Wednesday, 27 September 2023

हिंदी भाषा में लेखन और साहित्य-सृजन

 

 

हिंदी भाषा में लेखन और साहित्य-सृजन




 

हिंदी भाषा भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा तक जातीं हैं परन्तु मध्ययुगीन भारत के अवधी, मागधी , अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिंदी भाषा का आरम्भिक साहित्य माना जाता हैं। हिंदी साहित्य ने अपनी शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से की और गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है।

हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है-गद्य,पद्य और चंपू(जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे चंपू कहते है।)

खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे गये उपन्यास परीक्षा गुरु को हिंदी भाषा की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।

साहित्य का अर्थ और महत्व-

अंधकार है वहां जहां आदित्य नही है ।

मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नही है ।

साहित्य के बिना राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति निर्जीव है। साहित्यकार का कर्म ही है कि वह ऐसे साहित्य का सृजन करे, जो राष्ट्रीय एकता, मानवीय समानता, विश्व-बंधुत्व और सद्भाव के साथ हाशिये के आदमी के जीवन को ऊपर उठाने में उसकी मदद करे। साहित्य का आधार ही जीवन है।

साहित्यकार समाज और अपने युग को साथ लिए बिना रचना कर ही नहीं सकता है, क्योंकि सच्चे साहित्यकार की दृष्टि में साहित्य ही अपने समाज की अस्मिता की पहचान होता है। साहित्य जब एक समाज के लिए उपयोगी है तभी तक ग्राह्य है। साहित्य की उपादेयता में ही साहित्य की प्रासंगिकता है। साहित्यकार के अंतस में युगचेतना होती है और यही चेतना साहित्य सृजन का आधार बनती है। श्रेष्ठ साहित्य भावनात्मक स्तर पर व्यक्ति और समाज को संस्कारित करता है उसका युग चेतना से साक्षात्कार कराता है।

साहित्य और समाज दोनों ही एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। साहित्य समाज के मानसिक तथा सांस्कृतिक उन्नति और सभ्यता के विकास का साक्षी है। ज्ञान राशि के संचित कोष को साहित्य कहा जाता है। साहित्य एक ओर जहां समाज को प्रभावित करता है वहीं दूसरी ओर वह समाज से प्रभावित भी होता है। साहित्य शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है पहला शब्द है ‘स’ जिसका मतलब होता है साथ-साथ जबकि दूसरा शब्द है ‘हित’ अर्थात कल्याण। इस तरह से साहित्य का अभिप्राय ऐसी लिखित सामग्री से है जिसके प्रत्येक शब्द और प्रत्येक अर्थ में लोक हित की भावना समाई रहती है। प्रत्येक युग का साहित्य अपने युग के प्रगतिशील विचारों द्वारा किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित होता है। साहित्य हमारी कौतूहल और जिज्ञासा वृत्तियों और ज्ञान की पिपासा को तृप्त करता है और क्षुधापूर्ति करता है।

उद्देश्य-

वियोगी होगा पहला कवि

आह से उपजा होगा गान।

उमड़कर आँखों से चुपचाप

बही होगी कविता अनजान॥

साहित्य से ही किसी राष्ट्र का इतिहास, गरिमा, संस्कृति और सभ्यता, वहां के पूर्वजों के विचारों एवं अनुसंधानों, प्राचीन रीति रिवाजों, रहन-सहन तथा परंपराओं आदि की जानकारी प्राप्त होती है। साहित्य ही समाज का आईना होता है। किस देश में कौन सी भाषा बोली जाती है, उस देश में किस प्रकार की वेशभूषा प्रचलित है, वहां के लोगों कैसा रहन सहन है तथा लोगों के सामाजिक और धार्मिक विचार कैसे हैं आदि बातों का पता साहित्य के अध्ययन से चल जाता है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में ‘साहित्य सामाजिक मंगल का विद्यालय है यह सत्य है कि व्यक्ति विशेष की प्रतिभा से ही साहित्य रचित होता है किंतु और भी अधिक सत्य यह है कि प्रतिभा सामाजिक प्रगति की ही उपज है।’साहित्यकार को समाज का छायाकार या चित्रकार भी कहा जाता है क्योंकि साहित्यकार अपनी कृति को समाज में चल रही मान्यताओं और परंपराओं के वर्णन द्वारा ही सजाता है इसलिए साहित्य और समाज में अन्यायोश्रित संबंध प्रत्येक देश के साहित्य में देखने को मिल जाता है। कबीर ने अपने समय के आडंबरों, सामाजिक कुरीतियों और मान्यताओं के विरोध में अपनी आवाज उठाई। ठीक इसी तरह प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में किसी न किसी समस्या के प्रति संवेदना जताई है। कोई भी साहित्यकार चाहे कितना भी अपने को समाज से अलग रखना चाहे लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाता है।

