Monday, 21 November 2022

कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं

 कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं


यह बेचैन सा चेहरा

यह सूनी सी मुस्कान

यह डरा सा लहज़ा

ये आह के निशान 

ये पथराई आंखें कब से रोई नहीं 

गोया कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं


वे अनसुलझे सवाल

वे कराहते जवाब

वह अपनों का बवाल

वह परायों का अज़ाब

वह पेशानी की सिमटी सिलवटें खोयी नहीं 

गोया कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं


ये दर - ओ - घर के मसायल 

यह नफ़रत का कोहरा 

यह जिस्म-ओ-जिगर घायल 

यह जेहाद का मोहरा 

ये फ़रज़न्दों में अपना उसका कोई नहीं

गोया कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं 


वह मन्दिर-ओ-दरगाह पर शिरकत 

वह सिसकती दुआ का काफ़िला 

वह दिल ओ दिमाग की मशक्कत 

वह न कुबूल होने का सिलसिला

वे दीवारें जो सरहदों का बोझ ढोई नहीं

गोया कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं 


ये जिस्म पर पड़े खून के कतरे

ये सांसों पर पड़े ज़ख्मों के दाग 

ये फटे से ज़हन के चिथड़े 

ये बदले की जलन और रंजिश की आग 

यह खुला हुआ सीना- किसी ने उसकी आबरू बचायी नहीं 

गोया कुछ दिनों से माँ मेरी सोयी नहीं 

वह जन्नत की चाह में अपनों के ही लहू से खेल रहे हैं होली 

दोज़ख की आग में जलते, लूट रहे है अपनी बहनों की डोली 

रूह काँपती है उसकी दहशत-ओ-वहशत से 

ज़ार ज़ार बहते हैं अश्क उसके हर शहादत पे 

मेरी प्यारी माँ चीख-चीख कर हार गई है 

रो-रो कर अब उसकी आँखें भी पथरा गई हैं 

चलो मिटाएँ उसकी परेशां पेशानी के कुछ बल 

चलो दे दें उसे भी राहत-ओ-सुकून के कुछ पल 

जो अब भी ग़म दिया तो ना खोयेगी वह 

जो अब न सुकून दिया तो न रोएगी वह 

मेरी माँ को बस चैन-ओ-अमन चाहिए 

जो अब भी न दे सके तो ना सोयेगी वह 

उसे बस चैन और अमन चाहिए - 

जो न दे सके तो कभी ना सोयेगी वह.........

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