Saturday, 18 April 2020

पृथ्वी




पृथ्वी

 पृथ्वी कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये हवाओं की सरसराहट,
ये पेड़ों पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट,
ये समुन्दर की लहरों का शोर,
ये बारिश में नाचते सुंदर मोर,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
पृथ्वी कुछ कहना चाहती है हमसे।।

ये खूबसूरत चांदनी रात,
ये तारों की झिलमिलाती बारात,
ये खिले हुए सुंदर रंगबिरंगे फूल,
ये उड़ती हुए धूल,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
पृथ्वी कुछ कहना चाहती है हमसे।।

ये नदियों की कलकल,
ये मौसम की हलचल,
ये पर्वत की चोटियाँ,
ये झींगुर की सीटियाँ,
कुछ कहना चाहती हैं हमसे,
पृथ्वी कुछ कहना चाहती है हमसे।।

आखिर क्या कहना चाहती है यह पृथ्वी ?

इन हवाओं की सरसराहट को ,
पेड़ों पर फुदकटी चिड़ियों की चहचहाहट को,
समुन्दर की लहरों के शोर को,
बारिश में नाचते सुंदर मोर को ,
खूबसूरत चांदनी रात को,
तारों की झिलमिलाती बारात को,
खिले हुए सुंदर रंगबिरंगे फूल को,
उड़ती हुई धूल को,
नदियों की कलकल को,
मौसम की हलचल को,
पर्वत की चोटियों को,
झींगुर की सीटियों को,
बचा सको तो बचा लो अब भी,
थोड़ा सा विश्वास 
थोड़ी सी उम्मीद 
थोड़े से सपने 
थोड़े से अपने 
क्योंकि अब भी बचाने को बहुत कुछ बचा है हमारे पास|

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