आदिकवि वाल्मीकि की पवित्र वाणी आज भी हमारे ह्रदय मरूस्थल में मंजु मंदाकिनी प्रवाहित कर देती है। गोस्वामी तुलसीदास जी का अमर काव्य आज अज्ञानान्धकार में भटकते हुए असंख्य भारतीयों का आकाशदीप की भाँति पथ-प्रदर्शन कर रहा है। कालिदास का अमर काव्य भी आज के शासकों के समक्ष रघुवंशियों के लोकप्रिय शासन का आदर्श उपस्थित करता है। आज भारतवर्ष युगों युगों से अचल हिमालय की भांति अडिग खड़ा है, जबकि प्रभंजन और झँझावात आए और चले गए। यदि आज हमारे पास चिर-समृद्ध साहित्य ना होता तो ना जाने हम कहां होते और होते भी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता था।

साहित्यकार समाज का प्राण होता है। समाज में रहकर समाज की रीति-नीति, धर्म-कर्म और व्यवहार वातावरण से ही अपनी रचना के लिए प्रेरणा ग्रहण करता है और लोक भावना का प्रतिनिधित्व करता है। अतः समाज की जैसी भावनाएं और विचार होंगे वैसा ही तत्कालीन साहित्य भी होगा। इस प्रकार सामाजिक गतिविधियों तथा समाज में चल रही परंपराओं से समाज का साहित्य अवश्य ही प्रभावित होता है। साहित्यकार समाज का एक जागरूक प्राणी होता है। वह समाज के सभी पहेलूओं को बड़ी गंभीरता के साथ देता है और उन पर विचार करता है फिर उन्हें अपने साहित्य में उतारता है।

साहित्य समाज से भाव सामग्री और प्रेरणा ग्रहण करता है तो वह समाज को दिशाबोध देकर अपने दायित्व का भी पूर्णतः अनुभव करता है। परमुखापेक्षीता से बचाकर उनमें आत्मबल का संचार करता है। साहित्य का पांचजन्य उदासीनता का राग नहीं सुनता, वह तो कायरों और पराभव प्रेमियों को ललकारता हुआ एक बार उन्हें भी समर भूमि में उतरने के लिए बुलावा देता है। इसलिए श्री महावीर प्रसाद जी ने साहित्य की शक्ति को तोप, तलवार, तीर और बम के गोलों से भी बढ़कर स्वीकार किया है। बिहारी के एक दोहे से-

नहिं पराग नहीं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।

अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल।।

राजा जयसिंह को अपने कर्तव्य का ज्ञान हो गया और उसके जीवन में बदलाव आ गया। भूषण की वीर भावों से ओतप्रोत ओजस्वी कविता से मराठों को नव शक्ति प्राप्त हुई। इतना ही नहीं स्वतंत्रता-संग्राम के दिनों में माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान जैसे कई कवियों ने अपनी ओजपूर्ण कविताओं से न जाने कितने युवा प्राणों में देशभक्ति की भावना भर दी।

तात्पर्य यह है कि समाज के विचारों, भावनाओं और परिस्थितियों का प्रभाव साहित्यकार और उसके साहित्य पर निश्चित रूप से पड़ता है। अतः साहित्य समाज का दर्पण होना स्वाभाविक ही है। साहित्य अपने समाज का प्रतिबिंब है, वह समाज के विकास का मुखर सहोदर है।

श्रेष्ठ साहित्य क्या है?

किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है।साहित्यिक विधाओं का उद्देश्य क्या है? क्या आत्मसंतुष्टि अथवा सुखानुभूति या प्रेरणा या संदेश या जागृति? संवेदना ही एक ऐसी चीज है, जो साहित्य और समाज को जोड़ती है। संवेदनहीन साहित्य समाज को कभी प्रभावित नहीं कर सकता और वह मात्र मनोरंजन कर सकता है। सिर्फ मनोरंजन द्वारा ही साहित्य को जीवित रखना संभव नहीं है।

अगर साहित्य के पूरे इतिहास को सामने रखकर देखा जाए तो सहज ही पता चल जाएगा कि महान साहित्य उसी को माना गया है जिसमें

1.अनुभूति की तीव्रता और भावना का प्राबल्य रहा है। श्रेष्ठ साहित्य एक सार्थक, स्वतंत्र एवं संभावनाशील विधाओं से जीवन के यथार्थ अंश, खंड, प्रश्न, क्षण, केंद्रबिंदु, विचार या अनुभूति को गहनता के साथ व्यंजित करता है।

2.श्रेष्ठ साहित्य को मापने का न कोई पैमाना है, न ही कोई मापदंड, क्योंकि साहित्य इतना विराट और इतना सूक्ष्म है कि उसको विश्लेषित करने की सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। साहित्य का कार्य चुनौती देना या लेना नहीं है। साहित्य 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' रचा जाता है। इस सर्व में निस्संदेह आत्म भी समाहित होता है। कोई भी रचना किसी प्रकार की निर्धारित औपचारिकताओं के अधीन नहीं होती।

