Sunday, 25 June 2023

चलो, पिकनिक चलें!!

 

चलो,  पिकनिक चलें!!

 


                  पिछले दिनों एक फिल्म देख रही थीफिल्म पुरानी थी और उसमें पूरे परिवार का पिकनिक जाना...उनका वहां चादर बिछाकर, टोकरी खोलकर खाने का सामान आपस में बांट कर खाना, बच्चों का बॉल से और बड़ों का बैडमिंटन खेलना, इस देखकर कुछ याद आया, अरे! आजकल तो हम पिकनिक जाते ही नहीं। तो सोचा कि क्यों न आज पिकनिक चलें? पिकनिक जीवन में मनोरंजन और सुखद अनुभवों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें सामान्य दिनचर्या और दैनिक तनाव से दूर रखकर मनोरंजन, आराम और परिवार या मित्रों के साथ समय बिताने का अवसर प्रदान करता है।

जीवन में पिकनिक क्यों है ज़रूरी?

स्वास्थ्य लाभ: पिकनिक एक अच्छा व्यायाम का माध्यम हो सकता है। खुले आसमान में फिजिकल एक्टिविटी जैसे चलना, दौड़ना, फ्रिस्बी खेलना, खेल, ट्रेकिंग, स्विमिंग आदि स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, पिकनिक के दौरान आप ताजगी भरी हवा इन्हेल करते हैं जो आपके शरीर और मन दोनों के लिए फायदेमंद होती है। हम खुले में वायुमंडल में समय बिताकर श्वसन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। सूर्य की रोशनी और प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने से विटामिन डी की संपूर्णता मिलती है और हमारा शरीर मजबूत होता है।

सकारात्मक मनोभाव: पिकनिक पर्यावरण में अवस्थित होने के कारण मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह स्थैतिक और मोनोटोनिक जीवन से राहत प्रदान करता है और आपको नई ऊर्जा और प्रसन्नता का अनुभव कराता है। आप अपने परिवार या मित्रों के साथ समय बिता कर आपातकालीन और निरंतर चिंताओं से दूरी बना सकते हैं।: पिकनिक करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। खुले में समय बिताने से हमारा मन शांत होता है और तनाव कम होता है। प्राकृतिक वातावरण, हरियाली, नदी या झील की दृष्टि, और पर्यटन स्थलों का आनंद लेने से हमारी मनोदशा बेहतर होती है। पिकनिक करने से स्वावलंबन, सकारात्मक सोच, रिक्रिएशन और मनोरंजन की भावना पैदा होती है।

संबंध निर्माण: पिकनिक आपको अपने परिवार, मित्रों और प्रियजनों के साथ समय बिताने का मौका देता है। यह आपको संबंध और बन्धनों को मजबूत करने का एक अवसर प्रदान करता है। पिकनिक परिवार के सदस्यों के बीच नए संवादों को प्रोत्साहित करता है और उनके बीच अधिक समय बिताने का अवसर प्रदान करता है।

प्रकृति का सान्निध्य: पिकनिक आपको प्रकृति के साथ संपर्क स्थापित करने का एक मौका देता है। आप वन्यजीवों, पेड़-पौधों, नदियों, झीलों, आदि के साथ एकीकृत हो सकते हैं। यह आपको प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने का मौका देता है और आपको पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाता है।

स्थूल और सूक्ष्म मनोरंजन: पिकनिक आपको विभिन्न मनोरंजन गतिविधियों का आनंद लेने का मौका देता है। आप खेल, गाना, नाचना, खाना-पीना, आदि का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा, आप खुद को आराम और शांति के लिए भी समर्पित कर सकते हैं।

टीम बिल्डिंग: पिकनिक टीम बिल्डिंग के लिए एक अद्वितीय मंच प्रदान करता है। इसके दौरान लोगों को साथ मिलकर साझा अनुभवों, खेलों और गतिविधियों के माध्यम से सहयोग करने का अवसर मिलता है। यह टीम में सहयोग, संचार, विश्वास और समर्पण को बढ़ावा देता है।

पर्यटन: पिकनिक आपको अपने स्थानीय और पर्यटन स्थलों के साथ संपर्क स्थापित करने का अवसर देता है। यह आपको अपने आस-पास के प्राकृतिक और मनोहारी स्थलों को खोजने और उनका आनंद लेने का मौका देता है। इसके साथ ही, इससे स्थानीय विरासत, संस्कृति और भोजन-पेय का अनुभव भी हो सकता है।

सूक्ष्म ब्रेक: जीवन में निरंतर कार्य करते रहने से थकान और तनाव का अनुभव हो सकता है। पिकनिक एक सूक्षम ब्रेक भी होता है, जो आपको अपने नियमित कार्यों से दूर ले जाकर आपकी मानसिक और शारीरिक तनाव को कम करने में मदद करता है। यह आपको पुनर्जीवित करके आपकी सक्रियता, सृजनशीलता और उत्प्रेरणा को बढ़ावा देता है।

आत्म-विकास: पिकनिक आपको आत्म-विकास के लिए समय देने का अवसर भी प्रदान करता है। आप शांतिपूर्णता, मेधा, अनुभव, और स्वतंत्रता के अनुभवों को खोज सकते हैं जो आपके स्वयं को समझने, अपने आप के साथ कनेक्ट होने और अपनी रुचियों, शौकों और शक्तियों को पहचानने में मदद करता है।

पारिवारिक संबंध: पिकनिक का आयोजन परिवारिक समय की महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। हम परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने का अवसर प्राप्त करते हैं और उनके साथ बातचीत, हंसी, और साझा अनुभव करते हैं। यह हमारे परिवारिक संबंधों को मजबूत करने और प्रेम और समर्थन का भाव विकसित करने में मदद करता है।

सांस्कृतिक और शौकीन अनुभव: पिकनिक हमें अलग-अलग क्षेत्रों, विभिन्न शौकों और सांस्कृतिक गतिविधियों का अनुभव करने का मौका देता है। हम नए स्थानों की खोज करते हैं, स्थानीय खाद्य पदार्थों का आनंद लेते हैं, स्थानीय विरासत और परंपराओं को अनुभव करते हैं और नए शौक और कला का पता लगाते हैं। इसके माध्यम से हम अपनी ज्ञानवर्धन, संस्कृति का अनुभव, रंगीनता और सहृदयता को विकसित करते हैं।

इस प्रकार, पिकनिक आपके जीवन में मनोरंजन, संबंध निर्माण, स्वास्थ्य लाभ, प्राकृतिक संपर्क और मनोभाव को बढ़ावा देता है। इसलिए, आज के जीवन में पिकनिक को जरूरी माना जाता है ताकि हम आनंद और सुख की अनुभूति कर सकें और अपने संबंधों को मजबूत बना सकें। इन सभी कारणों से स्पष्ट होता है कि पिकनिक आज के जीवन में जरूरी है क्योंकि यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, संबंध निर्माण को समर्थन करता है, हमें प्राकृतिकता से जुड़ता है, टीम बिल्डिंग का एक मंच प्रदान करता है और हमें स्वतंत्रता और आत्म-विकास के लिए समय देता है। यथार्थ यह है कि पिकनिक हमारे दैनिक जीवन से एक बड़ी बदलाव का अवसर प्रदान करता है। यह हमें स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक तत्व, परिवारिक संबंध, सांस्कृतिक अनुभव, और शौकों का मजबूती देने में मदद करता है। इसलिए, पिकनिक आज के जीवन में जरूरी है और हमें सुख, समृद्धि, और संतुष्टि का एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है। 

आज कम लोग पिकनिक जाते हैं,ऐसा क्यों?

