कृतज्ञ हूं मैं
जैसे आसमान की कृतज्ञ है पृथ्वी
जैसे पृथ्वी का कृतज्ञ है किसान,
कृतज्ञ हूं मैं
जैसे सागर का कृतज्ञ है बादल
जैसे नए जीवन के लिए
बादल का आभारी है नन्हा बिरवा,
कृतज्ञ हूं मैं
जिस तरह कृतज्ञ होता है
अपने में डूबा ध्रुपदिया
सात सुरों के प्रति
जैसे सात सुर कृतज्ञ हैं
सात हजार वर्षों की काल-यात्रा के,
कृतज्ञ हूं मैं
जैसे सभ्यताएं कृतज्ञ हैं नदी के प्रति
जैसे मनुष्य कृतज्ञ है अपनी उस रचना के प्रति
जिसे उसने ईश्वर नाम दिया है।
सर्वप्रथम आभार माँ भगवती,मेरे माता-पिता,पापाजी,सभी गुरुओं का,जिन्होंने मुझे अभिव्यक्ति के लिए शब्द दिए...और मेरी लेखनी को भाव दिए....
आभार और कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ अक्षर,अपूर्व,अनमोल, सुशांत,राज,अम्बरीष और सुषमा यादव का, जिन्होंने मेरे पॉडकास्ट को सुंदर कलेवर देने में अनथक प्रयत्न किए और आभार मेरे सभी स्नेही दर्शकों और श्रोताओं, मेरे सभी दोस्तों, चाहे भौतिक हों या आभासी और सभी शुभाचिंतकों का, आपने मेरी आवाज़ को प्यार दिया। विशेष आभार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति लब्ध शायर वसीम बरेलवी साहब और अंतर्राष्ट्रीय कवयित्री मधु मोहिनी उपाध्याय जी का।
अगली कड़ी का इंतज़ार ज़्यादा नहीं करवाउंगी, बस चंद दिन और.....
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