भारतीय परंपरा में सोलह श्रृंगार का महत्व
तरिवन-कनकु कपोल-दुति,बिचबीचहींबिकान।
लाललालचमकतिचुनीं,चौका-चिह्न-समान॥
हिंदू धर्म में हर विवाहित स्त्री का श्रृंगार करना महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि सोलह श्रृंगार, सुहागिनों के लिए उनके पति की लंबी आयु की कामना और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए जरूरी है। ऋग्वेद के अनुसार, सोलह श्रृंगार से न केवल स्त्रियों का सौंदर्य बढ़ता है, बल्कि उनके भाग्य में भी वृद्धि होती है। विवाहित स्त्रियों द्वारा किए गए सोलह श्रृंगार उनके जीवन में सौभाग्य लाते हैं। श्रृंगार के लिए स्त्रियां बहुत से आभूषणों को पहनती हैं। स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाले हर आभूषण का अपना एक विशेष धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।
मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया, हाथों में चूड़ी, पांव में पायल और बिछिया.ये प्रतीक धारण कर जब एक लड़की अपने घर को छोड़ किसी दूसरे घर में प्रवेश करती है तो उसके जीवन के मायने ही बदल जाते हैं। सुहागिन स्त्रियां श्रृंगार के लिए माथे पर बिंदी लगाती है। माना जाता है कि माथे पर लगी बिंदी स्त्रियों के आज्ञा चक्र को सक्रिय करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाती है। अपने पति की लंबी आयु के लिए स्त्रियां मांग में सिंदूर लगाती है। मांग का सिंदूर स्त्रियों की एकाग्रता को बढ़ाता है। आंखों का काजल स्त्रियों के जीवन से मंगलदोष कम करके उन्हें बुरी नजर से बचाता है। आंखों का काजल स्त्रियों के वात्सल्य का प्रतीक है। बालों में गजरे का श्रृंगार स्त्रियों को ताजगी और ऊर्जा से भर देता है। गजरे से आने वाले खुशबू स्त्रियों के मन को शांत बनाए रखती है।
इनके अलावा नाक में पहने जाने वाले नथनी से सुहागिनों के पति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। होठों की लाली उनकी मीठी वाणी का प्रतीक है। सिर पर पहने जाने वाले मांग टिके से स्त्रियों की चेतना शक्ति बढ़ती है। कानों की बालियां स्त्रियों की सेहत को अच्छा बनाए रखती है। साथ ही कानों की बालियां इस बात का प्रतीक है कि घर की बहुएं अपने घर-परिवार की बुराई नहीं सुनेंगी। पति के प्रति अपने समर्पण भाव को दिखाने के लिए स्त्रियां अपने गले में मंगलसूत्र पहनती है। काले मोतियों और सोने के मोतियों से बना मंगलसूत्र स्त्रियों के मन में अपने पति के प्रति प्रेम और आदर-सत्कार को बढ़ाता है। स्त्रियों द्वारा बाजुओं में पहने जाने वाला बाजूबंद परिवार के धन और प्रतिष्ठा की रक्षा करने का संकेत है।
हाथ की चूड़ियां स्त्रियों के परिवार की संपन्नता और खुशहाली का प्रतीक होती है। अनामिका उंगली में पहने जाने वाली अंगूठी का मतलब है कि पति-पत्नी जीवन भर एक दूसरे का हाथ थामे रहेंगे। चांदी का कमरबंद स्त्रियों को गर्भाशय के रोगों से बचाता है। पायल और बिछिया इस बात का संकेत होते है कि स्त्रियां अपने घर- परिवार पर आने वाली सभी मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार है। साथ ही स्त्रियों की पायल और बिछिया घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाएं रखती हैं। सुहागिनों के हाथों की मेहंदी का गाढ़ा रंग पति- पत्नी के आपसी प्रेम का संकेत है। साथ ही मेहंदी की खुशबू मानसिक तनाव को भी कम करती है।
विवाह के समय मंत्रोच्चार का साथ सिंदूर दान किया जाता है, जो सबसे सुहाग के सामान में सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है। यह एक सुहागन स्त्री की पहचान होता है। वर वधू की मांग में सिंदूर भरता है। यह सिंदूर एक स्त्री के विवाहित होने की पहचान करवाता है धार्मिक मान्यता के अनुसार स्त्रियां अपने पती की दीर्घायु की कामना के साथ सिंदूर लगाती हैं।
आज के समय में आंखो की सुंदरता बढ़ाने के लिए बाजार में कई तरह का सामान उपलब्ध होता है लेकिन केवल काजल लगाने भर से ही आंखों की सुंदरता में चार-चांद लग जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार काजल बुरी नजर से रक्षा करता है इसलिए इस सोलह श्रृंगार काजल को भी शामिल किया गया है।