3.हिंदी भाषा में लेखन और साहित्य सृजन-रचनाकार जब जीवन की सूक्ष्म, गहन अनुभूति एवं विचारों को शिल्पगत निर्धारित तत्वों की सीमा में आबद्ध होकर सही इजहार दे पाने में दिक्कत महसूसते हैं तो वे शिल्पगत पुराने सांचों को तोड़ फेंकते हैं। श्रेष्ठ साहित्यिक रचना के कुछ मूलभूत संस्कार हैं, जो आम रचनाकार द्वारा पालित किए जाते हैं तो वह उच्च श्रेणी की रचना बन सकती हैं।

श्रेष्ठ लेखन और साहित्य-सृजन की अर्हताएँ-

किसी भी साहित्य विधा को श्रेष्ठ कलाकृति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए जिन कौशलों की जरूरत होती है उनमें कथानक, शिल्प, वैचारिक पक्ष, शैली, संवेदनीयता और उसका कला पक्ष प्रमुख हैं।

1.    साहित्य समाज का दर्पण- किसी भी साहित्य को कालजयी बनाने में दो बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं- पहला समय की पहचान और उस काल की संवेदनाओं को आवाज देना और दूसरा समकालीन विश्व साहित्य से पूर्ण परिचय और उसके स्तर पर साहित्य रचना।

2.    भाषा का ज्ञान- भाषा, साहित्य, व्याकरण, शब्द ज्ञान, रचना कौशल, शिल्प आदि गंभीर अध्ययन और मनन का विषय हैं जिसके लिए पर्याप्त समय, साधन, साधना, गहरी रुचि और समर्पण चाहिए। इनमें से कितना कुछ आज उपलब्ध है? ऐसी पृष्ठभूमि में यह अपेक्षा करना कि हर दृष्टि से शुद्ध साहित्य ही परोसा जाए, केवल दिवास्वप्न समान है। अंतरजाल के विशाल क्षेत्र में पनपते अनेक साहित्य समूहों, ई-पत्रिकाओं के लिए विशुद्ध साहित्यिक सामग्री पर निर्भरता असंभव है।

3.    रचना कौशल- रचना में मूल वस्तु उसकी वैचारिक अंतरवस्तु होती है जिसे प्रभावशाली बनाने के लिए हम जिस प्रविधि का उपयोग करते हैं, वही रचना कौशल है। कालजयी वही रचनाएं हो सकीं जिनमें सहज संप्रेषण था। लेखन एक कला है, जो आते-आते आती है। इसे सहजता से स्वीकारने में संकोच क्यों हो। काव्यस सृजन उससे भी कठिन है। आयोजनों के लिए रचा गया काव्य सामान्यतया रचनाकार का श्रेष्ठ कृतित्व नहीं होता है।

4.    कथानक- कथावस्तु में एकतानता, सूक्ष्मता, तीव्रता, गहनता, केंद्रीयता, एकतंतुता और सांकेतिकता आदि होने से रचना की प्रभावशीलता अधिक बढ़ जाती है इसलिए रचना के तत्वों में तीक्ष्णता, तीव्रता और गहनता लाकर वह प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है। चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' की कहानी 'उसने कहा था' को मोटे तौर पर देखें तो 3 विशेषताएं हैं, जो 'उसने कहा था' को कालजयी और अमर बनाने में अपनी-अपनी तरह से योगदान देती हैं। इसका शीर्षक, फलक और चरित्रों का गठन।

5.    कथावस्तु- कथावस्तु का विन्यास एवं घटनाओं का संयोजन भी बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि कथावस्तु का विन्यास, घटनाओं के क्रम नियोजन की प्रस्तुति जब रचना में सशक्त होती है, तब वह पाठक को अपनी तरफ खींचती है। हर लेखक अपनी क्षमता के अनुसार कथा विन्यास का उपयोग अपनी रचनाओं में करता है। समय, सत्य और जीवन सत्य के किसी खंड, अंश, कण, कोण, प्रश्न, विचार, स्थिति, प्रसंग को लेकर चलने वाली रचना में कथानक की एक सुगठित, सुग्रथित, सुसंबद्ध एवं संश्लिष्ट योजना रहती है और उसी के अनुरूप पात्रों, संवादों, भाषा आदि का निर्माण अत्यंत सावधानी से करना पड़ता है।

6.    सुस्पष्ट विचार श्रृंखला- साहित्य में विचारधारा एक विचारदृष्टि के रूप में रहती है और कभी-कभी सृजन के स्तर पर वह भावबोध को निर्धारित भी करती है। 'मुक्तिबोध' ने साहित्य में विचारधारा के उपयोग के लिए 'कामायनी' का मूल्यांकन करते हुए कहा था-'काव्य रचना जितनी उत्कृष्ट होती है, उसकी प्रभाव क्षमता भी उतनी ही अधिक होती है इसलिए उस काव्य कृति में व्यक्त विचारधारा की प्रभाव शक्ति को ध्यान में रखते हुए उसका मूल्यांकन अवश्य किया जाना चाहिए, लेकिन विचारधारा के मूल्यांकन को काव्यगुण के मूल्यांकन से अलग रखना चाहिए।'

