Sunday, 21 April 2024

हरी-भरी धरती के भूषण !

 

 

 

हरी-भरी धरती के भूषण !



 

जंगल हमारी दुनिया की लाइफ़लाइऩ हैं। उनके बग़ैर हम पृथ्वी पर ज़िंदगी का पहिया घूमने का तसव्वुर भी नहीं कर सकते हैं।"पृथ्वी को पेड़ जो सेवाएं देते हैं, उनकी फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। वो इंसानों और दूसरे जानवरों के छोड़े हुए कार्बन को सोखते हैं। ज़मीन पर मिट्टी की परत को बनाए रखने का काम करते हैं। पानी के चक्र के नियमितीकरण में भी इनका अहम योगदान है। इसके साथ पेड़ प्राकृतिक और इंसान के खान-पान के सिस्टम को चलाते हैं और न जाने कितनी प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। इसके अलावा ये दुनिया के अनगिनत जीवों को आसरा देते हैं। बिल्डिंग मैटीरियल यानी लकड़ी की शक़्ल में ये इंसानों को भी घर बनाने में मदद करते हैं।

पेड़ हमारे लिए इतने काम के हैं, फिर भी हम इन्हें इतनी बेरहमी से काटते रहते हैं, जैसे कि इनकी इस धरती के लिए कोई उपयोगिता ही नहीं। इंसान ये सोचता है कि इनके बग़ैर हमारा काम चल सकता है। हम ये सोचते हैं कि आर्थिक लाभ के लिए पेड़ों की क़ुर्बानी दे सकते हैं। अगर पेड़ इंसान की सोची हुई विकास की प्रक्रिया में बाधा बनें तो इन्हें काटकर हटाया जा सकता है। जब से मानव जाति ने आज से 12 हज़ार साल पहले खेती करना शुरू किया, तब से हम ने दुनिया के कुल क़रीब छह ख़रब पेड़ों में से आधे को काट डाला है। ये अनुमान विज्ञान पत्रिका 'नेचर' ने 2015 में प्रकाशित रिसर्च में लगाया था। इनमें से ज़्यादातर पेड़ों की कटाई हाल की कुछ सदियों में हुई है। ख़ास तौर से औद्योगीकरण की शुरुआत के बाद, दुनिया के जंगलों की तादाद 32 प्रतिशत घट गई है। ख़ास तौर से ऊष्ण कटिबंधीय इलाक़ों में जंगलों को बेतरह काटा गया है।

आज जो बचे हुए क़रीब 6 ख़रब पेड़ हैं, उनकी संख्या भी बड़ी तेज़ी से घट रही है। हर साल क़रीब 12 अरब पेड़ काटे जा रहे हैं। अगस्त में अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस रिसर्च के आंकड़ों से पता चला था कि ब्राज़ील के अमेज़न नदी के इर्द-गिर्द के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 84 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है और ये तो केवल 2018 के मुक़ाबले बढ़ा हुआ आंकड़ा है। पेड़ों को काट कर जलाने की घटनाएं पूर्वी एशिया के इंडोनेशिया से अफ्रीका के मैडागास्कर तक बढ़ रही हैं।अगर हम सभी पेड़ों को काट डालते हैं, तो हम ऐसी धरती पर रह रहे होंगे, जो ज़िंदगी को सहारा नहीं दे सकेगी। दुनिया इतनी भयानक होगी कि वहां किसी जीव के पनपने का तो दूर, मौजूदा जीवों के जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर, पेड़ रातों-रात विलुप्त हो जाएंगे, तो इनके साथ धरती पर मौजूद ज़्यादातर ज़िंदगी ख़त्म हो जाएगी। आज पेड़ों की बेतहाशा कटाई से पहले ही बहुत से जीवों के जीने के ठिकाने ख़त्म हो रहे हैं। ऐसे में बचे हुए जंगलों के अचानक ख़त्म हो जाने से बहुत से पौधों, फफूंद और जानवरों पर क़यामत जैसा क़हर बरपेगा। तमाम तरह के जीवों की नस्लें विलुप्त हो जाएंगी। और ऐसा स्थानीय ही नहीं, वैश्विक स्तर पर होगा। जीवों की प्रजातियों के विलुप्त होने का सिलसिला केवल पेड़ों तक ही सीमित नहीं होगा। इससे जंगलों में रहने वाले जीव भी मर जाएंगे, जो पेड़ों पर ही निर्भर हैं। खुले मैदान में खड़ा एक अकेला पेड़ भी, कई जीवों को पनाह देता है। उन्हें जीने के संसाधन मुहैया कराता है। इसलिए एक पेड़ गंवाने का मतलब भी कई जीवों से धरती को महरूम करना होता है।

