Tuesday, 27 December 2022

देखो नूतन वर्ष है आया

 

देखो नूतन वर्ष है आया

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!

वास्तव में, नया वर्ष, नए संकल्पों, नए स्वप्नों और नए सृजन का ही तो साक्षी पर्व है। नव वर्ष हमें ओढ़ने का नहीं, आत्मसात कर लेने का आह्वान करता है। आत्मसात करने से जीवन की कायाकल्प हो जाती है, जबकि ओढ़ी हुई चादर तो समय के साथ हट जाती है।नए साल के संदर्भ में सोचती हूं, तो आभास होता है कि मानो साल समय के पर्यटन स्थल का वह नन्हा मार्गदर्शक है, जिसकी अंगुली थामकर हम इस पर्यटन स्थल की बारह महीने सैर करते हैं। बारहवें माह तक यह वृद्ध हो चुका होता है, तब यह हमारी अंगुली एक नए मार्गदर्शक को थमाकर हमसे विदा हो जाता है। हमारी नियति इन्हीं नन्हीं अंगुलियों के भरोसे अपनी यात्रा करने की है और इतिहास गवाह है कि शिशु कभी छलते नहीं हैं। आज जब हम इस शिशु की अंगुली थामकर अपनी यात्रा आगे बढ़ा रहे हैं, तो यह विश्वास करना चाहिए कि हमें यह शिशु वर्ष 2022 में हर्ष और उल्लास, विकास और प्रगति तथा समृद्धि और सामर्थ्य के उन स्थलों का भ्रमण करवाएगा, जिनसे साक्षात होने का स्वप्न हमने सदैव संजोया था।

हर नया वर्ष इन्हीं सपनों के संबंध में यह विचार करने का अवसर देता है कि वे सपने कितने पूरे हुए? कितने अधूरे रह गए? लेकिन सपने कहां पूरे होते हैं? इसलिए वर्षो के आगमन का सिलसिला कभी नहीं थमता। आकांक्षाएं अंतहीन होती हैं, इसलिए सपनों का देखा जाना कभी विराम नहीं पाता। सपने क्या हैं? हमारी अनंत आशाओं और आकांक्षाओं के वे प्रतिबिंब, जो खुली आंखों से आईनों में नहीं, बंद आंखों की पुतलियों के दर्पण में देखे जाते हैं। ये बंद आंखें नए वर्ष की पहली भोर को खुलती हैं। 

नए साल की पहली सुबह जब अपनी दस्तक से बंद आंखों की पलकों को खोलती है, तब ये आंखें यथार्थ के आईने में इन सपनों की हकीकत के अक्स देखती हैं। हम इस नए शिशु थामे हम कर्म के रास्ते पर बढ़ जाते हैं, निःशंक....अविराम....बिना विश्राम किए.... । प्रत्येक नव वर्ष देश में शीत ऋतु में आता है। यह ओढ़ने की ऋतु है। जब हम अपनी देह को मोटी चादर से ओढ़कर उसे शीत से बचाने का यत्न करते हैं, तो वास्तव में नव वर्ष हमें ओढ़ने का नहीं, आत्मसात कर लेने का आह्वान करते हैं। आत्मसात करने से जीवन का कायाकल्प हो जाता है, जबकि ओढ़ी हुई चादर तो समय के साथ फटकर तार-तार हो जाती है। इसलिए नव वर्ष के आगमन पर जो औपचारिक शुभकामनाएं दी जाती हैं, वे ओढ़ी हुई चादर की तरह होती हैं, जिन्हें ओढ़ा तो जा सकता है, पर आत्मसात नहीं किया जा सकता। यदि मंगल की यह कामना व्यक्तिगत न हो, लोक के लिए हो, उसके पीछे सामूहिक लोक मंगल का भाव हो, तो फिर एक चिंगारी अलाव में तब्दील हो सकती है और यह- ‘वसुधैव कुटुंबकं’ के मंत्र को सारे आकाशमंडल में संचरित कर देगा। सच कहूं तो तभी नव वर्ष मंगलमय होगा।

हर नया वर्ष अपने गर्भ में ऐसी आशाओं को समेटे रखता है, जो सुनहरे भविष्य के स्मारक की आधारशिलाएं होती हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों इस वर्ष के पांव आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हमारे आचरण से ये आधारशिलाएं डगमगाने लगती हैं। जिसका यह परिणाम होता है कि हमारे भविष्य का यह उजेला केवल हमारी कल्पना में रह जाता है, आकार में ढल नहीं पाता। यदि कर्मण्यता हो, रचनात्मक दृष्टि हो और पौरुष से भरपूर जिजीविषा हो, तो हर नए साल की आशाओं को एक सुघड़ शिल्पकार की भांति उपलब्धि के दमकते, भव्य शिल्प में ढाला जा सकता है। नव वर्ष का आगमन मनुष्य के जागरण की बेला होती है। सूरज के उजास में वह नए पथ पर अग्रसर होता है। नव वर्ष का आगमन उसके हाथों द्वारा नए लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ली जाने वाली शपथ है और उसके कानों द्वारा सुनी जाने वाली वह भैरवी है, जिसके स्वर आशा के माधुर्य को नव वर्ष के कंठ से गाते हैं। नया वर्ष जीवन शक्ति का साक्षी है। 

लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जो कहते हैं कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। वे ऐसा इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे लोग जीवन को खंड में देखते हैं, जबकि वह तो अखंडित होता है। उसे पूर्णता में देखना चाहिए, लंबाई में नहीं। कितने वर्ष जीए, मायने इस बात के नहीं, मायने इस बात के हैं कि कैसे जीए। नया वर्ष जीवन को पूर्णता में देखने और जी लेने का अवसर है। वह दीये की उस लौ की तरह है, जिसके आकार की कोई अहमियत नहीं होती, अहमियत उस लौ से फैलने वाली रोशनी की होती है। संसार जगमगाते आंगन देखता है, लौ नहीं देखता। नया वर्ष हमें इतिहास की देहरी पर एक ज्योतिर्मय दीप बनाकर रख देता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी लौ को कितना ऊपर उठा पाते हैं। नए वर्ष की यही चुनौती है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए हम कैसे अपने संकल्प की लौ को और ऊपर उठाएं और संसार को ज्योतिर्मय बनाएं। रास्ते बिना प्रकाश के दिखाई नहीं देते, मंज़िल तक तो प्रकाश ही पहुंचाता है। यह प्रकाश वह प्रकाश मात्र नहीं है, जिसमें आंखों की पुतलियां संसार के भौतिक उपादानों को देखकर उन्हें पहचानती हैं। सच्चा प्रकाश तो मन की उन आंखों के पास होता है, जो सूर के पास थीं। जिन्हें अंर्तदृष्टि कहा जाता है, जिनसे सच्चे श्याम की पहचान होती है। जो राधा-माधव की उस जुगल जोड़ी को देखती हैं, जिसने हमारे इतिहास के गलियारों को अपने माधुर्य रस से सींच लिया। हमें वही आत्मप्रकाश चाहिए, जो सार्थक देखे। सार्थक सूर ने देखा था इसलिए सूर की दृष्टि ही सच्ची दृष्टि है और उसमें समाया हुआ आलोक ही सार्थक प्रकाश है। अटल जी के शब्दों में-

