बाल कविता
चंदामामा
चंदा मामा,चंदा मामा
आया विक्रम पहन पाजामा
कब से आस लगाई थी
अब पहुंचा हूं पास तुम्हारे
इतनी दूर बसे हो मामा
लगा लगाकर चक्कर हारे
राखी तुम्हारी लेकर आया,
भेजी मेरी भारत अम्मा।
चंदा मामा,चंदा मामा
आया विक्रम पहन पाजामा
घर की छत से तुम्हें निहारा
दिखते हमें चांदी की थाली
लेकिन यहां पर आकर देखा
सूरत उबड़-खाबड़ काली- काली
पर ओढ़े है अनुपम जामा
कैसे भी पर मेरे मामा।
चंदा मामा,चंदा मामा
आया विक्रम पहन पाजामा
बात पते की तुम्हें बताऊं
तुम्हें पूजती सदा सुहागिन
अब मैं पता लगाऊंगा
घटते बढ़ते क्यों दिन दिन
शोधे करेंगे विज्ञानी चाचा
तप से पूरी मनश्च कामा।
चंदा मामा,चंदा मामा
आया विक्रम पहन पाजामा
बस तुम साथ निभाते रहना
धरती मैया तुम्हें निहारे
रत्नों का भंडार संजोए
तुम्हें पाते मन के हारे
विक्रम और प्रज्ञान संग में
पकड़ो अंगुली चंदा मामा।
चंदा मामा,चंदा मामा
आया विक्रम पहन पाजामा॥
मीता गुप्ता
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