सारे पेड़ ख़त्म हो जाएंगे तो धरती की जलवायु में भी बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेगा। पेड़, जैविक पंप का काम करते हैं और हमारी पृथ्वी के जल चक्र को नियंत्रित करते हैं। वो ज़मीन से पानी सोखते हैं और इसे भाप के तौर पर वायुमंडल में छोड़ते हैं। ऐसा कर के जंगल बादल बनाने का काम करते हैं, जिससे बारिश होती है। इस के अलावा पेड़, भारी बारिश की सूरत में बाढ़ आने से भी रोकते हैं, क्योंकि ये पानी को अपने इर्द-गिर्द रोक देते हैं और वो पानी तेज़ी से अचानक नदियों या झीलों में नहीं जाता। तूफ़ान आने पर तटीय इलाक़े की आबादी इन पेड़ों की वजह से सीधे तूफ़ान का सामना करने से बच जाती है। इससे मिट्टी भी बहने से रुक जाती है। वरना तेज़ बारिश और बाढ़ की वजह से मिट्टी बह जाती है। इस मिट्टी में रहने वाले कीटाणु और दूसरे छोटे जीव भी तबाह होने से बच जाते हैं।

बिना पेड़ों के, पुराने जंगली इलाक़े सूख जाएंगे, वहां भयंकर सूखा पड़ने लगेगा। अगर बारिश हुई भी तो बाढ़ से भारी तबाही होगी। मिट्टी का क्षरण होगा। जिसका सीधा असर समुद्रों पर पड़ेगा। मूंगे की चट्टानें और दूसरे समुद्री जीवों पर क़हर बरपा होगा। बिना पेड़ों के छोटे द्वीपों का समुद्र से बचाव नहीं हो सकेगा। धरती से पेड़ों को ख़त्म कर देने से बहुत सी ज़मीन समंदर में समा जाएगी।जल चक्र को नियंत्रित करने के अलावा, पेड़ स्थानीय स्तर पर तापमान घटाकर ठंडक देने का भी काम करते हैं। वो बहुत से जीवों को पनाह देते हैं और ज़मीन को साया मुहैया कराते हैं, जिससे तापमान कम रहता है। यानी, वो सूरज की गर्मी को सोख कर तापमान भी नियंत्रित करते हैं। वाष्पीकरण के ज़रिए वो सूर्य की ऊर्जा से पानी को भाप में बदलते हैं। पेड़ों के साथ तापमान कम करने का ये क़ुदरती सिस्टम भी ख़त्म हो जाएगा। ऐसे में जहां जंगल हैं, वो इलाक़े गर्म हो जाएंगे। एक और रिसर्च में प्रेवेडेलो और उनके साथियों ने पाया था कि अगर 25 वर्ग किलोमीटर से सारे पेड़ हटा दिए जाएं, तो स्थानीय स्तर पर तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। खुले और जंगली इलाक़ों के तापमान में फ़र्क़ का तजुर्बा पहले भी किया जा चुका है।

विश्व स्तर पर पेड़, जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले में मददगार होते हैं। पेड़, हवा में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख कर अपने तनों में जमा रखते हैं। इसी लिए जंगलों की कटान से विश्व स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में 13 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है।इसके अलावा ज़मीन के इस्तेमाल में बदलाव से भी कार्बन उत्सर्जन 23 प्रतिशत तक का योगदान देता है। दुनिया के सभी पेड़ों का ख़ात्मा होने से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तेज़ हो जाएगी। पेड़ समाप्त होने से 450 गीगाटन कार्बन वायुमंडल में मिल जाएगी। ये मौजूदा कार्बन उत्सर्जन से दोगुनी होगी। हालांकि शुरुआत में छोटे पौधे और घास-फ़ूस इस कार्बन को सोख लेंगे। लेकिन, वो इसे जल्दी से वायुमंडल में छोड़ते भी हैं। तो कुछ दशकों में धरती का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ेगा।

पेड़ के तने सड़ने लगेंगे, तो ये धरती के लिए टाइम बम का काम करेंगे। बड़ी तादाद में ये कार्बन समंदर के पानी में भी मिल जाएगा। इसकी वजह से समुद्र का पानी अम्लीय हो जाएगा और जेलीफ़िश को छोड़कर समुद्र के सारे जीव मर जाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग से पहले ही पेड़ न होने की वजह से इंसान की मुसीबतें बहुत बढ़ जाएंगी। बढ़ी हुई गर्मी, जल चक्र में परिवर्तन और छाया ख़त्म होने से अरबों लोगों और पालतू जानवरों पर असर पड़ेगा। अभी दुनिया के 16 अरब लोग अपनी जीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। पेड़ों से इन्हें खाना ही नहीं पनाह और दवाएं भी मिलती हैं। ये लोग पेड़ ख़त्म होने से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। बहुत से और लोग लकड़ी न होने से खाना पकाने या अपना घर गर्म करने का काम नहीं कर पाएंगे। पेड़ काटने या पेपर बनाने वाले वो लोग जो पेड़ों से रोज़गार पाते हैं, वो बेरोज़गार हो जाएंगे। इसका विश्व की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। आज की तारीख़ में टिम्बर उद्योग से ही 132 करोड़ लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। इस सेक्टर में हर साल 600 अरब डॉलर की कमाई होती है। पेड़ न रहे, तो खेती की व्यवस्था बेक़ाबू हो जाएगी। साए में पलने वाली फ़सलें जैसे कॉफ़ी का उत्पादन बहुत घट जाएगा। वो पौधे भी ख़त्म हो जाएंगे, जो पेड़ों पर रहने वाले जीवों के ज़रिए पराश्रित होते हैं।