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाईं से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें,

बुझी हुई बाती सुलगाएं

आओ फिर से दिया जलाएं \

आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज्र बनाने

नव दधीचि हड्डियाँ गलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं ।

नया वर्ष यदि हमारा प्रकाश पर्व सिद्ध हो सका तो यह हमारी ही नहीं, पूरे राष्ट्र की, पूरे मनुष्यता की उपलब्धि होगी, क्योंकि सुबह नव वर्ष पर हमारी पलकों पर थपकी देकर उन्हें इसलिए नहीं खोलती कि वे बंदी बन फिर अंधेरे को आत्मसात कर लें, बल्कि इसलिए खोलती है ताकि सूरज के प्रकाश में अपनी यात्रा जारी रखने के लिए रास्ते जगमगा जाएं। नया वर्ष, नए संकल्प, नए स्वप्न और नए सृजन का ही तो साक्षी पर्व है। आइए उल्लास की अंजुरी में उल्लास के भाव पुष्पों से इसका अभिनंदन करें।

सभी चाहते हैं कि सब कुछ शुरू से शुरू हो। बीता साल तमाम आशंकाओं और जीवन की धीमी रफ्तार के साथ गुज़रा तो अब इस नए वर्ष की शुरुआत हम इच्छाओं के नए चबूतरे पर खड़े होकर करना चाहते हैं। हम भीतर ही भीतर यह भी चाहते हैं कि अतीत के सब शिलालेख मिटा दिए जाएं और हम अपने हाथों से नए भविष्य की ऐसी नींव रखें, जिस पर खुशियों का वह साम्राज्य हो, जिसमें सच का साथ देने वाले विजयी हों, झूठ और फरेब में उलङो हुए लोगों को पश्चाताप करना पड़े। हमें अपने लिए ऐसी परिस्थिति चाहिए, जिसमें भले ही कठोर तप हो, संघर्ष हो, लेकिन आनंद की वह माधुरी भी हो, जिसके साथ हमारा जीवन बहता चला जाए।

नए वर्ष की शुरुआत में हम कई लोगों को संकल्प (रेज़्योल्यूशन) लेते हुए देखते हैं, जो अपने आत्मविश्वास को जगाते हैं, लेकिन थोड़ी दूर तक चलने के बाद ही वे भूल जाते हैं कि तय क्या हुआ था। वे फिर उसी पटरी पर चलने लग जाते हैं, जिस पर उन्होंने ठोकरें खाई थीं, संताप किया था और जिसके चलते निराशा ने उन्हें धर दबोचा था। इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने एक अच्छा सपना देखा था, लेकिन उसे पूरा करने के अचूक निशाने उनके पास नहीं थे। जिसके चलते होता यह है कि वे आनंद के स्रोत के सामने खड़े रहकर भी रीते के रीते रह जाते हैं।

बीता साल चाहे जैसा भी गुजरा, नए साल के स्वागत की तैयारियों का जोश देखने लायक होता है। यह जोश केवल एक धर्म को मानने वालों में नहीं, बल्कि दुनियाभर के तमाम लोगों में दिखाई देता है। ताज्जुब यह है कि हद से हद चौबीस घंटे तक चलने वाली पार्टी, आतिशबाजी, मौज-मस्ती और धूम के बाद सारा जोश इस तरह ठंडा पड़ जाता है, जैसे नव वर्ष आकर चला गया हो। नए वर्ष का नया सूरज जो संदेश लेकर आता है, हम उसे समझ नहीं पाते। दरअसल, उत्साह के जाग उठने के मुहूर्त में जो शक्तिपात होता है, वह हमारे हाथ से फिसलता चला जाता है और शाम ढलते-ढलते वही सूनापन, वही ढिलाई, वही बेरुखी, वही खालीपन पसर जाता है।

दरअसल, नव वर्ष का ज़ोरदार स्वागत होना चाहिए। ऐसा स्वागत, जैसा घर आई नई-नवेली दुल्हन का होता है, जैसा खेत में उग आने वाले गन्ने और गेहूं की बालियों का होता है या आम की शाखाओं पर झूलने वाली नई-नई मंजरियों का होता है। यह स्वागत एक आरंभ है। यह स्वागत पूरे वर्ष को उत्सव के रंग में ढालने के संकल्प का स्वस्ति वाचन है। स्वागत की इस बेला में कोई एक नया संकल्प हो और उसके साथ नई यात्रा का श्रीगणोश हो, तो आनंद का भाव उपजता ही है। इसके साथ ही पुराने रिश्तों की चाशनी में पगी हुई मीठी-मीठी यादों के सिलसिले हों, तो उम्मीद भरे दिनों के सपने सजने लगते हैं।

21वीं शताब्दी के दो दशक पूरे होने के बाद इस नए वर्ष में महसूस करके देखिए, हमारे अंतरंग में मनुष्य की विजय का आह्वान चल रहा है। समय के कैनवास पर नए रंग भरे जा रहे हैं, जीवन की प्रणाली बदल रही है, परंतु सृजन और प्रलय साथ-साथ झूलते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, जीवन के रहस्यों पर पड़े हुए कई पर्दे हटा दिए गए हैं। इस बार यह वर्ष नवनिर्माण की अद्भुत संभावनाएं लेकर आया है। आप और हम सहज ही अनुभव कर सकते हैं कि पिछले साल हमने कड़ी परीक्षा दी और जान-माल की भारी हानि उठाने के बावजूद हम उत्तीर्ण घोषित हुए हैं,पर हमने अनेक अपनों को खोया भी है। यह नया साल उनके गुज़र जाने की टीस देकर जा रहा है, पर यह सीख भी कि अहंकारी मनुष्य से ऊपर कुछ और भी है, जो हमें हमारी बेबसी और लाचारी का आइना दिखा गया है । अब करना क्या होगा, जीवन थोड़ा अनुशासित, संयमित और नियमित करना होगा, तमाम सारे भ्रमों को दूर करते हुए अपने देशज मूल्यों की शरण में लौटना होगा, मां प्रकृति के क्षरण को रोकना होगा, विज्ञान के विध्वंसकारी रूप को समझना होगा और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के अर्थ को समझना होगा। 

