मनुष्य का हित करती है। यह पत्नी के ही समान सारी थकान मिटा कर मन को रमाती, रिझाती व मनोरंजन करती है। लक्ष्मी की भांति वित्त, अर्थात धन की प्राप्ति कर व्यक्ति की शोभा बढ़ाती है और चारों दिशाओं में यश व कीर्ति फैलाती है।ऐसा क्या है जो विद्या द्वारा सिद्ध नहीं होता ?

आज शिक्षा दिवस के सुअवसर पर नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हैं, जिसका लक्ष्य है शिक्षार्थी का संपूर्ण विकास। मनुष्य का जीवन गुणों और प्रतिभाओं का भंडार है और यदि किसी भी मनुष्य के आधारभूत गुणों या ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का पूर्ण सदुपयोग उसके जीवन में नहीं किया जाता, तो उसके वो गुण और प्रतिभाएं व्यर्थ ही हो जाती हैं। हम अपने बाल्यकाल से एक ऐसी शिक्षा पद्धति की छत्र-छाया में पले-बढ़े, जिसमें सब विद्यार्थी एक-दूसरे की देखादेखी कोर्स का चयन करते थे, न उनकी प्रतिभाओं का आकलन शिक्षक करते थे, न ही अभिभावकों की ही दूरदृष्टि इस ओर जाती थी, या तो इंजीनियरिंग या मेडिकल या चार्टर्ड अकाउंटेंट या साधारण ग्रेजुएट होकर नौकरी ढूंढ़ने की प्रथा थी।  कुछ लोग सेना में या प्रतियोगिता वाली परीक्षाएं देकर सरकारी नौकरियों में चले जाते थे। न तो मार्गदर्शन किया जाता था कि कैसे अपने गुण या प्रतिभाओं का आकलन करके सही दिशा की ओर जीवन को ले जाना चाहिए, न ही विद्यार्थियों के पास इतनी जागृति थी कि वे इस ओर अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकें। वस्तुतः सारा शिक्षण का ढांचा ही कुछ इस प्रकार था कि अधिकांशतः युवा वर्ग दिशाहारा था।

              शिक्षा प्रणाली कुछ ऐसी थी, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवरोध उत्पन्न करती थी- मूल चिंतन और विचारधारा के विकास में अवरोध, काल्पनिक और नए वैचारिक और मानसिक शक्ति के विकास में अवरोध, मनुष्य की मूलभूत प्रतिभाओं के विकासीकरण में अवरोध।  देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए और सजग, विचारशील और नवीनतम आयामों को ग्रहण करने वाले एक सशक्त युवा वर्ग के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक था कि विषयों की जानकारी के साथ-साथ बच्चे समस्या समाधान, तार्किक और रचनात्मक रूप से सोचना सीखें, नया सोचें, अपने विचारों को विस्तृत करें। शिक्षण प्रक्रिया शिक्षार्थी केंद्रित, जिज्ञासा, खोज, संवाद के आधार पर लचीली हो, समग्र हो।

              इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखकर नई शिक्षा नीति का पदार्पण हुआ। नई शिक्षा नीति का लक्ष्य है- शिक्षार्थी का संपूर्ण विकास, जिसे साक्षरता,संख्याज्ञान, तार्किकता, समस्या समाधान, नैतिक, सामाजिक, भावनात्मक मूल्यों के विकास के द्वारा सम्भव  किया जा सके। ज्ञान, प्रज्ञा, सत्य की खोज भारत के प्राचीनतम शिक्षा पद्धतियों के आधार हैं जिनकी लौ के प्रकाश में नई शिक्षा पद्धति का ढांचा बहुत संयम और धैर्य से बिल्कुल वैसे ही गढ़ा जा रहा है जैसे कि एक मूर्तिकार अपनी छेनी की हल्की-हल्की चोट पहुँचा कर एक सुंदर-सुघड़ मूर्ति का निर्माण करता है।

भारत को सतत ऊंचाइयों की ओर बढ़ाने की दृष्टि से अति आवश्यक है कि भारत का युवा देश की विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी आवश्यकताओं, देश की कला, भाषा और ज्ञान परंपराओं के बारे में ठोस ज्ञान प्राप्त करे।  आजीविका और वैश्विक पारिस्थितिकी में तीव्र गति से आ रहे परिवर्तनों के कारण ये आवश्यक है कि देश का युवा इतना सक्षम हो कि विश्व पटल पर उसके आत्मविश्वास के सधे पांव कभी लड़खड़ाएं नहीं।

              राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मुख्यतः 4 भाग हैं और इसके कार्यान्वयन की पूर्णता का लक्ष्य वर्ष 2030 है ताकि वर्ष 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में वर्ष 2030 तक सभी के लिए सार्वभौमिक, गुणवत्तायुक्त सतत शिक्षा और जीवन पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। ये चार भाग हैं- स्कूल शिक्षा, उच्चतर शिक्षा, अन्य केंद्रीय विचारणीय मुद्दे और क्रियान्वयन की रणनीति।

स्कूली शिक्षा में बदलाव-स्कूल शिक्षा में मुख्य परिवर्तन ये किया जा रहा है जिसमें वर्तमान की 10+2 वाली स्कूल व्यवस्था (जो कि 6 वर्ष की आयु से आरंभ होती थी) को 3 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये नए शैक्षणिक और पाठ्यक्रम के आधार पर 5+3+3+4 की एक नई व्यवस्था का पुनर्गठन किया जाएगा। 3 से 5 वर्ष तक फाउंडेशनल, अगले 3 वर्ष प्रीपरेटरी, अगले 3 वर्ष मिडिल और अंतिम चार वर्ष सेकंडरी ढांचे को दिए जाएंगे। 3 वर्ष के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-भाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई- अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन) की एक मजबूत बुनियाद को इस नई शिक्षा नीति में शामिल किया जा रहा है, जिससे कि सही दिशा में सीखने की सही नींव डाली जा सके। द डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा) पर बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर उच्चतर गुणवत्ता वाले संसाधनों का एक राष्ट्रीय भंडार उपलब्ध कराया जाएगा। स्थानीय पुस्तकालयों में सभी भारतीय और स्थानीय भाषाओं की पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराई जाएंगी जिससे बाल्यकाल से ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त भी अच्छा साहित्य पढ़ने की आदत का विकास हो सके।

स्कूल शिक्षा नीति में इन विभिन्न आयामों पर नए मापदंड लगाए जाएंगे- प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा, बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान, ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या घटाना और सभी स्तरों पर शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना, विद्यालयों में पाठ्यक्रम और शिक्षण, शिक्षकों के लिए नए निर्णय, समतामूलक और समावेशी शिक्षा, स्कूल कॉम्प्लेक्स /क्लस्टर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस, स्कूल की शिक्षा हेतु मानक निर्धारण और प्रमाणन।

उच्चतर शिक्षा में बदलाव-युवाओं के लिए उच्चतर शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य युवा को समाज और देश की समस्याओं के लिए प्रबुद्ध, जागरूक, जानकार और सक्षम बनाना है ताकि युवा नागरिकों का उत्थान कर सकें और समस्याओं के सशक्त समाधान ढूंढ कर और उन समाधानों को कार्यान्वित करके एक प्रगतिशील, सुसंस्कृत, उत्पादक, प्रगतिशील और समृद्ध राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सकें। उच्चतर शिक्षा के सन्दर्भ में विभिन्न आयामों की ओर ये नई शिक्षा अग्रसर होती है जिसमें मुख्य हैं- गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय और महाविद्यालय,संस्थागत पुनर्गठन और समेकन, समग्र और बहु- विषयक शिक्षा, सीखने हेतु सर्वोत्तम वातावरण और छात्रों को सहयोग, प्रेरणादायक, सक्रिय और सक्षम संकाय, शिक्षा में समता का समावेश, भविष्य के अध्यापकों का निर्माण, व्यावसायिक शिक्षा का नवीन रूप, गुणवत्तायुक्त अकादमिक अनुसंधान, उच्चतर शिक्षा की नियामक प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन, उच्चतर शिक्षा संस्थानों में प्रभावी प्रशासन और नेतृत्व।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली और आजीविका और धनार्जन की सक्षमता का एक मापदंड अंग्रेज़ी भाषा भी है जो कि देश के अधिकांशतः युवा वर्ग के आत्मविश्वास की कमर तोड़ कर रख देता है और किसी न किसी पटल पर उनको कमतर साबित कर देता है, चाहे वो युवा कितना भी ज्ञान से भरा हुआ क्यों न हो। नई शिक्षा प्रणाली स्थानीय /भारतीय भाषाओं में शिक्षा या कार्यक्रमों का माध्यम प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त बहु विषयक विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा संस्थान (एच.ई.आई- हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स) सुगठित किए जाएंगे। शोध गहन विश्वविद्यालय शोध को महत्व देने वाले होंगे जबकि शिक्षक गहन विश्वविद्यालय गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण के साथ-साथ महत्वपूर्ण अनुसंधान का संचालन भी करेंगे। स्वायत्त डिग्री देने वाले कॉलेज स्नातक शिक्षण पर केंद्रित रहेंगे, ये तीनों ही संस्थान एक निरंतरता के साथ होंगे।