बढ़े तापमान और बारिश में उतार-चढ़ाव के चलते अच्छी खेती वाले इलाक़े अचानक सूखे के शिकार होंगे। मिट्टी का कटाव ज़्यादा होगा। उपजाऊ मिट्टी बह जाएगी। इससे पैदावार के लिए ज़्यादा रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना होगा। लंबे वक़्त में ज़्यादातर ज़मीनें खेती के लायक़ ही नहीं रह जाएंगी। इन तबाही लाने वाले बदलावों का सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। पेड़ों से हवा साफ़ होती है। वो प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को हवा से सोख लेते हैं। उनकी पत्तियों, तनों और शाखों में ये प्रदूषण क़ैद हो जाता है।

अमरीकी वन सेवा की रिसर्च के मुताबिक़, अकेले अमरीका में पेड़ हर साल 174 करोड़ टन वायु प्रदूषण सोख लेते हैं। इसे साफ़ करने में 68 अरब डॉलर का ख़र्च आएगा। इससे हर साल 850 लोगों की जान भी बचती है और 6 लाख 70 हज़ार से ज़्यादा लोगों को पेड़ सांस की बीमारी होने से बचाते हैं। जानकार कहते हैं कि पेड़ ख़त्म हुए तो हम नई बीमारियों का सामना करने को मजबूर हो सकते हैं। इबोला, निपाह और वेस्ट नील वायरस का इंसानों पर हमला बढ़ जाएगा। इसके अलावा मलेरिया और डेंगू के मरीज़ों की तादाद भी बढ़ सकती है।

पेड़ हमारी अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी हैं। इसीलिए, डॉक्टर पेड़ों और हरियाली के बीच वक़्त बिताने की सलाह देते हैं। इनके बीच समय बिताने से औसत आयु बढ़ती है। हम बीमार कम पड़ते हैं। तनाव भी कम होता है। अमरीका के बाल्टीमोर राजय में पेड़ों की संख्या बढ़ने से अपराधों में कमी आती देखी गई है।

पेड़ों के ख़ात्मे का हमारी सभ्यता और संस्कृति पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। बहुत से बचपन वीरान हो जाएंगे। क्योंकि वो कला, साहित्य, संगीत और न जाने कितनी चीज़ों के लिए पेड़ों पर निर्भर होते हैं। पेड़ों का हमारी संस्कृति से गहरा नाता रहा है। भगवान बुद्ध ने बोधिवृक्ष के नीचे 49 दिनों तक तपस्या के बाद कैवल्य प्राप्त किया था।

हिंदू धर्म के अनुयायी पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं और उसे विष्णु का प्रतीक मानते हैं। ईसाई धर्म की पवित्र किताब ओल्ड टेस्टामेंट में ईश्वर को क़ुदरत की रचना के तीसरे दिन पेड़ों की उत्पत्ति करते बताया गया है। वहीं, बाइबिल के मुताबिक़, ईसा मसीह ने लकड़ी की सलीब पर दम तोड़ा था, जो पेड़ों से ही बना था। बहुत से लोग पेड़ों को डॉलर के तौर पर देखते हैं। लेकिन हमें पेड़ों से जो आध्यात्मिक सुख मिलता है, उसका पैसे से मूल्यांकन नहीं हो सकता।

बिना पेड़ों की दुनिया में जीवन बिताना इंसानों के लिए बहुत मुश्किल होगा। शहरी जीवन गए ज़माने की बात हो जाएगी। हम में से ज़्यादातर लोग भूख से मर जाएंगे। या फिर सूखे और बाढ़ के शिकार हो जाएंगे। बचे हुए समुदाय पारंपरिक ज्ञान की बदौलत ही बच सकेंगे जो बिना पेड़ों के माहौल में ख़ुद को ढाल सकेंगे। जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी लोमैन जैसे जानकार कहते हैं कि तब जीवन शायद मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती के रूप में ही बचे।वो कहते हैं, "हो सकता है कि बिना पेड़ों की दुनिया में इंसान बचे रह जाएं। लेकिन ऐसी दुनिया में आख़िर रहना ही कौन चाहेगा? ये ग्रह ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों से इसीलिए अलग है कि यहां पानी है। पेड़ हैं, तो हरियाली है। बिना पेड़ों के तो हम ही नहीं रहेंगे, यथा-

हरी-भरी धरती के भूषण,करते हैं जो दूर प्रदूषण,

इन्हें लगाएं, इन्हें उगाएं, रोग-शोक-संताप मिटाएं ॥

 