7.    कथोपकथन- किसी भी रचना में कथोपकथन का बहुत महत्व है। यह प्रभावोत्पादक, जानकारीपूर्ण, सहज संप्रेषणीय, सोद्देश्य और सांकेतिक होना आवश्यक है। रचनाकार का आशय या अभिप्राय प्राय: संवादों के जरिए सहजता और सरलता से संप्रेषित हो जाता है। संवाद, रचना का छोटा स्वाभाविक और अत्यंत प्रभविष्णु अंश होता है और उसका एक-एक शब्द सार्थक, सोद्देश्य और महत्वपूर्ण होता है। संवादों के सहारे लघुकथा के अन्य तत्व मुखरित होते हैं।

8.    पात्रों का चयन-साहित्यकार को इस प्रकार के पात्रों का चयन करना चाहिए, जो सहानुभूति और समझ के साथ विभिन्न सामाजिक वर्गों की एक विस्तृत श्रृंखला को समाहित कर अलग-अलग परिस्थितियों को दृढ़तापूर्वक वर्णित करने में सक्षम हों और परिस्थितियों पर 'एकल-बिंदु' परिप्रेक्ष्य तक सीमित न हों। आरके नारायण की रचनाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय 'मालगुड़ी' की पृष्ठभूमि से जुड़ी रचनाएं हैं। 'मालगुड़ी' ब्रिटिश शासनकाल का एक काल्पनिक नगर है। इसमें स्वामी, उसके दोस्त सहित तमाम चरित्र हैं। इसके सारे पात्र खांटी भारतीय चरित्र हैं और सबकी अपनी विशिष्टताएं हैं।

9.    मनोवैज्ञानिक गहराई और प्रेरणा की स्पष्टता- किसी भी कालजयी रचना के पात्र मनोवैज्ञानिक गहराई और प्रेरणा की स्पष्टता के साथ दिखाई देते हैं। ये पात्र सत्य, परिवर्तन, विकास या जागरूकता को प्रक्षेपित करते हुए दिखाई देते हैं, साथ ही उस अनुभव को सम्प्रेषित करते हैं, जो समाज में इस तरह के बदलाव का कारण बनने के लिए उपयुक्त हैं।

10. काल की युगभावना और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य- जिस काल में रचना का निर्माण हो, उस काल की युगभावना और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समाहित कर गहन कल्पनाशीलता के साथ प्रस्तुति साहित्य को श्रेष्ठता प्रदान करती है। 'तीसरी कसम' कहानी को अगर शास्त्रीय कथानक के ढांचे के अंतर्गत विश्लेषित किया जाए तो हम पाएंगे कि इसमें आदि, मध्य और अंत के निश्चित ढांचे वाला कथानक ढूंढ पाना मुश्किल है। इसमें जीवन का एक लघु प्रसंग, उसी प्रसंग से उलझे जुड़े अन्य प्रसंग, मिथक, गीत-संगीत, मूड, सुगंध आदि सब सम्मिलित रूप में मिलकर ही कथानक बन गए हैं।

11. मानवता और समाज के प्रति हमारे दायित्व का बोध- हमें अपनी मानवता और समाज के प्रति हमारे संबंध और हमारे ब्रह्मांड के प्रति हमारे दायित्व का बोध होना चाहिए। प्रेमचंद की ज्यादातर रचनाएं उनकी ही गरीबी और दैन्यता की कहानी कहती हैं। ये भी गलत नहीं है कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था। उन्होंने सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया।

12. आदर्शोन्मुख और  यथार्थवादी- साहित्यकार की कृति आने वाली पीढ़ी या समकालीन लेखकों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करती हो या साहित्यकार उसका अनुसरण करने के लिए मानसिक रूप से बाध्य हों तो समझिए आप श्रेष्ठ साहित्य का सृजन कर रहे हैं।7.

13. लेखन-शैली व नए शब्द गठन का सामर्थ्य-आपकी लेखन की शैली एक विशिष्ट भाषाशैली, तरीके, शब्दों के विन्यास या विधा तक सीमित नहीं होनी चाहिए।

14. औपचारिक अखंडता-लेखन में औपचारिक अखंडता होनी चाहिए, साहित्यकार को अपनी रचना पर पूर्ण नियंत्रण करना चाहिए तथा ऐसा कोई भी शब्द या प्रसंग रचना में न हो, जो उस रचना की कथावस्तु से संबंधित न हो। रचना अपना उद्देश्य चरम के साथ प्राप्त करे, यही श्रेष्ठ रचना का लक्षण होता है।

