विकासोन्मुख भारत की नींव- नई शिक्षा नीति
मातेव रक्षति पितेव
हिते नियुंक्ते। कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।।
लक्ष्मीं तनोति
वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् I किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।।
अर्थात व्यक्ति के
जीवन में विद्या माता की तरह रक्षा करती है एवं जिस प्रकार पिता अपनी संतानों का
भला करते हैं,
उसी प्रकार विद्या मनुष्य का हित करती है। यह पत्नी के ही समान सारी
थकान मिटा कर मन को रमाती, रिझाती व मनोरंजन करती है।
लक्ष्मी की भांति वित्त, अर्थात धन की प्राप्ति कर व्यक्ति
की शोभा बढ़ाती है और चारों दिशाओं में यश व कीर्ति फैलाती है।ऐसा क्या है जो
विद्या द्वारा सिद्ध नहीं होता ?
आज शिक्षा दिवस के
सुअवसर पर नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हैं, जिसका लक्ष्य है शिक्षार्थी का संपूर्ण विकास।
मनुष्य का जीवन गुणों और प्रतिभाओं का भंडार है और यदि किसी भी मनुष्य के आधारभूत
गुणों या ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का पूर्ण सदुपयोग उसके जीवन में नहीं किया जाता, तो उसके वो गुण और प्रतिभाएं व्यर्थ ही हो जाती हैं। हम अपने बाल्यकाल से
एक ऐसी शिक्षा पद्धति की छत्र-छाया में पले-बढ़े, जिसमें सब
विद्यार्थी एक-दूसरे की देखादेखी कोर्स का चयन करते थे, न
उनकी प्रतिभाओं का आकलन शिक्षक करते थे, न ही अभिभावकों की
ही दूरदृष्टि इस ओर जाती थी, या तो इंजीनियरिंग या मेडिकल या
चार्टर्ड अकाउंटेंट या साधारण ग्रेजुएट होकर नौकरी ढूंढ़ने की प्रथा थी। कुछ लोग सेना में या प्रतियोगिता वाली
परीक्षाएं देकर सरकारी नौकरियों में चले जाते थे। न तो मार्गदर्शन किया जाता था कि
कैसे अपने गुण या प्रतिभाओं का आकलन करके सही दिशा की ओर जीवन को ले जाना चाहिए,
न ही विद्यार्थियों के पास इतनी जागृति थी कि वे इस ओर अपनी बुद्धि
का प्रयोग कर सकें। वस्तुतः सारा शिक्षण का ढांचा ही कुछ इस प्रकार था कि
अधिकांशतः युवा वर्ग दिशाहारा था।
शिक्षा
प्रणाली कुछ ऐसी थी, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवरोध उत्पन्न
करती थी- मूल चिंतन और विचारधारा के विकास में अवरोध, काल्पनिक
और नए वैचारिक और मानसिक शक्ति के विकास में अवरोध, मनुष्य
की मूलभूत प्रतिभाओं के विकासीकरण में अवरोध।
देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए और सजग, विचारशील और
नवीनतम आयामों को ग्रहण करने वाले एक सशक्त युवा वर्ग के निर्माण के लिए बहुत
आवश्यक था कि विषयों की जानकारी के साथ-साथ बच्चे समस्या समाधान, तार्किक और रचनात्मक रूप से सोचना सीखें, नया सोचें,
अपने विचारों को विस्तृत करें। शिक्षण प्रक्रिया शिक्षार्थी केंद्रित,
जिज्ञासा, खोज, संवाद के
आधार पर लचीली हो, समग्र हो।
इन्हीं
बिंदुओं को ध्यान में रखकर नई शिक्षा नीति का पदार्पण हुआ। नई शिक्षा नीति का
लक्ष्य है- शिक्षार्थी का संपूर्ण विकास, जिसे साक्षरता,संख्याज्ञान,
तार्किकता, समस्या समाधान, नैतिक, सामाजिक, भावनात्मक
मूल्यों के विकास के द्वारा सम्भव किया जा
सके। ज्ञान, प्रज्ञा, सत्य की खोज भारत
के प्राचीनतम शिक्षा पद्धतियों के आधार हैं जिनकी लौ के प्रकाश में नई शिक्षा
