स्त्री के नाम एक पाती
स्त्री, तुम केवल तन हो।
तुम्हारे
तन में रूह भी होगी,लेकिन उसे
किनारे रख दो।
पुरुष
तुम्हारे तन को महसूस करने की आकांक्षा रखते हैं। इसलिए तुम्हारा तन चमकता रहे, दमकता रहे। तुम अपने केशों को फूल से सजाओ, जिससे कामुक सुगंध आती हो। तुम ऐसे आभूषण
पहनो, जिनके भार तले तुम दब जाओ। तुम अपने चेहरे को ऐसे रंगो, मानो इंद्रधनुष के सातों रंग इसमें समा गए हों। तुम वह सब कुछ करो, जो पुरुषों को भाता है।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
तुम
उपवन हो,
प्रकृति हो, समंदर की लहरें हो, नदी की कलकल धारा हो, तुम वह सब कुछ हो, जिसमें पुरुष विचरण करना पसंद
करता है। स्त्री, तुम्हारा
दायित्व यह है कि उस परमेश्वर पुरुष को खुश रखने के लिए अपनी तन में पुष्प, पंख, नग, सीप, हीरे, मोती और सोना जड़ लो। तुम पौधा बन जाओ। तुम छाया दो और फल
दो क्योंकि पुरुष यही चाहता है।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
स्त्री, तुम्हें न जाने क्या-क्या उपमा देकर हिंदी फिल्मों की कमाई
सौ करोड़ से ज्यादा हो गई है। किसी ‘राउडी राठौर’ के लिए तुम ‘नया माल’ हो। जो
अपने सलमान भाई पर्दे पर किस नहीं करते हैं, उनके लिए तुम ‘तंदूरी मुर्गी’ हो। ‘एनिमल’ फ़िल्म तो देखी ही होगी, उसमें तुम क्या-क्या नहीं
हो। कल मिलकर आज भूल गई, तो दगाबाज़ हो।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
उस
पुरुष के दिमाग में जो कुछ भी आएगा, तुम्हें कहेगा और तुम उसी में खुश रहोगी क्योंकि स्त्री, तुम केवल तन हो। तुम ऐसे ही पुरुषों को खुश रखने में ही खुश रहोगी, गर्व करोगी। सच में स्त्री,
तुम केवल तन हो। सिनेमा तुम्हें बेचना जानता है, कला के और अन्य माध्यम भी तुम्हें बड़ी चालाकी से बेचना
जानते हैं। कोई साहिर लुधियानवी आहत होकर रूह से कह बैठता है, ‘औरतों ने पुरुषों को जन्म दिया और पुरुषों ने उसे बाज़ार दिया।‘ जब सिनेमाई पर्दे पर तुम इठलाती और इतराती
हो, तो पुरुषों की हिंसक निगाहें तुम्हारी कीमत पर विचार
करती हैं। तुम्हारी खुशी बड़ी क्षणिक होती है कि तुम कलाकार हो। जब कला बाज़ार में
खड़ी है, उस बाज़ार में
तुम्हारी कलाकारी नहीं, कलाबाज़ी
देखी जाती है। ऐसे में भी कोई फिल्मकार महेश भट्ट ‘अर्थ’
‘सारांश’ और ‘डैडी’ बनाकर उस बाज़ार के अनुशासन को इतना पारंगत बना जाता है
कि वह एक नए ट्रेंड का जनक बन जाता है।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
स्त्री, तुमसे कहा जाता है कि कोई पत्रकार पूछे कि
इस फिल्म में आप कितना दिखाएंगी, तो आप कहेंगी कि जितनी
स्क्रिप्ट की डिमांड होगी। एक बेचारे प्रेमचंद थे, जो आने
वाले वक्त को नहीं पहचान पाए। वह यह कहते-कहते चले गए कि साहित्य महफ़िल की तवायफ़
नहीं है कि डिमांड पर काम करे। लेकिन स्त्री तुमसे कलाकारी नहीं, कलाबाज़ी की डिमांड की जाएगी, कला के नाम पर, कला के लिए और कला के द्वारा कि आपको इस फिल्म में इतना
दिखाना है। खुद को ‘माल’ से लेकर ‘तंदूरी मुर्गी’ तक बताना है। ‘मुर्गी’ किसी की
मां,
बहन नहीं होती है। उसे हर कोई उसी दृष्टिकोण से देखता है। स्त्री
तुमसे कहा जाएगा कि ट्रेंड को बदल डालो। एक 12 साल का किशोर भी तुम्हें अपनी दीवार
पर पोस्टर में लगाकर ‘तंदूरी मुर्गी’ की तरह ललचाई नजरों से देखता रहेगा।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
इस
नियति की नियत को स्थापित करने के लिए कई तर्क दिए जाएंगे। कोई कहेगा कि दर्शकों
को जो पसंद है, वही वाजिब है। एक
बच्चा जब बड़ा होता है, तो उसकी पसंद को कौन निर्धारित करता
