Sunday, 5 April 2020

लॉकडाउन का दूसरा दिन 26.03.2020


लॉकडाउन का दूसरा दिन,26.03.2020

आज मुझे सुबह से ऐन की बहुत याद आ रही थी, अरे वही ऐन.ऐन फ़्रैंक..... द डायरी ऑफ यंग गर्ल वाली । ऐन क्यों याद आ रही थी मुझे ? यह समझ आ रहा था कि लॉक डाउन किसी अज्ञातवास जैसा ही है । मन में यह संवेदना उठ रही थी कि किस प्रकार से एन और उसके परिवार में 2 साल से भी अधिक का समय उस अज्ञातवास में काटा होगा, जहां युद्ध की विभीषिका, आतंक, भय, क्रंदन, डर और न जाने कितनी नकारात्मक स्थितियाँ रही होंगी । डर तो था हमें भी, कुछ आतंक भी, लेकिन युद्ध की विभीषिका इसमें नहीं थी। अभी ऐसा सोच ही रही थी कि हमारे घर के बाहर से महेश ने आवाज़ दी.... कूड़ा.... मैंने कहा... अरे भैया, अभी गेट खोलती हूं, तुम आ गए ? उसने कहा.... हम तो आवश्यक सेवाओं वाले हैं न मैडम....हमें तो आना ही था। मैंने कई बार महेश और उसके बेटों को घर के आसपास सफाई ढंग से ना करने पर, नाली साफ ना करने पर टोका है, कई बार उनको समझाया भी है,पर आज मुझे ये छोटी-छोटी बातें ओछी लगीं। देखो आज यह कर्मवीर की भांति आज मेरे घर पहुंच गया है । सच ही है कि कठिनाई के समय हम और मानव हो जाते हैं । 
व्हाट्सएप का स्टेटस बदला, स्टेटस में हौसले से भरी हुई पंक्तियां लिखी और फिर अपने दैनिक कार्य में जुट गई । चाय बनाई, हम सबने मिलकर चाय पी । फिर बर्तन- झाड़ू-पोंछा- डस्टिंग ।  कल के धुले हुए कपड़े आपस में उलझ रहे थे, उनकी तह बनाई। नाश्ता के बाद सोचा कि अब कुछ रूटीन बनाना चाहिए । इतने सारे दिनों की बात है..... रूटीन में एक्सरसाइज को भी स्थान मिलना चाहिए । ट्रेडमिल पर आधा घंटा चल कर देखते हैं । नाश्ता किया,तब तक सब्ज़ी वाला आ गया.....मैंने उससे कहा कि तुम जब भी आओ, तो सब्ज़ी दे जाया दिया करो । उसने कहा कि जहां बोहनी अच्छी होती है, वहां हम सबसे पहले जाते हैं । मुझे याद आया वह विज्ञापन जिसमें बेटी मां से कहती है कि आपका चेहरा हमारे लिए लकी है ।
आज दिन भर के कामों की बाद ऐसा महसूस किया मैंने कि सारे शरीर में दर्द हो रहा है क्योंकि ये सब काम करने की आदत जो छूट गई है । यह भोग विलास का जीवन...कितना आकर्षक...कितना दुखदायी....और इसे जीकर हम अपने आप को बहुत महान समझने लगते हैं । हम तो यह सब नहीं करते......हमारे यहां तो मेड है........मेड करती है सब....क्या करती है ? कैसे करती है ? हम बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते ।अब लगता है कि कितना बड़ा काम है ।आज ऐसा लग रहा था जैसे यह मेरा घर नहीं.....मेरा साम्राज्य और मैं यहां की रानी ।
अपूर्व (बड़ा बेटा) लंदन में ही है, वहाँके दिन-प्रतिदिन बिगड़ रहे हालात सुनकर डर और आशंकाओं से भर जाती हूँ....बेटा! ध्यान पूर्वक रहिए.....सावधानीपूर्वक.....ध्यान से बाहर निकलिए सावधानियों के साथ......उसका भी वर्क फ़्रॉम होम हो गया है....मेरी उससे रोज़ ही बात हो जाती है और केवल बात नहीं....ठीक से....अच्छे से लंबी बातचीत होती है । अब वह हमसे दूर है...तो चिंता तो होती ही है.....वह कहता है कि चिंता मत करिए,कैसे न करूँ, यह समझ नहीं आता । मम्मी-डैडी से भी बात हुई और क्योंकि व्रे बुजुर्ग हैं और उनके लिए बिना रजनी के सारा काम स्वयं करना काफी कठिन है । उन्होंने बार-बार मुझे बताया कि रजनी आना चाहती है, काम करना चाहती है पर मैंने उन्हें बहुत प्यार से समझाया कि नहीं रजनी के लिए आप घर के दरवाजे मत खोलिए, उसे मत बुलाइए, चाहे घर में काम हो ना हो । उनके हाथों में तकलीफ है, पैरों में भी अक्सर दर्द रहता है, तो उनके लिए इन सब कामों को करना बड़ा तकलीफ़देह हो जाता है ।वे रोटी वह बना नहीं पाती हैं, हाथ के दर्द के कारण । लेकिन मैं नहीं समझ नहीं पा रही हूँ कि क्या इसके अलावा कोई और विकल्प  है ?

दूसरा दिन कुछ आशाओं के साथ, कुछ आशंकाओं,कुछ भय के साथ समाप्त हुआ ।
सपने बुनती हूँ, टूट जाते हैं,
टूटकर बिखर जाते हैं,

उनमे से एक टुकडा चुनकर,
फिर सपने बुनने लगती हूँ

आशाएँ जगाती हूँ,
टूट जाती है,
निराशा आती है,

दुख के काँटों के बीच,
सुख के कुछ फूल फिर चुनने लगती हूँ…..

प्रयास करती हूँ, विफल हो जाते हैं,
सहम जाती हूँ,
विफलता के अन्धकार के उस पार,
रोशनी की किरण ढूँढने लगती हूँ……

हिम्मत जुटाती हूँ, हार जाती हूँ,
थम जाती हूँ,
फिर चुपचाप हाथ पर हाथ रख,
 नियति की सुनने लगती हूँ……

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