Wednesday, 30 August 2023

एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम

 

 

एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम



 

मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

जहाँ वास कँकड़ में हरि का, वहाँ नहीं चाँदी चमकीली

मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

मन में राम, बगल में गीता, घर-घर आदर रामायण का

किसी वंश का कोई मानव, अंश साझते नारायण का

लो गंगा-यमुना-सरस्वती या लो मंदिर-मस्जिद-गिरजा

ब्रह्मा-विष्णु-महेश भजो या जीवन-मरण-मोक्ष की चर्चा

सबका यहीं त्रिवेणी-संगम, ज्ञान गहनतम, कला रसीली

मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

भारत एक अद्भुत राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानो-बानो, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा एकता के सूत्र में बाँध कर हुआ हैं| एक साझा इतिहास के बीच आपसी समझ की भावना ने विविधता में एक विशेष एकता को सक्षम किया है, जो राष्ट्रवाद की एक लौ के रूप में सामने आती है, जिसे भविष्य में पोषित और अभिलषित करने की आवश्यकता है।

समय और तकनीक ने संपर्क और संचार के मामले में दूरियों को कम कर दिया है। ऐसे युग में जो गतिशीलता और आगे बढने की सुविधा है, उसे ध्यान में रखते हुए  विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के सामान्य दृष्टि कोण के द्वारा आपसी रिश्तो में मजबूती करना और राष्ट्र-निर्माण महत्वपूर्ण है। आपसी समझ और विश्वास भारत की ताकत की नींव है और भारत के सभी नागरिक सांस्कृतिक रूप से एकीकृत महसूस करते हैं।

31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाने की कल्पना की गई, जिसके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बनाए जा सकें। माननीय प्रधानमंत्री ने यह प्रतिपादित किया कि सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है, जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता के माध्यम से मनाया जाना चाहिए ताकि देश भर में समझ की एक सामान्य भावना प्रतिध्वनित हो। देश के प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश का एक वर्ष के लिए किसी अन्य राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश के साथ जोड़ा बनाया जाएगा, इस दौरान वे भाषा, साहित्य, भोजन, त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन आदि क्षेत्रों में एक दूसरे के साथ जुड़ेंगे| भागीदार राज्य/ केन्द्र शासित प्रदेश आपस में एक दूसरे को सास्कृतिक रूप से अंगीकृत करेंगे, जिससे आपसी जुड़ाव की लंबी प्रक्रिया का मार्गप्रशस्त होगा। सांस्कृतिक स्तर पर राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के प्रत्येक जोड़े की आबादी के विभिन्न क्षेत्रों के बीच इस तरह की बातचीत, लोगों के बीच समझ और प्रशंसा की भावना पैदा करेगी और आपसी संबंध बनाएगी, जिससे राष्ट्र एकता की भावना में समृधि हासिल होगी।

एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के उद्देश्य हैं-हमारे राष्ट्र की विविधता में एकता का जश्न मनाने और हमारे देश के लोगों के बीच पारंपरिक रूप से विद्यमान भावनात्मक संबंधों को बनाए रखने और मजबूत करना, राज्यों के बीच एक साल की योजनाबद्ध भागीदारी के माध्यम से सभी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच गहरी और संरचित भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देना, लोगों को भारत की विविधता को समझने और सराहने में सक्षम बनाने के लिए किसी भी राज्य की समृद्ध विरासत और संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं को प्रदर्शित करना, जिससे आम पहचान की भावना को बढ़ावा मिले, दीर्घकालिक जुड़ाव स्थापित करना और एक ऐसा वातावरण बनाना जो सर्वोत्तम प्रथाओं और अनुभवों को साझा करके राज्यों के बीच सीखने को बढ़ावा दे।