पद्धति का ढांचा बहुत संयम और धैर्य से बिल्कुल वैसे ही गढ़ा जा रहा है जैसे कि एक
मूर्तिकार अपनी छेनी की हल्की-हल्की चोट पहुँचा कर एक सुंदर-सुघड़ मूर्ति का
निर्माण करता है।
भारत को सतत ऊंचाइयों
की ओर बढ़ाने की दृष्टि से अति आवश्यक है कि भारत का युवा देश की विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक
और तकनीकी आवश्यकताओं, देश की कला, भाषा
और ज्ञान परंपराओं के बारे में ठोस ज्ञान प्राप्त करे। आजीविका और वैश्विक पारिस्थितिकी में तीव्र गति
से आ रहे परिवर्तनों के कारण ये आवश्यक है कि देश का युवा इतना सक्षम हो कि विश्व
पटल पर उसके आत्मविश्वास के सधे पांव कभी लड़खड़ाएं नहीं।
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 के मुख्यतः 4 भाग हैं और इसके कार्यान्वयन की पूर्णता का लक्ष्य
वर्ष 2030 है ताकि वर्ष 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में
वर्ष 2030 तक सभी के लिए सार्वभौमिक, गुणवत्तायुक्त सतत शिक्षा और जीवन पर्यंत शिक्षा
के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। ये चार भाग हैं-
स्कूल शिक्षा, उच्चतर शिक्षा, अन्य
केंद्रीय विचारणीय मुद्दे और क्रियान्वयन की रणनीति।
स्कूली शिक्षा में
बदलाव-स्कूल शिक्षा में मुख्य परिवर्तन ये किया जा रहा है जिसमें वर्तमान की
10+2 वाली स्कूल व्यवस्था (जो कि 6 वर्ष की आयु से आरंभ होती थी) को 3 वर्ष से 18
वर्ष की आयु के बच्चों के लिये नए शैक्षणिक और पाठ्यक्रम के आधार पर 5+3+3+4 की एक
नई व्यवस्था का पुनर्गठन किया जाएगा। 3 से 5 वर्ष तक फाउंडेशनल, अगले 3 वर्ष प्रीपरेटरी, अगले 3 वर्ष मिडिल और अंतिम
चार वर्ष सेकंडरी ढांचे को दिए जाएंगे। 3 वर्ष के बच्चों के लिए प्रारंभिक
बाल्यावस्था देख-भाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई- अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन) की
एक मजबूत बुनियाद को इस नई शिक्षा नीति में शामिल किया जा रहा है, जिससे कि सही दिशा में सीखने की सही नींव डाली जा सके। द डिजिटल
इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा) पर बुनियादी साक्षरता और संख्या
ज्ञान पर उच्चतर गुणवत्ता वाले संसाधनों का एक राष्ट्रीय भंडार उपलब्ध कराया
जाएगा। स्थानीय पुस्तकालयों में सभी भारतीय और स्थानीय भाषाओं की पुस्तकें
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराई जाएंगी जिससे बाल्यकाल से ही पाठ्यक्रम की
पुस्तकों के अतिरिक्त भी अच्छा साहित्य पढ़ने की आदत का विकास हो सके।
स्कूल शिक्षा नीति
में इन विभिन्न आयामों पर नए मापदंड लगाए जाएंगे- प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल
और शिक्षा, बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान, ड्रॉप आउट बच्चों
की संख्या घटाना और सभी स्तरों पर शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना, विद्यालयों में पाठ्यक्रम और शिक्षण, शिक्षकों के
लिए नए निर्णय, समतामूलक और समावेशी शिक्षा, स्कूल कॉम्प्लेक्स /क्लस्टर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस,
स्कूल की शिक्षा हेतु मानक निर्धारण और प्रमाणन।
उच्चतर शिक्षा में
बदलाव-युवाओं के लिए उच्चतर शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य युवा को समाज और देश की