कई कारणों से आजकल कम लोग पिकनिक जाते हैं। निम्नलिखित कुछ मुख्य कारणों की वजह से इसकी संख्या कम हो रही है:

बदलती जीवनशैली: आधुनिकता की दौड़ और व्यस्त जीवनशैली के कारण लोगों के पास पिकनिक के लिए समय की कमी हो रही है। काम की भागदौड़ और परिवार के साथ समय बिताने की अप्राप्यता के कारण, लोगों के पास पिकनिक के लिए आराम करने और यात्रा करने का पर्याप्त समय नहीं होता है।

शहरीकरण: शहरों में बढ़ती जनसंख्या, सीमित प्राकृतिक स्थलों की उपलब्धता, और व्यापारिक विकास के कारण, प्राकृतिक और शांतिपूर्ण स्थानों का अभाव हो रहा है। लोग शहरी क्षेत्रों में बसे होते हैं और इसलिए विश्राम और प्रकृति के अनुभव की आवश्यकता का अहसास कम हो रहा है।

विकसित पर्यटन संरचना: पर्यटन उद्योग का विकास और पर्यटन स्थलों पर बने होटल, रेस्टोरेंट्स, और आकर्षणों की विशालता के कारण, लोग ऐसे स्थलों पर अपनी मनोरंजन और छुट्टी का समय बिताने को पसंद करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, सरकार और निजी संगठनों ने ऐसे स्थलों का विकास किया है जहां लोग बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।

अधिक विकल्प: आजकल मनोरंजन के विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें से लोग चुन सकते हैं। विभिन्न खेल, खरीदारी, रेस्टोरेंट यात्रा, फिल्म देखना, यात्रा आदि लोगों को पिकनिक के स्थान की आवश्यकता को कम कर देते हैं।

इंस्टेंट एंर्टेंमेंट की तलाश: आज धैर्य की कमी का दौर है। सबको इंस्टेंट एंर्टेंमेंट की ही तलाश रहती है। एक साथ समय तो बहुत लोग बिताना चाहते हैं, परंतु जब सुपरसॉनिक सामने हो, तो कोई क्यों बैलगाड़ी में सफ़र करना चाहेंगे?

इन सभी कारणों के कारण आजकल कम लोग पिकनिक जाते हैं। हालांकि, पिकनिक के लाभों को समझते हुए और स्वस्थ जीवनशैली के लिए, लोग अवकाशों और छुट्टियों में पिकनिक पर जाने का प्रयास करते हैं और प्रकृति का आनंद लेते हैं, परंतु इनमें पिकनिक वाली सादगी, सरलता, आत्मीयता, भोलापन और मनोरंजन कहां?

 

 

मीता गुप्ता

नशा करता है नाश

 

 

नशा करता है नाश



26 जून को मनाए जाने वाले नशा मुक्त भारत अभियान एक प्रयास है, जो देशभर में नशा मुक्त समाज की संकल्पना करता है। नशा मुक्त भारत अभियान के तहत, नशेबाज़ी  के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम, नशे के प्रभावों पर जागरूकता और शिक्षण, सार्वजनिक धार्मिकता के माध्यम से नशामुक्ति के संकल्प, सुरक्षित और नशामुक्त महानगरों के विकास, नशामुक्ति नीतियों का निर्माण और कठोर कानूनी कार्रवाई को समर्थन करने जैसे कई पहलुओं को शामिल किया जाता है।

सहयोग, अनुबंधों, वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता के माध्यम से भी विभिन्न क्षेत्रों  के बीच नशा मुक्ति के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाता है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य एक समृद्ध, स्वस्थ्य और नशामुक्त समाज का निर्माण करना है जहां लोगों को नशा की समस्या से छुटकारा मिले और वे अपनी पूरी क्षमता से समाज में सक्रिय भागीदारी ले सकें।

नशा करने से तात्कालिक आनंद और सुख की भावना हो सकती है, लेकिन यह उसके बाद के परिणामों के साथ खुद को पीड़ित कर सकता है। नशे के संबंध में आदिकाल से लोगों ने इसके नकारात्मक प्रभावों की चेतावनी दी है। नशे करने के कुछ मामूली परिणाम शामिल हो सकते हैं, जैसे कि खर्च करने की प्रवृत्ति, ध्यान केंद्रित न होना,  संबंधों का प्रभावित होना, और स्वास्थ्य समस्याओं की उत्पत्ति। नशे करने के कारण अनेक लोगों को वित्तीय संकट, परिवारिक समस्याएं, व्यक्तिगत संबंधों की समस्याएं, और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती हैं।

नशे का उपयोग संवेदनशीलता, बुद्धिमत्ता, और व्यक्तित्व के खो जाने के कारण भी हो सकता है। नशे में रहने से एक व्यक्ति की उच्च सोचने की क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, और जीवन को समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसलिए, नशे करने का अभ्यास एक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य, समृद्धि, और खुशहाली के लिए हानिकारक हो सकता है। ध्यान रखना चाहिए कि यह केवल एक सामान्य व्याख्या है और व्यक्ति के अनुभव और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी। यदि आप या कोई आपके करीबी व्यक्ति नशे की समस्या से पीड़ित हैं, तो संबंधित स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से संपर्क करना महत्वपूर्ण होगा।

नशे के प्रकार और युवाओं पर उसका दुष्प्रभाव-

नशे कई प्रकार के हो सकते हैं और इनका युवाओं पर विभिन्न तरीकों से दुष्प्रभाव पड़ता है। यहां कुछ प्रमुख नशों का उल्लेख किया गया है और उनके दुष्प्रभावों की चर्चा की गई है:

·       मादक पदार्थों का प्रयोग (शराब, सिगरेट, तंबाकू): युवाओं में यह सामान्य नशा है और इसके दुष्प्रभाव शामिल हैं शराबीपन, व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याएं, स्वास्थ्य समस्याएं (उच्च रक्तचाप, कैंसर, मस्तिष्क कमजोरी आदि), न्यूरोलॉजिकल प्रभाव, शिक्षा और करियर पर प्रभाव, और निरंतर आर्थिक खपत। शराब एक प्रमुख नशा है, जिसका व्यापार और उपभोग युवाओं के बीच आम है। यह शराब की लत बनाने, शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने, बुरी आदतें बढ़ाने और अन्य सामाजिक समस्याओं का कारण बन सकता है। तम्बाकू नशा युवाओं के बीच आपदाप्रद है। यह निकोटीन के कारण आधिकारिकता प्रदान करता है और धूम्रपान के लंबे समय तक कर्मचारी अस्थायी लाभ देता है, जिससे युवाओं को आग्रह और मानसिक निरोध का अनुभव हो सकता है।