इस कार्यक्रम का दृष्टिकोण है- एक राष्ट्र के रूप में भारत के विचार का जश्न मनाने के लिए, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयाँ एकजुट होती हों और एक-दूसरे के साथ बातचीत करती हों, यह विविध भाषाओं, व्यंजनों, संगीत, नृत्य, थिएटर, फिल्मों और फिल्मों, हस्तशिल्प, खेल, साहित्य, त्यौहारों की शानदार अभिव्यक्ति है। पेंटिंग, मूर्तिकला आदि लोगों को बंधन और भाईचारे की सहज भावना को आत्मसात करने में सक्षम बनाएगी| हमारे लोगों को विशाल भूभाग में फैले आधुनिक भारतीय राज्य के निर्बाध अभिन्न ढांचे के बारे में जागरूक करना, जिसकी मजबूत नींव पर देश की भू-राजनीतिक ताकत से सभी को लाभ सुनिश्चित होगा। विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के घटकों के बीच बढ़ते अंतर-संबंध के बारे में बड़े पैमाने पर लोगों को प्रभावित करना, जो राष्ट्र निर्माण की भावना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न राज्यों में रहने वाले विभिन्न राज्यों, संस्कृतियों और परंपराओं के लोगों के बीच 'एक अजीब देश में अजनबी' की भावना को कम करना। इन घनिष्ठ अंतर-सांस्कृतिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से समग्र रूप से राष्ट्र के लिए जिम्मेदारी और स्वामित्व की भावना पैदा करना, क्योंकि इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से अंतर-निर्भरता मैट्रिक्स का निर्माण करना है। एक ही समय में राष्ट्र की विविधता और एकता का जश्न मनाना। लोगों के बीच समझ और प्रशंसा की भावना पैदा करना और राष्ट्र में एकता की एक समृद्ध मूल्य प्रणाली को सुरक्षित करने के लिए आपसी संबंध बनाना।

      निश्चित तौर पर यह कार्यक्रम जिन उदात्त भावों को जाग्रत करता है, उनसे देश का भविष्य उज्ज्वल बनेगा और अनेकता में एकता का भाव संचारित होगा-

अनेकता में एकता, हिन्द की श्रेष्ठता,

सबको जो मिलकर बनाए, एक अद्वितीय परिवार।

भाषाएं, धर्म, जाति भिन्न, पर आत्मा एक हमारी,

सबकी भावनाओं का सम्मान, यही है हिन्द की पहचान।

 

मीता गुप्ता

चंदामामा

 


बाल कविता

 

चंदामामा

 

चंदा मामा,चंदा मामा

आया विक्रम पहन पाजामा

 

कब से आस लगाई थी

अब पहुंचा हूं पास तुम्हारे

इतनी दूर बसे हो मामा

लगा लगाकर चक्कर हारे

राखी तुम्हारी लेकर आया,

भेजी मेरी भारत अम्मा।

चंदा मामा,चंदा मामा

आया विक्रम पहन पाजामा

 

घर की छत से तुम्हें निहारा

दिखते हमें चांदी की थाली

लेकिन यहां पर आकर देखा

सूरत उबड़-खाबड़ काली- काली

पर ओढ़े है अनुपम जामा

कैसे भी पर मेरे  मामा।

चंदा मामा,चंदा मामा

आया विक्रम पहन पाजामा

 

बात पते की तुम्हें बताऊं

तुम्हें पूजती सदा सुहागिन

अब मैं पता लगाऊंगा

घटते बढ़ते क्यों दिन दिन

शोधे करेंगे विज्ञानी चाचा

तप से पूरी मनश्च कामा।

चंदा मामा,चंदा मामा

आया विक्रम पहन पाजामा

 

बस तुम साथ निभाते रहना

धरती मैया तुम्हें निहारे

रत्नों का भंडार संजोए

तुम्हें पाते मन के हारे

विक्रम और प्रज्ञान संग में

पकड़ो अंगुली चंदा मामा।

चंदा मामा,चंदा मामा

आया विक्रम पहन पाजामा॥

 

मीता गुप्ता

 

Sunday, 13 August 2023

‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’(14 अगस्त)

 

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’(14 अगस्त)



https://drive.google.com/file/d/1SrzfVR-m5OAFitN7R0KI9D30L2DIEjHA/view?usp=drive_link