पाठक तो क्या, अधिकांश रचनाकार भी साहित्य सृजन की बारीकियों से अनभिज्ञ हैं। 80-90 प्रतिशत लेखक व पाठक केवल भावपक्ष या तत्व पक्ष को ही प्रधानता देते हैं। काव्य विधा की कई शाखाएं जैसे सोरठा, कुंडलियां, सवैयां दोहा आदि लुप्त होते जा रहे हैं।

निष्कर्षतः साहित्य सृजन सचमुच उपासना है, अमरता की ओर ले जाने का पथ है। कहते हैं कही गई बात मिट जाती है किन्तु लिखी हुई बात अमर हो जाती है।

जो कह दिया सो बह गया

जो लिख दिया सो रह गया

एक प्रवाह बन गया

दूसरा शाश्वत हो गया॥

साहित्य सृजन एक जटिल,रहस्यमयी एवं संश्लिष्ट प्रक्रिया है। एक रचनाकार अपने अन्तर्मत में उपजे अमूर्त भावों एवं विचारों को मूर्त बनाकर अपनी रचना के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। समाज को देखने का प्रत्येक व्यक्ति अथवा रचनाकार का अपना दृष्टिकोण होता है। समाज के यथार्थ को एक साहित्यिक रचनाकार जैसे देखता,समझता और महसूस करता है, उसके मन-मस्तिष्क पर समाज में घटित घटनाओं का वैसा प्रभाव पड़ता है जो उसकी रचनाओं के माध्यम से समाज के समक्ष प्रस्फुटित होता है। अपने को व्यक्त करने की इच्छा से सर्जक पहले अपनी निजता से मुक्त होता है और फिर समाजोन्मुखी बनता है। अपनी निजी सोच के फलस्वरूप ही वह सामाजिक सत्य को अपनी दृष्टि के अनुसार ही अभिव्यक्ति प्रदान करता है। इतना ही नहीं वह अपनी सृजनात्मकता द्वारा यह भी दृष्टिगत करने का प्रयास करता है कि समाज कैसा होना चाहिए। यह 'कैसा होना चाहिए' ही उसकी अपनी भावानुभूतियों को प्रत्यक्ष रूप से सामने लाता है जिसमें रचनाकार का व्यक्तित्व उसकी रचना के केंद्र में स्वत् ही समाविष्ट हो जाता है। इस प्रकार देखा जाए तो रचनाकार कोई भी साहित्यिक रचना यथार्थ की पुनर्सृष्टि होती है।

   मीता गुप्ता

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Tuesday, 26 September 2023

कंप्यूटर में हिंदी टाईपिग कैसे करे??

कंप्यूटर में हिंदी टाईपिग कैसे करे??



 

1.            ऑफलाइन माध्यम से: निम्नांकित पदों का अनुसरण कीजिए-

i)            किसी वेब ब्राउजर (उदाहरण क़े तौर पर गूगल क्रोम) पर नीचे दिया वेव एड्रैस टाईप करें:

 https://www.microsoft.com/en-in/bhashaindia/downloads.aspx

 

ii)           Microsoft Indic Language Input Tool (ILIT) की सूची से अपने कंप्यूटर मे उपलब्ध विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम के आधार, जैसे उसका संस्करण व कंप्यूटर प्रोसेसर टाईप (उदाहरण क़े तौर पर विंडो 7 व 32 बिट) के अनुसार हिंदी टूल का चयन कर इसे डाउनलोड करके इंस्टाल करे।

iii)          इंस्टाल होने के बाद आपको कंप्यूटर के टास्कबार के दाहिने छोर पर ENG लिखा मिलेगा, जिस पर क्लिक करने से एक लिस्ट खुलेगी, उसमे से हिंदी का चुनाव कर क्लिक करे व हिंदी मे शब्दों की ध्वनि के आधार पर अंग्रेजी कीबोर्ड MS Word व अन्य टेक्स्ट एडीटर पर टाईप करते जाएँ जोकि आपको कंप्यूटर मॉनीटर पर हिंदी मे परिवर्तित होता दिखेगा।

2.            ऑनलाइन माध्यम से: निम्नांकित पदों का अनुसरण कीजिए-          

              i)            गूगल सर्च इंजन पर नीचे दिया वेव एड्रैस टाईप करें:

                             https://www.google.com/inputtools/try/व एंटर करें।

ii)           प्रदर्शित वेब पेज पर लिखित Try Google Input Tools onlineके नीचे दिये गये English लिखित लिस्ट पर क्लिक करके हिंदी का चुनाव करें।

iii)          इसके पश्चात नीचे टाईप करने के स्थान पर हिंदी मे शब्दों की ध्वनि के आधार पर अंग्रेजी कीबोर्ड पर टाईप करते जाएँ जोकि आपको कंप्यूटर मॉनीटर पर हिंदी मे परिवर्तित होता दिखेगा।

iv)          टाईप करने के पश्चात आप यहाँ से कापी करके एम एस वर्ड व अन्य एप्लीकेशन पर पेस्ट कर अपना हिंदी का कार्य सेव कर सकते हैं।

