नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाल-दिवस के अवसर पर विशेष
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए।
दोस्तों, किसी ने ठीक ही कहा है कि
रोते हुए किसी बच्चे को हंसाने में और ख़ुदा की इबादत में कोई फ़र्क नहीं है।
बच्चे इतने निष्पाप और मासूम होते हैं कि भगवान स्वयम् ही उनमें निवास करते हैं।
बच्चों की इसी मासूमियत और भोलेपन में वह जादू होता है जो कठोर से कठोर इंसान का
भी दिल पिघला दे। आज हम बच्चों, बचपन और उनकी नानी की चर्चा करने जा रहे हैं| नानी
पर बहुत से मुहावरे और कहावतें कही जाती हैं। नानी याद आना भी एक मुहावरा है। हम
नानी के साथ नहीं रहते हैं इसलिए नानी की याद आती रहती है। सिर्फ़ कहना हीं काफ़ी है
कि तुझे नानी याद आ जाएगी। नानी को हम दिन में कई बार मारने की भी पेशकश करते हैं,
जैसे- अगर तुम्हें कोई काम करने को कहा जाए, तो तुम्हारी नानी मरने लगती है। इसमें
नानी के मारने की बात कहां से आ गई? काम
करने वाला काम नहीं करता है, तो हम नानी को क्यों मारने लगते हैं? यह बात हम
नानी के ठीक पीठ पीछे क्यों करतें हैं? उसके सामने क्यों नहीं?
ये बातें ‘नानी के आगे ननिहाल की बातें’ जैसी हैं। नानी के
बारे में हम जानते ही कितना हैं? हम तो साल में कुछ दिनों की
छुट्टी बिताने के लिए नानी के गाँव जाते हैं। मेरा ख्याल है कि हम नानी से ज़्यादा दादी
को जानते हैं, फिर यह लोकोक्ति इस तरह से होनी चाहिए ‘दादी के आगे ददिहाल की बातें’।
एक और लोकोक्ति है –‘नानी कुंवारी मर गई और नवासे का नौ-नौ ब्याह’। यह लोकोक्ति
बिल्कुल गलत है| जब नानी ही कुंवारी मर गई, तो नवासा कहाँ से आया? यह लोकोक्ति बिन-सोचे, बिन-समझे गढ़ी गई है। इस पर मेरा पुरज़ोर विरोध दर्ज
किया जाय। यही नहीं नवासे से पोते का दर्जा सदैव ऊपर रखा गया है। पोते को ज्यादा वफ़ादार
साबित करने के लिए कहानी भी गढ़ ली गयी है। कहते हैं कि नानी अपने नवासे को गोद
में और अपने पोते की अंगुली पकड़ कर ले जा रही थी। नवासे को गोद में इसलिए ले रखा
था कि वह कभी कभार ही नानी से मिलने आ पाता था। उसे प्यार की ज़्यादा ज़रुरत थी ।
तभी नवासे ने पास से गुजरते हुए कुत्ते से कहा था –कुत्ते! मेरी नानी को काट ले।
तब पोता चुप नहीं रह पाया । उसने तुरंत कहा था-खबरदार, तुमने मेरी दादी के लिए दुबारा
ऐसी बात कही तो तुम्हारी खैर नहीं होगी। मतलब कि जो गोद में था वह नानी से दुश्मनी
निभा रहा था और जो ज़मीन पर था, वह अपनी दादी का शुभचिंतक था । ऐसी कहानी गढ़-गढ़ कर
दादी का दर्ज़ा नानी से ऊपर किया गया है। इस कहानी की तस्दीक करने वाला मुझे आज तक
कोई नहीं मिला है। इसलिए मैं इसे सही नहीं मानती। नानी को चिढ़ाने में फिल्म वाले
भी पीछे नहीं हैं। 1960 में एक फिल्म आई थी-मासूम। इस फिल्म
में बाल कलाकार रानू मुखर्जी ने एक गीत गाया था। इस गीत में नानी की मोरनी को मोर
लेकर चले जाते हैं। तो आइए, सुनते हैं इस कालजयी गीत को,
यह गीत किसी को पसंद ना आए, और गीत को सुनते
हुए चेहरे पर मुस्कुराहट ना खिले, यह असंभव है।
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
नानी तेरी मोरनी को…
खा के-पी के मोटे हो के चोर बैठे रेल में
चोरों वाला डब्बा कट के पहुँचा सीधा जेल में
नानी तेरी मोरनी को…
उन चोरों की खूब ख़बर ली मोटे थानेदार ने
मोरों को भी खूब नचाया जंगल की सरकार ने
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए…
दरअसल इस गीत का भाव अंत तक आते-आते
बदल जाता है-
अच्छी नानी, प्यारी
नानी, रूसा-रूसी छोड़ दे,
जल्दी से इक पैसा देड़े
, तू कंजूसी छोड़ दे !