नव वर्ष के आगमन की खुशी को एक या दो दिन में समेट लेने का क्या औचित्य? माना खुशी का यही स्तर वर्ष के आखिरी महीने के आखिरी दिन तक ज्यों का त्यों तो नहीं रह सकता, क्योंकि समय करवट लेता रहता है, उतार-चढ़ाव बने रहते हैं और हमेशा हमारे मन की बात नहीं होती, लेकिन उमंग और उत्साह की गर्मी बनाए रखने की पहल तो हर पल की जा सकती है। हमारे पुरखों ने यही पहल की थी, इसीलिए उन्होंने त्योहारों की ऐसी विस्तृत श्रंखला बनाई कि परिवार में रस घुलता रहे और आशाओं के दीप जलते रहें। हमारे मन का विश्वास कमज़ोर न हो और खुशियों की बारात घर-आंगन में आती रहे, ताकि हर दिन नया और चमकदार बने। इसलिए, आइए नई ऊर्जा, नई आशा और नए उत्साह के साथ 2023 का स्वागत करें। हर ओर नया और सकारात्मक देखें। सभी चेहरे को नयी नजर से देखें। हर चीज में नयापन तलाशें। नयी प्रेरणा से देखें। नई आशा से देखें। नई राह की ओर देखें। नए सपने देखें, नए मार्ग बनाएं और उन ओर चलना शुरू करें। इच्छाशक्ति को प्रबल करें। पाखंड का त्याग करें। भरोसा करें, भरोसे लायक बनें। विश्वास करें, विश्वास जीतें। अपनी गरिमा समझें, दूसरे की अहमियत समझें। अपनी स्मृतियों से पूर्वाग्रहों को मुक्त करें। निराशा जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। अतः उसे कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दें। घर में यदि कोई बुज़ुर्ग हों, तो उसके प्रति तन-मन-धन से समर्पित रहें। परिवार में एक दूसरे के प्रति मान सम्मान एवं आपसी प्रेम-भावना सदैव बनाकर रखें।

और हां! अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें....कोरोना के नए वेरियंट की दस्तक फिर सुनाई देने लगी है.....

 

मीता गुप्ता

 

Monday, 26 December 2022

आइए, बीते साल के लिए सबको धन्यवाद दें

 

आइए, बीते साल के लिए सबको धन्यवाद दें



 

धन्यवाद! एक ऐसा शब्द जो एक अलग तरह की महीनता लिए हुए है। कई बार ऐसा होता है कि सिर्फ़ एक शब्द ही पूरा सुख बुन देता है और ‘धन्यवाद’ ऐसा ही शब्द है। एक भरा-पूरा शब्द जो किसी भी तरह के सहयोग, सेवा का माल्यार्पण है। हम प्रसन्न होते हैं, किसी का सहयोग पाकर और हमारे अंदर भी बहुत कुछ फैलता है, वही कह देता है धन्यवाद। यह शब्द ‘धन्य और वाद’ के समासीकरण से बना है। इसका समास विग्रह करेंगे तो सामने आएगा- धन्य, ऐसा वाद। धन्य का मतलब ‘कृत या कृतार्थ।’ धन्य + वाद = धन्यवाद। यह संस्कृत का समस्त पद है। आइए इस शब्द को समझते हैं– (धन्य – धन् + यत्) – धनी, धन प्रदान करने वाला, महाभाग, ऐश्वर्यशाली, सौभाग्यशाली, श्रेष्ठ। वैसे अंग्रेज़ी शब्द ‘थैंक्स’ के बारे में बात करें, तो इसका उद्गम 12 वीं शताब्दी में हुआ। इसका वृहद संदर्भ में अर्थ है- ‘आपने जो मेरे लिए किया, वो मैं याद रखूंगा।’

चौकीदार, जो दरवाजा खोलते हुए आपका अभिवादन करता है, आप उसे धन्यवाद तक कहना मुनासिब नहीं समझते। कहने का मतलब यह है कि दुनिया या लोगों से परिचय करने से भी पहले हमारा जिस शब्द से सबसे पहले परिचय करवाया जाता है, वो महज़ शब्द भर तो नहीं होगा? तो फिर क्यों हम उसकी अहमियत को धीरे-धीरे नकारना शुरू कर देते हैं। धन्यवाद कोई शब्द नहीं! यह अंदर से महसूस किए गए आभार का बाहरी प्रदर्शन है। इसे व्यवहार का हिस्सा बनाए रखना ज़रूरी है। जीवन में आपके पास जो भी चीज़ें हैं, चाहे वे कितनी भी छोटी क्यों न हों, उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद कहें। ये चीजें प्रकृति, पौधों, जानवरों, लोगों, भोजन, भगवान और गुरु, ब्रह्मांड और पृथ्वी, स्वास्थ्य और फिटनेस, कार्य, व्यवसाय, कैरियर, वित्तीय और सामाजिक स्थिति, रिश्ते, जुनून, खुशी, प्रेम, जीवन, घर, भौतिक वस्तुओं, शिक्षा, ज्ञान, कौशल, योग्यता, मित्र और प्रौद्योगिकी आदि से संबंधित हो सकती हैं।

भारतीय दर्शन एवं परंपरा के अनुसार, व्यक्ति अनेक प्रकार के ऋण लेकर पैदा होता है। जन्म से लेकर जीवनयापन के दौरान हम पर अनेक लोगों का उपकार होता है। किसी और से मिले चार कंधों के बिना तो जीवनयात्रा भी पूरी नहीं हो सकती। जब यह जीवन इस तरह दूसरों के उपकार और सहयोग से ही आगे चलता है, तो क्यों नहीं हमें उन सबका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। जब आप किसी को धन्यवाद बोलते हैं, तो इसका मतलब होता है, प्रकृति के प्रति आभारी रहना।

इस शब्द को हम किसी के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, तो इसका मतलब होता है कि हम उसे उसकी अहमियत या सार्थकता बता रहे हैं। असल में देखा जाए तो इस सृष्टि में कोई भी मनुष्य या जीव-जंतु अपने आप में अकेला क्या है? सब परस्पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इस जीवनचक्र की यदि एक भी कड़ी टूट जाए, तो सब बिगड़ने लगता है। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि आप अपने जीवन में दूसरों की अहमियत को समझें और उसके लिए आभार व्यक्त करना न भूलें। यदि कोई आपके लिए कुछ करता है, तो उसे यह जताने का प्रयास करें कि जो कुछ भी सामने वाले ने आपके लिए किया है, आप उसकी कद्र करते हैं। उस व्यक्ति को धन्यवाद देना न भूलें। धन्यवाद कहने में दो चीजें निहित हैं। कृतज्ञता, जो कि एक भावना है और उस भावना की अभिव्यक्ति, जो कि एक प्रदर्शन है।

क्यों कहें धन्यवाद?

यदि बीच सड़क पर आपकी गाड़ी खराब हो जाए और कोई मैकेनिक न मिले या फिर आपके घर का नल खराब हो जाए और प्लंबर न मिले, तो आप चाहकर भी अपना दिन बेकार होने से नहीं रोक पाएंगे। पैसे हैं और साधन भी हैं, लेकिन फिर भी आप अपने लिए वो सब काम नहीं कर सकते, क्योंकि उस काम को उसका जानकार ही कर सकता है। इस वक्त आपके लिए उस खास इंसान की अहमियत कितनी बढ़ जाती है, लेकिन वही जब आपको सेवा देकर जाता है, तो आप पैसा देकर अपना फर्ज़ पूरा कर लेते हैं। इसी तरह दिनभर में न जाने कितने लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे लिए काम करते हैं, हमें इसका अहसास तक नहीं होता। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि रोज़मर्रा के जीवन में सफ़ाई कर्मचारी, घर में काम करने वाला, वॉचमैन, रिक्शावाला, वेटर, पुलिस, टीचर, डॉक्टर आदि अपना काम न करें, तो आपकी ज़िंदगी में क्या-क्या समस्या आ सकती हैं? तो क्यों न हमें इनके प्रति आभार व्यक्त करें? इनको धन्यवाद कहना तो बनता है। है न....