3.            आनलाइन माध्यम मे वॉइस टाइपिंग (बोलकर टाईप) करना: निम्नांकित पदों का अनुसरण कीजिए-

i)            इसके लिए आपके पास जीमेल अकाउंट होना चाहिए (उदाहरण क़े तौर पर: kvneriznbareilly@gmail.com)

ii)           किसी वेब ब्राउजर (उदाहरण क़े तौर परगूगल क्रोम) पर नीचे दिया वेव एड्रैस टाईप करें: https://docs.google.com/document व एंटर करें।

              iii)          प्रदर्शित वेब पेज पर जीमेल अकाउंट से लोगिन करने पर आपको Docs दिखाई देगा।

              iv)          इस पेज पर आपको कई तरह के टेक्स्ट एडिटिंग के कई टेम्पलेट प्रदर्शित होंगे जिनमे से आप ब्लैंक

को क्लिक करें ।

v)            आपको वॉइस टाइपिंग करने के लिए सर्वप्रथम हेडफोन जिसमें माइक कार्य करती है, को अपने कंप्यूटर  मे लगाना होगा ।

vi)          क्लिक करने पर आपको एक अनटाइटल्ड डॉक्यूमेंट टेक्स्ट एडिटर दिखाई देगाजिसके मुख्य मेनूबार पर टूल्स मैन्यू आइटम पर क्लिक करने से टूल्स की एक  लिस्ट आपको दिखाई देगी जिसमें से आपको वॉइस टाइपिंग पर क्लिक करना है। जिससे आपको   पेज के पास एक टूलप्रकट होगा जिसमें आपको English(UK)  भाषा की जगह भाषाओं की लिस्ट से हिंदी को चुनकर उस पर क्लिक करना है और माइक्रोफोन बने काले  रंग पर क्लिक करना है जिससे उसका लाल colour दिखाई देगा । अब आप बोलकर टाइप करने के लिए तैयार हैं। आप जो भी बोलेंगे वह आपको आपके पेज पर टाइप होता दिखाई देने लगेगा।  अब आप इस डॉक्यूमेंट को File मेनू पर जाकर डाउनलोड ऑप्शन को चुनकर Microsoft Word(.docx)  डाउनलोड कर सकते हैं और भविष्य में इस फाइल को प्रयोग में ला सकते हैं |

 


मीता गुप्ता 

Sunday, 3 September 2023

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020- विद्यार्थियों में 21वीं सदी के कौशल का निर्माण

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020- विद्यार्थियों में 21वीं सदी के कौशल का निर्माण



 

21वीं सदी के कौशल या 21 सेंचुरी स्किल्स वे ज्ञान-संबंधी, जीवन कौशल-संबंधी और कैरियर-संबंधी कौशल होते हैं, जो आज के तेजी से बदलते तकनीकी, सामाजिक, और व्यापारिक वातावरण में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं। ये कौशल लोगों को उनके करियर में बेहतर प्रदर्शन करने और जीवन के विभिन्न पहलुओं में समृद्धि पाने में मदद करते हैं। विद्यार्थियों को उनके करियर और जीवन के लिए बेहतर तैयार करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों की रणनीतिक योजनाओं में 21वीं सदी के कौशल शामिल हैं। सबसे अधिक प्रासंगिक कौशलों में आलोचनात्मक सोच, सहयोग और समस्या-समाधान कौशल शामिल हैं।

21वीं सदी की शिक्षा और नवाचार कौशल आज अत्यधिक मायने रखते हैं क्योंकि सॉफ्ट कौशल उच्च-स्तरीय पाठ्यक्रमों और कार्यस्थलों में सफलता दिलाती है। यह विद्यार्थियों को उन नौकरियों के लिए तैयार किया जाता है, जो आज भी लोकप्रिय नहीं हैं। ऐसी कैरियर तैयारी के लिए उन्हें ऐसे कौशल से लैस करने की आवश्यकता है। इंटरनेट युग ने विद्यार्थियों के लिए विशाल जानकारी को सुलभ बना दिया है। उन्हें सामाजिक परिस्थितियों और अन्य परिस्थितियों से निपटने के दौरान आने वाली चुनौतियों पर काबू पाकर इस जानकारी को संसाधित करने और विश्लेषण करने का कौशल दिलाती है। पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त सैद्धांतिक ज्ञान अब पर्याप्त नहीं है। जटिल समस्याओं को कुशलतापूर्वक हल करने के लिए विद्यार्थियों को उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग को समझने की आवश्यकता है, जो 21 सदी के कौशलों के विकास से ही संभव है। इसके साथ-साथ कैरियर के सवालों का समाधान, स्वावलंबन,विशेषज्ञता, अंतरराष्ट्रीय यानी ग्लोबल पटल पर मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए तथा सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को समझने और साझा करने में भी मदद कर करते हैं।