है। उसे कौन बताएगा कि क्या अच्छा है, क्या बुरा। उसे समझाने में वक्त ही कहां दिया जाता है कि
मनोरंजन क्या होता है? उसे कौन
समझाए कि किसी प्रियंका चोपड़ा में तन के अलावा भी कुछ है, बहुत कुछ है।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
वर्तमान
समय में पूरी पीढ़ी वैसी तैयार की जा रही है, जिसमें विवेक के आधार पर चीज़ों का खारिज करने का माद्दा नहीं है। यह
पीढ़ी नागरिक नहीं, उपभोक्ता बना गई है। बाज़ार उपभोक्ताओं से
चलता है, न कि नागरिकों से। इस बाज़ार में स्त्रियों को हर
तरीके से बेचा जा रहा है। 1908 में पेरिस में नारियों को अपने वजूद का अहसास कराने
वाली विश्वविख्यात लेखिका सिमोन द बोउवार का जन्म हुआ था। 1949 में जब इनकी किताब
‘द सेकेंड सेक्स’ आई तो पूरी दुनिया में खलबली मच गई थी। आज भी यह किताब उतनी ही
महत्वपूर्ण है। बीसवीं सदी में सिमोन ने पितृसत्तात्मक समाज को कायदे से बेनकाब
किया था। उन्होंने बताया कि किस तरह पुरुषों ने स्त्रियों की पोशाक से लेकर
रहन-सहन तक आपने भोगने के हिसाब से निर्धारित किया। सिमोन कहती हैं, ‘स्त्रियों की पोशाक और सज्जा के उपकरण भी इस तरह बनाए जाते
हैं,
जिससे वे विशेष काम न कर सकें। चीन की स्त्रियों के प्रारंभ
से ही पांव बंधे रहते हैं, जिससे
उन्हें चलने में कठिनाई होती है। हॉलिवुड की अभिनेत्रियों के नाखूनों पर इतनी गहरी
पॉलिश रहती है कि वे हाथ से काम करना पसंद नहीं करतीं। उन्हें ‘भय’ रहता है पॉलिश
उतर जाने का। ऊंची एड़ी के जूते पहनने और कमर एवं उसके आस-पास के हिस्से को आवरणों
से छिपाए रखने के कारण वे अंग विकसित नहीं हो पाते। उनमें घुमाव और वक्रता नहीं
आती। वे निष्क्रिय पड़ जाते हैं। पुरुष ऐसी ही स्त्री को अपनी संपत्ति बनाना चाहते
हैं।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
सिमोन
के मुताबिक स्त्री पुरुषों के लिए एक खेल है। वह इस तथ्य को नीत्शे के उस कथन से
साबित करती हैं। नीत्शे ने कहा है कि योद्धा हमेशा खेल और संकट को पसंद करता है, इसलिए वह स्त्री को पसंद करता है। स्त्री सबसे खतरनाक खेल
है। जिस पुरुष को खेल और संकट प्रिय है, उसे वह स्त्री-योद्धा पसंद आएगी, जिसे जीतने की उसे
आशा रहती है। वह हृदय से यह चाहता है कि उसका संघर्ष उसके लिए तो खिलवाड़ रहे, पर स्त्री के लिए भाग्य परीक्षा रहे। पुरुष चाहे उद्धारक के
रूप में हो, या विजेता के, वह अपनी सच्ची विजय तभी समझता है, जब स्त्री उसे अपना सौभाग्य मानकर स्वीकार करे। सिमोन की
किताब ‘द सेकेंड सेक्स’ उस हर स्त्री को और पुरुष को पढ़ने की ज़रूरत है, जो उपभोग को ही आधुनिकता का पर्याय मान
बैठे हैं। खास कर उन पुरुषों को ज़्यादा ज़रूरी है, जिसकी
नैतिक सच्चरित्रता इस किताब की हर लाइन पढ़ते हुए उघड़ती जाती है।
स्त्री, तुम केवल तन हो।
जयश्री
राय कृत ‘दर्दज़ा’ की महीन
संवेदनात्मक बुनावट को समझा कभी, जो धार्मिक आडंबरों और
कर्मकांडों की आड़ में समूर्ण स्त्री समाज पर आरोपित पितृसत्तात्मक आचार संहिताओं
का दर्पण है। उपन्यास में माहरा कहती है -“मेरे औरत होने ने मुझे खत्म कर दिया है, जैसे मैं
खुद को ढोती हूँ और प्रतिपल जीने की कोशिश में मरती हूँ। जाने क्यों इस दुनिया के
बाशिंदों ने जीवन को मृत्यु का पर्याय बनाकर रख दिया है| मौत
से पहले भी मौत! एक बार नहीं, कई बार.....बार-बार!
इसीलिए
कहती हूं कि इस पुरुषप्रधान पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री, तुम केवल तन हो।
No comments:
Post a Comment