Monday, 17 July 2023

सामाजिक सद्भाव लाने में महिलाओं की भूमिका

 

सामाजिक सद्भाव लाने में महिलाओं की भूमिका



मैंने उसको

जब-जब देखा,

लोहा देखा,

लोहे जैसा--

तपते देखा,

गलते देखा,

ढलते देखा,

मैंने उसको

गोली जैसा

चलते देखा!

महिला एक बहुआयामी शब्द है क्योंकि यह प्यार, देखभाल, पोषण, दायित्व, शक्ति, अनंतता, मातृत्व आदि को दर्शाता है। एक महिला समाज में समाज का आईना होती है। जब इसे हाशिए पर रखा जाता है, तो समाज की अवनति होती है और यदि इसका पोषण किया जाता है, तो समाज का पोषण होता है; अगर इसे सशक्त किया जाता है, तो समाज सशक्त होता है। महिला समाज की धुरी के समान है, जिसके बिना कुछ भी नहीं होता। वह संस्कृति की पोषक है, वही समाज की निर्मात्री है। एक माँ अपनी संतान की पहली शिक्षक है; वह अपने बच्चों के साथ प्यार से पेश आने वाली पहली डॉक्टर है,वह अपने बच्चों के साथ खेल खेलने वाली पहली साथी है।…

या यूं कहें तो, महिलाएं राष्ट्र की निर्माता होती हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के अनुसार, मानव पूंजी में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है, जो सबसे बड़ा मानव संसाधन हैशोध से पता चला है कि बुजुर्ग महिलाएं, जो भारत में अकेले या अपने परिवार के साथ रहती हैं, न केवल अपने देश में बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी सामाजिक कार्यों में भाग लेती हैं।

एक बार नेपोलियन ने कहा था, "मुझे अच्छी माताएँ दो और मैं तुम्हें एक अच्छा राष्ट्र दूँगा।" महिलाएं परिवार की गुणवत्ता और सतत विकास की आधारशिला हैं, जो एक स्वस्थ समाज का निर्माण करती हैं। वे एक मुखिया, एक निर्देशक, एक पारिवारिक आय प्रबंधक और एक माँ के रूप में विभिन्न भूमिकाएँ निभाती हैं।

पत्नी के रूप में महिला पुरुष की सहायिका, पत्नी और साथी होती है। वह अपने व्यक्तिगत आनंद और इच्छाओं का त्याग करती है, एक नैतिक आदर्श स्थापित करती है, अपने पति के तनाव और दबाव को दूर करती है, घर में शांति और व्यवस्था बनाए रखती है।

भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धियों से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी  पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही है। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया। बॉक्सर एमसी मैरी कॉम एक जाना-पहचाना नाम है। हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है – अरुंधति भट्टाचार्य, अलका मित्तल, सोमा मंडल, कुछ ओर नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होनें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

यदि प्रबंधन की बात करें, तो परिवार की समृद्धि के लिए, एक सुव्यवस्थित अनुशासित परिवार महत्वपूर्ण है। एक प्रकार से महिला घर रूपी उपक्रम की सीईओ होती है। वह भोजन तैयार करने और परोसने, कपड़े संग्रह करने और उपचार करने, धुलाई, साज-सज्जा और हाउसकीपिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह एक प्रशासक के रूप में परिवार के भीतर सामाजिक उन्नति के लिए कई सामाजिक गतिविधियों का आयोजन करती हैं। वह एक निर्देशक की भांति युवा और वृद्ध परिवार के सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कई कार्यक्रम निर्धारित करती है।

एक माँ के रूप में परिवार में महिला बच्चे के जन्म और बच्चे के पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी निभाती है। उसके विकासात्मक समय के दौरान, बच्चे के साथ उसकी बातचीत उसके व्यवहार पैटर्न को विकसित करती है। वह बच्चे को सामाजिक विरासत को भी प्रसारित करती है।

सतत विकास और जीवन की गुणवत्ता के क्षेत्रों में महिलाओं का जवाब नहीं है। महिला काउंसलर समाज से किशोरों की समस्याओं को दूर करने के लिए परामर्श के माध्यम से एक बेहतर समाज का निर्माण कर रही हैं।कई महिलाएं जागरूकता कार्यक्रमों में भागीदारी कर लोगों और महिलाओं तथा बच्चों को उनके अधिकारों, बैंक ऋण, निम्न सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले लोगों के लिए विभिन्न टीकाकरण कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का गुरुतर कार्य कर रही हैं।

इसके अलावा, महिलाओं ने समाज के विकास को बनाए रखा है और देश के भविष्य को आकार दिया है। वर्तमान गतिशील सामाजिक परिदृश्य में महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्हें अब केवल शांति के अग्रदूत के रूप में नहीं देखा जा सकता है, बल्कि शक्ति के स्रोत और परिवर्तन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन हुए हैं और एकल परिवार उभरे हैं, जिनमें महिलाएं अपने बच्चों में सांस्कृतिक मूल्यों, सिद्धांतों और विश्वासों का भी विकास कर रही हैं।