·       माध्यमिक और अवैध दवाओं का सेवन: युवाओं के बीच माध्यमिक और अवैध दवाओं का सेवन भी प्रचलित है। इसमें मारिजुआना, कोकाइन, मोली, और डीजी जैसी दवाएं शामिल हो सकती हैं। इन दवाओं का सेवन युवाओं को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मारिजुआना युवाओं में प्रसिद्ध है। इसके दुष्प्रभाव में संज्ञानशक्ति और यादाश्त में कमी, निर्णय लेने की क्षमता में कमी, बुद्धिमत्ता में कमी, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और सामाजिक संबंधों की प्रभावित हो सकती हैं। यह मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में देखा जाता है और युवाओं को प्रभावित करता है। इसके दुष्प्रभाव में व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याएं, जीवन की शिक्षा और करियर पर प्रभाव, फिजिकल हेल्थ के प्रश्न, और आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने की संभावना शामिल हैं।

·       नशीली दवाएं: युवाओं में नशीली दवाओं का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने के लिए किया जाता है, लेकिन इसके अधिक सेवन से निर्भय होने की संभावना होती है। इसके परिणामस्वरूप, नशीली दवाओं का अधिक सेवन मानसिक और शारीरिक समस्याएं, निर्णय लेने की क्षमता में कमी, संज्ञानशक्ति में कमी, और निरंतर आर्थिक और सामाजिक परेशानियों को बढ़ा सकता है।

·       इंटरनेट और गेमिंग एडिक्शन: युवाओं में इंटरनेट और गेमिंग नशा भी बढ़ता जा रहा है। यह उन्हें बाधित कर सकता है और सामाजिक, शैक्षिक और पारिवारिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है। इसके प्रभाव में आत्महत्या, ध्यान केंद्रवित नहीं होने की दुर्बलता, और अकादमिक प्रदर्शन में कमी शामिल हो सकती है।

युवाओं पर नशे के दुष्प्रभाव कई हो सकते हैं, जैसे कि शारीरिक समस्याएं, मानसिक समस्याएं, वित्तीय संकट, पढ़ाई और करियर के संबंध में कमजोरी, संबंधों की समस्याएं, अपराधिक गतिविधियाँ, और सामाजिक संबंधों में विघ्न आदि। नशे से ग्रस्त युवाओं के लिए सहायता प्रदान करने वाले संगठनों और सेवाओं की उपलब्धता होती है जो इसमें उपयुक्त सहायता प्रदान करती हैं। युवाओं के लिए नशा करने के दुष्प्रभाव सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, और शारीरिक हो सकते हैं। यह उनके विकास और भविष्य को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, युवाओं को नशे के प्रति सतर्क रहना चाहिए और स्वस्थ और सकारात्मक जीवनशैली का पालन करना चाहिए।

भारत में नशे का प्रसार-प्रचार गंभीर समस्या है और इसका दुष्प्रभाव समाज के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। अवैध शराब की उत्पादन और बिक्री देश भर में एक समस्या है। यह अस्वीकृत स्वरूप में निकली शराब जो अनुमति प्राप्त नहीं है, और घाटक पदार्थों के मिश्रण से बनाई जाती है, जैसे कि रुबिं और दारू के मिश्रण। अवैध शराब के सेवन से अनेक मामलों में अस्थायी और स्थायी रूप से लोगों की मौत हुई है। नशीले पदार्थों की उत्पादन और वितरण भी भारत में एक समस्या है। यह मादक पदार्थों की गैरकानूनी व्यापार और उत्पादन के माध्यम से होता है, जिसमें मादक दवाएं, बीडी, गुटखा, अफीम, चरस और अन्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं। नशीले सदंशों की प्रचार-प्रसार: मीडिया और विज्ञापन के माध्यम से नशीले सदंशों का प्रचार-प्रसार होता है, जो नशे के सेवन को प्रोत्साहित कर सकता है। कई बार मादक पदार्थों को ऐतिहासिक, सामाजिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संकेत के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जो युवाओं को इन्हें आकर्षित कर सकता है। एक महत्वपूर्ण विषय है कि नशे के संबंध में जागरूकता की कमी भी एक मुद्दा है। ज्यादातर युवा अपने नशेले सामरिकों के प्रभाव में आकर उनके संग्रह और समझ में आने के कारण नशे के खतरों से अनजान हो सकते हैं।

इस मुद्दे को संघर्ष करने के लिए, सरकार और सामाजिक संगठनों ने नशे के प्रति जागरूकता बढ़ाने, कानूनी कार्रवाई बढ़ाने, नशे के इलाज की सुविधा और संबंधित सेवाओं को प्रदान करने जैसे कई पहलुओं का समर्थन किया है, परंतु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है| यदि देश बचाना है, तो नशे की रोकथाम के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे, यदि देश बचाना है, तो युवाओं को इस नाश से बचाना होगा, यदि देश बचाना है, तो सरकार और सामाजिक संगठनों को घर-घर में नशा-मुक्ति में अलख जगानी पड़ेगी, यदि देश बचाना है, तो विद्यालयों में विद्यार्थियों में, इन कार्यक्रमों को वर्ष भर जारी रखना होगा, यदि देश बचाना है, तो नशा-मुक्ति को प्रतिदिन का ध्येय-वाक्य बनाना होगा|

 

मीता गुप्ता

Tuesday, 20 June 2023

हर घर-आंगन योग

हर घर-आंगन योग




"हर घर-आंगन योग" वाक्य का अर्थ है कि योग का अभ्यास हर घर में किया जाना चाहिए या हर घर में योग की अवधारणा और अभ्यास होना चाहिए। योग एक प्राचीन भारतीय विधि है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित रखने के लिए उपयोगी होता है। यह मेडिटेशन, आसन, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा को संयुक्त करने का एक तरीका है।
हर घर में योग का अभ्यास करने के अनेक लाभ होते हैं। इससे शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, मानसिक तनाव कम होता है, मनःशांति और चित्त की स्थिरता प्राप्त होती है, और सामर्थ्य और स्वयंवलंबन में सुधार होता है। योग ध्यान की सक्षमता को विकसित करता है और उच्च स्तर की चेतना एवं उत्साह प्रदान करता है। यह परिवारों को संगठित और संबंधों को मजबूत करने में भी मदद करता है।
इसलिए, "हर घर योग" विचार यह सुझाता है कि हमें अपने दैनिक जीवन में योग को समावेश करना चाहिए और योग के गुणों का लाभ उठाना चाहिए। इससे हमारे जीवन का स्तर बेहतर हो सकता है और हम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ स्थिरता और संतुलन को प्राप्त कर सकते हैं।
 योग एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो शारीर, मन, और आत्मा को संयुक्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारना, आत्मज्ञान और स्वयंविकास को प्रोत्साहित करना है।
योग के मुख्य तत्वों में आसन (योगिक पोजिशन), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), ध्यान (मन की एकाग्रता) और धारणा (मन का नियंत्रण) शामिल हैं। इन तकनीकों के माध्यम से, योग शरीर की लचीलता, शांति, और शक्ति को बढ़ाता है और मन को स्थिर और नियंत्रित करने में मदद करता है।