अभी देश में एच.ईआई. का नामकरण विभिन्न नामों से है जिसे मानकों के अनुसार मापदंड पूरा करने पर केवल 'विश्वविद्यालय' के नाम से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा।

कौशल विकास पर जोर देती नई शिक्षा नीति-भारत में समग्र और बहु विषयक शिक्षा की प्राचीन परंपरा है, ज्ञान का विभिन्न कलाओं के रूप में दर्शन भारतीय चिंतन की देन है जिसे पुनः भारतीय शिक्षा में शामिल किया जाएगा, इसका एक बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव ये होगा कि युवाओं के लिए कभी भी भविष्य में अर्थोपार्जन का कोई रास्ता बंद नहीं होगा और वो अपने संपूर्ण ज्ञान का प्रयोग स्वयं के व्यक्तिगत विकास में, सामाजिक और राष्ट्र के विकास में कर पाएंगे। उच्चतर शिक्षा संस्थानों को विभिन्न स्नातकोत्तर कार्यक्रमों की छूट दी जाएगी जैसे 3 वर्ष के स्नातक डिग्री वाले विद्यार्थियों के लिए 2 वर्षीय कार्यक्रम, 4 वर्ष के शोध स्नातक विद्यार्थियों के लिए एक वर्षीय स्नातकोत्तर कार्यक्रम और 5 वर्ष का एकीकृत स्नातक कार्यक्रम हो सकते हैं।

सीखने की आकर्षक और सहायक पद्धतियों के लिए विभिन्न पहल की जाएंगी जैसे कि उच्चतर शिक्षा में नई रचनात्मकता लाने के लिए पद्धति में नवाचार और लचीलापन लाना होगा और सी.बी.सी.एस. (चाॅयस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) का संशोधन करना होगा। उसकी जगह एक मानदंड आधारित ग्रेडिंग प्रणाली का निर्माण होगा जो प्रत्येक कार्यक्रम के लिए सीखने के लक्ष्यों के आधार पर छात्रों की उपलब्धियों का आकलन करेगा जिससे एक निष्पक्ष प्रणाली बन सकेगी।

दूसरा, छात्रों में गुणवत्ता पूर्ण आदान प्रदान हेतु विभिन्न क्लब और गतिविधियां कराई जाएंगी, जिससे कि एक स्वतंत्र माहौल में शिक्षकों का संबंध विद्यार्थियों के मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में भी हो।

तीसरा, आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को आर्थिक सहायता ही नहीं अपितु उनके शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बेहतर बनाने हेतु परामर्शदाता नियुक्त किए जाएंगे।

चौथा, ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग और ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता के लिए रूपरेखा तैयार करके नवीनीकृत किया जाएगा। और अंत में सारे कार्यक्रमों का यही लक्ष्य होगा कि सभी कार्यक्रम गुणवत्ता के वैश्विक मानकों को प्राप्त कर पाएं, इससे एक बहुत बड़ा देश को लाभ ये होगा कि युवा वर्ग दूसरे देशों की ओर कम आकर्षित होंगे और देश की प्रतिभाओं का सदुपयोग देश के विकास के लिए हो पाएगा।

सशक्त शिक्षा नीति विकास का आधार-अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को भी भारत के शिक्षण संस्थान आकर्षित करेंगे और भारत विश्वगुरु के रूप में अपनी नई पहचान बना पाएगा। युवा वर्ग का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो वैश्विक स्तर पर विभिन्न चुनौतियों का सामना निर्भीकता से कर पाएंगे। किसी भी देश के विकास, संपन्नता और सुदृढ़ सांस्कृतिक विकास का आधार सशक्त शिक्षा नीति होती है और नई शिक्षा नीति ऐसे सभी पहलुओं को लेकर चलेगी जिससे कि सारे ऊंचे मानकों पर स्वयं को स्थापित कर सके।

