Thursday, 14 May 2020

तुम्हारे जन्मदिन पर



तुम्हारे जन्मदिन पर
हँसे हवा
हँसे फूल
हँसे पृथ्वी
जल-थल-अंतरिक्ष
हँसें सितारे
हँसे कूल
और इनके साथ साथ
हँसो मैं
हँसो तुम
हँसे तुम्हारा दुकूल
नहो कुछ प्रतिकूल
जीवन बने अनुकूल

"पता ही नहीं चला"




"पता ही नहीं चला"

ज़िन्दगी की इस आपाधापी में,
कब निकली उम्र मेरी, पता ही नहीं चला,

कंधे पर चढ़ते बच्चे कब,
कंधे तक आ गए, पता ही नहीं चला,

एक कमरे से शुरू मेरा सफर कब ,
बंगले तक आया, पता ही नहीं चला,

साइकल के पेडल मारते हांफते ते जब,
बड़ी गाड़ियों में लगे फिरने कब, पता ही नहीं चला,

हरे भरे पेड़ों से भरे जंगल थे तब,
कब हुए कंक्रीट के, पता ही नहीं चला,

कभी थे जिम्मेदारी माँ बाप की हम,
कब बच्चों के लिए हुए जिम्मेदार, पता ही नहीं चला,

एक दौर था जब दिन को भी बेखबर सो जाते थे,
कब रातों की उड़ गयी नींद, पता ही नहीं चला,

बनेगे माँ बाप सोचकर कटता नहीं था वक़्त,
कब बच्चो के बच्चे हो गए, पता ही नहीं चला,

जिन काले घने बालों पे इतराते थे हम,
रंगना शुरू कर दिया कब, पता ही नहीं चला,

दिवाली होली मिलते थे यारों, दोस्तों, रिश्तेदारों से,
कब छीन ली मोहब्बत आज के दौर ने, पता ही नहीं चला,

दर दर भटके है नौकरी की खातिर खुद हम,
कब करने लगे सेकड़ों नौकरी हमारे यहाँ, पता ही नहीं चला,

बच्चों के लिए कमाने, बचाने में इतने मशगूल हुए हम,
कब बच्चे हमसे हुए दूर, पता ही नहीं चला,

भरा पूरा परिवार से सीना चौड़ा रखते थे हम,
कब परिवार हम दो पर सिमटा, पता ही नहीं चला।।।।।


तब.......जब




तब.....
आशाओं के दीप,
दीपों की ऊर्ध्वमुखी लौ
मेरी दहलीज़ को  प्रकाशित करती,
विह्वल मनःस्थिति में भी
मेरे मुखमण्डल पर
उजली से मुस्कान खिलती ।
हँसते-गाते तय कर लेती
टेढ़े-मेढ़े-विचित्र से रास्तों को,
कभी सुलझा लेती,
कभी यूँ ही छोड़ देती लझनों को
पहाड़ों की ऊँचाइयाँ,
सागर की गहराइयाँ,
लभ्य लगने लगतीं,
बहुत सरल लगने लगतीँ।
जब...
मेरे घर की दीवारें
प्रेम से पगी ईंटों से निर्मित होतीं
मेरे आँगन में  तुलसी महकती,
मेरे परिवार में सब साथ मिलकर
सुख-दुःख बाँटते...
क्योंकि बांटना ज़रूरी है...
बिन अपनों के साथ के
सारी आशाएँ,
सारी उपलब्धियाँ,
सारे सपने,
सारे अपने,
सब अधूरे हैं......
सब अधूरे हैं ।

Saturday, 9 May 2020

एक सपना बुन


चल बेवजह एक सपना बुन,

राह बन, राह बुन!