समस्याओं के लिए प्रबुद्ध, जागरूक, जानकार
और सक्षम बनाना है ताकि युवा नागरिकों का उत्थान कर सकें और समस्याओं के सशक्त
समाधान ढूंढ कर और उन समाधानों को कार्यान्वित करके एक प्रगतिशील, सुसंस्कृत, उत्पादक, प्रगतिशील
और समृद्ध राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सकें। उच्चतर शिक्षा के सन्दर्भ में विभिन्न
आयामों की ओर ये नई शिक्षा अग्रसर होती है जिसमें मुख्य हैं- गुणवत्तापूर्ण
विश्वविद्यालय और महाविद्यालय,संस्थागत पुनर्गठन और समेकन,
समग्र और बहु- विषयक शिक्षा, सीखने हेतु
सर्वोत्तम वातावरण और छात्रों को सहयोग, प्रेरणादायक,
सक्रिय और सक्षम संकाय, शिक्षा में समता का
समावेश, भविष्य के अध्यापकों का निर्माण, व्यावसायिक शिक्षा का नवीन रूप, गुणवत्तायुक्त
अकादमिक अनुसंधान, उच्चतर शिक्षा की नियामक प्रणाली में
आमूलचूल परिवर्तन, उच्चतर शिक्षा संस्थानों में प्रभावी
प्रशासन और नेतृत्व।
वर्तमान शिक्षा
प्रणाली और आजीविका और धनार्जन की सक्षमता का एक मापदंड अंग्रेज़ी भाषा भी है जो
कि देश के अधिकांशतः युवा वर्ग के आत्मविश्वास की कमर तोड़ कर रख देता है और किसी
न किसी पटल पर उनको कमतर साबित कर देता है, चाहे वो युवा कितना भी ज्ञान से भरा हुआ क्यों न
हो। नई शिक्षा प्रणाली स्थानीय /भारतीय भाषाओं में शिक्षा या कार्यक्रमों का
माध्यम प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त बहु विषयक विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा
संस्थान (एच.ई.आई- हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स) सुगठित किए जाएंगे। शोध गहन
विश्वविद्यालय शोध को महत्व देने वाले होंगे जबकि शिक्षक गहन विश्वविद्यालय
गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण के साथ-साथ महत्वपूर्ण अनुसंधान का संचालन भी करेंगे।
स्वायत्त डिग्री देने वाले कॉलेज स्नातक शिक्षण पर केंद्रित रहेंगे, ये तीनों ही संस्थान एक निरंतरता के साथ होंगे।
अभी देश में
एच.ईआई. का नामकरण विभिन्न नामों से है जिसे मानकों के अनुसार मापदंड पूरा करने पर
केवल 'विश्वविद्यालय' के नाम से प्रतिस्थापित कर दिया
जाएगा।
कौशल विकास पर जोर
देती नई शिक्षा नीति-भारत में समग्र और बहु विषयक शिक्षा की प्राचीन
परंपरा है, ज्ञान का विभिन्न कलाओं के रूप में दर्शन भारतीय
चिंतन की देन है जिसे पुनः भारतीय शिक्षा में शामिल किया जाएगा, इसका एक बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव ये होगा कि युवाओं के लिए कभी भी भविष्य
में अर्थोपार्जन का कोई रास्ता बंद नहीं होगा और वो अपने संपूर्ण ज्ञान का प्रयोग
स्वयं के व्यक्तिगत विकास में, सामाजिक और राष्ट्र के विकास
में कर पाएंगे। उच्चतर शिक्षा संस्थानों को विभिन्न स्नातकोत्तर कार्यक्रमों की
छूट दी जाएगी जैसे 3 वर्ष के स्नातक डिग्री वाले विद्यार्थियों के लिए 2 वर्षीय
कार्यक्रम, 4 वर्ष के शोध स्नातक विद्यार्थियों के लिए एक
वर्षीय स्नातकोत्तर कार्यक्रम और 5 वर्ष का एकीकृत स्नातक कार्यक्रम हो सकते हैं।
सीखने की आकर्षक
और सहायक पद्धतियों के लिए विभिन्न पहल की जाएंगी जैसे कि उच्चतर शिक्षा में नई
रचनात्मकता लाने के लिए पद्धति में नवाचार और लचीलापन लाना होगा और सी.बी.सी.एस.
