Saturday, 30 March 2024

ऐ उम्र..!

 

ऐ उम्र..!

खतरे के निशान से

ऊपर बह रहा है

तेरा पानी।

कुछ कहा मैंने,

पर शायद तूने सुना नहीं..

तू छीन सकती है बचपन मेरा,

पर बचपना नहीं..!!

वक़्त की बरसात है कि

थमने का नाम

नहीं ले रही।

घर चाहे कैसा भी हो

उसके एक कोने में

खुलकर हंसने की जगह रखी है मैंने

सूरज चाहे आसमान में हो

उसको घर बुलाने का रास्ता रखा है मैंने

कभी कभी छत पर चढ़कर

तारे गिन आती हूं

हाथ बढ़ा कर

चाँद को छूने की कोशिश कर आती हूं

भीगकर बारिश में

एक काग़ज़ की किश्ती चला आती हूं

कभी हो फुरसत मिली

तो कागज़ की एक पतंग उड़ा आती हूं

घर के सामने जो पेड़ है

उस पर बैठे पक्षियों की बातें सुन आती हूं

घर चाहे कैसा भी हो

घर के एक कोने में

खुलकर हँसने की जगह रखी है मैंने

जिधर से गुज़र गई

मीठी सी हलचल मचा दी है मैंने

खतरे के निशान से

ऊपर बह रहा है

तेरा पानी।

कुछ कहा मैंने,

पर शायद तूने सुना नहीं..

तू छीन सकती है बचपन मेरा,

पर बचपना नहीं..!!

-मीता गुप्ता

मेरे मन की अलमारी !


 मेरे मन की अलमारी !


 


उम्र का मौसम बदलने लगा है


तो मन की अलमारी लगाने बैठ गई,


सबसे ऊपर हैंगर में 


टंगे मिले कुछ सपने, 


जो  पुराने पड़ चुके थे,


सोचा या तो किसी को दे दिए जाएं


या ठीक-ठाक करके एक बार दोबारा 


ट्राई करके देखें जाएं


क्या पता इस उम्र में भी फिट हो जाएं,


लेकिन फिर एक डर भी तो है, 


कहीं अब आऊटडेटिड लगे तो,


लेकिन देखती हूं अल्टर और डाई करवा के !


 


एक रैक में कुछ धूल जमे रिश्ते 


तहाए पड़े हैं कागज़ों में लिपटे,


जब बनाए तब लगा था 


हमेशा चलेंगें , लेकिन जल्दी ही


बेरंग हो गए , कई उधड़ गए ,


कुछ बड़े हो गए हैं , 


कुछ आज भी छोटे लगते हैं !


 


एक दो रिश्ते तो कोई राह चलता दे गया था, 


मन नहीं था रखने का ,


लेकिन वाकई , वही खूब चल रहे हैं आज भी,


पहले से ज्यादा चमक ,विश्वास और अपनापन!


मालूम है ? 


जब ये नए थे ,


तब इतने चमकदार नहीं थे,


इनकी चमक वक्त के साथ बढ़ी है !


 


कुछेक महंगे वादे पड़े हैं लाकर में,


कुछ तो वक्त जरूरत पर बेच दिए,


कुछ आज भी पहन कर इठलाती हूं,


कुछ यादें पड़ी हैं 


सुनहरी  डिबिया में ,


माँ के आँचल की खुशबू, 


स्कूल की आधी छुट्टी में 


टिफिन से निकले वे आलू के परांठे


बहन की ठिटोली,


पहली तनख्वाह,


मेरी विदाई पर गिरे पिता के आँसू,


माँ का वह नसीहत,


सबकी खुशबू आज भी जस की तस !


 


भूल से कुछ दुश्मन, दोस्त वाली रैक में


और कुछ दोस्त, दुश्मन वाली में रैक रख दिए थे,


 सही से रखा उन्हें ,


वरना क्या पता ज़रूरत पड़ने पर


सही से पहचान न पाती और


उठाने में गलती कर देती!


 


खैर मन की अलमारी बुहारते में 


इतने रंग, 


इतने धागे,


इतने सेफ्टिपिन,


इतने पैबंद निकले 


कि लगता है जैसे 


मन की अलमारी 


इन्हीं सब के वज़न से भारी होकर


अस्त-व्यस्त सी पड़ी थी,


आज सब आँसुओं में प्रवाहित कर दिए !


 


अब जंच रही है ,


मेरे मन की अलमारी !




मीता गुप्ता

Wednesday, 20 March 2024

आभार

 

जिन्होंने मुझे
स्नेह दिया
उनका हृदयतल से
आभार,
जो बहे
मेरी भावनाओं में
और जिन्होंने
समय दिया
उनका भी आभार,
उम्र यूँ ही गुज़र जाएगी
बीता हुआ
यह एक पल
सदा याद आएगा ,
बीते हुए पलों को
जब दर्पण में
देखती हूँ
रंग बिरंगी सा
एक इंद्रधनुष उभर कर आता है,
कहीं लाल

कहीं हरा

कहीं बैंगनी

कहीं नीला

मेरी मुट्ठी में

समाता जाता है,
इसलिए तो कहती हूं आभार

आभार...आभार...आभार

Monday, 11 March 2024

मेरे अंदर एक भारत बसता है

 

मेरे अंदर एक भारत बसता है



 

मेरे अंदर एक भारत बसता है

ज़िंदगी से हारकर जब उदास होती हूं मैं,

तब यह प्यार देता है, दुलार देता है

अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है।

 

मेरे अंदर एक पर्वत है

जिसका गुरुत्व नभ को चूमता है

जिसकी नस-नस अपनत्व में झूमता है

अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है।

 

मेरे अंदर कुछ पवित्र नदियां हैं

जो धरती के कोरे पन्नों पर

लिखती हैं नित प्यार के नए गीत,

और कहती हैं....

जागो, जागो, जागो, मेरे मीत

मीत जो अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है।

 

मेरे अंदर मंदिर हैं, मसजिद हैं, गिरजा है

जहां केवल श्रद्धा के फूल चढ़ते हैं,

और सब प्यार से हिलते-मिलते हैं

मेरे अंदर एक सभ्यता है, एक संस्कृति है

जो जीने की राह बताती है

सदियों पुरानी होकर भी, अमर- नवीन कहलाती है

यही प्यार अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है।

 

स्कूल- कॉलेज- अस्पताल, कल- कारखाने, खेत

नहरें- बाँध- पुल हैं, जहां श्रम के फूल खिलते हैं

और एक सौ चालीस करोड़ लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं

मेरे अंदर कश्मीर ताज अजंता एलोरा का

विलक्षण रूप झलकता है

जो हर नई सांस के संग

एक नए सूरजमुखी-सा खिलता है

यही सूरजमुखी अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है।

 

ज़िंदगी से हारकर जब उदास होती हूं मैं,

तब यह प्यार देता है, दुलार देता है

अपनी बाँहों में कसता है

मेरे अंदर एक भारत बसता है

 

 

मीता गुप्ता

 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...