जहां जीवन की हर सुबह मुस्कान से पुलकित हो उठती थी,

वहां का मंजर देख आंसू भी खून हो गए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार-देश के बंटवारे के दर्द को कभी बुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गवांनी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया।

देश-दुनिया के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख का अहम स्थान है। दरअसल अखंड भारत के आजादी के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई है। यही वह तारीख है, जब देश का विभाजन हुआ। 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को पृथक राष्ट्र घोषित कर दिया गया। इस विभाजन में न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के दो टुकड़े किए गए, बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया। बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया। यह 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना। कहने को तो इसे देश का बंटवारा कहा गया, लेकिन यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था।

वास्तव में भारत का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और मजबूरी में पलायन की एक दर्दनाक कहानी है।  यह एक ऐसी कहानी है जिसमें लाखों लोग अजनबियों के बीच एकदम विपरीत वातावरण में नया आशियाना तलाश रहे थे। विश्वास और धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की कहानी होने के अतिरिक्त यह इस बात की भी कहानी है कि कैसे एक जीवन शैली तथा वर्षों पुराने सह अस्तित्व का युग अचानक और नाटकीय रूप से समाप्त हो गया। इस विभीषिका में मारे गए लोगों का आंकड़ा 5 लाख बताया जाता है, लेकिन अनुमानित है यह आंकड़ा 5 से 10 लाख के बीच है। 14 अगस्त के दिन को विभाजन -विभीषिका स्मृति -दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तीकरण और एकता को बढ़ावा देना है। 15 अगस्त 1947 के दिन हमने औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों को काट दिया था।

भारत का विभाजन विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कारकों का परिणाम था। भारत को स्वतंत्रता देने का ब्रिटिश सरकार का निर्णय बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन और भारतीय लोगों की स्व-शासन की इच्छा से प्रभावित था। हालाँकि विभाजन मुख्य रूप से हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच धार्मिक तनाव का परिणाम था।

भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 और 47 में हुई दहला देने वाली सांप्रदायिक हिंसा की व्यापकता पर विस्तार से लिखा गया है। हिंसा की प्रकृति न केवल लोगों के जीवन को नष्ट करने बल्कि दूसरे समूह की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को भी मिटा देने की थी। यह यथार्थ है कि जिन क्षेत्रों ने इस हिंसा को देखा, उन्होंने उन समुदायों को सदियों से सह अस्तित्व से रहते देखा था। पंजाब, बिहार, संयुक्त प्रांत और निश्चित रूप से बंगाल कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जहां सह अस्तित्व जीवन का एक तरीका रहा है। झड़पें पर होती थीं, लेकिन वे आमतौर पर स्थानीय थीं और जितनी जल्दी शुरू होती थीं, उतनी ही जल्दी खत्म भी हो जाती थीं। 1947 से पूर्व के पंजाब में एक भी ऐ,से गांव की पहचान कठिन होगी जिस पर किसी एक खास समुदाय द्वारा विशेषता के साथ दावा किया जा सके।

आज देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, किंतु आज एक पीढ़ी ऐसी भी है, जिसने विभाजन की विभीषिका को झेला है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने वो वक्त भी देखा था, जब तिरंगा लहराने के लिए उन के परिवार के कई लोगों ने यातनाएं झेली हैं। लेकिन हम खुशनसीब हैं कि हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं और कृतज्ञ हैं अपने उन पूर्वजों के प्रति जिनके त्याग और समर्पण की वजह से हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी।

सीमा के उसे पर बने एक नया संसार,

चलो एक नई शुरुआत करते हैं।

 

विभाजन की विभीषिका में अपने प्राण गंवाने वाले और विस्थापन का दर्द झेलने वाले लाखों भारतवासियों को शत-शत नमन!

 

आभार- भारत सरकार का विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का डॉक्यूमेंट

 

मीता गुप्ता

 

 

Saturday, 12 August 2023

यह तिरंगा…..

 यह तिरंगा…..