हर घर में योग का अभ्यास करने के लाभों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
1. शारीरिक स्वास्थ्य: योग आसन और प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक लचीलता बढ़ाता है, मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और शारीर के विभिन्न अंगों को संतुलित करता है। इससे दिल की सेहत, पाचन तंत्र, श्वसन प्रणाली, और आंत्र की कार्यक्षमता में सुधार होता है।
2. मानसिक स्वास्थ्य: योग मन को शांत, स्थिर, और ध्यानावस्था में लाने में मदद करता है। ध्यान और धारणा के माध्यम से मन को संयमित करके चिंताओं, तनाव, और मनोविकारों को कम करने में सहायता मिलती है। योग अभ्यास करने से मन की स्थिरता, चित्तशांति, और सकारात्मकता विकसित होती है।
3. संयम और उच्चता: योग का अभ्यास व्यक्ति को संयम, धैर्य, और स्वनियंत्रण की क्षमता प्रदान करता है। यह व्यक्ति को अपने विचारों, भावनाओं, और क्रियाओं को संयंत्रित करने का सामर्थ्य देता है। इससे स्वतंत्रता, सामर्थ्य, और संयमित निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है।
4. पारिवारिक संबंधों में समरसता: हर घर में योग का अभ्यास परिवारिक संबंधों को मजबूत और समरस बनाने में मदद करता है। योग साझा अभ्यास के माध्यम से परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे के साथ संबद्धता और समरसता में लाता है। यह एक साझा गतिविधि के रूप में परिवार के सदस्यों के बीच एकाग्रता और उत्साह का संचार करता है।
इस प्रकार, हर घर में योग का अभ्यास शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारता है और परिवार के सदस्यों के बीच समरसता और संबंधों को मजबूत करता है। योग का अभ्यास अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित करके हम एक स्वस्थ, सुखी, और समृद्ध जीवन का आनंद उठा सकते हैं।

 

मीता गुप्ता


Saturday, 17 June 2023

सफलता पानी है, तो स्वयं को पहचानो

 

सफलता पानी है, तो स्वयं को पहचानो





 

व्यक्ति के जीवन में सफलता के बहुत मायने हैं। हर कोई परिश्रम करता है। ज़रूरी नहीं है कामयाबी मिल ही जाए। ऐसे में इन दो तीन बातों का ख्याल रखकर हम सफलता तय कर सकते हैं।सफलता के लिए एकाकीपन, भय, संकोच, भावुकता और हीनभावना जैसे अवगुण बाधक हो सकते हैं। ऐसे में कोई भी काम शुरू करने से पहले कार्यविशेष के लिए आत्मआकलन करना बेहतर होगा। अपनी शक्ति, सामर्थ्य और समय के प्रति एकाग्रता को ईमानदारी से परखने से जरूर सफलता मिलती है। इसी तरह किसी भी काम में असफल होने पर भाग्य को दोषी न मानकर पूरी शक्ति, निष्ठा के साथ लक्ष्य की प्राप्ति में जुट जाइए।

एक-एक पल का उपयोग करना अनिवार्य

सफलता के लिए समय का महत्व समझें। एक-एक पल उपयोग करना अनिवार्य है। हर इंसान के जीवन में एक बार सुअवसर ज़रूर दस्तक देता है। ऐसे में उसे पहचान कर इस्तेमाल करने का प्रयास करें। एक बार सफल न हों, तो भी पछताकर या रोकर समय बर्बाद न करें। लक्ष्य निर्धारित करके ही सफलता की ओर बढ़ें। ऐसा न हो कि आपकी नीति के ढुल-मुल होने से असफलता ही हाथ लगेगी।

एक से अधिक लक्ष्य के लिए ध्यान रखें

एक से अधिक लक्ष्य की सूरत में प्राथमिकता अनुसार तय करना होगा। निष्ठा और लगनपूर्वक हर लक्ष्य की ओर बढे़ं। ये सही है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है। वह भी किसी सीमा तक ही। इसलिए जीवन में हर काम सोच समझकर शक्तिअनुसार और योग्यता अनुसार चुनें और उसे पूरा करके ही दम लें। बहानेबाजी या टालते रहने की प्रवृति अकर्मण्य बना देती हैं।

हर कोई जीवन में सफल होना चाहता है। वैसे तो सफलता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती, पर आमतौर पर जीवन में निर्धारित कि ए गए लक्ष्यों की प्राप्ति ही सफलता कहलाती है। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो पारिवारिक जीवन में शाति, रहने के लिए एक अच्छा घर, चलाने के लिए एक बढि़या कार, परिवार के साथ व्यतीत करने के लिए पर्याप्त समय और खर्च करने के लिए पर्याप्त धन होने को ही सफलता समझा जाता है। शायद हम में से हर एक की यह इच्छा होती है। ऐसे हजारों उदाहरण हमारे सामने हैं जहां पर लोगों ने अलग अलग क्षेत्रों में सफलता अर्जित की है। जहां लोगों ने अपने महत्व को जाना और अपने भीतर छुपी प्रतिभा को पहचाना और उसी क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए सफलता को हासिल किया। महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि जीवन का आनंद स्वयं को जानने में है। स्वयं का निरीक्षण करना, अपनी प्रतिभा का पता लगाना और अपनी उस विशेष प्रतिभा का निरंतर विकास करना। वास्तव में यही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। यदि हम ऐसा कर लेते हैं, तभी सही मायने में हम सफल हो पाएंगे। प्रकृति ने हम सभी को अलग-अलग बनाया है। सभी एक दूसरे से भिन्न है और सभी के अंदर एक विशेष गुण होता है। अपने अंदर की विशेष योग्यता को समझने के लिए पहले जरूरी है कि हम यह जानें कि आखिर ये विशेष गुण या प्रतिभा क्या होती है। कोई ऐसा कार्य जो आप दूसरों की अपेक्षा अधिक निपुणता से करते हैं, यानि की आपका टैलेंट कोई भी ऐसा काम जो आप पूरी लगन और मेहनत के साथ करते हैं। जिसे करने में आप कभी थकते नहीं और इसका भरपूर आनंद उठाते हैं। जो आपको और आपके आसपास के लोगों को उत्साहित करता है। जिसे आप कुशलता के साथ करना चाहते हैं और आपको उसमें सुधार की भरपूर संभावनाएं दिखाई देती हैं। यही आपकी विशेषता है। ज़िंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए जरुरी है कि अपने जुनून को पहचानना और ध्यान केंद्रित कर उस जुनून को जीना। अलग शब्दों में कहा जाए तो जिंदगी में परमानन्द के लिए जोश और उत्साह के साथ-साथ एक दिशा भी आवश्यक है। जिंदगी केवल एक बार ही मिलती है। अगर आप चाहते हैं कि उसे खुशी से जिया जाए और जीवन भरपूर आनंद उठाया जाए, तो फिर जो आपका पैशन है उसे अपना प्रोफेशन बनाइए। शुरुआती दौर में शायद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, पर यकीन मानिए कि अतत: आपका जीवन खुशियों से भरा हुआ होगा। इसलिए अपने महत्व को समझ कर समाज और करियर बनाने की दिशा में कार्य करें। निश्चित ही सफलता के पायदान पर आप होंगे। विद्यार्थी को कभी किसी से कमज़ोर नहीं समझना चाहिए। वह क्या है क्या कर सकता है। इसका उसे ज्ञान होना चाहिए। जब हमें यह ज्ञान हो जाता है तो हम सफलता के शीर्ष शिखर को छूने में देरी नहीं लगती है।