 

मीता गुप्ता

आइए! मनाएं वोट-पर्व

 

आइए! मनाएं वोट-पर्व



 

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां देश की संप्रभुता यहां के नागरिकों में निहित है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में वहां के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होता है, जिस कार्य को वे अपने मत देकर पूर्ण करते हैं। किसी भी देश को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने एवं वहां की शासन-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक मज़बूत सरकार का होना अति आवश्यक है। अतः किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मताधिकार का बहुत महत्व है। एक सुव्यवस्थित लोकतंत्र के निर्माण में देश के नागरिकों अर्थात मतदाताओं की अहम भूमिका होती है। अतः प्रत्येक भारतीय को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग जरूर ही करना चाहिए और ऐसी सरकारें चुननी चाहिए, जो कि सांप्रदायिकता और जातिवाद से ऊपर उठकर देश अथवा प्रदेश के बहुमुखी विकास के बारे में सोचें। जिस दिन देश का मतदाता जाग जाएगा, उस दिन देश से जातिवाद, ऊंच-नीच, सांप्रदायिक भेदभाव खत्म हो जाएगा। ये सिर्फ़ और सिर्फ़ संभव है- हमारे और आपके महत्वपूर्ण मतदान से !

भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है, इस अधिकार का प्रयोग हम सभी को अपना संवैधानिक कर्तव्य मानते हुए पूरा करना चाहिए। लोकतंत्र के इस महापर्व पर सभी लोग अपने घरों से बाहर निकलें और अपने मताधिकार का ज़रूर प्रयोग करें। हर एक वोटर का फर्ज बनता है कि वह अपने वोट की ताकत को समझे और लोकतंत्रीय राज को मज़बूत करे और बिना किसी लालच डर और भय से अपनी वोट का प्रयोग करके एक ईमानदार, शक्तिशाली, प्रगतिशील और विकासशील सरकार बनाने में अपना अहम योगदान दे।

समाज को नई दिशा देने के लिए हमें अच्छी सरकार को चुनना होगा। लोकतंत्र की खूबसूरती मतदान ही है। इसी से सशक्त और मनचाही सरकार बनती है। ऐसे में मतदान करना बहुत ज़रूरी है और वह भी सोच-समझकर। 14 फ़रवरी को विधानसभा चुनाव में सभी ज़रूर मतदान करें। कई लोग यह सोचकर वोट डालने नहीं जाते हैं कि हमें चुनाव से क्या लेना देना है। मेरे एक वोट से क्या होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें चुनाव में पूरी दिलचस्पी दिखानी चाहिए। हर वोटर को इस बात को ध्यान में रखकर वोट देना चाहिए कि कौन प्रत्याशी और सरकार हमारे समाज, राज्य और देश के लिए अच्छी है। कौन आम जनता के मुद्दों पर बात करता है। ऐसे में जनता सोच-समझकर मतदान करे।

बिना भय के करें मतदान आज और सात अप्रैल 2024 को होने वाले लोकसभा चुनाव में मतदान। मतदान । अन्य मतदाताओं से वोट डालने की अपील करें। फ‌र्स्ट टाइम वोटर से भी अपील है कि वे खुद तो मतदान करें ही, साथ ही अपने दोस्तों को भी इसके लिए प्रेरित करें। 18 साल की उम्र वाले नौजवान वोटर, जिन्होंने पहली बार अपने वोट के हक का इस्तेमाल करना है, वे अपने वोट की कीमत समझें। दिव्यांग और बुज़ुर्ग वोटर भी अपने वोट के हक का इस्तेमाल करते हैं, उनसे प्रेरणा लें।

चुनाव में वोट देना गणतंत्र में यज्ञ की तरह है, जहां हर एक वोट आहुति के समान है। यह आयोजन हम सभी भारतवासियों को अपने देश के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है कि हर एक वोट ज़रूरी है और हर वयस्क नागरिक के लिए मतदान करना जरूरी है। लोकतंत्र के प्रतीक भारतीय संविधान में स्वतंत्र चुनाव आयोग व चुनाव प्रक्रिया की अवधारणा समानता व स्वतंत्रता के अधिकार के साथ हर व्यक्ति के वोट को महत्त्वपूर्ण बनाती है और इसी वजह से भारतीय लोकतंत्र संपूर्ण विश्व में अपनी परिपक्वता व स्थिरता के लिए जाना जाता है। इसका सारा श्रेय भारतीय मतदाता को जाता है। और मतदाता को यह शक्ति दी है हमारे संविधान ने। विश्व के विकसित देशों ने अपने देश के मतदाताओं पर भरोसा करने में वर्षों लगाए, वहां कई आंदोलन किए गए, लेकिन हमारे संविधान ने एक ही बार में वयस्क मताधिकार लागू कर देश के मतदाताओं में भरोसा व्यक्त किया। इसके लिए हम सब देश के निवासी आज संविधान निर्माताओं के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