भारत की नई शिक्षा नीति का विज़न युवा वर्ग के व्यक्तित्व का विकास इस प्रकार करना है कि उनमें अपने मौलिक दायित्वों, संवैधानिक मूल्यों, देश के साथ जुड़ाव, बदलते विश्व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता उत्पन्न हो सके। सही मायने में वो वैश्विक नागरिक बनकर अपने ज्ञान, कौशल, मूल्यों का सदुपयोग करते हुए देश का नाम सतत ऊंचा कर सकें और साथ ही स्वयं भी गौरवान्वित हो सकें, क्योंकि-

 

नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।

नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥

अर्थात विद्या के समान कोई और भाई - बंधु नहीं है। न ही इस संसार में विद्या जैसा कोई मित्र है,  विद्या समान कोई वित्त अर्थात धन नहीं है, और न ही विद्या प्राप्ति के समानांतर संसार में कोई और सुख है।

 

 

 

मीता गुप्ता

‘मृगनयनी’-श्री वृंदावन लाल वर्मा का एक अद्भुत उपन्यास

‘मृगनयनी’-श्री वृंदावन लाल वर्मा का एक अद्भुत उपन्यास





साहित्य की विभिन्न विधाओं में से एक प्रमुख विद्या उपन्यास है गद्यात्मक विधाओं में इसे सबसे लोकप्रिय विधा माना जाता है, जिसमें जीवन के विभिन्न पक्षों पर विस्तार-विवेचन का अवसर प्राप्त होता है। प्रेमचंद जैसे महान उपन्यासकारों ने इस विधा को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं। आज विश्व की लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में उपन्यास का स्थान सर्वोपरि है। वृंदावन लाल वर्मा हिंदी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं, जिन्होंने इतिहास और कल्पना का सामंजस्य बिठाकर उपन्यास विधा को अत्यंत लोकप्रिय बना दिया है। इतिहास अपने आप में एक शुष्क विधा है तथा प्रायः इसे मन से पढ़ने वालों की संख्या न के बराबर ही होती है। परंतु इतिहास को कल्पना की चाशनी में डुबोकर महान कलाकारों-रचनाकारों ने उपन्यास के माध्यम को लोकप्रिय बना दिया है। इसी बहाने पाठक मनोरंजन के साथ-साथ इतिहास की भी जानकारी प्राप्त करते हैं। ‘मृगनयनी’ उपन्यास इतिहास और कल्पना का अद्भुत संगम है।

‘मृगनयनी’ उपन्यास में पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यंत सजीव है। ‘मृगनयनी’ राजा मानसिंह लाखी और अटल प्रमुख पात्र हैं। शेष सभी पात्र गौण है। उपन्यास के कथानक के विकास और पात्रों के चरित्र की गुत्थियों को सुलझाने के लिए संवादों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस उपन्यास में वर्मा जी ने उत्कृष्ट संवाद योजना बनाई है। सभी पात्रों के संवाद कथानक को उचित गति प्रदान करते हैं। होली के वातावरण में परस्पर संवाद योजना कथानक को जीवंत बना देती है। उदाहरण देखिए-