यह तिरंगा हमारी शान है,


विश्वभर में भारती की अमिट पहचान है,


यह तिरंगा हाथ में ले पग निरंतर ही बढ़े,


यह तिरंगा हाथ में ले दुश्मनों से हम लड़े,


यह तिरंगा विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है,


यह तिरंगा वीरता का गूंजता इक मंत्र है,


यह तिरंगा वन्दना है भारती का मान है,


यह तिरंगा विश्व जन को सत्य का अभिमान है,


यह तिरंगा कह रहा है अमर भारत देश है,


यह तिरंगा इस धरा पर शांति का संधान है,


इसके रंगो में बुना बलिदानियों का नाम है,


यह बनारस की सुबह है, यह अवध की शाम है,


यह कभी मंदिर, कभी यह गुरुओं का द्वार लगे,


चर्च का गुंबद कभी, मस्जिद की मीनार लगे,


यह तिरंगा गंगा-जमुनी तहज़ीब का सम्मान है,


यह तिरंगा बाइबिल है, भागवत का श्लोक है,


यह तिरंगा आयत-ए-कुरान का आलोक है,


यह तिरंगा वेद की पावन ऋचा का ज्ञान है,


यह तिरंगा स्वर्ग से सुंदर धरा कश्मीर है,


यह तिरंगा फेनिल कन्याकुमारी का नीर है,


यह तिरंगा माँ के होठों की मधुर मुस्कान है,


यह तिरंगा दिव्य नदियों का त्रिवेणी रूप है,


यह तिरंगा सूर्य की पहली किरण की धूप है,


यह तिरंगा भव्य हिमगिरि का अमर वरदान है,


शीत की ठंडी हवा, पर शत्रु के लिए अंगार है,


सावनी मौसम में मेघों का छलकता प्यार है,


झंझावतों में लहराए गुणों की खान है,


टैगोर के जनगीत जन-गण-मन का यह गुणगान है,


यह तिरंगा गांधी जी की शांति वाली खोज है,


यह तिरंगा नेताजी के दिल से निकला ओज है,


यह विवेकानंद जी का जगजयी अभियान है,


यह तिरंगा कह रहा मेरी संस्कृति महान है।


अनाम बलिदानियों की साधना, नवीन संधान है॥

Tuesday, 8 August 2023

अति से बचें

 

अति से बचें




अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

शास्त्रकारों ने सत्य कहा है- अति सर्वत्र वर्जयेत्। उन्होंने सब कामों में अति का विरोध किया है। कुछ विशिष्ट आत्माएं असाधारण तेज अपने साथ लेकर आती हैं, उनकी गतिविधि आरंभ से ही असाधारण होती है उनके कार्य भी लोकेत्तर होते हैं। ऐसी विशिष्ट आत्माओं की बात छोड़कर सर्वसाधारण के लिए मध्य मार्ग ही उचित और उपयुक्त है। भगवान बुद्ध ने मध्यमा का आचरण करने के लिए सर्वसाधारण को उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि मोक्ष तक पहुँचने के तीन सरलतम मार्ग हैं- पहला आष्टांग योग, दूसरा जिन त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को 'मध्यमा प्रतिपद' या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है। अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है।

