‘मृगनयनी’-श्री वृंदावन लाल वर्मा का एक अद्भुत उपन्यास
साहित्य की विभिन्न विधाओं में से एक प्रमुख विद्या उपन्यास
है गद्यात्मक विधाओं में इसे सबसे लोकप्रिय विधा माना जाता है, जिसमें जीवन के विभिन्न पक्षों पर विस्तार-विवेचन
का अवसर प्राप्त होता है। प्रेमचंद जैसे महान उपन्यासकारों ने इस विधा को नई ऊंचाइयां
प्रदान की हैं। आज विश्व की लोकप्रिय साहित्यिक विधाओं में उपन्यास का स्थान सर्वोपरि
है। वृंदावन लाल वर्मा हिंदी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं, जिन्होंने इतिहास और कल्पना का सामंजस्य बिठाकर उपन्यास विधा को अत्यंत
लोकप्रिय बना दिया है। इतिहास अपने आप में एक शुष्क विधा है तथा प्रायः इसे मन से
पढ़ने वालों की संख्या न के बराबर ही होती है। परंतु इतिहास को कल्पना की चाशनी
में डुबोकर महान कलाकारों-रचनाकारों ने उपन्यास के माध्यम को लोकप्रिय बना दिया है।
इसी बहाने पाठक मनोरंजन के साथ-साथ इतिहास की भी जानकारी प्राप्त करते हैं। ‘मृगनयनी’
उपन्यास इतिहास और कल्पना का अद्भुत संगम है।
‘मृगनयनी’ उपन्यास में पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यंत सजीव
है। ‘मृगनयनी’ राजा मानसिंह लाखी और अटल प्रमुख पात्र हैं। शेष सभी पात्र गौण है।
उपन्यास के कथानक के विकास और पात्रों के चरित्र की गुत्थियों को सुलझाने के लिए
संवादों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस उपन्यास में वर्मा जी ने
उत्कृष्ट संवाद योजना बनाई है। सभी पात्रों के संवाद कथानक को उचित गति प्रदान
करते हैं। होली के वातावरण में परस्पर संवाद योजना कथानक को जीवंत बना देती है।
उदाहरण देखिए-
“बाहर निकलो बाहर! तुमको सिर से पैरर तक ना रंग
दिया, तो मेरा नाम
निन्नी नहीं।“
इसके अतिरिक्त अन्य
सभी पात्रों के संवाद भी सरल और स्पष्ट हैं। छोटे-छोटे संवादों से नाटकीयता का
समावेश हुआ है। वर्मा जी ने इस उपन्यास में साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है।
पाठक बिना किसी मानसिक श्रम के उपन्यास में वर्णित विषय को सहज ही समझ लेता है।
भाषा में ज़रा भी जटिलता प्रतीत नहीं होती। भाषा काव्यात्मक है, अलंकारों से बोझिल नहीं है। साथ ही साथ
अनेक अरबी शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। इस उपन्यास का उद्देश्य है-विगत जीवन
को व्यक्त करते हुए वर्तमान को सुधारने की प्रेरणा देना। वर्मा जी कहते हैं
प्राचीन में बहुत कुछ अच्छा था कुछ बुरा। बुरे के हम शिकार हुए, अच्छे ने हमें सर्वनाश से बचा लिया। क्या वर्तमान और भविष्य के लिए हम
प्राचीन से कुछ ले सकते हैं? प्राचीन की गलतियों से बच सकते
हैं? हां, अवश्य्। ‘मृगनयनी’ के माध्यम से यही संदेश दिया गया है
कि कल और कर्तव्य के समन्वय के साथ-साथ देश की स्वतंत्रता की रक्षा और विकास के
कार्यों में मनुष्य को निष्ठावान होना चाहिए। उपन्यास का दूसरा उद्देश्य है-श्रम
के महत्व को प्रतिष्ठित करना। इसके अतिरिक्त उपन्यासकार की दृष्टि में भारत की जर्जरित
राजनीतिक दशा का चित्रण करना भी लेखक का उद्देश्य है। उस समय देश छोटे-छोटे
राज्यों और रियासतों में विभाजित था। सिकंदर लोदी और गयासुद्दीन के ग्वालियर
आक्रमण की विभीषिका का वर्णन भी बड़ी सुंदरता से किया गया है। इन आक्रमणों से
किसानों की खेती का नुकसान, मंदिरों की मूर्तियों का नष्ट
होना आदि अनेक घटनाएं सजीव वन पड़ी हैं। इस तरह हम पाते हैं कि युद्ध की विभीषिका
पर प्रकाश डालना भी उपन्यास का एक उद्देश्य है। जातिगत भेदभाव के दुष्परिणामों से
अवगत कराना भी उपन्यास का उद्देश्य है। ‘मृगनयनी’ उपन्यास में नारी को प्रेरणादायी
शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। वर्मा जी ने लाखी और ‘मृगनयनी’ के चरित्र-चित्रण
के माध्यम से इसे व्यक्त किया है। इसी तरह बहु विवाह प्रथा का भी व्यंग्यात्मक
चित्रण करके उसकी निरर्थकता को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार यह
कहा जा सकता है कि ‘मृगनयनी’ उपन्यास शिल्प और औपन्यासिकत कला की दृष्टि से एक सफल
रचना है। वर्मा जी ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी लेखन-कला का सुंदर परिचय दिया
है।
अतः मैं सभी पाठकों
से यह अनुरोध करना चाहूंगी कि यदि आपने अभी तक ‘मृगनयनी’ को नहीं पढ़ा है, तो कृपया इसे खरीदे और इसे पढ़ें!
मीता गुप्ता
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