“बाहर निकलो बाहर! तुमको सिर से पैरर तक ना रंग दिया, तो मेरा नाम निन्नी नहीं।“

 इसके अतिरिक्त अन्य सभी पात्रों के संवाद भी सरल और स्पष्ट हैं। छोटे-छोटे संवादों से नाटकीयता का समावेश हुआ है। वर्मा जी ने इस उपन्यास में साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। पाठक बिना किसी मानसिक श्रम के उपन्यास में वर्णित विषय को सहज ही समझ लेता है। भाषा में ज़रा भी जटिलता प्रतीत नहीं होती। भाषा काव्यात्मक है, अलंकारों से बोझिल नहीं है। साथ ही साथ अनेक अरबी शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। इस उपन्यास का उद्देश्य है-विगत जीवन को व्यक्त करते हुए वर्तमान को सुधारने की प्रेरणा देना। वर्मा जी कहते हैं प्राचीन में बहुत कुछ अच्छा था कुछ बुरा। बुरे के हम शिकार हुए, अच्छे ने हमें सर्वनाश से बचा लिया। क्या वर्तमान और भविष्य के लिए हम प्राचीन से कुछ ले सकते हैं? प्राचीन की गलतियों से बच सकते हैं? हां, अवश्य्।  ‘मृगनयनी’ के माध्यम से यही संदेश दिया गया है कि कल और कर्तव्य के समन्वय के साथ-साथ देश की स्वतंत्रता की रक्षा और विकास के कार्यों में मनुष्य को निष्ठावान होना चाहिए। उपन्यास का दूसरा उद्देश्य है-श्रम के महत्व को प्रतिष्ठित करना। इसके अतिरिक्त उपन्यासकार की दृष्टि में भारत की जर्जरित राजनीतिक दशा का चित्रण करना भी लेखक का उद्देश्य है। उस समय देश छोटे-छोटे राज्यों और रियासतों में विभाजित था। सिकंदर लोदी और गयासुद्दीन के ग्वालियर आक्रमण की विभीषिका का वर्णन भी बड़ी सुंदरता से किया गया है। इन आक्रमणों से किसानों की खेती का नुकसान, मंदिरों की मूर्तियों का नष्ट होना आदि अनेक घटनाएं सजीव वन पड़ी हैं। इस तरह हम पाते हैं कि युद्ध की विभीषिका पर प्रकाश डालना भी उपन्यास का एक उद्देश्य है। जातिगत भेदभाव के दुष्परिणामों से अवगत कराना भी उपन्यास का उद्देश्य है। ‘मृगनयनी’ उपन्यास में नारी को प्रेरणादायी शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। वर्मा जी ने लाखी और ‘मृगनयनी’ के चरित्र-चित्रण के माध्यम से इसे व्यक्त किया है। इसी तरह बहु विवाह प्रथा का भी व्यंग्यात्मक चित्रण करके उसकी निरर्थकता को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ‘मृगनयनी’ उपन्यास शिल्प और औपन्यासिकत कला की दृष्टि से एक सफल रचना है। वर्मा जी ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी लेखन-कला का सुंदर परिचय दिया है।

 अतः मैं सभी पाठकों से यह अनुरोध करना चाहूंगी कि यदि आपने अभी तक ‘मृगनयनी’ को नहीं पढ़ा है, तो कृपया इसे खरीदे और इसे पढ़ें!

 

मीता गुप्ता 

Monday, 13 November 2023

दिवाली या दिवाला ?

 

दिवाली या दिवाला ?





दीप जलाओ,दीप जलाओ, आज दिवाली रे!

खुशी-खुशी सब हंसते आओ, आज दिवाली रे!!

मैं तो लूंगा खील-खिलौने, तुम भी लेना भाई,

नाचो-गाओ खुशी मनाओ, आज दिवाली आई॥

 

जब बचपन में यह कविता पढ़ी थी, तब दिवाली से निकलने वाले दिवाले का अंदाज़ा ही नहीं था। दिवाली हिंदुओं का सबसे बड़ा और सबसे ज़्यादा उत्साह से मनाया जाने वाला त्योहार है । इस उत्सव को अच्छे से संपन्न करने के लिए घर के मुखिया को कितना मैनेजमेंट करना पड़ता है, यह वही जानता है। ज़माना कोई भी रहा हो सीमित संसाधन के चलते आने वाले बेतहाशा खर्च निश्चित ही कुछ समय के लिए असहज तो कर ही देते है। वही हर किसी की साल भर की ख्वाहिश को पूर्ण करने की ज़िम्मेदारी घर के हेड होने के कारण उन्हीं के कंधे पर रहती है। फिर प्राथमिकता तय करनी पड़ती है कि किसे पूरा करे और किसे छोड़ दें। एक की मांग पूरी करो, तो दूसरा असंतुष्ट हो जाता है। त्योहार होने से कहीं से मदद की संभावना भी कम हो जाती है। आज लोगों के रहन-सहन का स्तर बदल गया है। आज का परिवार बाज़ार मार्केटिंग का भी शिकार हो रहा है। उत्सव में छूट के लोक-लुभावने विज्ञापन यह सोचने को मजबूर कर देते हैं कि ऐसा मौका पुनः मिलेगा कि नही? इसलिए इन दिनों भीड़-भाड़ में वो वह चीज़ भी ले लेता है, जो उसने बाज़ार जाने से नहीं थी। दुकान में अमीर ग्राहक पर ज़्यादा तवज्जो दी जाती है, क्योंकि दुकानदार को उसी से तो कमाना है।