भारत की राजनैतिक व्यवस्था एवं प्रत्येक आम चुनाव में भारतीय मतदाताओं ने हमारे संविधान निर्माताओं के इस भरोसे को हमेशा मज़बूत किया। निर्वाचन आयोग ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। चुनाव आयोग की समावेशी योजना से Voter turn out के साथ-साथ मतदाता के विश्वास को और अधिक मज़बूती मिली है। इसी कारण आज भारतीय निर्वाचन आयोग की पूरे विश्व में साख बनी है। आज ई-प्लेटफार्म के माध्यम से मतदाता शिक्षा हेतु की गई पहल से भारतीय चुनाव आयोग की पहचान वैश्विक स्तर पर कायम है। निरंतर व्यापक सुधार की दिशा में मतदाता पहचान पत्र भी एक क्रांतिकारी कदम है। तकनीक का उपयोग कर प्रत्येक मतदाता को मतदाता पहचान पत्र प्रदान करना भारत जैसे बड़े लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर है।

युवा वर्ग ने सदैव आगे आकर देश के नेतृत्व में अपना हाथ बंटाया है, अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया है। हर स्तर पर उनका प्रतिनिधित्व हो, जो देश को सही दिशा में ले जाने वाला हो। इसके लिए अपने समाज को जागरुक और सावधान बनाने का ज़िम्मा हर एक युवा को लेना होगा। वे जितना निजी जीवन में सावधानी से चीज़ों का चुनाव करते हैं, उतनी ही सावधानी उन्हें अपने प्रतिनिधि का चुनाव बरतनी है । सभी वरिष्ठ नागरिकों से भी आग्रह है कि वे अपने वोट के ज़रिए अपने अनुभव से अपनी पसंद और नापसंद प्रकट करें एवं युवावर्ग को सही रास्ता दिखाने की ज़िम्मेदारी लें।

अंत में यही कहना चाहूंगी कि 14 फ़रवरी को अपनी पसंद ज़ाहिर करने के लिए वोट देने घरों से निकलें और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी सक्रिय और महती भूमिका निभाएं।

जय हिंद!

जय भारत!

मीता गुप्ता

भारतीय परंपरा में सोलह श्रृंगार का महत्व

 

भारतीय परंपरा में सोलह श्रृंगार का महत्व


तरिवन-कनकु कपोल-दुति,बिचबीचहींबिकान।


लाललालचमकतिचुनीं,चौका-चिह्न-समान॥


हिंदू धर्म में हर विवाहित स्त्री का श्रृंगार करना महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि सोलह श्रृंगार, सुहागिनों के लिए उनके पति की लंबी आयु की कामना और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए जरूरी है। ऋग्वेद के अनुसार, सोलह श्रृंगार से न केवल स्त्रियों का सौंदर्य बढ़ता है, बल्कि उनके भाग्य में भी वृद्धि होती है। विवाहित स्त्रियों द्वारा किए गए  सोलह श्रृंगार उनके जीवन में सौभाग्य लाते हैं। श्रृंगार के लिए स्त्रियां बहुत से आभूषणों को पहनती हैं। स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाले हर आभूषण का अपना एक विशेष धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।


मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया, हाथों में चूड़ी, पांव में पायल और बिछिया.ये प्रतीक धारण कर जब एक लड़की अपने घर को छोड़ किसी दूसरे घर में प्रवेश करती है तो उसके जीवन के मायने ही बदल जाते हैं। सुहागिन स्त्रियां श्रृंगार के लिए माथे पर बिंदी लगाती है। माना जाता है कि माथे पर लगी बिंदी स्त्रियों के आज्ञा चक्र को सक्रिय करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाती है। अपने पति की लंबी आयु के लिए स्त्रियां मांग में सिंदूर लगाती है। मांग का सिंदूर स्त्रियों की एकाग्रता को बढ़ाता है। आंखों का काजल स्त्रियों के जीवन से मंगलदोष कम करके उन्हें बुरी नजर से बचाता है। आंखों का काजल स्त्रियों के वात्सल्य का प्रतीक है। बालों में गजरे का श्रृंगार स्त्रियों को ताजगी और ऊर्जा से भर देता है। गजरे से आने वाले खुशबू स्त्रियों के मन को शांत बनाए रखती है।


इनके अलावा नाक में पहने जाने वाले नथनी से सुहागिनों के पति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। होठों की लाली उनकी मीठी वाणी का प्रतीक है। सिर पर पहने जाने वाले मांग टिके से स्त्रियों की चेतना शक्ति बढ़ती है। कानों की बालियां स्त्रियों की सेहत को अच्छा बनाए रखती है। साथ ही कानों की बालियां इस बात का प्रतीक है कि घर की बहुएं अपने घर-परिवार की बुराई नहीं सुनेंगी। पति के प्रति अपने समर्पण भाव को दिखाने के लिए स्त्रियां अपने गले में मंगलसूत्र पहनती है। काले मोतियों और सोने के मोतियों से बना मंगलसूत्र स्त्रियों के मन में अपने पति के प्रति प्रेम और आदर-सत्कार को बढ़ाता है। स्त्रियों द्वारा बाजुओं में पहने जाने वाला बाजूबंद परिवार के धन और प्रतिष्ठा की रक्षा करने का संकेत है।