स्वयं के महत्व से जुड़ी है जीवन की प्रगति

स्वयं के महत्व का ज्ञान होने पर हम सब हासिल कर सकते हैं। जिस कार्य में भी हम हाथ लगाते है उस पर सफलता हासिल कर लेते हैं। स्वयं की इस पहचान का महात्मा गाधी ने बहुत ही सटीक ढंग से विवेचन किया है'स्वयं को तलाश करने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खुद को दूसरों की सेवा में खो दो।प्रत्येक मनुष्य की सामाजिक मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएं किसी न किसी रूप में अन्य मनुष्यों के साथ जुड़ी होती हैं और यही संबंध स्वयं सेवा का आधार होता है। अन्य लोगों के साथ जुड़ने की जरूरत हमारी भावनात्मक सुरक्षा और सामाजिक सांस्कृतिक पहचान की जरूरत से पैदा होती है। यही जरूरत मनुष्य को खुद की खोल से बाहर निकालकर प्रकृति और अन्य लोगों तक पहुंचाने के लिये प्रेरित करती है। भारतीय परंपराओं को और विस्तार से बताते हुये विवेकानंद कहते हैं, 'कुछ भी मत मागो, कर्म के बदले कोई इच्छा मत करो- जो कुछ दे सकते हो दो, वही तुम्हारे पास वापस आएगा। किंतु अभी उसके बारे में मत सोचो, वह हजारों गुना बढ़कर वापस आएगा, लेकिन उसकी तरफ अपना ध्यान मत लगाए रखो। स्वयं का महत्व समझ में आ जाने के बाद हमारी जीवन की दिशा और दशा में परिवर्तन आ जाता है। हमारी सोच संकीर्ण होने के बजाय वृहद हो जाती है। विद्यार्थियों को भी स्वयं का महत्व समझाने के लिए शिक्षकों को आगे आना होगा। हमारे विद्यार्थियों के अंदर बड़ी ऊर्जा है। लेकिन जब तक उनके बल को याद न दिलाओ वह कुछ करते नहीं है। जैसे ही हम उन्हें उनका महत्व बताते हैं वह एकाएक जाग से जाते हैं। उनका कार्य शैली में परिवर्तन आ जाता है। उनकी कार्यशैली और भाषा शैली को देखकर लगता ही नहीं है कि वह पहले वाला विद्यार्थी है। विद्यार्थी जीवन भटकाव वाला जीवन होता है। इसलिए शिक्षक का दायित्व है कि वह विद्यार्थी का मार्गदर्शन कर उसे उसका महत्व बताए। उसका समाज व देश के प्रति दायित्व समझाएं। शिक्षकों को भी अपना महत्व समझना होगा तभी वह देश के भविष्य को नई ऊर्जा से ओतप्रोत कर सकते हैं। किसी को कोई ज्ञान और उसकी जिज्ञासाओं को शांत करने के पहले स्वयं के बारे में मूल्यांकन करना होता है। इसके बाद ही वह लोगों को कुछ दे और बता सकता है। स्वयं का महत्व बिना समझे किसी को सीख नहीं दी जा सकती है। गुरु आखिर शिष्य का पथ प्रदर्शक व मार्गदर्शक की भूमिका में होता है। विद्यार्थी को भी किसी भी बात को कहने में संकोच करने के बजाय खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए। जब हमें अपना महत्व मालूम होगा तभी हम अपनी बात रख सकेंगे।

अंततः जीवन की डोर स्वयं के महत्व पर जुड़ी हुई है। जब हम अपना महत्व समझ लेते हैं सफलता हमारे कदम पर होती है। लेकिन जब हमें अपने शक्तियों के बारे में जानकारी ही नहीं होगी हम जीवन में सफल नहीं हो सकते हैं। इसलिए हर कार्य को करने के पहले स्वयं मूल्यांकन करना चाहिए। सफलता चलकर नहीं आती, हमें उस तक पहुंचना पड़ता है। इसके लिए स्वयं का महत्व अवश्य पता होना चाहिए। जिस व्यक्ति को स्वयं का महत्व नहीं पता, यह नहीं पता है कि वह क्या करना चाहता है क्या बनना चाहता है तो उसका जीवन व्यर्थ है। इसीलिए अपने  सामर्थ्य और योग्यता के सही आकलन से ही सफलता मिल सकती है

 

मीता गुप्ता

 

 

Wednesday, 14 June 2023

क्या करें समय ही नहीं मिलता?

 

क्या करें समय ही नहीं मिलता?



 

 स्वाध्याय के लिए, आत्म चिंतन के लिए, साधना के लिए, अक्सर लोग यह कहते रहते हैं कि क्या करें? समय ही नहीं मिलता!!! वे अपने आप को बहुत व्यस्त बताते हैं। ज़रूरी कामों से फुरसत पाए बिना, भला आध्यात्मिक कामों के लिए इन्हें किस प्रकार समय मिल सकता है? विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव में उन्हें फुर्सत नहीं मिलती? क्या वास्तव में वे इतने व्यस्त होते हैं कि आत्म निर्माण के लिए ज़रा भी समय ना निकाल सकें? जिन कामों को वे ज़रूरी समझते हैं, क्या वे वास्तव में इतने ज़रूरी होते हैं कि उसे थोड़ा भी समय कम ना किया जा सकें।

हम देखते हैं कि अपने को बहुत ही व्यस्त समझने वाले व्यक्ति भी काफी समय गपशप में, मनोरंजन में, मटरगश्ती में तथा आलस्य में व्यतीत करते हैं। उनके कार्यों का बहुत सारा भाग ऐसा होता है, जो उतना आवश्यक नहीं होता, फिर भी वे अपनी रूचि एवं दृष्टि के अनुसार उसे ज़रूरी समझते हैं।

