Saturday, 30 March 2024

मेरे मन की अलमारी !


 मेरे मन की अलमारी !


 


उम्र का मौसम बदलने लगा है


तो मन की अलमारी लगाने बैठ गई,


सबसे ऊपर हैंगर में 


टंगे मिले कुछ सपने, 


जो  पुराने पड़ चुके थे,


सोचा या तो किसी को दे दिए जाएं


या ठीक-ठाक करके एक बार दोबारा 


ट्राई करके देखें जाएं


क्या पता इस उम्र में भी फिट हो जाएं,


लेकिन फिर एक डर भी तो है, 


कहीं अब आऊटडेटिड लगे तो,


लेकिन देखती हूं अल्टर और डाई करवा के !


 


एक रैक में कुछ धूल जमे रिश्ते 


तहाए पड़े हैं कागज़ों में लिपटे,


जब बनाए तब लगा था 


हमेशा चलेंगें , लेकिन जल्दी ही


बेरंग हो गए , कई उधड़ गए ,


कुछ बड़े हो गए हैं , 


कुछ आज भी छोटे लगते हैं !


 


एक दो रिश्ते तो कोई राह चलता दे गया था, 


मन नहीं था रखने का ,


लेकिन वाकई , वही खूब चल रहे हैं आज भी,


पहले से ज्यादा चमक ,विश्वास और अपनापन!


मालूम है ? 


जब ये नए थे ,


तब इतने चमकदार नहीं थे,


इनकी चमक वक्त के साथ बढ़ी है !


 


कुछेक महंगे वादे पड़े हैं लाकर में,


कुछ तो वक्त जरूरत पर बेच दिए,


कुछ आज भी पहन कर इठलाती हूं,


कुछ यादें पड़ी हैं 


सुनहरी  डिबिया में ,


माँ के आँचल की खुशबू, 


स्कूल की आधी छुट्टी में 


टिफिन से निकले वे आलू के परांठे


बहन की ठिटोली,


पहली तनख्वाह,


मेरी विदाई पर गिरे पिता के आँसू,


माँ का वह नसीहत,


सबकी खुशबू आज भी जस की तस !


 


भूल से कुछ दुश्मन, दोस्त वाली रैक में


और कुछ दोस्त, दुश्मन वाली में रैक रख दिए थे,


 सही से रखा उन्हें ,


वरना क्या पता ज़रूरत पड़ने पर


सही से पहचान न पाती और


उठाने में गलती कर देती!


 


खैर मन की अलमारी बुहारते में 


इतने रंग, 


इतने धागे,


इतने सेफ्टिपिन,


इतने पैबंद निकले 


कि लगता है जैसे 


मन की अलमारी 


इन्हीं सब के वज़न से भारी होकर


अस्त-व्यस्त सी पड़ी थी,


आज सब आँसुओं में प्रवाहित कर दिए !


 


अब जंच रही है ,


मेरे मन की अलमारी !




मीता गुप्ता

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