Saturday, 30 December 2023

वर्ष नव,हर्ष नव

 

वर्ष नव,हर्ष नव

नए वर्ष की प्रातः सबसे अनूठी है। हो भी क्यों नहीं, आज ही तो सुबह की सबसे पहली किरण के साथ नया वर्ष हमारे घर-आंगन में, हमारे जीवन में आया है। समूची सृष्टि में विधान बनकर वही चहुं ओर छाया है। नव वर्ष के आगमन की खुशी में प्राची में उषा ने अपना प्राचीन आंचल उतार फेंका है। इसका मुख दिव्य रक्तकमल की भांति उद्भासित है और हर क्षण स्वर्ण की कांति का दसों दिशाओं में विकिरण कर रहा है। वसुंधरा के आंगन में नए सूरज का उदय हुआ है। नए सूरज की हर किरण में नई संभावनाओं की झिलमिल है, जागृत आत्माओं की अंतर्चेतना में एक एहसास, एक अनुभूति है कि जगत और जीवन में इस नए वर्ष में बहुत कुछ नया प्रस्तुत होगा। भौतिक पदार्थ एवं परिस्थितियों की अप्रत्याशित उलट-पुलट के बीच कुछ नया दिखेगा, वह आध्यात्मिक अंतर्चेतना में एक नए आलोक का अवतरण करेगा। समूची सृष्टि को अपनी स्वर्णिम किरणों से ज्योतिर्मय कर रहे आज के सूर्य का यही संदेश है।

यह सूर्य दिव्य चेतना से चेतन है। इसके प्रकाश में परिस्थितियों के भविष्य स्वरूप की आध्यात्मिक अंतर्संभावनाओं की अनेक झांकियां झलक रही हैं। सर्वज्ञ चेतना में उठने वाले नए वर्ष की विशेषताओं को, विशिष्टताओं को साफ-साफ देखा जा सकता है। बहुत ही स्पष्ट ढंग से देश और धरती में कुछ नया अवतरित होता हुआ नजर आ रहा है। संभावनाओं का ज्वार सब और जोर-जोर से उमग रहा है। बाहर और आंतरिक जीवन की ओर भागी चली आ रही ये संभावनाएं तो बड़ी ही प्यारी हैं, पर यह सच्चे ढंग से साकार तभी होंगी, जब हमारी साधना इन्हें बड़ी ही भावपूर्ण रीति से छुएगी।

आज के दिन हम एक नए युग में, स्वर्णिम युग में प्रवेश कर रहे हैं। यह घड़ी युगांतर की है। प्राचीन पीछे छूट रहा है, नवीन जो स्वर्णिम है, आंतरिक प्रसन्नता दे रहा है। हमें चाहिए कि नव वर्ष के आगमन की इस भव्य बेला में अपनी चिंतनधारा को विस्तृत करें, उसे ऊंचा उठाएं, उसे उर्ध्वमुखी बनाएं, अपने हृदय के द्वार खोल उसे विश्व प्रेम से भरपूर करें, धार्मिक और जातीय सीमाओं का अतिक्रमण कर मानवमात्र की सेवा करें, संपूर्ण मानवता को खोखली मान्यताओं से बाहर लाएं और महान विचारकों-विद्वानों द्वारा अनुभूत सत्य को अपने विचारों का आधार बनाएं।

नए वर्ष की मांगों के अनुसार साधना करते हुए अपने स्वभाव में नमनीयता लाएं और विकसित होती हुई मानवता के साथ अपने चिंतन एवं दर्शन का भी विकास करें। शास्त्रों के मौलिक सत्य को और परिवर्तित रखते हुए उसके व्यावहारिक पक्ष को यथोचित ग्रहण करें, नए क्षितिजों में प्रवेश संभव बनाएं, जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाएं, जो जीवन के त्याग में नहीं, उसे आध्यात्मिक स्तर पर उठाने की सच्ची सफलता मानता है, ऐसा मंत्र, जो एक नए आलोक को सजाने-संवारने में पुरुषार्थ की सार्थकता समझता है।

नव वर्ष पर अवतरित होती हुई आध्यात्मिक चेतना के प्रति अगर हम आज सचेतन बने, इसके आलोक में जीवन-मार्गों पर अग्रसर हों, तो उज्ज्वल भविष्य की स्थापना अवश्य हो पाएगी। धरती का कोना-कोना प्रकाशपूर्ण चेतना से भर उठेगा। संपूर्ण मानव जाति में युगांत्रीय चेतना के प्रति उद्घाटन होगा, जिसके द्वारा संसार अपनी सब समस्याओं का समाधान कर सकता है। इससे हमें ज्ञान और अज्ञान के मिश्रित वर्तमान जीवन से ऊपर उठने ऊपर उठाने में समर्थ होगा, तभी हमारी चेतना आध्यात्मिक विकास कर सकेगी, देश और धरती का भी कल्याण हो सकेगा, नव वर्ष की प्रातः उदय हो रहे सूर्य का यही संदेश है कि उसकी झिलमिलाहट से संसार जगमग हो, उसके प्रभाव,प्रकाश और दीप्ति संसार को आलोकित कर दे और उसकी ऊष्मा सारी संभावनाओं के द्वार खोल दे, यही नव वर्ष का सदुपदेश है-

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!

मीता गुप्ता

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...