मेरे अंदर एक भारत बसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है
ज़िंदगी से हारकर जब उदास होती हूं मैं,
तब यह प्यार देता है, दुलार देता है
अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है।
मेरे अंदर एक पर्वत है
जिसका गुरुत्व नभ को चूमता है
जिसकी नस-नस अपनत्व में झूमता है
अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है।
मेरे अंदर कुछ पवित्र नदियां हैं
जो धरती के कोरे पन्नों पर
लिखती हैं नित प्यार के नए गीत,
और कहती हैं....
जागो, जागो, जागो, ओ मेरे मीत ।
मीत जो अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है।
मेरे अंदर मंदिर हैं, मसजिद हैं, गिरजा है
जहां केवल श्रद्धा के फूल चढ़ते हैं,
और सब प्यार से हिलते-मिलते हैं
मेरे अंदर एक सभ्यता है, एक संस्कृति है
जो जीने की राह बताती है
सदियों पुरानी होकर भी, अमर- नवीन कहलाती है
यही प्यार अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है।
स्कूल- कॉलेज- अस्पताल, कल- कारखाने, खेत
नहरें- बाँध- पुल हैं, जहां श्रम के फूल खिलते हैं
और एक सौ चालीस करोड़ लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं
मेरे अंदर कश्मीर ताज अजंता एलोरा का
विलक्षण रूप झलकता है
जो हर नई सांस के संग
एक नए सूरजमुखी-सा खिलता है
यही सूरजमुखी अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है।
ज़िंदगी से हारकर जब उदास होती हूं मैं,
तब यह प्यार देता है, दुलार देता है
अपनी बाँहों में कसता है
मेरे अंदर एक भारत बसता है ॥
मीता गुप्ता
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