(चाॅयस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) का संशोधन करना होगा। उसकी जगह एक मानदंड आधारित
ग्रेडिंग प्रणाली का निर्माण होगा जो प्रत्येक कार्यक्रम के लिए सीखने के लक्ष्यों
के आधार पर छात्रों की उपलब्धियों का आकलन करेगा जिससे एक निष्पक्ष प्रणाली बन
सकेगी।
दूसरा, छात्रों
में गुणवत्ता पूर्ण आदान प्रदान हेतु विभिन्न क्लब और गतिविधियां कराई जाएंगी,
जिससे कि एक स्वतंत्र माहौल में शिक्षकों का संबंध विद्यार्थियों के
मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में भी हो।
तीसरा, आर्थिक
रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को आर्थिक सहायता ही नहीं अपितु उनके शारीरिक,
मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बेहतर बनाने हेतु परामर्शदाता
नियुक्त किए जाएंगे।
चौथा, ओपन एंड
डिस्टेंस लर्निंग और ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता के लिए रूपरेखा तैयार करके
नवीनीकृत किया जाएगा। और अंत में सारे कार्यक्रमों का यही लक्ष्य होगा कि सभी
कार्यक्रम गुणवत्ता के वैश्विक मानकों को प्राप्त कर पाएं, इससे
एक बहुत बड़ा देश को लाभ ये होगा कि युवा वर्ग दूसरे देशों की ओर कम आकर्षित होंगे
और देश की प्रतिभाओं का सदुपयोग देश के विकास के लिए हो पाएगा।
सशक्त शिक्षा नीति विकास
का आधार-अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को भी भारत के शिक्षण संस्थान आकर्षित
करेंगे और भारत विश्वगुरु के रूप में अपनी नई पहचान बना पाएगा। युवा वर्ग का
आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो वैश्विक स्तर पर विभिन्न चुनौतियों का सामना निर्भीकता
से कर पाएंगे। किसी भी देश के विकास, संपन्नता और सुदृढ़
सांस्कृतिक विकास का आधार सशक्त शिक्षा नीति होती है और नई शिक्षा नीति ऐसे सभी
पहलुओं को लेकर चलेगी जिससे कि सारे ऊंचे मानकों पर स्वयं को स्थापित कर सके।
भारत की नई शिक्षा
नीति का विज़न युवा वर्ग के व्यक्तित्व का विकास इस प्रकार करना है कि उनमें अपने
मौलिक दायित्वों,
संवैधानिक मूल्यों, देश के साथ जुड़ाव,
बदलते विश्व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता
उत्पन्न हो सके। सही मायने में वो वैश्विक नागरिक बनकर अपने ज्ञान, कौशल, मूल्यों का सदुपयोग करते हुए देश का नाम सतत
ऊंचा कर सकें और साथ ही स्वयं भी गौरवान्वित हो सकें,
क्योंकि-
नास्ति विद्यासमो
बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं
वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
अर्थात विद्या के
समान कोई और भाई - बंधु नहीं है। न ही इस संसार में विद्या जैसा कोई मित्र है, विद्या समान कोई वित्त अर्थात धन नहीं है,
और न ही विद्या प्राप्ति के समानांतर संसार में कोई और सुख है।

मीता गुप्ता