मानसिक स्वास्थ्य: क्यों है ज़रूरी ?
सदियों से ऐसा माना जाता रहा है कि स्वस्थ शरीर
में ही स्वस्थ मन का निवास है, परंतु आज के
परिप्रेक्ष्य में, जब सारा विश्व कोरोना वायरस से जूझ
रहा है, यह कथन उलट-सा गया है। अब स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर और संतुलित जीवन
की आधारशिला है। अब प्रश्न यह है कि स्वस्थ मन या मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ क्या
है?
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ एक ऐसी मानसिक स्थिति
से है, जो किसी भी मानसिक रोग या दुर्बलता से मुक्त हो। इस स्थिति में
व्यक्ति को अपनी मानसिक क्षमताओं का पूरा आभास होता है और वह जीवन में आने वाली
सभी कठिनाइयों और तनावों का प्रभावशाली ढंग से सामना करने की क्षमता रखता हो।
मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक बनाता है और विपरीत परिस्थिति में
भी संतुलित रखता है।
विश्व स्वास्थ्य
संगठन मानसिक स्वास्थ्य के अनुसार, यह सलामती की
एक स्थिति है, जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है’। वह जीवन के
सामान्य तनावों का सामना कर सकता है और समाज के प्रति अपना योगदान करने में सक्षम
है। मानसिक स्वास्थ्य हमारे प्रतिदिन के जीवन, पारिवारिक
और सामाजिक समझ और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यह जीवन की विभिन्न
घटनाओं में संतुलन स्थापित करने में सहायक होता है।
शोध बताते हैं कि हर
चौथा व्यक्ति किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार है,
लेकिन यह जानते हुए भी कि वह मानसिक समस्या से अकेले जूझ रहा है, वह
किसी डॉक्टर को दिखाने से डरता है। इसका बहुत बड़ा कारण हमारे समाज का मानसिक
समस्याओं के बारे में गलत धारणा रखना या पूर्वाग्रहग्रस्त होना है। हम छोटी-छोटी
शारीरिक समस्याओं जैसे: सर्दी, ज़ुकाम और बुखार
से लेकर बड़ी से बड़ी बीमारी – हृदयरोग, मधुमेह और कैंसर
तक के लिए हम तुरंत डॉक्टरी परामर्श लेते हैं,लेकिन
किसी मानसिक बीमारी की न हम चर्चा करना चाहते हैं न ही किसी समाधान पर ध्यान देते
हैं। यह स्थिति अत्यंत दुखद है, जो भविष्य में
विस्फोटक रूप ले सकती है। शारीरिक बीमारियों की तरह ही मानसिक समस्याएं भी कई
प्रकार की होती हैं, जिनका निदान संभव है । लेकिन सही समय
पर डॉक्टरी परामर्श न लेने से छोटी मानसिक समस्या बड़ी बन जाती है और कई बार तो
आत्महत्या जैसे घातक परिणाम तक भी ले जाती है।
मानसिक समस्या को
प्राय: ‘पागलपन’ से संबंधित समस्या मान लिया जाता है,
जबकि यथार्थ में ऐसा बिलकुल नहीं है। पागलपन मनोरोग का एक प्रतिशत से भी कम है।
अवसाद, उलझन और तनाव तेज़ी से बढ़ती मानसिक बीमारियां हैं,
जिन्हें हम नजरअंदाज करते हैं। अवसाद की समस्या में व्यक्ति को नींद न आना, भूख
न लगना, शरीर का वज़न अचानक कम या ज्यादा होना, मन
उदास रहना, किसी से भी मिलने का मन न करना, नकारात्मक
बातें सोचना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन यदि आप
सही समय पर मनोचिकित्सक से उचित परामर्श लेते हैं, तो
इनसे निजात पाना कठिन नहीं है।
मनोरोग या मानसिक समस्या को लेकर हम जितना अधिक जागरूक होंगे, इस
विषय पर जितना अधिक बात करेंगे या जानकारी साझा करेंगे और इसे शारीरिक समस्या की
तरह ही सामान्य समझेंगे, उतनी ही आसानी
से इस समस्या से लड़ा जा सकता है। इसके लिए ध्यान तथा
योग के द्वारा एकाग्रता में वृद्धि,अनुशासन और समय प्रबंधन, सात्विक चिंतन और बौद्धिक विकास, लक्ष्य स्थिरता, मानसिक शक्तियों में वृद्धि, आत्म-परीक्षण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-चिंतन और आत्म-शोधन तथा मन
में श्रेष्ठ विचारों की उत्पत्ति के लिए अच्छा साहित्य पढ़ना या संगीत सुनना, दोस्तों से मिलना, घर के सदस्यों से बातचीत करना, वीडियो कॉल करके उनसे बातें करना, छोटे-छोटे ट्रिप
लगाना, अपनी रुचियों का विकास करके जीवन कौशलों का विकास
करना, आदि कुछ सुझाव हो सकते हैं । परंतु गंभीर स्थिति में
थेरेपिस्ट के पास जाने से गुरेज़ नहीं करना चाहिए ।
ध्यान रखिए, मनोवैज्ञानिक
परामर्शदाता, नैदानिक मनोचिकित्सक और मनोचिकित्सक हमेशा मनोरोगी की सहायता के लिए
तत्पर हैं। ज़रूरत है, तो जागरूक होने की, समस्या
पर चर्चा करने की और सबसे ज़रूरी मानसिक रोगी को घृणा या हेय दृष्टि से देखने के
बजाय संवेदनशीलता दिखाने की और उसे आगे आने और अपनी समस्या खुलकर बताने के लिए
प्रोत्साहित करने की।इस मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार करना ही देश में मानसिक
स्वास्थ्य संकट को दूर करने की दिशा में पहला कदम होगा।
मीता गुप्ता
प्रवक्ता, केवि,पूरे,
बरेली
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