शब्द एक, लाभ अनेक

दरअसल थैंक्स, आभार या धन्यवाद जैसे शब्द भले ही किसी और के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, लेकिन ये शब्द कहीं न कहीं आपके व्यक्तित्व को भी उभारते हैं। धन्यवाद देना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमारे व्यवहार के साथ-साथ हमारे अवचेतन मन पर भी असर करती है। आभार व्यक्त करने वाले इंसान अपेक्षाकृत ज्यादा खुशमिज़ाज होते हैं और उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा हासिल होती है।

मार्केटिंग या सेल्स के लोगों को विशेष-तौर पर इसके लिए तैयार करने के पीछे भी यही कारण है कि शुक्रिया बोलने से उनका गुडविल बनता है और लोग उनको सुनने के लिए आकर्षित होते हैं। लोगों को यह बताना कि आप उनके आभारी हैं, केवल एक अच्छी बात या अच्छी आदत ही नहीं है। यह दूसरे व्यक्ति से एक प्रकार का भावनात्मक संपर्क है, जिसकी आवश्यकता हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पड़ती ही है। लोग यह जानना चाहते हैं कि जो वे कर रहे हैं, उस पर ध्यान दिया जाता है और उसकी सराहना होती है। धन्यवाद मिलने से सामने वाला और दोगुने आत्मबल से उस काम को करने का प्रयास करता है। जब आप किसी को धन्यवाद बोलते हैं, तो सामने वाले की नज़र में आपकी इज़्ज़त भी बढ़ती है और वह आपके व्यवहार से प्रभावित होकर, आगे भी आपकी मदद करने को तैयार रहता है।

सबसे ज़रूरी है ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करना

वेदों, पुराणों और शास्त्रों में धन्यवाद के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है। हम मानते हैं कि भगवान सर्वशक्तिमान हैं, जिनकी कृपा से ही यह संसार बना है और चल रहा है। हम सब खुद को परब्रह्म के प्रति आभारी मानते हैं। दरअसल, ईश्वर की भक्ति, पूजा, आराधना भी उन्हें धन्यवाद करने का ही एक रास्ता है। दूसरों के प्रति सम्मान की भावना लाने के लिए खुद को प्रेरित करना ज़रूरी है। एक बार यदि आपके अंदर आभार प्रकट करने की भावना विकसित हो गई, तो फिर वो आपकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाएगा और आपकी ज़िंदगी खुशहाल रहेगी। कृतज्ञता के अभाव के कारण हम चीज़ों पर अपना अधिकार मानकर बैठ जाते हैं। संतोष का अभाव तथा अनवरत और पाने की लालसा हमें कृतज्ञ होने से रोकती है। कृतज्ञता ज्ञापन के पहले हम अक्सर कर्म या कृपा के परिणामों के उद्घाटित होने तक के लिए प्रतीक्षा पर बल देते हैं। यह विश्वास और आस्था की एक कमी का संकेत देता है और हमें उसी रूप में वापस मिलता है। कृतज्ञता हमें ध्यान के लाभों को समझाने में एक तरह से हमारी मदद करती है।

छोटे से करें प्रारंभ

धन्यवाद देने के लिए किसी विशेष अवसर की ज़रूरत नहीं है। रात के खाने की मेज़ पर भी आप धन्यवाद कर सकते हैं। घर पर बच्चे को अगर आपने कोई काम दिया है, तो उसे इसके लिए धन्यवाद कह सकते हैं। ऐसी छोटी-छोटी चीज़ों के लिए भी धन्यवाद कहिए, जिन्हें आप उनका काम या अपना अधिकार मानते हैं। जैसे आपको तब भी धन्यवाद कहना चाहिए, जब किसी रेस्त्रां में कोई वेटर आपके खाली गिलास में पानी भर देता है। हालांकि, देखा जाए तो तकनीकी रूप से यह उस वेटर का काम ही है, मगर इससे उसके द्वारा किए गए काम की महत्ता तो कम नहीं हो जाती है। आपको उन लोगों से धन्यवाद बोलते रहना चाहिए, जो आपके जीवन को जीने योग्य बनाते हैं। साथ ही अपना आभार व्यक्त करने का अभ्यास करते रहना चाहिए।

शोध में क्या कहा गया है?

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया का एक शोध कहता है कि धन्यवाद बोलने के कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी हैं। शोध में कहा गया है कि लोगों का आभार जताने वाले व्यक्ति को अच्छी नींद आती है और उनका इम्यून सिस्टम भी मज़बूत होता है। रिसर्च के अनुसार, यदि हम रोज़ाना के जीवन में आभार व्यक्त करने की आदत अपना लें, तो इससे ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है, अवसाद और चिंता से छुटकारा मिलता है, व्यक्तित्व विकास होता है और गलत आदत और गलत व्यवहार में कमी लाई जा सकती है। किसी के प्रति कृतज्ञता का भाव इंसान को ज़िम्मेदार बनाता है। जब हम किसी को उसके काम के लिए शुक्रिया कहते हैं, तो इससे हमारे व्यवहार में एक तरह का लचीलापन आने लगता है। वहीं, यूएसए की केंट स्टेट यूनिवर्सिटी की मानें, तो धन्यवाद लिखकर व्यक्त करने से भी फायदा मिलता है। ऐसा करने वाले लोग ज्यादा खुशमिज़ाज होते हैं तथा लोगों के साथ उनके रिश्ते भी मज़बूत बने रहते हैं।

असली कमाई है आभार

किसी भी कार्य के बदले भावनाओं को त्वरित अभिव्यक्त करने का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है आभार या धन्यवाद ज्ञापित करना। संबंधों की प्रगाढ़ता को यही धन्यवाद चार चांद लगा देता है। धन्यवाद की अनुपस्थिति संबंधों को रूखा कर सकती है और सेवा या किसी कार्य को भविष्य में उसी भाव से करने में व्यवधान पैदा कर सकती है। इसका भाव एहसान या उससे उत्पन्न होने वाले घमंड से परे है। ऐसा कहा जाता है कि जितने धन्यवाद आप कमाते हैं वही आपकी असली कमाई है। क्योंकि यह सीधे-सीधे तत्काल किसी की मदद और किसी की किसी भी परिस्थिति में मदद से जुड़ा है। यहां कोई दूसरे के लिए कुछ ऐसा कर रहा है कि सामने वाले का मन उसके लिए एक अलग प्रकार की श्रद्धा से भर रहा है। यह श्रद्धा किसी के विश्वास को भी मज़बूत करती है।

एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग में एक दुकानदार ने सिर्फ़ धन्यवाद कहने के लिए सालाना जलसा रखा और अपने ग्राहकों को भोज भी करवाया। इससे ही उसकी ग्राहकी में सत्तर प्रतिशत बढ़ोतरी देखी गई। धन्यवाद जब अनपेक्षित मिलता है, तो उसमें ख़ुशी का एहसास ज़्यादा होता है। अनजानी जगह, अनजाने लोगों के बीच कोई अनजानी सहायता करने के बाद मिले धन्यवाद का एहसास अलग ही होता है। यह हमारे अंदर जोश, आत्मविश्वास और अपनापन भर देता है। सूक्ष्म स्तर पर देखा जाए तो ऐसा है भी, हम सब एक दूसरे के लिए और एक दूसरे से ही बने हैं। इसलिए सारे धर्मों में भी धन्यभागी बन जाने पर ज़ोर दिया गया है।

आभारी लोग ज़्यादा ख़ुश, कम उदास, कम थके हुए और अपने जीवन और सामाजिक रिश्तों से अधिक संतुष्ट होते हैं। धन्यभागी लोगों में अपने वातावरण, व्यक्तिगत विकास, जीवन के उद्देश्य और आत्म स्वीकृति के लिए भी नियंत्रण स्तर उच्च होता हैं। उनके पास जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए अधिक सकारात्मक तरीक़े होते हैं, उन्हें अन्य लोगों से समर्थन मिलने की संभावना अधिक होती है, वे अनुभव की पुनः व्याख्या करते हैं और उससे आगे बढ़ते हैं और समस्या के समाधान के लिए योजना बनाने में अधिक समय लगाते हैं।

कई अध्ययन बताते हैं कि...

धन्यवाद देने का भाव जिन लोगों में प्रबल होता है उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा व चारित्रिक गुण अधिक होते हैं। ऐसे लोगों में गुणात्मक विकास बहुत ज़्यादा होता है। धन्यवाद भी संक्रामक की श्रेणी में आता है। यदि कोई किसी को धन्यवाद ज्ञापित कर रहा है तो सच मानिए तीसरा व्यक्ति भी इसके लिए स्वतः प्रेरित होता है। वास्तव में देखा जाए तो एक छोटा-सा शब्द हमारे मन पर सकारात्मक गहरी छाप छोड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि हमारे हिस्से में भी बहुत सारे धन्यवाद आएं और हम भी बहुत सारे धन्यवाद कर सकें।

कृतज्ञता का अभ्यास कैसे शुरू करें?

कृतज्ञता प्रकट करने का रवैया अपनाएं। अपने स्वयं के दृष्टिकोण पर ध्यान देना शुरू करें और आभार प्रकट करने का अभ्यास शुरू करें। शुरुआती तौर पर कृतज्ञता प्रकट करने का अभ्यास करने के लिए आपके पास भूतकाल में जो कुछ भी था और वर्तमान में जो कुछ भी है उसके लिए अपने मन में कृतज्ञता की भावना को लाएं।

दिन की शुरुआत आभार के साथ करें

हर सुबह की शुरुआत चेतना के साथ सोच-समझ कर करें और इसके लिए भगवान को धन्यवाद दें कि आप जीवित हैं। सुबह में, ‘ईश्वर द्वारा आपको दिए गए आशीर्वादों को गिनें’। इन्हे कहीं भी लिखकर रखना शुरू करें । ऐसे 5 आशीर्वादों की सूची बनायें जिनके लिए आप ईश्वर के आभारी हैं। आभार प्रकट करते समय आपके भावनाओं की गहराई महत्वपूर्ण है। आप इसके लिए एक डायरी रख सकते हैं।

जिस किसी ने आपकी मदद कर (चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा हो) आपके दिन को खुशनुमा बयाना हो, उसे एक त्वरित “धन्यवाद” देने के लिए समय निकालें और उसे एक छोटी सी मुस्कान दें ।

रोज़ शाम को एक सूची बनाएं

मन की शांति, संतुष्टि और जीवन में सफलता के लिए कृतज्ञता एक उत्प्रेरक है। इसे एक आदत बनाएं कि जब भी आपका दिन खत्म हो, आप बैठें और उन सभी चीजों को नोट करें जो उस विशेष दिन में अच्छी हुई थीं। आपको उन सभी क्षणों, घटनाओं, संबंधों, चीजों और संपत्ति के लिए आभारी होना चाहिए। ऐसी छोटी-छोटी चीजों की सूची बनाना, जिनके लिए आप आभारी हैं, आपको पूरी तरह से अलग वक्तित्व प्रदान करेगी। आप हर दिन अपने भीतर एक बदलाव देखना शुरू कर देंगे।

जीवन में सभी नियर मिस के लिए आभारी रहें

नियर मिस का मतलब किसी दुर्घटना या चोट से संयोग वश बच जाना होता है। हम इसे हिंदी में बाल-बाल बचना कहते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि प्रत्येक 1000 नियर मिस होने पर एक गंभीर चोट या घातक दुर्घटना घटित होती है। जीवन में ऐसी तमाम नियर मिस के लिए आभारी होना चाहिए। जीवन में कई मौके आते हैं, जब हम किसी समस्याग्रस्त स्थितियों में फंसने से बच जाते हैं। जीवन में ऐसी सभी घटनाओं के लिए आभारी रहें। जैसे कि आप किसी कार दुर्घटना से बचे हों या आपकी किसी गंभीर बीमारी की महत्वपूर्ण चिकित्सा रिपोर्ट में बीमारी के लक्षण न दिखाई दिए हों ।

जीवन के नकारात्मक भागों के लिए आभारी रहें

आपको जीवन के नकारात्मक भागों के लिए आभारी होना चाहिए। आप अभी जो कुछ भी हैं, जीवन में उन नकारात्मक घटनाओं, स्थितियों या क्षणों से मिली सीख के कारण हैं। यदि वे नकारात्मक परिस्थितियां आपके जीवन का हिस्सा नहीं होती , तो आप अपने अंदर ज़रुरी बदलाव नहीं कर सकते थे और अपने व्यक्तित्व में सुधार नहीं ला सकते थे और आज की सफलता के मुकाम तक नहीं पहुंच सकते हैं। जीवन के नकारात्मक क्षणों से अपनी स्पॉटलाइट को स्थानांतरित करें और उन नकारात्मक भागों को सकारात्मक दृष्टिकोणों से देखें। ध्यान दें कि उन नकारात्मक घटनाओं का आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ा है और उससे हुए सकारात्मक परिणामो के लिए आभारी रहें।

इसे एक आदत बनाएं

आभार को एक भावनात्मक मांसपेशी के रूप में देखें, जो जानबूझकर उपयोग के साथ विकसित होगी और अधिक मज़बूत बनेगी । जब आप अपना आभार व्यक्त करते हैं, तो यह और अधिक विकसित होता है। यदि आप अपने जीवन में धन्यवाद की भावना का अधिक अनुभव करना चाहते हैं, तो धन्यवाद! अधिक बार कहें। यह एक छोटी सी बात है, लेकिन जो लोग लगातार कृतज्ञता व्यक्त करते हैं वे अपने जीवन में सभी चीज़ों के लिए उच्च स्तर की जागरूकता विकसित करते हैं, जिनके लिए उन्हें आभारी होना चाहिए।