बहुत तेज़ दौड़ने वाले जल्दी थक जाते हैं और बहुत धीरे चलने वाले अभीष्ट लक्ष्य तक पहुंचने में पिछड़ जाते हैं, जो मध्यम गति से चलता है, वह बिना रुके, बिना पिछड़े उचित समय पर अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाता है। चलिए, हाथी का उदाहरण लेते हैं....हाथी जब किसी नदी को पार करता है, तो अपना हर कदम बड़ी सावधानी से रखता है। आगे की ज़मीन को टटोल कर उस पर एक पैर जमाता है, जब देख लेता है कि कोई खतरा नहीं है, तो उस पर बोझ रखकर पिछले पैरों को हटाता है। इस गतिविधि से वह अत्यधिक वेग वाली नदी को भी पार कर लेता है। यदि वह जल्दी बाजी करे, तो वह गहरे पानी में डूब सकता है, किसी दलदल में फंस सकता है या किसी गड्ढे में औंधे मुंह गिरकर अपने प्राण गवां सकता है। साथ ही यदि वह कदम बढ़ाने का साहस न करें, पानी की तेज़ गति से बहती धारा को देख कर डर जाए, तो वह कभी नदी पार नहीं कर पाएगा। हाथी एक बुद्धिमान प्राणी है, वह अपने शरीर के भारी-भरकम डीलडौल का ध्यान रखता है, नदी पार करने की आवश्यकता अनुभव करता है, पानी की विस्तृत धारा को समझता है और पार करते समय आने वाले खतरों को जानता है। इन सब बातों का ध्यान रखते हुए वह अपना कार्य गंभीरतापूर्वक आरंभ करता है, जहां खतरा दिखता है, वहां से पैर पीछे हटा लेता है और फिर दूसरी जगह रास्ता ढूंढता है। इस प्रकार वह अपने कार्य को पूरा करता है।

मनुष्य को भी हाथी की बुद्धिमानी सीखनी चाहिए और अपने कार्यों को मध्यम गति से पूरा करना चाहिए। विद्यार्थी उतावली करें, तो भी एक दो-महीने में अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सकते, कर भी लेंगे, तो उसे जल्दी ही भूल जाएंगे। क्रमाक्रम से नियत काल में पूरी की गई शिक्षा ही मस्तिष्क को सुस्थिर करती है। पेड़-पौधे-वृक्ष-पशु-पक्षी, सभी अपनी नियत अवधि में परिपक्व और वृद्ध होते हैं। यदि उस नियत गतिविधि में जल्दबाजी की जाए, तो परिणाम बुरा हो सकता है। हमें अपनी शक्ति सामर्थ्य, योग्यता, मनोभूमि, परिस्थिति आदि का ध्यान रखकर निर्धारित लक्ष्य को पूरा करना चाहिए। बहुत खाना, भूख से ज़्यादा खाना बुरा है, इसी प्रकार बिल्कुल ना खाना, भूखे रहना भी बुरा है। अति का भोग बुरा है, पर अमर्यादित तप भी बुरा है। अधिक विषयी क्षीण होकर असमय ही मर जाते हैं, पर जो अमर्यादित अतिशय तप करते हैं, शरीर को अत्यधिक कस डालते हैं, वह भी दीर्घ जीवी नहीं होते। अति का कंजूस होना ठीक नहीं, पर इतना दानी होना भी किसी काम का नहीं कि कल खुद ही दाने-दाने को मोहताज होना पड़े। आलस्य में पड़े रहना हानिकारक है और सामर्थ्य से अधिक श्रम करते रहने पर जीवन की शक्ति को समाप्त होने लगती है। कुबेर बनने की तृष्णा में पागल हो जाना या कंगाली में दिन काटना दोनों ही स्थितियां अवांछनीय है।

नित्य मिठाई ही खाने को मिले तो उससे अरुचि और साथ-साथ पेट भी खराब हो जाएगा। पर भोजन में मीठे की मात्रा बिल्कुल ना हो, तो चमड़ी पीली पड़ जाएगी। बहुत ही खाने से मंदाग्नि हो जाती है, पर यदि खाना बिल्कुल भी ना मिले, तो खून खराब हो जाएगा। बिल्कुल कपड़े ना हों, तो सर्दी में निमोनिया हो जाने का और गर्मी में लू लग जाने का खतरा है, पर जो कपड़ो की परतों से बेतरह लिपटे रहते हैं, उनका शरीर पके आम की तरह पीला पड़ जाता है। बिल्कुल ना पढ़ने से मस्तिष्क का विकास नहीं होता, पर दिन-रात पढ़ने की धुन में व्यस्त रहने से भी दिमाग भी थक जाता है और आंखें कमज़ोर पड़ जाती हैं। घोर कट्टर और असहिष्णु सिद्धांत वादी बनने से काम नहीं चलता, दूसरों की भावनाओं का भी आदर करके सहिष्णुता का परिचय देना होता है। अविश्वासी होना बुरी बात है, विवेकपूर्ण हंस की भांति नीर-क्षीर का अन्वेषण करते हुए ग्राह्य-अग्राह्य को पृथक करना ही बुद्धिमानी है। देशकाल और पात्र के भेद से नीति, व्यवहार और क्रिया पद्धति में भेद करना पड़ता है। यदि न करें, तो हम अतिवादी कहे जाएंगे। अतिवादी आदर्श से उपस्थित कर सकते हैं, पर नेतृत्व नहीं कर सकते।