21वीं सदी के महत्वपूर्ण कौशल-

डिजिटल ज्ञान, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग और एआई, साइबर सुरक्षा, डिज़ाइन और उपयोगकर्ता अनुभव, क्रिएटिविटी और इंनोवेशन,अनुसंधान और विकास,संचालन और प्रबंधन, समसामयिक समस्या पर सोचना, संचालनीय और समाजशास्त्रीय बुद्धिमत्ता. विपणन, साक्षरता, व्यक्तिगत वित्तीय प्रबंधन, सोशल और संवादात्मक कौशल,व्यक्तिगत विकास, तार्किक विचारशीलता: ताकतवर कृतिक विचारशीलता कौशल,सामाजिक और सांस्कृतिक सजीवता, वित्तीय साक्षरता, स्वच्छता और आपूर्ति कौशल, टीम वर्क,अनुसंधान कौशल, ग्लोबल विचारधारा, सामग्री प्रबंधन कौशल और व्यक्तिगत स्वास्थ्य और जीवन जीने कौशल।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में दिए गए प्रावधान-

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत के शिक्षा प्रणाली को सुधारने और मौखिक और लिखित भाषाओं के बीच गुणवत्ता और पहुँच में सुधार करने के लिए एक बड़ा कदम है। इस नीति के अंतर्गत, विद्यार्थियों को विभिन्न आवश्यकताओं और प्रौद्योगिकी अद्यतनता के साथ उनमें 21 सदी के कौशलों का विकास करने के लिए कई पहल की जा रही हैं-

*    कौशल विकास केंद्र: नीति के तहत, स्कूलों में कौशल विकास केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिनमें विद्यार्थियों को विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जैसे कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, डिजिटल मार्केटिंग,और अन्य 21 सेंचुरी कौशल।

*    विशेष प्रशासनिक उपक्रम: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, विद्यार्थियों को विशेष प्रशासनिक उपक्रमों के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में विचार करने और कौशल विकसित करने का मौका मिलेगा, जो उनके 21 सेंचुरी कौशल को बढ़ावा देगा।

*    कौशल विकास पाठ्यक्रम: नीति में कौशल विकास पाठ्यक्रमों को प्रमोट करने का भी प्रावधान है, जिनमें विभिन्न 21 सेंचुरी कौशल का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि छात्र उन्हें अपनी पसंद के हिसाब से चुन सकें।

*    बाह्य शिक्षा और आउटरीच सक्रियताएँ: नीति के अनुसार, विद्यार्थियों को विभिन्न स्कूली और बाह्य शिक्षा कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा रहा है, जैसे कि बाह्य क्षमता विकास प्रोग्राम, जिनमें 21 सेंचुरी कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है।

*    ऑनलाइन शिक्षा: डिजिटल शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए, नीति में ऑनलाइन शिक्षा के साथ 21 सेंचुरी कौशल को सिखाने की योजना शामिल है, ताकि विद्यार्थी विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी के लिए तैयार हो सकें।

*    व्यावासिक शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में व्यावासिक शिक्षा को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है, जिसमें छात्रों को विभिन्न नौकरियों और व्यावासिक क्षेत्रों की प्रशिक्षण दी जाती है, ताकि वे पेशेवर योग्यता हासिल कर सकें।

*    इंटर्नशिप और कौशल विकास कार्यक्रम: शिक्षा नीति के तहत, छात्रों को व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्र में इंटर्नशिप्स और कौशल विकास कार्यक्रमों का मौका मिलेगा, जिससे वे अपने करियर के लिए तैयार हो सकें।

*    करियर काउंसलिंग: छात्रों को करियर काउंसलिंग के माध्यम से उनके प्राथमिक रूप से रुचियों और कौशलों के आधार पर करियर के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक किया जाएगा।

*    स्वयं सहायता और नौकरी कौशल: शिक्षा नीति के तहत, छात्रों को स्वयं सहायता और नौकरी कौशल के विकास के लिए समर्थ किया जाएगा, ताकि वे आगे बढ़कर अपने लिए और समाज के लिए उपयोगी बन सकें।

*    कौशल विकास और नौकरी प्रशिक्षण: छात्रों को कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न कौशल और पेशेवर योग्यताओं का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जो उनके भविष्य के करियर के लिए महत्वपूर्ण हैं।

*    कौशल-विकास और प्रशासनिक समर्थन: शिक्षा नीति के तहत, शिक्षा संस्थानों को छात्रों के कौशल और प्रशासनिक समर्थन के लिए उनके पास आवश्यक संसाधनों का प्रबंधन करने की सलाह दी जाती है।

*    करिकुलम में परिवर्तन: नई शिक्षा नीति में सर्कुलम में परिवर्तन की बात की गई है जिसमें नौकरियों के अनुसार कौशल सीखाने के लिए विशेष कोर्सेस और मॉड्यूल होंगे। इससे छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों में 21 सेंचुरी कौशल का परिचय होगा।