हाथ की चूड़ियां स्त्रियों के परिवार की संपन्नता और खुशहाली का प्रतीक होती है। अनामिका उंगली में पहने जाने वाली अंगूठी का मतलब है कि पति-पत्नी जीवन भर एक दूसरे का हाथ थामे रहेंगे। चांदी का कमरबंद स्त्रियों को गर्भाशय के रोगों से बचाता है। पायल और बिछिया इस बात का संकेत होते है कि स्त्रियां अपने घर- परिवार पर आने वाली सभी मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार है। साथ ही स्त्रियों की पायल और बिछिया घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाएं रखती हैं। सुहागिनों के हाथों की मेहंदी का गाढ़ा रंग पति- पत्नी के आपसी प्रेम का संकेत है। साथ ही मेहंदी की खुशबू मानसिक तनाव को भी कम करती है।


विवाह के समय मंत्रोच्चार का साथ सिंदूर दान किया जाता है, जो सबसे सुहाग के सामान में सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है। यह एक सुहागन स्त्री की पहचान होता है। वर  वधू की मांग में सिंदूर भरता है। यह सिंदूर एक स्त्री के विवाहित होने की पहचान करवाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार स्त्रियां अपने पती की दीर्घायु की कामना के साथ सिंदूर लगाती हैं।


आज के समय में आंखो की सुंदरता बढ़ाने के लिए बाजार में कई तरह का सामान उपलब्ध होता है लेकिन केवल काजल लगाने भर से ही आंखों की सुंदरता में चार-चांद लग जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार काजल बुरी नजर से रक्षा करता है इसलिए इस सोलह श्रृंगार काजल को भी शामिल किया गया है।


सिंदूर की तरह ही मंगलसूत्र धारण करने का भी एक अलग महत्व होता है। विवाह के समय सामाजिक रीतिरिवाजों का निर्वहन करते हुए मंत्रोच्चार के बीच वर अपनी वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। यह एक स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। मान्यता है कि इससे पति की आयु जुड़ी होती है।


हिंदू धर्म में शादी के समय मेहंदी रचाना एक महत्वपूर्ण रस्म होती है। मेहंदी को बहुत ही शुभ माना जाता है। हर सुहागन स्त्री के लिए हाथों में मेहंदी रचाना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। लोकमान्यता अनुसार मेहंदी का रंग जितना गहरा होता है वैवाहिक जीवन भी उतना ही खुशहाल होता है। कवंदती अनुसार मेहंदी के रंग की गहराई पति के प्रेम की गहराई का प्रतीक होती है।


आजकल के समय में कई तरह के डिजाइन और धातु आदि की बनी हुआ चूड़ियां आने लगी हैं लेकिन सुहागन स्त्री के लिए कांच की चूड़िया पहनना शुभ माना जाता है। लाल और हरे रंग की चूड़ियां सुहागन स्त्री की सुंदरता को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। सोलह श्रृंगार में चूड़िया एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मान्यता है कि चूड़ियों की खनक से नकारात्मकता दूर होती है।


हिंदू धर्म में एक विवाहित स्त्री के लिए पैरों में बिछिया पहनना अनिवार्य माना जाता है। शादी के समय पैरों में बिछियां भी पहनाई जाती हैं जो कांसे की बनी होती हैं। कुछ दिनों बाद इन्हें बदलकर चांदी से बनी बिछियां पहन ली जाती हैं। सुहाग के सामान में बिछिया भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।


स्नानादि करने के पश्चात मांग में सिंदूर लगाने के साथ ही बालों का सजाने का प्रचलन बहुत पहले के समय से रहा है। जब भी सोलह श्रृंगार की बात आती है कोशों को संवारने और आलंकृत करने की बात जरूर आती है। पहले के समय में स्त्रियां अपने बालो में चंदन आदि की सुगंधित धूप देती थी जिसके बाद फूलों आदि से उन्हें सजाया जाता था। सलीके से बंधे और सजे हुए बाल सुहागन स्त्री का प्रतीक माना जाता था। मान्यता है कि बालों में गजरा लगाने से वैवाहिक जीवन प्रेम की सुगंध से सुवासित रहता है।


हिंदू धर्म में लाल रंग को बहुत तरजीह दी जाती है क्योंकि यह शुभता और सुहाग की निशानी माना जाता है। हालांकि आजकर बाजार में कई डिजाइनर और अलग-अलग रंगों को जोड़े आने लगे हैं लेकिन ज्यादातर लड़कियां अपनी शादी में लाल रंग का जोड़ा ही पहनती हैं। देवी मां को भी लाल रंग की चुनरी ही चढ़ाई जाती है।