मंजिलों की दोराहों पर,

क्यों तू खुद को बाँट रहा,

सपनों के इस झुरमुट में,

बेवजह ही खुद को काट रहा ।



सपना है जो, एक ही है,

बाकी इस मन की चाह है,

वो एक सपना जो तेरा है,

वही मंजिल, वही राह है ।



जान भी जाए, मान भी जाए,

उस सपने को,सच करने में,

जाती है तो शान भी जाए,

क्या तेरा ईमान भी जाए ।



पर तुझे उसकी परवाह नहीं,

क्योंकि वो सपना तू ही है,

तू हकीकत भी, तू सपना भी,

जो भी है, सब तू ही है ।



तुझे खुद को ही पाना है,

इस दुनिया में फिर लाना है,

खुद ही एक सपना बन,

खुद को ही सच कर जाना है ।



बस यही एक हकीकत है,

बस तू ही तेरा ख्व़ाब है,

तेरे भीतर एक खुदा है जो,

वही तू, तेरा नाम है ।



अब एक पल को ठहर,

समझ, थोड़ा जान खुद को,

क्या है तू, क्या बन सकता है,

तू कर सकता है, मान खुद को ।



फिर तेरे दिल की राह से,

वो एक सपना नज़र आएगा,

जिसमें तू खुद को,

शांत और सम्पूर्ण पाएगा।



सच होकर वो सपना फिर,

तेरी हकीकत कहलाएगा,

तू खुद ही एक सपना बन,

खुद को ही सच कर जाएगा ।

तू अपने सपने के लिए युद्ध कर



तू अपने सपने के लिए युद्ध कर “

माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना

माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन

सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर तू युद्ध कर

इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर बस युद्ध कर



कुछ सपने बोये थे


कुछ सपने बोये थे

उसने कुछ सपने बोये थे,

जमीन की करी गुड़ाई थी,

खेत की मुंडेर बनायीं थी,

बहुत  करी सिचाई थी,

फिर बो दिए सपनों के बीज |



सपने बेटे की पढाई के

बेटी की सगाई के

माँ बाबा की दवाई के

चुडी भरी बीबी की कलाई के

रोप दिए थे नन्हे पौधे |



उम्मीद भी यही थी

की कल जब ये पेड़ पनपेंगे

तो सपने भी जवान होंगे

धीमे धीमे परवान होंगे

और मिलेगा सुन्दर फल |



सपने सब बड़े हो रहे थे

आँखों के सामने खड़े हो रहे थे,

कोपलें मुस्कुरा रही थी

नन्ही कलियाँ खिलखिला रही थी

सपने बढ़ने जो लगे थे |



बेटे की उम्मीद की डोर

से उडी पतंग सी ,

बेटी की मन में भी कई

नयी नयी उमंग थी

सपनों ने ली अंगडाई थी |



माँ बाबा की आंखों में

नए से रंगीन ख्वाब थे



बीबी की कलाई में

चुडियों के रंग बेशुमार थे,

सपने रंग ला रहे थे |



अचानक सपने बरसने लगे,

ठंडी आग में झुलसने लगे,

अश्क बन आँखों से ढलकने लगे,

शुष्क रेत से सपने दरकने लगे ,

सपनो की मौत होने लगी थी |



आँखों आँखों में आँखों ने

तब  कई बातें की थी ,

जिन सपनों में रंग भरने को,

कितनी जवां रातें थी दी ,

वो सारे सपने आँखों के

स्याह अंधेरे ने आ घेरे थे |



सिर्फ एक सवाल था मन में

कहा से होगी बेटे की पढाई

कौन करेगा अब बेटी से सगाई

माँ-बाबा की दवा नहीं आई

सूनी रहेगी बीबी की कलाई |



ध्वस्त हुए  मुंडेर पे बैठे,

सीचे गए खेत को और बहते,

वक़्त से पहले समय के रहते,

समस्त सपने बीज रूप में ही,

सड़ने गलने लगे थे |



सिर्फ एक आभास था अब,

कुछ नहीं हाथ था अब ,

बोये हुए कुछ सपनो की,

अब सिर्फ बची लाश थी,

जिन्दगी उसके लिए परिहास थी |



आज सबकी भूख मिटाने वाला ,

अपनी ही  भूख से डर गया,

आँखों में बसे स्वप्न क्या टूटे

बिखरे सपने देख फिर किसान

वक़्त से पहले ही  मर गया |



क्या कोई हाथ नहीं ऐसा

जो बढ़ता आगे और कहता

तू ख्वाब नए फिर बो करके

सपनो को जिंदगानी देना,

पर न तू कभी जान देना |

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...