असल बात यह है कि समय ना मिलना या फ़ुर्सत ना मिलना, इसका मतलब है दिलचस्पी ना होना। जिस काम में आदमी को दिलचस्पी नहीं होती, जो उतना आवश्यक, महत्वपूर्ण, लाभदायक या रुचिकर प्रतीत नहीं होता, उसके लिए कह दिया जाता है कि इस काम के लिए हमारे पास फ़ुर्सत नहीं है। अगर बेटा बीमार पड़ जाए, तो तिजारत के सारे कामों को एक तरफ़ हटाकर पिता या माता अपने बेटे की चिकित्सा में लग जाते हैं। विवाह के दिनों में सोने के लिए पूरा समय नहीं मिलता। विश्राम के घंटों का कार्यक्रम घटाकर उस समय को शादी-संबंधी कामों में लगाया जाता है। सिनेमा, नाटक, तमाशा देखने वाले लोग रातें बिता देते हैं, इन सब कार्यों के लिए फ़ुर्सत मिल जाती है, पर कथा-कीर्तन के लिए समय नहीं मिलता, सत्संग के लिए समय नहीं मिलता, अच्छी किताबें पढ़ने के लिए समय नहीं मिलता। दैनिक कार्यक्रम को बारीकी से देखा जाए, तो हर व्यक्ति के पास थोड़ा बहुत समय फालतू अवश्य होता है। वह चाहे तो आसानी से थोड़ा समय आत्म-साधना, आत्म-मूल्यांकन या आत्म-उत्थान के लिए निकाल ही सकता है।

प्रश्न रुचि का है विचार करना चाहिए कि क्या आत्म-साधना, आत्म-विश्लेषण, आत्म-उत्थान ऐसी निरर्थक चीज़ें हैं, जिसके लिए दुनियादारी के साधारण काम का, बचा कर समय का एक टुकड़ा भी न रखा जा सके। थोड़ा बहुत भोजन तो हम भिखारी को भी दे देते हैं, तो सोचना चाहिए कि आत्मा का महत्व क्या उससे भी कम है? शरीर की भूख बुझाने के लिए हम तरह-तरह के बढ़िया साधन जुटाते हैं, काफी समय खर्च करके भोजन सामग्री कमाते हैं, पर आत्मा की क्षुधा बुझाने के लिए स्वाध्याय चिंतन-मनन तथा साधना के लिए थोड़ा भी समय नहीं निकाल पाते। क्या सचमुच यह सब चीजें इतनी तुच्छ है कि इनकी उपेक्षा की जाए?

विचारणीय प्रश्न यह है कि इसे इस प्रकार अधर में लटका देने से काम नहीं चलेगा। हमें सोचना होगा कि क्या हम शरीर मात्र हैं? क्या हमारी हमारा लक्ष्य, हमारा उद्देश्य धन-संचय एवं इंद्रिय-भोग है? क्या मानव जीवन का उपयोग शरीर-पोषण और धन के उपार्जन के लिए बना है? क्या सांसारिक उन्नति ही पूर्ण उन्नति है? इन प्रश्नों पर विचार करने से पता चलेगा कि जो हम कर रहे हैं वह संपूर्ण नहीं है। आत्म-उन्नति भी एक ऐसा कार्य है, या यूं कहूं कि एक उदात्त कार्य है और इस कार्य को पूर्ण करने से शरीर के पोषण का महत्व कम नहीं हो जाता। आत्मा की महत्ता पर विचार कीजिए, आत्मा-उन्नति, आत्म-विश्लेषण और आत्म-सुधार के महत्व को समझइए और तभी यह निर्णय कीजिए कि क्या आपको इन चीज़ों के लिए समय नहीं मिलता या आपके पास अब थोड़ा समय है कि आप इन बातों पर विचार करेंगे क्योंकि समय न मिलना तो केवल एक बहाना है।

 

 

 

मीता गुप्ता

 

Saturday, 3 June 2023

नारी सृष्टि की संवेदना शक्ति- द्रौपदी के परिप्रेक्ष्य में

 

नारी सृष्टि की संवेदना शक्ति- द्रौपदी के परिप्रेक्ष्य में



सहस्रों दीप मालिकाओं से सुसज्जित उस विशाल सभागार में द्यूत क्रीड़ा का आयोजन हुआ था। धूप-अगरू में सुवासित उस प्रेक्षागृह में दूर-दूर से कौतुकप्रिय जन आए थे। प्राचीन कुरु वंश की प्रमुख दोनों शाखाओं में आज रोचक द्यूत-स्पर्धा थी। औत्सुक्य और कौतूहल के  क्षण अब तक शमशान की भयावह शांति में बदल चुके थे।

सभागार के केंद्र में उच्च सिंहासन पर नेत्र ज्योति विहीन महाराज धृतराष्ट्र विराजमान थे। निकट ही उनकी साध्वी पत्नी गांधारी नेत्रों पर वस्त्र-पट्टी बांधे बैठी थी। पुत्र स्नेह में वे दोनों आंखों से ही नहीं, विवेक से भी अंधे हो चुके थे। पुत्र-मोह की पट्टी दोनों के नेत्रों पर बंधी थी। अधर्म की पट्टी बांधे रहने से उनके ज्ञान-चक्षु भी मूंद चुके थे।

अनेक प्रकांड विद्वान, मनीषी, विधि-मर्मज्ञ, धर्मज्ञाता, साधु पुरुषों एवं पराक्रमी राजपुत्रों से सुशोभित यह सभामंडप जगमगा रहा था। वहां परम प्रतापी पितामह भीष्म थे। प्रसिद्ध धनुर्वेद गुरुवर द्रोणाचार्य थे। महर्षि विदुर थे। शरद्वान पुत्र कृपाचार्य थे। इन सबमें प्रत्येक का व्यक्तित्व अज्ञान रूपी अंधकार में प्रकाश-स्तंभ की भांति था। एक-एक का व्यक्तित्व मणि-स्तंभ का जाज्वल्य्मान था। उनका ऐसा नीर-क्षीर विवेक था और ऐसा उनका धर्मानुकूल आचरण था।

किंतु……..आज वे समस्त मनीषी, वे समस्त ज्ञान-पुंज निस्तेज थे। आज वह राजसभा उनकी उपस्थिति में भी श्रीहीन थी। वे सब क्षुब्ध थे। अनिष्ट की काली छाया अपने डैने फड़फड़ाती जैसे सभा के चारों ओर मंडरा रही थी।

सभागृह के मध्य में पांचो पांडव बैठे थे। अपने ही दुर्व्यसन द्युत-विलास से पराजित। उनके कभी न झुकने वाले मस्तक  झुके हुए थे। चौड़े पुष्ट स्कंध आज शिथिल थे। वे महातेजस्वी योद्धा, अपमान से क्षुब्ध एवं असहाय को जैसे लौह-पिंजरे में बांध दिया हो। उनके अस्त्र-शस्त्र, आभूषण एवं किरीट उतरे हुए एक ओर भूमि पर रखे हुए थे। सबके सब राज्यश्री विहीन, सत्ताच्युत, उपहास और अपमान के पात्र।

भयंकर नीरवता के पल थे। बीच-बीच में हल्की-सी हंसी दबी-दबी सुनाई पड़ती थी दुर्योधन की मित्र मंडली से। वे भी प्रतीक्षारत थे। विराट-सी प्रतीक्षा पूरे सभागार में छाई हुई थी। सब श्वास रोके बैठे थे।