एक सुहागन स्त्री के लिए मांग टीका बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मांग के बीचो-बीचे पहना जाने वाला यह आभूषण चेहरे की आभा को तो बढ़ाता ही है साथ ही यह वैवाहिक जीवन के सही सा साध कर चलने का प्रतीक भी होता है।


शादी के समय दुल्हन को सोने की नथ अवश्य पहनाई जाती है। नथ के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा सा लगता है। सुहागन स्त्री के लिए नथ एक आवश्यक आभूषण माना गया है।


शादी की रस्मों की शुरूआत वर-वधू के द्वारा एक दूसरे से अंगूठी पहनाकर की जाती है। यह प्यार और विश्वास की निशानी मानी जाती है। अंगूठी बाएं हाथ की अनामिका उंगली में पहनाई जाती है। इसके पीछे कारण माना जाता है कि अनामिका उंगली की नसे हृदय से लगती हैं। इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है। पैरों चांदी की पायल शुभता और संपन्नता का प्रतीक होती है। बहू को घर की लक्ष्मी माना जाता है, इसलिए घर की संपन्नता बनाए रखने के लिए दुल्हन के श्रृंगार में पायल आवश्यक मानी गई हैं।


अतः यह कहा जा सकता है कि श्रृंगार एक स्त्री की सुंदरता में चार चांद तो लगाता ही है, साथ ही यह एक स्त्री के जीवन में परिवर्तन और समाज में उसकी पहचान को एक नए रुप में प्रस्तुत करता है, यथा-


सहज संवारत सरस छब, अलि सो का सुच होत।


सुनि सुख तो लखि लाल मो, मुद मोहन चित पोत॥


 

 

मीता गुप्ता

 

Sunday, 14 April 2024

अनुकरणीय बाबा साहेब

 

अनुकरणीय बाबा साहेब



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अगाध ज्ञान के भंडार,  घोर अध्यवसायी,  अद्भुत प्रतिभा,  सराहनीय निष्ठा ,  न्यायशीलता तथा स्पष्टवादिता के धनी डॉ. भीमराव अंबेडकर एक विधिवेत्ता,  अर्थशास्त्री,  समाज सुधारक,  संविधान शिल्पी और राजनीतिज्ञ थे। अंबेडकर जी का संपूर्ण जीवन भारतीय समाज में सुधार के लिए समर्पित था। अस्पृश्यों तथा दलितों के वे मसीहा थे। उन्होंने उनके विरूद्ध होने वाले अत्याचारों, शोषण-अन्याय  तथा अपमान से संघर्ष करने के लिए शिक्षा रूपी शक्ति दी। उनके अनुसार सामाजिक प्रताड़ना राज्य द्वारा दिए  जाने वाले दंड में भी कहीं अधिक दुःखदायी हैं। उन्होंने न सिर्फ समाज में वंचितों की स्थिति में सुधार के लिए कार्य किया,   अपितु श्रमिकों,  किसानों,  महिलाओं  तथा समाज के प्रत्येक वर्ग के अधिकारों और उनकी शिक्षा के लिए कार्य किया। अंबेडकर जी द्वारा किए गये कार्यों के कारण ही उन्हें भारत का अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर कहा गया है तथा उन्हें बोधिसत्व की उपाधि से भी विभूषित किया गया।

डॉ. अंबेडकर भारत माता के ऐसे प्रभावशाली मेघावी एवं यशस्वी सपूत हैं,  जिनकी अप्रतिम सेवाओं के लिए देश चिरकाल तक ऋणी रहेगा। आवश्यक सुविधाओं से वंचित रहते हुए तथा बचपन से ही अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी उन्होंने एम. ए.,  पीएचडी, एम.एस.सी., डी.एस.सी. डी.लिट. जैसी शिक्षा की उच्चतम उपाधियां प्राप्त करना उनके अदम्य साहस,  लगन,   निष्ठा,  धैर्य और शिक्षा के प्रति गहनतम लगाव महत्वपूर्ण उदाहरण है। अपने जीवन में उन्होंने जो भी उपलब्धि प्राप्त की,  वह शिक्षा के बल पर ही प्राप्त की थी इसलिए उन्होंने हर प्रकार  के विकास के लिए शिक्षा को एक अमोध अस्त्र बताया तथा शिक्षा को मानव जीवन का अभिन्न अंग माना है।

 

डॉ. अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा ही एकता,  बंधुता और देशप्रेम के विवेक को जन्म देती है। सभ्यता और संस्कृति का भवन शिक्षा के स्तंभ पर ही बनता है। शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्यत्व प्रदान करती है तथा शिक्षा के अभाव में मानव पशुतुल्य होता है। बाबा साहेब  ने कहा है कि ‘शिक्षा वह शेरनी का दूध है,   जो पिएगा,   वही दहाड़ेगा|’  और उन्होंने शिक्षा को सामाजिक समरसता व व्यक्ति में सात्विक गुणों का विकास करने वाला अस्त्र बताया है।

