तुम्हारा साथ जैसे अषाढ़ के उमस पर
सावन की पहली फुहार
तुम्हारा साथ जैसे सरसो की पीली चुनरी से
ऋतु का श्रृंगार...
तुम्हारा साथ जैसे आम की डाली पर बैठी
कोयल की कूक
तुम्हारा साथ जैसे प्रियतम की याद में उठती
हृदय से एक हूक...
तुम्हारा साथ जैसे चटकती हुई प्यास में
घड़े का शीतल पानी
तुम्हारा साथ जैसे शाम की उदासी में
कोई गीत रूहानी...
तुम्हारा साथ जैसे माँ की बातों में
राजकुँवर की कहानी
तुम्हारा साथ जैसे किसी छोटे से बच्चे की
भोली शैतानी...
तुम्हारा साथ जैसे मुँह में रख ली गई हो
गुण की मीठी डली
तुम्हारा साथ जैसे गमले में खिल आयी
गुलाब की पहली कली...
तुम्हारा साथ जैसे लोक-गीतों के संग
ढोलक की थाप
तुम्हारा साथ जैसे जाड़े की गुनगुनी सी
धूप वाली भाप...
तुम्हारा साथ जैसे पकी हुई इमली का
खट्टा-मीठा स्वाद
तुम्हारा साथ जैसे मंदिर में गूँज उठे
शंखों का नाद...
तुम्हारा साथ जैसे रामू चाचा के ठेले की
बेस्ट पानी पूरी...
तुम्हारा साथ जैसे अदरक वाली चाय के संग
समोसे ज़रूरी...
तुम्हारा साथ जैसे काजल भरी आँखों का
का दर्पंण में हँसना
तुम्हारा साथ जैसे भोली आशाओं का
मन में हो बसना...
तुम्हारा साथ जैसे पूनम की रातों में
चंदा को तकना
तुम्हारा साथ जैसे गीतों की डायरी में
मोर पंख रखना...
तुम्हारा साथ जैसे रेत पे उंगली से
लिखना मोहब्बत
तुम्हारा साथ जैसे ख़ामोश आँखों से
उठती इबादत...
तुम्हारा साथ जैसे परियों की दुनिया में
जादू का होना
तुम्हारा साथ जैसे झुकती सी पलकों में
सपना सलोना...
तुम्हारा साथ जैसे काॅपी के पीछे लिखा
बचपन का वो शे'र
तुम्हारा साथ जैसे नानी के घर वाली
जंगल की बेर...
तुम्हारा साथ जैसे होठों पर सजता है कोई तराना,
तुम्हारा साथ जैसे ठंडी हवा के झोंके का
छूकर गुज़र जाना...
तुम्हारा साथ जैसे बेवजह चेहरे पर मुस्कान खास,
तुम्हारा साथ जैसे रब हो कहीं आस-पास ।।
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