 अचानक द्वार पर सामूहिक हाहाकार की ध्वनि से सज्जनगढण सिहर उठे। पांडवों ने विचलित हो अपने हाथों से हृदय थाम लिए। सब की दृष्टि मुख्य द्वार की ओर घूम गई। महाराज द्रुपद की महा विदुषी युवराज्ञी तथा महापराक्रमी पांडवों की सती साध्वी पत्नी, इंद्रप्रस्थ की सम्राज्ञी द्रौपदी को दुशासन हाथ पकड़कर खींचता ला रहा था। पीछे-पीछे आकुल-व्याकुल सखियां, दास-दासी, परिचारक एवं सेवकों की रोती-बिलखती भीड़ चली आ रही थी।

छोड़ दे पापी!.. मेरे परमपूज्य श्वसुर महाराज धृतराष्ट्र की राजसभा है। इस धर्मस्थल पर अधर्म नहीं होता। दुष्ट! दुराचारी! छोड़! यहां न्यायप्रित विद्वतजन बैठे हैं, वयोवृद्ध बैठे हैं, क्यों उनके कोप का भाजन बनना चाहता है? नराधम! पांचाली का स्वर प्रखर था। ‘मुझे बचाएं तात! माता गांधारी..’ पांचाली दौड़ पड़ी महाराज धृतराष्ट्र एवं महारानी गांधारी की शरण में। कितना विश्वास था उसको कि वे धर्मज्ञ हैं और रक्षा करेंगे। कितनी बड़ी भ्रांति!

राजसिंहासन की ओर भागती द्रौपदी की वेणी पकड़कर दुशासन ने तड़ित वेग से झटका दिया। वेणी खुल गई। नील कुंतल केशराशि लहरा गई। वेणी में गुंथी चंद्रमल्लिका की पुष्पमाल्य टूट कर गिर गई। दुष्ट ने निर्ममता से पैरों से उसे कुचल दिया। शुभ्र शेवंती चंद्रमल्लिका की पुष्प कलिकाएं नव तारिकाओं-सी नीले केशों से झड़ने लगीं।

अथाह पीड़ा से पांचाली का हाथ तत्क्षण वेणी पर पहुंचा, किंतु अनायास वह निश्चल हो गई। भरी सभा में जहां महान तत्वज्ञानी और धर्मज्ञ के बैठे हैं! और कोई विरोध नहीं कर रहा है!! कोई प्रतिवाद नहीं!!! अपमान से उसका मुखमंडल आशक्त हो गया। क्षोभ और पीड़ा से मुख विवर्ण हो उठा। उसका कोई रक्षक नहीं?

उसने एक बार फिर सभी की ओर देखा-धर्मज्ञों, नीतिज्ञों एवं महावीरों की सभा को। सभी चुप्पी साधे थे। उसने बिलखते हुए पूछा-क्या स्त्री मात्र वस्तु है? पदार्थ है, जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं, जब जो चाहे जिस तरह उपभोग करे? मैं महाराज पांडु की स्नुषा आपकी कन्या की हूं। पितामह उठिए! नारी को विवश करने वाले हाथों को उखाड़ फेंकिए। आंचल पसार पर भीख मांगती हूं। कुरुओं की इस राजसभा में शील का व्यापार मत होने दीजिए। उठिए! स्त्रियों की लज्जारक्षण परंपरा इस मदांध नीच को खडक से दिखा दीजिए।

परंतु......................

पितामह भीष्म कुरुकुल का मेरुदंड! मेरुदंड! ऋषिवर्य वशिष्ठ का अधीत वेद शिष्य! बृहस्पति और शुक्राचार्य से शास्त्राध्ययन करने वाला पराक्रमी क्षत्रिय। च्यवन, भार्गव और मार्कंडेय से धर्म का गंभीर ज्ञान प्राप्त करने वाला धर्मज्ञ! शांतनु महाराज का साक्षात गंगापुत्र। काशिराज और उग्रायुध के दांत खट्टे करने वाला वीर। जिसमें धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की उन्हीं जमदग्नि पुत्र परशुराम को धर्म युद्ध में पराजित कर, सत्शिष्य गुरु से कुछ-न-कुछ श्रेष्ठ ही होता है सिद्ध करने वाला विख्यात धनुर्धारी। आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले तेज का ज्वलितपुंज। वह भीष्म भी सिर झुका कर चुप था।

तात विदुर! आप महात्मा हैं, धर्मज्ञ हैं। आप ही धर्म की व्याख्या कर सकते हैं, बताइए, क्या नारी का कोई स्वतंत्र जीवन नहीं है? बताइए आर्य! युधिष्ठिर को मुझे दांव में लगाने का क्या अधिकार है? तात धृतराष्ट्र! आचार्य द्रोण! कृपाचार्य! गुरुपुत्र अश्वत्थामा! आर्य अमात्य! आप सब चुप क्यों हैं?’ आज द्रौपदी के एक-एक स्वर में हृदय विदीर्ण करने वाली आर्तता थी। वह बिलखती हुई हाथ फैला कर आक्रोश करती हुई प्रत्येक आसन के सामने होकर आगे सरकने लगी। हस्तिनापुर के श्रेष्ठ पुरुषों! समरांगण में चमकने वाले वीर योद्धाओं! भारतवर्ष के तत्व ज्ञानी मनीषियों! मैं आप सब से पूछती हूं, क्या आप सभी ने नारी की कोख से जन्म नहीं लिया? अरे, नारी की कोख से जन्म लेने वाले पुरुषों! एक स्त्री का विलाप आपके पुरुषार्थ को जागृत नहीं कर रहा?’

एक हाथ फैलाकर दूसरे हाथ से दुशासन को धकेलती हुई वह, एक के बाद एक आसन के सम्मुख आक्रोश करती हुई आगे बढ़ रही थी। प्रलय की महानदी में जैसे एक देवदार वृक्ष लुढ़कता हुआ चला आ रहा था। वैसे ही दुशासन उसकी विपुल केशराशि की पिंडलियों तक लंबी लटों के साथ लुढ़कता हुआ खिंचा चला जा रहा था। यह दुशासन के पौरुष को ज्वलंत चुनौती थी, जिसे वह सहन न कर सका। चिढ़कर बौखलाया हुआ दुशासन उसकी लटों को अपने हाथों के चारों ओर लपेटकर द्रौपदी की गर्दन को बारंबार झटके देने लगा।

उसने बड़ी व्यथा से पतियों की ओर देखा। बड़ी करुण मुद्रा में उसने युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए कहा, आप धर्मराज कहलाते हैं, क्या धर्म मीमांसा का सार, नारी को वस्तु समझने में है? क्या यही है धर्म शास्त्रों का निर्णय कि नारी को जुए में दांव पर लगा दिया जाए?’

द्रौपदी के मुख से जैसे प्रश्नों की झड़ी निकल रही थी.....