आदर्शवाद हमारा लक्ष्य होना चाहिए, हमारी प्रगति उसी और होनी चाहिए, पर सावधान कहीं अपरिपक्व अवस्था में ऐसी बड़ी छलांग न लग जाए, जिसके परिणाम स्वरूप हम हताहत हो जाएं और हमें यातना सहनी पड़े। कार्यो को पूरा करने के लिए मज़बूत व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है। मज़बूत व्यक्तित्व धैर्य वालों का होता है। उतावलापन दिखाने वाले महत्वपूर्ण सफलताएं नहीं प्राप्त करते, जो धैर्यवान प्राप्त कर पाते हैं। धैर्यवान विवेकपूर्ण होकर मजबूत कदम उठाते हैं और अतिवादी आवेश और अतिवाद के प्रभाव में। धैर्यवान आवेश से बचकर मध्य मार्ग पर चलने की नीति को अपनाते हैं। नियमितता, दृढ़ता एवं स्थिरता के साथ समगति से कार्य करते रहने वाले व्यक्तियों के द्वारा ही महान कार्यों का संपादन होता है।

मीता  गुप्ता

Sunday, 6 August 2023

गोल गप्पों की चटपटी कहानी

 

गोल गप्पों की चटपटी कहानी


 

12 जुलाई को गोल गोल गप्पे का दिवस था, सोचा गोल गप्पों के बारे में कुछ बातें साझा करूं। गोल गप्पे, फुचका, पानी का बताशा या पताशा, गुप चुप, फुल्की, पकौड़ी - ये सभी भारत के सबसे पसंदीदा स्नैक्स में से एक, पानी पूरी के नाम हैं। तले हुए आटे की एक छोटी, साधारण, कुरकुरी खोखली गेंद, आलू से भरी हुई और मसालेदार जलजीरा और मीठी चटनी में डुबोई गई।भारतीय स्ट्रीट फूड की दुनिया विशाल, विविध और स्वादिष्ट है, लेकिन पानी पूरी इसमें राजा है। चाहे आप सड़क के किनारे किसी विक्रेता से इसे ऑर्डर कर रहे हों या किसी शादी के बुफे में चाट स्टैंड की ओर रुख कर रहे हों, पानी पूरी शायद ही कभी आपको निराश करेगी।

लेकिन यह अद्भुत खाद्य पदार्थ कहां से आया?

जब पानी पूरी के इतिहास की बात आती है तो इंटरनेट के पास देने को बहुत कम है। यह स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में इसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए। हम केवल इस व्यंजन के स्रोत के बारे में किंवदंतियाँ ही सामने रख सकते हैं, जिनमें से एक का कहना है कि यह पहली बार प्राचीन भारतीय साम्राज्य मगध में कहीं अस्तित्व में आया था। प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों या 'महान राज्यों' में से एक, मगध साम्राज्य अब दक्षिणी बिहार से मेल खाता था। हालाँकि इसके अस्तित्व की सटीक समय-सीमा स्पष्ट नहीं है, लेकिन कथित तौर पर यह 600 ईसा पूर्व से पहले अस्तित्व में था। मौर्य और गुप्त दोनों साम्राज्यों की उत्पत्ति मगध में हुई थी, और इस क्षेत्र को जैन धर्म, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के विकास के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