बाबा साहेब  तत्कालीन प्रचलित शिक्षा तथा शिक्षण पद्धति को बदलना चाहते थे। उनका मानना था कि समरसता निर्माण करने वाली व लोकतान्त्रिक मूल्यों की भावना का विकास करने वाली शिक्षा व पाठ्यक्रम को ही पढ़ाया जाना चाहिए। उनका ये दृढ़ मत था कि समाज में ऐसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए, जिसकी समय के अनुकूल आवश्यकता है। वे मानते थे कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए,  जिससे बालक में रूचि से पढ़ने के स्वभाव का निर्माण हो। उनका मानना था कि विघालय समाज का एक लघुरूप होता है तथा उन्होंने अपने छात्र जीवन से ही यह महसूस किया था कि विघालय में रहकर सामूहिक अवधारणाओं को समाप्त किया जा सकता है।

डॉ. अंबेडकर भारत के शिल्पकार के साथ-साथ एक महान शिक्षक भी थे। उनका मानना था कि शिक्षा से ही ज्ञान का ताला खुलता है। वे शिक्षक को राष्ट्र निर्माता मानते थे। शिक्षक के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि शिक्षक ज्ञान पिपासा,  अनुसंधान करने वाला व आत्मविश्वासी होना चाहिए। उनका मानना था कि शिक्षा के बिना कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। अंधविश्वासों से मुक्ति,  अज्ञानता,  अन्याय और शोषण के विरुद्ध ललकारने की ताकत भी शिक्षा से ही संभव है। भारत सैकड़ों वर्षो तक विदेशी सत्ता,  शासकों के पराधीन रहा,  जिससे भारत में पतन और अवनति का दौर अनंतकाल तक चलता रहा और बाबा साहेब  यह  मानते  थे कि देश की इस पराधीनता का कारण शिक्षा भी है और मुख्यतः महिला शिक्षा का न होना। इसलिए उन्होंने स्त्री शिक्षा पर भी बहुत बल दिया और विशेषकर वंचित महिलाओं की शिक्षा पर अधिक बल दिया। उनका स्पष्ट मत था कि यदि वंचित समाज की महिलायें शिक्षित होगी, तो वे अपनी संतानों को भी शिक्षित व संस्कारवान बना सकती है।

अंबेडकर जी ने वंचितों की शिक्षा की भी वकालत की। उनका मानना था कि इस वर्ग के माथे पर लगे अज्ञानता के टीके और समाज में फैली उनकी दुर्भावना से निकलने का एक ही मार्ग था कि वे पढ़-लिखकर अपनी मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करें। इसलिए वे ऐसे समाज के उद्धार में शिक्षा को एक बड़ा स्रोत मानते थे। बाबा साहेब  के शिक्षा संबंधी विचार देश,  काल,  परिस्थिति के प्रभाव से परे है। उनके विचार न केवल तत्कालीन परिस्थितियों में प्रासंगिक थे, अपितु हर काल समय अथवा आज भी उतने ही समीचीन है। उनके द्वारा दिया गया मंत्र ‘शिक्षित बनो,  संघर्ष करो,  संगठित रहो’ में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश है। बाबा साहेब  ने न केवल वंचित समाज की शिक्षा पर बल दिया, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग के साथ सभी महिला व पुरूषों के समान शिक्षा की भी स्पष्ट बात की। उनका मानना था कि यदि स्वाभिमानशून्य समाज की अपने जीवन को पुनः चलायमान रखना है,   तो उसकों शिक्षित होना ही होगा।

अंबेडकर जी का संपूर्ण जीवन भारतीय समाज में सुधार के लिए समर्पित था। वंचितों के वे मसीहा थे। उन्होंने सदियों से पद वंचित वर्ग को सम्मानपूर्वक जीने के लिए एक सुस्पष्ट मार्ग दिया। उनके अनुसार सामाजिक प्रताड़ना राज्यों द्वारा दिए जाने वाले दंड  से भी कहीं अधिक दुःखदायी है। उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का विशद अध्ययन कर यह बताया कि भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था,  जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता का प्रचलन समाज में कालांतर में आई विकृतियों के कारण उत्पन्न हुई है,  न कि यह यहां के समाज में प्रारंभ से ही विद्यमान थी। उन्होंने वंचित वर्ग पर होने वाले अन्याय का विरोध ही नहीं किया, अपितु उनमें आत्म-गौरव,  स्वावलंबन,  आत्मविश्वास,  आत्मसुधार तथा आत्मविश्लेषण करने की शक्ति प्रदान की।

अंबेडकर एक अनुकरणीय व्यक्तित्व थे, आज उनकी जन्म-जयंती के अवसर पर उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम !

मीता गुप्ता

 

और न जाने क्या-क्या?

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