हर दिन है थैंक्सगिविंग डे

संयुक्त राज्य अमेरिका में, एक विशेष दिन धन्यवाद दिवस (थैंक्स गिविंग डे) के रूप में मानते है। यह आभार प्रकट करने के लिए एक निर्दिष्ट दिन है। उनके जीवन में थैंक्सगिविंग डे मनाना बहुत महत्वपूर्ण इवेंट है। धन्यवाद देने से उन्हें अपने जीवन में अच्छी चीज़ों को पहचानने, सराहना करने और उसके लिए आभारी होने में मदद मिलती है। मेरा मानना ​​है कि कृतज्ञता के लिए केवल एक निर्दिष्ट दिन क्यों हो। हमें हर दिन को धन्यवाद दिवस (थैंक्स गिविंग डे) के रूप में जीना चाहिए।

कृतज्ञता जीवन जीने का एक तरीका बन जाना चाहिए, आपकी कोशिकाओं और अवचेतन मन में समाहित और संस्कारित हो जाना चाहिए। आपको अपने दिमाग को सचेत रूप से सोचते हुए “थैंक यू” कहने का अभ्यास करना चाहिए। अधिक चेतना के साथ जानबूझकर धन्यवाद देने पर आप अपने भीतर उत्पन्न कृतज्ञता का और भी अधिक महसूस करेंगें । आपके भीतर कृतज्ञता की भावना बढ़ने के परिणामस्वरूप आपको अधिक समृद्धि, संतुष्टि और मन की शांति की प्राप्ति होगी । आभार (ग्रेटीट्यूड) का स्तर जो आप महसूस और प्रकट (दूसरों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं) करते हैं,उसका स्तर आपकी आंतरिक शांति और खुशी के स्तर के बराबर होगा।

धन्यवाद पाना और देना दोनों ही हमारे सच्चे बैंक बैलेंस हैं जो हमारे साथ जाने वाले हैं।

आप क्या सोचते हैं ? आप कृतज्ञता का अभ्यास कब से शुरू करेंगे? अगले महीने या अगले हफ्ते? या बस इस लेख को पढ़ते ही धन्यवाद देंगे?

आइए, इसे अभी से शुरु करें...

नववर्ष 2023 से शुरू करें.......!!

 

 

मीता गुप्ता

 

दुष्यंत की ग़ज़लों में सामाजिक चेतना

 

दुष्यंत की ग़ज़लों में सामाजिक चेतना

(स्व. दुष्यंत कुमार 01 सितंबर 1933 - 30 दिसंबर 1975 )



 

अपने तीसरे कविता संग्रह 'जलते हुए वन का वसंत' की भूमिका में दुष्यंत कुमार कहते हैं कि 'मेरे पास कविताओं के मुखौटे नहीं हैं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएं नहीं हैं, मैं सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में साधारण आदमी की पीड़ा, उत्तेजना, दबाव, अभाव और उनके संबंधों में उलझनों को जीता हूँ और व्यक्त करता हूँ। मेरे लिए मनुष्य मात्र की अवमानना सबसे अधिक कष्टप्रद है।' इसी भावभूमि, विचार और संवेदना के तहत दुष्यन्त का परवर्ती लेखन निरंतर निखरता रहा एवं अधिक समृद्ध होता गया। अपने पहले कविता संग्रह 'सूर्य का स्वागत' से लेकर 'आवाज़ों के घेरे', 'जलते हुए वन का वसंत' और ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' तक उनकी काव्य-प्रतिभा और प्रखरता लगातार परवान चढ़ती रही। उनका  काव्य-नाटक 'एक कंठ विषपायी' और दो उपन्यास 'छोटे छोटे सवाल' तथा 'आँगन में एक वृक्ष' भी इस दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।

दुष्यंत कुमार ने अपनी अधिकांश  लोकप्रिय गज़लें अंतिम समय में ही लिखीं। कहते हैं कि बुझते दिए की लौ तेज़ होती है। इन्हीं ग़ज़लों की वजह से दुष्यंत ने साहित्य में एक मुकम्मिल जगह बना ली। उनकी अंतिम समय की लिखीं ग़जलें न केवल बेइंतिहा लोकप्रिय हुई अपितु इन ग़ज़लों को एक जड़ व्यवस्था का तीव्र विरोध भी सहना पड़ा। व्यवस्थावादी लोगों ने कहा कि हिंदी में ग़ज़ल कोई विधा ही नहीं है। यह बहुत हल्की चीज़ है और साहित्य में इसका कोई महत्त्वपूर्ण स्थान भी नहीं। अब इसकी वजह क्या रही यह पता कर पाना बहुत मुश्किल काम नहीं। दरअसल दुष्यंत की ग़ज़लें एक पैनी सामाजिक और राजनैतिक चेतना की बेमिसाल नमूना थीं। वह इतनी संवेदनात्मक थीं कि लोगों पर अपना गहरा प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहती थीं। अत: संवेदनहीन और रूढ़ व्यवस्था के पक्षधरों द्वारा उनका विरोध होना स्वाभाविक ही था। इस से पहले न तो कभी ग़ज़ल को साहित्य की विधा मानने से इंकार किया गया,न ही उसे हल्की चीज़ माना गया। सत्तर के दशक के में दुष्यंत कुमार ने 'ग़ज़ल' को एक नई ज़िंदगी दी। दिल को छूने वाले सामाजिक यथार्थ को अभिव्यक्त करने में दुष्यंत की भाषा एवं शैली ने जादू-सा कर दिया।