मगध साम्राज्य में पानी पूरी कथित तौर पर उस व्यंजन से थोड़ा अलग था, जिसे हम आज जानते हैं और पसंद करते हैं। 'फुल्की' (यह शब्द आज भी भारत के कुछ हिस्सों में पानी पूरी को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) कहा जाता है, ये प्राचीन पानी पूरी आज इस्तेमाल होने वाली पूरियों की तुलना में छोटी, कुरकुरी पूरियों से बनाई जाती थीं। शुरुआत में उनमें क्या भरा गया था यह स्पष्ट नहीं है, हालांकि यह आलू की सब्जी (करी) का कुछ रूप होने की संभावना है।

हालाँकि, पानी पूरी की एक और आम उत्पत्ति मानी जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत में द्रौपदी ने पानी पूरी का आविष्कार किया था। जब पांडव भाई, द्रौपदी और उनकी मां कुंती पासे के खेल में अपना राज्य खोने के बाद निर्वासन में थे, कुंती ने द्रौपदी को एक चुनौती दी। उसने उसे कुछ बची हुई आलू की सब्जी और थोड़ा सा आटा दिया और कुछ ऐसा पकाने का आदेश दिया जिससे सभी पांचों भाई संतुष्ट हो जाएं। उन्होंने यह चुनौती क्यों पेश की इसका कारण अपुष्ट है - कुछ का कहना है कि यह यह पता लगाने के लिए था कि द्रौपदी एक अच्छी गृहिणी होगी या नहीं, और दूसरों का कहना है कि यह यह देखना था कि क्या द्रौपदी एक भाई को दूसरों की तुलना में पसंद करेगी। कुंती की चुनौती के जवाब में, द्रौपदी ने पानी पूरी का आविष्कार किया। अपनी बहू की कुशलता से प्रभावित होकर कुंती ने पकवान को अमरता का आशीर्वाद दिया।

क्या प्राचीन मगध का कोई अज्ञात नागरिक पानी पूरी का अद्भुत रचयिता है? क्या कुंती द्वारा चुनौती दिए जाने के बाद द्रौपदी ने इसका आविष्कार किया था, या महाभारत की यह कहानी इस व्यंजन के अस्तित्व को समझाने का एक तरीका मात्र है?

एक और किवदंती सुनने में आती है। एक छोटे से गांव में एक चटपटी गप्पों की कहानी है। वहां एक चटपटे स्वाद के गप्पे बनाने वाली धार्मिका नामक महिला रहती थी। वह अपने खास गप्पे बनाने के लिए पूरे गांव में मशहूर थी। उसके गप्पे का स्वाद इतना मनमोहक था कि लोग गांव के आस-पास के क्षेत्रों से भी इन्हें खाने के लिए आते थे। धार्मिका रोज़ाना अपने छोटे से दुकान पर गप्पों की ताज़ा तैयारी करती थीं। उसके हाथों की माहिरी और खास मसालों के संबंध में उसे उस गांव के सबसे सरपंच ने भी बहुत पसंद किया था।

एक दिन, धार्मिका ने अपने दुकान की खिड़की के पास एक गरीब और भूखा बच्चा देखा। उस बच्चे के चेहरे पर प्यास और भूख छाई थी। उसने वहां खड़े गप्पे खाते हुए लोगों को देखा और अपनी माँ से बोला, "माँ, मुझे भी गप्पे खाने हैं।"

धार्मिका ने उस बच्चे की तड़प देखी और उसे एक प्याले में गप्पे परोस दिया। बच्चे ने उसे खुशी-खुशी खाया और उसका चेहरा देखकर धार्मिका को बहुत खुशी हुई।

धार्मिका के दिल में एक सोच उभरी कि वह अपने गप्पे की कमाई से कुछ पैसे निकालकर गरीब बच्चों को रोज़ाना गप्पे खिला सकती है। उसने तुरंत यह काम शुरू किया और अब रोज़ गप्पे खाने आने वाले हर बच्चे को बिलकुल मुफ्त में गप्पे खिलाना शुरू किया।