अच्छा,तो सारी
कवायद, सारा चिढ़ाना, नानी की मोरनी का चोरों द्वारा ले जाने सारा जिक्र,इक पैसे के
लिए था.. आर, कहा तो होता, नानी वैसे ही एक पैसा नहीं, अपना सारा खजाना लूटा देती
! वास्तव मे,हम अपने माता-पिता और अपनी नानी की आंखों के तारे होते हैं। हमने अपनी
मां को अपनी मां यानी हमारी नानी से कहते सुना है, बल्कि शिकायत करते देखा है कि
“आपने हमें उतना प्यार नहीं किया, जितना आप हमारे बच्चों से करते हैं! और हम जानते
हैं कि वे सही हैं!! जी हाँ वे हैं!!!हो भी क्यों न... आखिर वे हमारी मां की मां जो
हैं | हमारे नानी एक पुस्तकालय हैं, हमारे निजी गेम सेंटर हैं, सर्वश्रेष्ठ रसोइया हैं, सर्वश्रेष्ठ समर्थन देने वाली
स्त्री हैं, अच्छी शिक्षिका हैं, हमारी प्यार से भरी दुनिया
हैं, जब कोई नहीं सुनता,तो वे हमारी बेकार की बातें भी सुनने को तैयार हैं, रात को लोरी सुनाने से लेकर हमारे नाज़-नखरे तक उठाने के लिए हमारी नानी
सदैव तैयार हैं | हमारी नानी वे हैं, जिन्होंने हमारी मां को पाल-पोस कर बड़ा किया है, जिनके संस्कार
आज हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं |उनके चेहरे पर आई झुर्रियां इस सबूत हैं कि वे
हमारे घरों में सबसे अधिक अनुभवी हैं इ सलिए हम बच्चों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण
है कि हम उनके साथ जुड़े, सीखें, जो वे
हमें सिखाती हैं, उनके अनुभव से सीखें और फिर अपने जीवन का
निर्माण करें।
मैं यह बहुत आत्मविश्वास से
कह सकती हूं कि नानी के घर जाने का विचार हम सभी के लिए इस उम्र में भी बहुत सारी खुशियां
लेकर आता है। मज़ेदार दिन, खुशी,
आनंद, बिना शर्त प्यार मिलना और सबसे ज़्यादा
प्यार वाले हाथों से अच्छी तरह से पकाया विशेष और स्वादिष्ट भोजन खाना। यहां तक कि नानी द्वारा मां को कहा
उनका सबसे पसंदीदा कथन, “क्या तुम
जानती हो कि तुम अपने बचपन में कितनी शरारती थीं? या हां.हां.. पढ़ लेगी उसे थोड़ी
देर के लिए खेलने दो” इन सभी प्यारे क्षणों को हम आनंद ले सकेंगे क्योंकि हमारे
पास हमारी नानी जो हैं। तो अगली बार जब हम अपने कार्यक्रमों में, हमारे दोस्तों में, फोन, आई-पैड
और पार्टियों में व्यस्त हों, तो अपनी नानी के लिए कुछ समय न भूलें । उनकी ही वजह
से हमें इतना प्यारा बचपन मिला है। उनके कारण ही हमारे पास अच्छे नैतिक मूल्य हैं|
उन्होंने हमें बिना शर्त प्यार करना सिखाया है, धैर्य रखना
सिखाया है, उठना और उस समय प्रयास करना सिखाया, जब सब कुछ
असंभव लग रहा था।
हमारे नानी को प्यार से ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए और
थोड़ा-सा हमारा समय, जिसमें हम उनके साथ अपनी उपलब्धियों को साझा कर सके, उन्हें व्हाट्सएप पर भजन चलाना या
अपने दोस्त को भेजना सिखा सकें या यूट्यूब पर मूवी देखना सिखा सकें। वे हमारी
पीढ़ी के साथ चलने की कोशिश कर रही हैं।
तो इन सबसे प्यारे, सबसे बुद्धिमान, थोड़े
भुलक्कड़, आराध्य स्नेह से भरे हुए लोगों के सामने मैं मानती
हूँ और अपनी नानी से कहती हूं कि “आप मेरी सबसे बहुमूल्य संपत्ति हैं और आशा करती
हूँ कि आपका स्नेह-भरा आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहेगा और मेरा जीवन उसी तरह धन्य रहेगा,
जैसे आज है ”।
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