उर्दू ग़ज़ल का मिजाज़ दरबारी था। उसकी विषयवस्तु, उसकी शब्दावली, संवेदना, लय, उन्मान, प्रतीक सब सुनिश्चित थे। उन्हें तोड़ना या विकसित करना बहुत मुश्किल काम था। शमशेर बहादुर सिंह ने संभवत: इस दिशा में पहल की जब उन्होंने कहा - 'हक़ीक़त को लाए तखैयुल से बाहर, मेरी मुश्किलों का हल जो पाए' शमशेर जी के बाद दुष्यंत कुमार ही एक ऐसे शायर हुए जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल के बँधे-बँधाए ढाँचे को एकदम तोड़ दिया। यूँ हिंदी में ग़ज़ल लिखने की पहल जयशंकर प्रसाद, निराला, देवी प्रसाद पूर्ण, राम नरेश त्रिपाठी आदि कवियों ने की पर वे चूँकि उर्दू की परंपरागत ग़ज़लों और उसके छंद शास्त्र से कतई भिन्न थी सो तब बहुत लोकप्रियता उन्हें हासिल नहीं हुई । इसका एक कारण उनका रूढ़ और पारंपरिक कंटेन्ट भी रहा होगा। पर दुष्यंत ने जब ग़ज़लें लिखीं तो उसका कंटेन्ट बहुत प्रभावी था। अब यहाँ नई मुसीबत आ खड़ी हुई, व्यवस्था-विरोध पूर्ण शिद्दत से इन ग़ज़लों में उभर कर आया। वहीं परंपरावादी ग़ज़लकारों, ग़ज़ल प्रेमियों को आम, सहज भाषा का प्रभावी इस्तेमाल भी अखरा। यूँ उर्दू की जदीद शायरी में भी आम बोलचाल की भाषा का काफ़ी इस्तेमाल होता रहा था पर दुष्यंत को कैफ़ियत देना पड़ी कि उन्होंने 'शह्र' को शहर और 'वज्न' को वज़न जैसे शब्दों का उपयोग क्यों किया। बहरहाल जब दो मिसरों की ग़ज़ल आम भाषा में नुमाया हुई तो रदीफ़, क़ाफ़िये, वज़न, टेक्सचर और भाषा के सवालात पैदा  हुए। पर दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों ने इन सारे सवालों को दरकिनार करते हुए अपनी पुख़्ता और मुकम्मिल ज़मीन बनाई। यहाँ यह बताना ग़ैरमुनासिब नहीं होगा कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने भी उर्दू की परंपरा और शैली में ग़ज़लें लिखीं थीं परंतु अपनी पारंपरिक शैली के कारण जनमानस में वह महत्त्वपूर्ण स्थान न पा सकीं । जाहिर है दुष्यंत की ग़ज़लों की लोकप्रियता के पीछे हिंदी और उर्दू का फ़र्क नहीं बल्कि ग़ज़लों का धारदार कंटेन्ट ही है।

हम इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते कि ग़ज़ल उर्दू हो या हिंदी, ग़ज़ल उर्दू से आई है वह हिंदी नहीं हो सकती। अलबत्ता उर्दू मिश्रित आम बोलचाल की भाषा में हो सकती है। ऐसी ग़ज़ल यदि लोगों के करीब हो तो कोई आश्चर्य की बात भी नहीं। दुष्यंत की ग़ज़लों में सामाजिक स्थितियों की पैनी और गहरी पड़ताल है तो राजनीतिक चेतना भी ग़ज़ब की है। दुष्यंत आम आदमी के दुख दर्द, सियासत की चालबाज़ी, फ़रेब, पाखंड और जड़-व्यवस्था की मूल्यहीनता के ख़िलाफ़ बहुत तीखे ढंग से रीएक्ट करते हैं। वह साफ़ कह उठते हैं -                                                                                                                  

कहाँ तो तय था चरागां हरेक घर के लिए

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।

यहाँ दुष्यंत की दृष्टि बहुत विस्तृत है। वह हर घर के लिए चराग़ की बात करते हैं। चराग़ का मतलब रोशनी से है और रोशनी का मतलब सुख, समृद्धि, शांति और समझदारी से है । हैरत की बात है कि आज चराग़ पूरे शहर के लिए यानि एक बहुत बड़े वर्ग के लिए मयस्सर नहीं है। यहाँ दुष्यंत की वर्ग चेतना बहुत स्पष्टता से मुखरित होती है लेकिन दुष्यंत इस स्थिति से हताश नहीं हैं । वह कहते हैं कि -

वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता

मैं बेकरार हूँ आवाज़ में असर के लिए ।

हर पल दुष्यंत कुमार की चेतना, मूल्य हीनता, सियासती दाँव-पेंच, सिद्धांतहीनता और प्रतिगामी स्थितियों को आरपार चीरती नज़र आती है। उनकी संवेदनशीलता हर बार और अधिक वेधक हो उठती है -

कैसे-कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं

गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो

ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं ।।

वह देखते हैं कि आम अवाम किस क़दर असंवेदनशील हो गया है  तब वह कहते हैं कि -

गज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते

वो सब के सब परेशाँ है कि वहाँ पर क्या हुआ होगा ।

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते है

ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा ।।

दुष्यंत की ग़ज़लें देश के हालात ( ज़ाहिर है ख़स्ता हालात ) से रूबरू हैं। वे इससे इतने जुड़े हुए दिखते हैं कि प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और ग़ज़ल नुमाया होती है । दूसरी चीज़ जो इन ग़ज़लों में बखूबी देखी जा सकती है वह है लोगों की संवेदनाओं को तेज़ करने की ललक। वह कुछ लोगों की संवेदनहीनता और शेष की जड़ता पर व्यंग्यात्मक प्रहार करते दीखते हैं -

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में

हम नहीं आदमी,  झुनझुने हैं ।

आज के निम्न वर्ग के हालात पर और दिल्ली के संसदी-सियासती ढ़ोंग पर गज़ल है -

भूख है तो सब्र कर,

रोटी नहीं तो क्या हुआ

आजकल दिल्ली में है ज़ेरे बहस ये मुद्दआ।

'लोक की चिंता' आजकल राजनीति की दुनिया में बस दिखाने भर की चीज़ बच गई है । लोगों की परेशानी की नुमाइश अब जलसों-जुलूसों में की जाती है । भव्य आयोजन होते हैं यह बताने के लिए कि वे सब अवाम के लिए कितने फ़िक्रमंद हैं -

ये लोग होमो हवन में यकीन रखते हैं

चलो यहाँ से चलें, हाथ जल न जाए कहीं ।

अभिव्यक्ति की आज़ादी और सत्ता का उससे डर दुष्यंत की एक ग़ज़ल में यूँ आया है -

मत कहो आकाश में कोहरा घना है

यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

दुष्यंत की ग़ज़लों की जो सब से बड़ी विशेषता है, वह है उनका आशावाद। यही बात कम से कम मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। वह साफ़गोई से कहते हैं -                                                                                                 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ।

सांप्रदायिकता और धार्मिक पाखंड पर वह क्षुब्ध होकर कह उठते हैं -

ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो

कुरानो उपनिषद खोले हुए हैं,

मज़ारों से दुआएं माँगते हो

अकीदे किस कदर पोले हुए हैं ।

दुष्यंत कुमार का यह दृढ़ विश्वास था कि असली कविता सामाजिक जीवन से ही उभरकर सामने आती है। वे किसी स्कूल या साहित्यिक मत के हिमायती नहीं थे। वे एक ऐसी कविता शैली की तलाश कर रहे थे जो स्वाभाविक हो। काव्य के प्रति उनके इसी दृष्टिकोण ने उनमें सामान्य जीवन के यथार्थ को पुनर्सृजित करने का विश्वास पैदा किया।

'वे कविताएं उसी हद तक मेरी हैं कि मैंने इन्हें लिखा और इन्हें जिया है। अगर आप इनमें एक परिचित आवाज़ को सुन पाते हैं, एक सहृदय भाषा और अपनापन महसूस करते हैं तो मैं समझूँगा कि मैं सफल हो गया।'  दुष्यंत ने एक उम्र कविताएं लिखने में गुज़ार दी, नाटक और उपन्यास भी लिखे पर लोकप्रियता ग़ज़ल से ही मिली, यह अकारण नहीं है। यहाँ तक कि उनके गीत भी ग़ज़लों की श्रेणी में पहचाने जाने लगे -

