वन महोत्सव
वन महोत्सव के अवसर पर विशेष
जल, जंगल और ज़मीन: इन
तीन तत्वों के बिना प्रकृति अधूरी है। विश्व में सबसे समृद्ध देश वही हुए हैं, जहां
ये तीनों तत्व प्रचुर मात्रा में हों। हमारा देश जंगल, वन्य
जीवों के लिए प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण विश्व में बड़े ही विचित्र तथा आकर्षक वन्य जीव
पाए जाते हैं। हमारे देश में भी वन्य जीवों की विभिन्न और विचित्र प्रजातियां पाई
जाती हैं।
साथ ही यह जानना भी आवश्यक है कि सृष्टि-रचना
चक्र में पर्यावरण का क्या महत्व है। पहले पेड़ हुए या गतिशील प्राणी? फिर
सृष्टि-रचना की क्रिया में हर प्राणी, वनस्पति का एक
निर्धारित स्थान रहा है। इस सृष्टि-रचना में मनुष्य का आविर्भाव कब हुआ? प्रकृति
के इस चक्र में विभिन्न जीव-जंतुओं में क्या कोई समानता है? वैज्ञानिक
दृष्टि से उसको कैसे समझा जाए, जिससे हमें पता
चले कि आखिर किसी प्रजाति के लुप्त हो जाने से मानव समाज और पर्यावरण पर क्या
प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि आखिर हम भी एक प्रजाति ही
हैं।
मानव समाज और वन्य जीवों का पारस्परिक संबंध क्या
है? यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें, तो
पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेज़ी
से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती है, आदि
प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं इसलिए भारत के वन व वन्य जीवों के बारे में
थोड़ी जानकारी आवश्यक है, ताकि हम समझ
सकें कि वन्य जीवों का महत्व क्या है और वे पर्यावरण चक्र में किस प्रकार मनुष्य
का साथ देते हैं।
दिनोदिन गंभीर रूप से प्रभावित पर्यावरणीय संतुलन
की समस्या से निपटने के लिए आज आवश्यकता है, एक
ऐसे अभियान की, जिसमें हम सब स्वप्रेरणा से सक्रिय भागीदारी निभाएँ। इसमें हर कोई
नेतृत्व कर सकता है, क्योंकि जिस पर्यावरण के लिए यह
अभियान है उस पर सबका समान अधिकार है। यहां हम श्री सुंदरलाल बहुग़ुणा जी जैसे महान
पर्यावरणविद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी जीवट विरासत से प्रेरित होकर
छोटे-छोटे प्रयास कर सकते हैं । पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी
पाठकों को जागरूक करने की। अत: इस कड़ी के आगामी आलेखों में हमने पर्यावरण, वन्य
जीव-जंतुओं और मानव समाज का सीधा रिश्ता आम आदमी की समझ के मुताबिक समझाने का
प्रयास सरल व वैज्ञानिक दृष्टि से किया है। आज आवश्यकता है एक ऐसे अभियान की, जिसमें
हम सब स्वप्रेरणा से सक्रिय भागीदारी निभाएँ। इसमें हर कोई नेतृत्व करेगा, क्योंकि
जिस पर्यावरण के लिए यह अभियान है उस पर सबका समान अधिकार है।इसके लिए आपको कहीं
जाने या किसी रैली में भाग लेने की जरूरत नहीं, केवल
अपने आस-पड़ोस के पर्यावरण का अपने घर जैसा ख्याल रखें जैसे कि -
·
घर के आसपास पौधारोपण करें। इससे आप
गरमी, भूक्षरण, धूल इत्यादि से बचाव तो कर ही सकते
हैं, पक्षियों को बसेरा भी दे सकते हैं, फूल
वाले पौधों से आप अनेक कीट-पतंगों को आश्रय व भोजन दे सकते हैं।
·
शहरी पर्यावरण में रहने वाले
पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते
आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ।
·
घर के कंपाउंड और गमलों में पौधे
लगाएँ और उनकी देखभाल करें ।
·
घर के बच्चों को पर्यावरणीय मुद्दों
के प्रति संवेदनशील बनाएँ ।
·
स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें ।
·
विद्यालयों में विश्व पृथ्वी दिवस,
विश्व पर्यावरण दिवस,वन-महोत्सव आदि को मनाया जाए,
जिससे बच्चों में जागृति आए और उनके माध्यम से परिवारों तक पर्यावरण-संरक्षण का
संदेश पहुँचे ।
मीता गुप्ता
प्रवक्ता,
केवि,पूरे,बरेली
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