सिंदूर की तरह ही मंगलसूत्र धारण करने का भी एक अलग महत्व होता है। विवाह के समय सामाजिक रीतिरिवाजों का निर्वहन करते हुए मंत्रोच्चार के बीच वर अपनी वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। यह एक स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। मान्यता है कि इससे पति की आयु जुड़ी होती है।
हिंदू धर्म में शादी के समय मेहंदी रचाना एक महत्वपूर्ण रस्म होती है। मेहंदी को बहुत ही शुभ माना जाता है। हर सुहागन स्त्री के लिए हाथों में मेहंदी रचाना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। लोकमान्यता अनुसार मेहंदी का रंग जितना गहरा होता है वैवाहिक जीवन भी उतना ही खुशहाल होता है। कवंदती अनुसार मेहंदी के रंग की गहराई पति के प्रेम की गहराई का प्रतीक होती है।
आजकल के समय में कई तरह के डिजाइन और धातु आदि की बनी हुआ चूड़ियां आने लगी हैं लेकिन सुहागन स्त्री के लिए कांच की चूड़िया पहनना शुभ माना जाता है। लाल और हरे रंग की चूड़ियां सुहागन स्त्री की सुंदरता को और भी अधिक बढ़ा देती हैं। सोलह श्रृंगार में चूड़िया एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मान्यता है कि चूड़ियों की खनक से नकारात्मकता दूर होती है।
हिंदू धर्म में एक विवाहित स्त्री के लिए पैरों में बिछिया पहनना अनिवार्य माना जाता है। शादी के समय पैरों में बिछियां भी पहनाई जाती हैं जो कांसे की बनी होती हैं। कुछ दिनों बाद इन्हें बदलकर चांदी से बनी बिछियां पहन ली जाती हैं। सुहाग के सामान में बिछिया भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
स्नानादि करने के पश्चात मांग में सिंदूर लगाने के साथ ही बालों का सजाने का प्रचलन बहुत पहले के समय से रहा है। जब भी सोलह श्रृंगार की बात आती है कोशों को संवारने और आलंकृत करने की बात जरूर आती है। पहले के समय में स्त्रियां अपने बालो में चंदन आदि की सुगंधित धूप देती थी जिसके बाद फूलों आदि से उन्हें सजाया जाता था। सलीके से बंधे और सजे हुए बाल सुहागन स्त्री का प्रतीक माना जाता था। मान्यता है कि बालों में गजरा लगाने से वैवाहिक जीवन प्रेम की सुगंध से सुवासित रहता है।
हिंदू धर्म में लाल रंग को बहुत तरजीह दी जाती है क्योंकि यह शुभता और सुहाग की निशानी माना जाता है। हालांकि आजकर बाजार में कई डिजाइनर और अलग-अलग रंगों को जोड़े आने लगे हैं लेकिन ज्यादातर लड़कियां अपनी शादी में लाल रंग का जोड़ा ही पहनती हैं। देवी मां को भी लाल रंग की चुनरी ही चढ़ाई जाती है।
एक सुहागन स्त्री के लिए मांग टीका बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मांग के बीचो-बीचे पहना जाने वाला यह आभूषण चेहरे की आभा को तो बढ़ाता ही है साथ ही यह वैवाहिक जीवन के सही सा साध कर चलने का प्रतीक भी होता है।
शादी के समय दुल्हन को सोने की नथ अवश्य पहनाई जाती है। नथ के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा सा लगता है। सुहागन स्त्री के लिए नथ एक आवश्यक आभूषण माना गया है।
शादी की रस्मों की शुरूआत वर-वधू के द्वारा एक दूसरे से अंगूठी पहनाकर की जाती है। यह प्यार और विश्वास की निशानी मानी जाती है। अंगूठी बाएं हाथ की अनामिका उंगली में पहनाई जाती है। इसके पीछे कारण माना जाता है कि अनामिका उंगली की नसे हृदय से लगती हैं। इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है। पैरों चांदी की पायल शुभता और संपन्नता का प्रतीक होती है। बहू को घर की लक्ष्मी माना जाता है, इसलिए घर की संपन्नता बनाए रखने के लिए दुल्हन के श्रृंगार में पायल आवश्यक मानी गई हैं।
अतः यह कहा जा सकता है कि श्रृंगार एक स्त्री की सुंदरता में चार चांद तो लगाता ही है, साथ ही यह एक स्त्री के जीवन में परिवर्तन और समाज में उसकी पहचान को एक नए रुप में प्रस्तुत करता है, यथा-
सहज संवारत सरस छब, अलि सो का सुच होत।
सुनि सुख तो लखि लाल मो, मुद मोहन चित पोत॥
मीता गुप्ता
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