आज महिलाएं नेतृत्व, अर्थशास्त्र, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। पुराने दिनों की शर्मीली महिला की जगह एक जीवंत, फैशन के प्रति जागरूक और बुद्धिमान युवा महिला ने ले ली है। महिलाएं इंजीनियरिंग, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष अन्वेषण, चिकित्सा और उद्योगों में अपना वर्चस्व  जमा कर रही हैं। आधुनिक शिक्षा और समकालीन आर्थिक जीवन एक महिला को संकीर्णता से मुक्त कर समाज को समृद्ध बनाने के लिए उद्यत कर दिया है।

एक महिला का लक्ष्य सदैव से अपने समुदाय को बेहतर बनाना रहा है। सतत विकास और जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने में महिलाओं का जवाब है। वे महिलाओं के प्रति हिंसा और क्रूरता, घरेलू और श्रम दासता, अंधविश्वास दहेज निषेध और अन्य सामाजिक अत्याचारों के खिलाफ खड़े होने में समाज की अगुआई कर रही हैं ।

वे समाज के समक्ष उदाहरण स्थापित कर समाज में सद्भाव को फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य कर हैं। जब महिलाएं अपने शिक्षा, कर्मचारी, उद्यमिता, सामाजिक कार्यों आदि में महान प्रदर्शन करती हैं, तो वे दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनती हैं। यह महिलाओं के पोषणशील रोल मॉडल को प्रमोट करता है और समाज में सद्भाव की भावना को बढ़ाता है।

महिलाओं की शिक्षा और जागरूकता समाज में सद्भाव को फैलाने का महत्वपूर्ण कारक है। शिक्षित महिलाएं स्वयं को सशक्त और स्वतंत्र महसूस करती हैं, जिससे वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं और अपनी मांगों को उठा सकती हैं। शिक्षा के माध्यम से महिलाएं समाज में अधिक जागरूकता पैदा करती हैं और अन्य महिलाओं को भी शिक्षा के महत्व के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। एक महिला का लक्ष्य अपने समुदाय को बेहतर बनाना होता है, क्योंकि शिक्षा महिलाओं को अवसर प्रदान करती है, साथ ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने और जीवन की परिस्थितियों को बदलने में सक्षम बनाती है।

महिलाएं सामाजिक संगठनों में सक्रिय होकर सद्भाव को फैला रही हैं। यह उन्हें अपनी मांगों को सामाजिक मंच और सोशल मीडिया पर उठाने का मौका देता है और समाज में उनकी आवाज को सुनने की योग्यता प्रदान करता है। सामाजिक संगठनों के माध्यम से महिलाएं न्याय, समानता, गरीबी निवारण, बाल विवाह, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के मुद्दों पर आवाज उठा रही हैं और समाज में परिवर्तन लाने में मदद कर रही हैं।

महिलाओं को स्वयंसहायता और आत्मनिर्भरता के माध्यम से समाज में सद्भाव को बढ़ाने का अवसर मिलता है। जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वयंसेवी होती हैं, तो वे अपने अधिकारों की रक्षा करती हैं और उच्च स्थान में उठने के लिए सक्षम होती हैं। यह महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाता है और समाज में सद्भाव को बढ़ावा देता है।

इन सभी पहलुओं के माध्यम से महिलाएं समाज में सद्भाव को फैलाती हैं। वे अपनी सक्रिय भूमिका के माध्यम से समाज में बदलाव लाती हैं और एक समर्पित, स्वतंत्र और समरस समाज की नींव रखती हैं।

अंत में यही कहना चाहूंगी कि-

सभी रस भावों का संस्कार है नारी

दया, ममता, करुणा का भंडार है नारी

काव्य रस का सार है नारी

जीवन का आधार है नारी

 

सरस्वती तो कभी लक्ष्मी

अन्नपूर्णा तो कभी तुलसी के रूप में

हर घर की अभिलाषा हो तुम

करुणा, धर्य, शौर्य की परिभाषा हो तुम

 

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई बनकर तुमने

युद्ध की सेना में वीर रस का संचार किया

भक्ति रस में डूबी मीराबाई ने

निश्चल प्रेम भक्ति का प्रचार किया

 

अंबे काली बनकर तुमने

रौद्र रूप में दुष्टों का संहार किया

यशोदा माता बनकर तुमने

वात्सल्य रस का श्रृंगार किया

 

तुम साधना तुम वंदना

नित हो रहा नारी महिमा का बखान

वेद पुराण भी करते हैं

तुम्हारे शक्ति, ज्ञान,साहस का गुणगान

 

नारी में ही समाई सृष्टि सारी

ना कहिए नारी को बेचारी

शत् शत् नमन तुमको

करते सब वंदना तुम्हारे

जय हो नारी - जय हो नारी

 

 

मीता गुप्ता

प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय पूर्वोत्तर रेलवे, बरेली

 

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