दीपावली’ अर्थात दीयों की पंक्ति, एक पावन त्यौहार जिसे दीपोत्सव नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर दीप जलाकर अंधेरे को दूर किया जाता हैं, खुशियां मनाई जाती हैं, तरह-तरह की मिठाइयां, पकवान, पटाखे और नये कपड़े खरीदे जाते हैं, घरों की सफाई की जाती है। लेकिन इस बार दिवाली के मौके पर आम लोगों के चेहरे उतरे नज़र आ रहे हैं। लोगों के चेहरे से त्योहार की रौनक की चमक दूर होने का कारण है महंगाई। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी है। महंगाई की वजह से त्योहारों की खुशी भी कहीं खो गई है। सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। दिवाली आते ही घर का बजट गडबडाने का डर सताने लगता है। लेकिन करें भी तो क्या करें। बढ़ती मंहगाई ने अमीर व गरीब के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। आज अमीर और अमीर हो रहा है, ऐसे में वो तो महंगी से महंगी चीज़ बड़ी आसानी से खरीद सकते हैं लेकिन इस महंगाई के दौर में गरीब आदमी की तो मन गई दिवाली…वो तो सिर पकड़कर बैठ जाता है कि दिवाली कैसे मनाएं? और अगर किसी तरह गरीब इंसान मंहगाई से बच भी जाए तो नकली मिठाई, नकली पटाखे आदि आपका दीवाला निकाल देंगे और रही-सही कसर नशाखोर और जुएबाज़ लोग पूरी कर देंगे।

हिंदुओं के मुहूर्त का भी बेजा फायदा बाज़ार उठाता है। किसी भी दिन का अखबार उठा लो, एक-दो दिन की आड़ में ये लोग ऐसी तिथि निकाल लेते हैं, जो कभी सत्तर साल पहले, कभी-कभी सौ साल की तिथि दिखाकर बाज़ार की तरफ रुख करने के लिए विवश कर ही देते हैं। पर इस सब में घर का मुखिया अंत मे सब की मांग पूरी कर अपनी ज़रूरत को पीछे छोड़कर त्योहार में सब आर्थिक गम को दरकिनार कर शामिल होता है। घर वाले ज़रूर बोलते हैं कि आपने अपने लिए तो कुछ लिया ही नहीं, तो छद्म हंसी के साथ मेरे पास सब कुछ है; कहकर बात को विराम लगा देता है। कुल मिलाकर यह त्योहार अच्छे से संपन्न हो सके, उसकी यही कोशिश रहती है। ईनाम वालों की अघोषित और अनगिनत फौज और खड़ी हो जाती है, जो इसका हक तो नहीं रखती पर तथाकथित स्टेटस को रखने के लिए न चाह कर भी उसे संतुष्ट तो करना पड़ता है। कुल मिलाकर यह जंग से कम नही है ।

दीपावली अपने साथ पांच त्योहार लेकर आती है- धनतेरस, छोटी दीपावली या नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज। इन त्योहारों को मनाने के तरीकों में विविधता है, फिर भी गांवों में आज भी इन्हें शालीनता और शांति से मनाया जाता है। पटाखे, आतिशबाजी औरा विस्फोटक सामग्री हिंदू धर्म की पहचान कभी भी नहीं रही। पटाखों से ध्वनि और वायु प्रदूषण से सनातन परंपरा में विकृति आती है। ध्यान रहे दीपावली शब्द का सीधा अर्थ है दीपों की कतार, इसमें पटाखे शामिल नहीं होते हैं। इस देश में बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध से पहले शायद तोपखाना या अन्य विस्फोटक प्रयोग नहीं हुए थे। पटाखा की सामग्री मध्यपूर्व के देशों से आई है। भारत में विस्फोटक खनिजों के भंडार पाए ही नहीं जाते थे। प्रभु राम का स्वागत ढोल, नगाड़ों, गीतों और पुष्प वर्षा से हुआ होगा। लक्ष्मी के स्वागत के लिए गांवों में उनके पद चिह्न को अपने घर की तरफ बनाते हैं। गन्नों के खंडों, पत्र पुष्पों से स्थानीय सामग्री से लक्ष्मी का प्रतीक बनाते है। शहरों में विशेषकर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की पूजा करते हैं, लेकिन पटाखों की पूजा कब आरंभ हुई, यह जिज्ञासा का विषय है । ग्रामीण इलाकों में आज भी दीयों का ज्यादा महत्व है। ..