रह रह कर आँखों में चुभती है

निर्जन पथ की दोपहरी

आगे और बढ़ो तो शायद

दृश्य सुहाने आएंगे ।

और इन्हीं सुहाने दृश्यों की मधुर परिकल्पना के साथ  30 दिसंबर 1975 को अल्प वय में भोपाल में हुए हृदयाघात से दुष्यंत चले गए लेकिन छोड़ गए एक विस्तृत आकाश, समृद्ध परंपरा और आने वाले स्वर्णिम कल की उम्मीद।

 

 

मीता गुप्ता

Saturday, 24 December 2022

श्रद्धांजलि माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी

 

श्रद्धांजलि

माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी




बाधाएं आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा,

कदम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रुदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा,

कदम मिलाकर चलना होगा॥

 

25 दिसंबर का दिन दुनियाभर में खास है। इस दिन विश्व के कई देश क्रिसमस का पर्व मनाते हैं। हालांकि भारत के लिए 25 दिसंबर का महत्व अलग ही है। भारत के इतिहास में 25 दिसंबर की तारीख सिर्फ़ क्रिसमस के तौर पर ही नहीं, बल्कि सुशासन दिवस के रूप में भी दर्ज है। प्रत्येक वर्ष भारतीय 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाते हैं। सवाल ये है कि सुशासन दिवस क्यों मनाते हैं? इस दिन को मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई? सुशासन दिवस मनाने का उद्देश्य क्या है? सबसे पहले तो यह जान लेना चाहिए कि सुशासन दिवस भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके स्व. अटल बिहारी वाजपेयी से संबंधित खास दिन है। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को सुशासन दिवस के तौर पर मनाते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने नौकरशाहों की एक बैठक ने कहा- एक व्यक्ति के सशक्तिकरण का अर्थ है देश का सशक्तिकरण है। तेज़ रफ़्तार आर्थिक विकास तथा सामाजिक परिवर्तन से ही यह दूरगामी लक्ष्य हासिल हो सकता है।  उनके ये शब्द देश में उनके अहम योगदान को दर्शाते हैं। उन्होंने न सिर्फ़ भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वरूप दिया, बल्कि कमज़ोर वर्गों के उत्थान की नीतियों को भी विस्तार दिया।

आइए उनके कार्यकाल की कुछ अहम उपलब्धियों पर नजर डालते हैं-

*    उन्होंने ग्रामीण इलाकों को मुख्यालय की सड़कों से जोड़ने की योजना शुरू की स्वर्ण चतुर्भुज योजना से चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली व मुंबई हाईवे के नेटवर्क से जुड़े। वहीं प्रधानमंत्री ग्राम योजना से गांव-गांव तक सड़कें बननी शुरू हो गईं।

*    वाजपेयी जी वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम लाए, इससे राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा गया। इस कदम ने सार्वजनिक क्षेत्र में बचत को बढ़ावा दिया। इसके चलते वर्ष 2000 में जो जीडीपी ग्रोथ रेट 3.84% थी, वह 2005 में बढ़कर 7.92% हो गई। (साभार: macrotrends.net)

*    उन्होंने देश में संचार क्रांति लाने में अहम भूमिका निभाई। वे टेलीकॉम फ़र्म्स के लिए फिक्स्ड लाइसेंस फीस को हटाकर रेवेन्यू शेयरिंग की व्यवस्था लेकर आए। भारत संचार निगम लिमिटेड का गठन करवाया इससे संचार क्षेत्र का व्यापक विस्तार हुआ।

*    उन्होंने सरकार का दखल कम करने के लिए निजीकरण को अहमियत दी। अलग विनिवेश मंत्रालय बनाया गया। बालको, हिंदुस्तान जिंक, बीएसएनएल इंडिया, पेट्रोकेमिकल्स अहम विनिवेश थे।

*    उनके कार्यकाल में सर्व शिक्षा अभियान के ज़रिए 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया। वर्ष 2001 में लांच इस योजना के महल 4 साल के भीतर स्कूल से दूर रहने वाले बच्चों की संख्या में 60% की कमी आई। इस अभियान के लिए लिखी उनकी कविता “स्कूल चलें” काफ़ी चर्चित हुई, जिससे उनके शिक्षा के प्रति गंभीर सरोकार का पता चलता है-

सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, बन ठन के निकले हम,

सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, घर से दूर चलें हम,

रोके से ना रुके हम, मर्ज़ी से चले हम,

बादल-से गरजें हम,

सावन-से बरसें हम,

सूरज-सा चमकें हम,

स्कूल चलें हम।

इसके दरवाज़े से दुनिया के राज़ खुलते हैं,

कोई आगे चलता है, हम पीछे चलते हैं,

दीवारों पे किस्मत अपनी लिखी जाती है,

इस से हमको जीने की वजह मिलती जाती है,

रोके से ना रुके हम, मर्ज़ी से चले हम,

बादल-से गरजें हम,

सावन-से बरसें हम,

सूरज-सा चमकें हम,

स्कूल चलें हम।

*    वाजपेयी जी को केंद्र की सत्ता में रहते कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद देश पर लगी पाबंदियों के बाद अर्थव्यवस्था को संभाले रखने की चुनौती हो या कारगिल में पाकिस्तान से मिला धोखा हो। अटल जी ने हर मुसीबत का डटकर सामना किया।

*    उन्होंने सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर की बस सेवा शुरू की। उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में पाकिस्तान यात्रा कर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से मुलाकात की और आपसी रिश्तों में नई शुरुआत की घोषणा की। कुछ समय बाद तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ़ की शह पर पाक-सेना आतंकवादियों ने कारगिल में घुसपैठ कर कई चोटियां कब्ज़ा कर ली थीं। अटल सरकार ने पाक सीमा का उल्लंघन नहीं करते हुए धैर्य पूर्वक कार्यवाही कर भारतीय क्षेत्र मुक्त करवा लिया।

*    पाक परस्त पांच आतंकियों के समूह ने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमला किया। सुरक्षाबलों ने सभी को मार गिराया। इस हमले में दिल्ली पुलिस के 6 और अर्धसैनिक बल के 2 जवान शहीद हो गए। एक माली की भी मौत हो गई। हमले में लश्कर और जैश का हाथ था। सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पंजाब, राजस्थान, गुजरात, कश्मीर आदि राज्यों की सीमा पर तीन लाख सैनिक बढ़ा दिए।

*    अटल जी ने सहयोगी दलों के साथ सर्वसम्मति से 3 नए राज्यों का गठन किया। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन क्रमशः 1 नवंबर, 9 नवंबर और 15 नवंबर 2000 को हुआ था। इससे इन राज्यों का तेज़ी से विकास होने लगा।

अंत में अटल जी को नमन करते हुए-

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर

पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ

गीत नया गाता हूँ।

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ॥

 

 

मीता गुप्ता

 

 

 

 

 

 

 

 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...