जल्द ही उसके दुकान के आस-पास बच्चे खुशी-खुशी गप्पे खाने आने लगे। धार्मिका की यह नेक नीयत और सच्ची मेहनत ने उसे और उसके गप्पे को और भी प्रसिद्ध किया। उसके गप्पे की माहिरी और अच्छा सेवा देने से उसका दुकान आस-पास के इलाकों में अधिक लोकप्रिय हो गया।

धार्मिका के गप्पे ने उसे धनवान नहीं बनाया, लेकिन उसने अपने छोटे से कदम से अपने गांव में एक अच्छे काम का संदेश दिया। वह न तो खुद को भूली और न ही दूसरों की मदद करने का मौका। धार्मिका और उसके गप्पे की चटपटी कहानी आज भी उस गांव के लोगों के दिलों में बसी है।

इस चटपटे और स्वादिष्ट स्नैक के पीछे एक और रोचक कहानी भी छिपी है।

एक कथा के अनुसार, पुरातन काल में एक राजा था, जिसकी रानी बहुत प्रेमी थीं। एक दिन रानी बहुत खुश थीं और राजा ने खुशियों के मौके पर एक विशेष भोजन तैयार करवाया, जिसमें पूरी के गोल गप्पे थे। इस खास मौके पर राजा ने बड़े ही उत्साह से रानी को गोल गप्पे खिलाए, और रानी ने इसे अपने मित्रों के साथ बांटा, जिससे वे बड़े ही खुश हुए। इस घटना के बाद से, गोल गप्पे लोगों के बीच पसंदीदा बन गए।

गोल गप्पे को पूरी की गोल पूरी को बनाया जाता है और फिर इसे आलू या चने की सब्जी, तीखे पानी, पुदीने की चटनी और मसालों से सजाकर परोसा जाता है। इसकी चटपटी और मिठी तीखाई ने लोगों के दिलों पर राज कर लिया है। विश्वभर में भारतीय व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण, गोल गप्पे को विभिन्न अवसरों पर प्रसाद के रूप में, जलप्रदान के रूप में और खुशियों के अवसरों पर सर्वोत्तम माना जाता है।

वर्तमान समय में, गोल गप्पे भारतीय खाद्य पदार्थों की एक अभिन्न अंग बन गए हैं। यह स्ट्रीट फूड, खाने की खुशियों को बढ़ावा देने वाले मेलों और उत्सवों के लिए अनिवार्य हो गए हैं। गोल गप्पे को विभिन्न तरीकों से तैयार किया जा सकता है, जैसे कि रागड़े, ड्राई फ्रूट्स भरे, चाट मसाला के साथ, आदि। इसका प्रसार भारत के अलावा विदेशों में भी हो गया है, जी हां, विदेशों में गोलगप्पे खाए जाते हैं। भारतीय खाने की महान परंपरा विश्व भर में उपलब्ध है और गोलगप्पे भी उसी में से एक हैं जिन्हें अन्य देशों में भी पसंद किया जाता है। भारतीय रेस्तोरां, फूड ट्रक्स, फूड मेले, या भारतीय भोजन के कई संदर्भों पर गोलगप्पे उपलब्ध होते हैं। विदेशी लोगों को भी गोलगप्पे के स्वाद का अनुभव करने का अवसर मिलता है। विदेशों में गोलगप्पे को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि "पानीपूरी" या "फुचका" (बांग्लादेश में)। इन नामों के चलते शायद विदेशी लोगों को भारत के गोलगप्पे के समान स्नैक के बारे में अधिक अवगत हो सकता है।

गोलगप्पे एक लोकप्रिय स्नैक होने के कारण विदेशों में भी उन्हें विशेष अवसरों पर पेश किया जाता है, जैसे कि भारतीय मेलों, समारोहों, विभिन्न खाने के फेस्टिवल, आदि। विदेशी लोग भारतीय खाने का स्वाद अनुभव करने में रुचि रखते हैं और गोलगप्पे उन्हें इस दिशा में एक अच्छा अनुभव प्रदान करते हैं।

तो चलिए, गोला गोल गप्पे खाएं और अपनी दुनिया को चटपटा बनाएं।

 

मीता गुप्ता

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