*    आधारभूत कौशलों को समर्थन: शिक्षा नीति में आधारभूत कौशलों को समर्थन देने का भी जिक्र किया गया है, जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संवाद कौशल, समस्या समाधान कौशल, और नौकरी कौशल।

*    स्वायत्तता और प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा: छात्रों को स्वायत्तता से सोचने और सीखने का मौका देने के लिए प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता है, जिसमें वे अपनी पसंदीदा 21 सेंचुरी कौशल को विकसित कर सकते हैं।

*    तकनीकी शिक्षा और डिजिटल उपयोग: शिक्षा नीति में तकनीकी शिक्षा और डिजिटल उपयोग को बढ़ावा देने की बात की गई है, जिससे छात्र विभिन्न तकनीकी कौशलों को सीख सकें।

*    सामाजिक और आधारित शिक्षा: नीति ने सामाजिक और आधारित शिक्षा को महत्वपूर्ण भूमिका दी है, जिसमें विद्यार्थियों को भौतिक, भौगोलिक, और सामाजिक जगहों पर शिक्षा दी जाएगी, जो उनके सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देगी।

*    कौशल-विकास और नौकरी तैयारी: नीति में कौशल और नौकरी तैयारी को महत्वपूर्ण बताया गया है। विद्यार्थियों को व्यावासिक कौशल, उद्यमिता, और नौकरी तैयारी के लिए तैयार किया जाएगा।

*    उत्कृष्टता की दिशा में शिक्षा: नीति ने विद्यार्थियों के उत्कृष्टता की दिशा में शिक्षा को प्राथमिकता दी है। उन्हें अपने रुझानों और रुचियों के आधार पर शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलेगा।

*    कौशल और रोजगार: नीति में कौशल और रोजगार के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाएंगे, जैसे कि उद्यमिता की शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम।

*    संवाद कौशल का विकास: नीति में विद्यार्थियों के संवाद और कौशल का विकास को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।

*    साक्षरता: नीति ने साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रोग्रामों का समर्थन किया है, जिससे विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिल सके।

*    सामाजिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा: नीति में सामाजिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा को महत्वपूर्ण भूमिका दी है, जिससे विद्यार्थियों का सामाजिक और नैतिक विकास हो सके।

*    स्वतंत्र और सक्रिय शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, विद्यार्थियों को स्वतंत्रता और सक्रिय शिक्षा का मौका दिया जा रहा है, जिससे वे अपने रुझानों और रुचियों के हिसाब से अध्ययन कर सकते हैं।

*    गतिशील शिक्षा: नई शिक्षा नीति के अनुसार, गतिशील और तकनीकी तरीकों से शिक्षा देने के लिए गुणवत्ता बढ़ाने के उपायों पर काम किया जा रहा है।

*    प्रैक्टिकल शिक्षा: शिक्षा नीति 2020 उद्देश्यों में से एक है कि विद्यार्थियों को प्रैक्टिकल शिक्षा और हाथ-से-हाथ कौशलों का समर्थन किया जाए।

*    आत्मनिर्भरता और उद्यमिता की प्रोत्साहना: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विद्यार्थियों को आत्मनिर्भरता और उद्यमिता के माध्यम से खुद का रोजगार बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

*    व्यक्तिगत प्रगति योजनाएं: शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, विद्यार्थियों को उनके रुचियों और कौशलों के हिसाब से व्यक्तिगत प्रगति योजनाएं तैयार करने का मौका मिलेगा।

*    अध्यापकों की प्रशिक्षण: नयी शिक्षा नीति के तहत, अध्यापकों को 21 सेंचुरी कौशल के शिक्षण के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि वे अपने छात्रों को इन कौशलों को सिखाने में सहायक हो सकें।

*    समयगत प्रयोग कार्यक्रम: शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, विद्यार्थियों को विशेषकर स्कूलों और कॉलेजों में समयगत प्रयोग कार्यक्रमों का समर्थन दिया जाएगा जो 21 सेंचुरी कौशल की सीख प्रदान करते हैं।

इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से, विद्यार्थियों को 21 सेंचुरी कौशल के कई पहलू सिखाए जा रहे हैं, जो उन्हें अपने करियर और जीवन में सफल होने के लिए तैयार करेंगे। उपरोक्त रणनीतियों को लागू करने से विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकों से नियमित ज्ञान के अलावा 21वीं सदी के कौशल हासिल करने में मदद मिलेगी।  प्रारंभ में, कुछ लोगों को इस नई शिक्षण पद्धति के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो सकती है, लेकिन धीरे-धीरे, यह उन्हें सशक्त महसूस कराएगा। वे आलोचनात्मक और रचनात्मक रूप से सोचना शुरू कर देंगे और चुनौतियों का कुशलतापूर्वक सामना करके प्रतिस्पर्धी दुनिया में आगे बढ़ने के लिए बेहतर अनुकूल होंगे।

मीता गुप्ता

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...