खुशियों का प्रतीक दीपोत्सव पर्व बीत चुका है। बच्चे ही नहीं, बड़े भी पूरे उल्लास से बम-पटाखे, फुलझड़ियां और अनार जला चुके हैं। तरह-तरह की आवाज़ व रोशनी निकल चुकी है। चिंता की बात ये है कि इनसे ध्वनि व वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ चुका है,  जो हमारी-आपकी सेहत का दिवाला निकाल रहा है। श्वांस, हृदय व अन्य गंभीर रोगियों के लिए तो ये दिन काफी काफी कष्टदायक बन गए हैं। कई हादसों में आंखों व त्वचा को नुकसान का खतरा भी बढ़ा है। ऐेसे में विशेषज्ञ आतिशबाजी को लेकर सचेत रहने व सावधानी बरतने की सलाह देते रहे हैं, लेकिन इस बौद्धिक दिवालिएपन का इलाज उनके पास भी नहीं है।

बहरहाल दिवाली आकर चली भी गई , लेकिन वो दिवाली वाली बात कहीं नजर नहीं आ रही…कुछ साल पहले तक दिवाली की तैयारियां एक महीने पहले ही शुरु हो जाती थी…लगता था कोई बड़ा त्योहार आ रहा है, लेकिन हमारी परंपराएं और हमारे त्योहार आधुनिकता और बाज़ारवाद की भेंट चढ़ गए हैं…दिया जलाओ, न जलाओ, लेकिन कुछ मीठा हो जाए…पूजा करो, न करो. लेकिन दिवाली के जश्न में थोड़ी शराब हो जाए। बाज़ार भी दिवाली के साजो-समान से भरा तो हुआ है लेकिन ज्यादातर सामान चाईनीज है…मिट्टी के दीयों की जगह चाईनीज दीयों और लाईटों ने ले ली है, यहां तक कि लक्ष्मी-गणेश भी चाईनीज है…वाह रे इंडिया…अब चाईनीज गणेश जी की पूजा भी चाईनीज में करेंगे शायद…

खैर, ये चाईनीज चीजें भी गरीबों के लिए नहीं है, ऐसी स्थिति में आम आदमी बड़ी मुश्किल से दिवाली मना पाता है और दिवाली मनाने का खामियाजा 2-3 महीने तक खर्चों में कटौती करके भुगतता है…और गरीब आदमी की बात छोड़ ही दीजिए वो बेचारा दिवाली वाले दिन भर पेट खाना भी खा ले, तो उसकी दिवाली तो मन गई समझो…गरीबों के लिए तो एक दीया तक जलाने के पैसे जुटाना भारी पड़ जाता है…सालभर अंधेरे में डूबी उनकी झोंपड़ी दिवाली के दिन भी जगमागा नहीं पाती…उनके बच्चे भी दिवाली के दिन आसमान में रोशनी देखकर ही खुश हो जाते है या अमीरों के बच्चों की ओर टकटकी लगाए देखते रहते है…शायद कोई उन्हें भी पटाखे या फुलझड़ी दे दे। लाखों घरों में दिवाली खुशी नहीं, बल्कि दुख और निराशा लेकर आती है।

दिवाली की रात की गई आतिशबाजी का असर पूरे भारत में दिखने लगा है। सोमवार सुबह ही दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग की मोटी चादर देखी गई है। हालांकि, यह हाल सिर्फ इस क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दिवाली के बाद प्रदूषण का यह असर कई और शहरों में भी देखा जा रहा है। इनमें मुंबई और कोलकाता जैसे मेट्रो शहर भी शामिल हैं। दोनों ही शहरों में सुबह ही धुंध छाई रही। … अब तो ये ही लगता है कि ‘दिवाली तो दिवाला निकाल देगी’।

दीप जलाओ,दीप जलाओ, आज दिवाली रे!

खुशी-खुशी सब लुटते आओ, आज दिवाली रे!!

मैं तो लूंगा विदेशी उपहार, मिठाई-चॉकलेट आई,

अब कैसे नाचे-गाएं, आज दिवाला भया भाई॥

 

मीता गुप्ता

 

 

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