Saturday, 9 May 2020

एक सपना बुन


चल बेवजह एक सपना बुन,

राह बन, राह बुन!



मंजिलों की दोराहों पर,

क्यों तू खुद को बाँट रहा,

सपनों के इस झुरमुट में,

बेवजह ही खुद को काट रहा ।



सपना है जो, एक ही है,

बाकी इस मन की चाह है,

वो एक सपना जो तेरा है,

वही मंजिल, वही राह है ।



जान भी जाए, मान भी जाए,

उस सपने को,सच करने में,

जाती है तो शान भी जाए,

क्या तेरा ईमान भी जाए ।



पर तुझे उसकी परवाह नहीं,

क्योंकि वो सपना तू ही है,

तू हकीकत भी, तू सपना भी,

जो भी है, सब तू ही है ।



तुझे खुद को ही पाना है,

इस दुनिया में फिर लाना है,

खुद ही एक सपना बन,

खुद को ही सच कर जाना है ।



बस यही एक हकीकत है,

बस तू ही तेरा ख्व़ाब है,

तेरे भीतर एक खुदा है जो,

वही तू, तेरा नाम है ।



अब एक पल को ठहर,

समझ, थोड़ा जान खुद को,

क्या है तू, क्या बन सकता है,

तू कर सकता है, मान खुद को ।



फिर तेरे दिल की राह से,

वो एक सपना नज़र आएगा,

जिसमें तू खुद को,

शांत और सम्पूर्ण पाएगा।



सच होकर वो सपना फिर,

तेरी हकीकत कहलाएगा,

तू खुद ही एक सपना बन,

खुद को ही सच कर जाएगा ।

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