पर कोई उत्तर नहीं! कोई नहीं बोलता!! सब निरुत्तर थे। वह चारों ओर देख रही थी-किरीटयुक्त शीश झुके हुए थे। महामनीषियों के हाथ नेत्रों पर थे। लोग नत-नयन थे। इन महारथियों, मनीषियों एवं वेद-वेदांत के मर्मज्ञों में से किसी ने साहस नहीं था कि एक बिलखती-छटपटाती नारी के प्रश्नों का उत्तर दे पाते। नत शिर! नत नयन! किस ग्लानि में? किस क्षोभ में? किस पश्चाताप में? इतनी विराट सभा में कोई उसका नहीं!! उसके अपने कहलाने वाले पति भी उसके अपने नहीं?? किसी में साहस नहीं? कोई धर्म का पक्षधर नहीं?

इतने में उसकी बातों से चिढ़े हुए दुर्योधन ने पुकारा-दुशासन! इस वाचाल स्त्री का साहस कि  सबको धर्म और शास्त्र सिखाए। उतार दो इसके समस्त वस्त्र परिधान! यहीं इसी सभा में!

अविश्वसनीय! कानों पर विश्वास नहीं हो रहा। इस नीचता पर भी कुरु कुमार उतर सकते हैं। क्षण भर को द्रौपदी प्रबल प्रभंजन में पड़ी सुकुमार दीपशिखा-सी प्रकंपित हो उठी। किंतु दूसरे ही क्षण उसने मन से समस्त मानवीय शक्तियों को हटाकर परमात्मा में एकाग्र कर लिया। इन क्षणों में वह सभी रिश्ते-नातों से ऊपर थी। देह, मन, प्राण से उसकी चेतना सिमटकर सृष्टि संचालक को समर्पित हो चुकी थी।

वह आकुल स्वर से पुकार उठी- ऐसी विकट परीक्षा तो भगवती सीता की भी नहीं ली गई थी। भगवती सीता को जब अधम रावण हरकर ले जा रहा था तो पशु-पक्षियों तक ने उनके लिए संघर्ष किया था। जटायु ने प्राणों का उत्सर्ग किया था और ये मूर्धन्य विद्वान, शिलाओ से जड़वत बैठे हैं। आह री! पुरुषों की सभा!!

तभी दुर्योधन की वाणी पुनः गूंज उठी- उतार ले इसके वस्त्र-आभूषण, दुशासन!

दुशासन आगे बढ़ता चला है। अब कोई नहीं रक्षक!!

पांचाली भय से थरथरा उठी। उसकी अंतरात्मा से अंतिम प्रश्न उभरा- हे भगवान! क्यों सृजन किया तूने नारी का? प्रभु आखिर क्या अस्तित्व रह गया है नारी का तुम्हारी सृष्टि में? क्या वह सिर्फ भोग,बलात्कार, उत्पीड़न सहने के लिए बनी है? हे अंतर्यामी! हे जनार्दन! हे कृष्ण! अब सब कुछ तुझ पर निर्भर है।

अंतरात्मा से उभरा यह प्रश्न अबकी बार अनुत्तरित नहीं रहा।

प्रश्न के उत्तर में देखते ही देखते क्षितिज से महादैत्यों की भांति कालमेघ हुंकार भरते उठ खड़े हुए। चारों दिशाओं से भयंकर भूत-प्रेत-पिशाचों की भांति प्रलयंकारी विराट काले जलधर उमड़ उठे। अंतरिक्ष में पड़ी सोती हुई दामिनी चीत्कार करती हुई जाग पड़ी और आग उगलती हुई दिग्दिगंत में कौंध गई। दीर्घ केश फैलाए पिशाचिनी-सी हाथ में नग्न खंग लिए, उन्माद से थरथराती हुई दौड़ पड़ी तड़ित ज्वाल चारों। वज्र लपलपा उठा। वृक्षों को गिराता हुआ, प्रासादों को कंपकंपाता हुआ, झंझावत भैरवनाद करता हुआ हरहरा उठा। शेषनाग सहस्र फनों से फुंफकार उठे। पृथ्वी का कठोर मर्म तड़क गया। धरती डोल रही थी। भूकंप चक्रवात! झंझा! महावात!!

धूलि का कण-कण जैसे अपार शक्तिमान वज्र बन गया था। आज अणु-अणु कुपित हो उठा था। भयंकर घर्षण था। नाद था। जैसे युगांत का महाघंट बज रहा हो!

कोई कुछ नहीं समझ रहा था कि अकस्मात ये  आवाज़ें कहां से आ रही हैं? सभाभवन की छत में प्रकाश के लिए बनाई गई थाली जैसे गोल छिद्र से एक प्रकाश-पुंज सीधे भीतर आया और द्रौपदी के समस्त अंगों पर फैल गया। घनघोर झंझा के बीच दुशासन के हाथों की तीव्रता के अनंत गुना वेग से द्रौपदी की साड़ी का छोर बढ़ने लगा। भगवान महाकाल की करुणा झर रही थी द्रौपदी पर। कालचक्र को थामने वाले हाथ आज नारी की रक्षा के लिए कृतसंकल्पित थे।

शरीर में शक्ति न रहने के कारण हाथ नीचे और दुशासन घिसटता हुआ जैसे-तैसे अपने आसन के पास पहुंचा। उसके स्वेद भरे मस्तक से कुछ बूंदें उसी के आसन पर टपक पड़ीं। वह खड़ा-खड़ा ही उन बूंदों पर धड़ाम से गिर पड़ा। जैसे शक्ति बिल्कुल न रही हो। प्रायः सभी के मन में उसके प्रति घृणा थी। अपनी बातों से उसका समर्थन करने वाले अब आतंकित थे।

सभागृह में मध्य वस्त्रों में घिरी द्रौपदी अपने दोनों हाथ आकाश की ओर जोड़े भाव-निमग्न  खड़ी थी। उसके नेत्रों से आंसू झर रहे थे। अचानक वातावरण को अपनी गूंज से झंकृत करती हुई किसी अदृश्य वाणी के स्वर फैलने लगे- ‘नारी सृष्टि की संवेदना शक्ति है। उसका सृजन हिंसा और बर्बरता के शमन के लिए किया गया है। वह सृजन की देवी है। पुरुष का पौरुष विस्तार और अनुगमन के लिए है। जिस पर उसने उसके अप।मान का साहस किया है, उसे नष्ट होना पड़ेगा।’

देवी द्रौपदी! तुम्हें अपमानित करने वाली बर्बरता नष्ट होगी। सभा में विद्यमान पुरुष अपनी वीरता, विद्वत्ता, साहस का उचित उपयोग नहीं कर सके। अतएव भावी समय में उनकी प्रधानता स्वयमेव नष्ट हो जाएगी। यह समस्त मानव समाज ऐसा समय अवश्य देखेगा-‘जब धरा पर नारी का प्रभुत्व आएगा। नारी अभ्युदय का नवयुग मेरा अटल विधान है।’ महाकाल के इन स्वरों में नारीत्व अपने प्रश्न का समाधान पा चुका था। द्रौपदी अभी तक भावनिमग्न हो परावाणी की अनुगूंज को सुन रही थी।

मीता गुप्ता , प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय पूर्वोत्तर रेलवे बरेली 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...