विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) की शुभकामनाएं
विश्व
हिंदी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार
के लिए जागरूकता पैदा करना तथा हिंदी को
अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। आइए, देखेँ, हिंदी का
अंतर्राष्ट्रीय रूप-स्वरूप और सामर्थ्य कैसा है? हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय सामर्थ्य विषय पर चर्चा करने से
पूर्व आइए, हिंदी भाषा का इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं
।हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हज़ार वर्ष पुराना माना गया है। हिंदी भाषा व साहित्य
के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हिंदी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ
को 'पुरानी हिंदी' नाम दिया।
अपभ्रंश
की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा
सकता है। हिंदी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। 1000
ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही
भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश
का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ। सन 1949 से हिंदी
भारतीय संघ की राजभाषा है और अब यह विश्व की भाषा बनने की देहरी पर खड़ी है ।
हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ -
इक्कीसवीं सदी बीसवीं शताब्दी से भी ज्यादा तीव्र परिवर्तनों
वाली तथा चमत्कारिक उपलब्धियों वाली शताब्दी सिद्ध हो रही है। विज्ञान एवं तकनीक
के सहारे पूरी दुनिया एक अंतर्राष्ट्रीय गाँव में तब्दील हो रही है और स्थलीय व
भौगोलिक दूरियां अपनी अर्थवत्ता खो रही हैं। वर्तमान परिदृश्य में भारत विश्व की
सबसे तीव्र गति से उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से हैं तथा विश्व स्तर पर इनकी
स्वीकार्यता और महत्ता स्वत: बढ रही है। हमारे पास अकूत प्राकृतिक संपदा तथा युवतर
मानव संसाधन है जिसके कारण हम भावी अंतर्राष्ट्रीय संरचना में उत्पादन के बड़े
स्रोत बन कर निकट भविष्य की विश्व शक्ति बन सकते हैं । ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय
छवि हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। यह सच है कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में
भारत की बढती उपस्थिति हिंदी का भी उन्नयन कर रही है। आज हिंदी राजभाषा की गंगा से
विश्वभाषा का गंगासागर बनने की प्रक्रिया में है।
विशेषताएँ –
आखिर,
वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो किसी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ
प्रदान करती हैं। ऐसा करके हम हिंदी के विश्व संदर्भ का वस्तुपरक विश्लेषण कर सकते
हैं। जब हम हिंदी को विश्व भाषा में रूपांतरित होते हुए देख रहे हैं और यथावसर उसे
विश्वभाषा की संज्ञा प्रदान कर रहे हैं, तब यह ज़रूरी हो जाता
है कि हम सर्वप्रथम विश्वभाषा के स्वरूप विश्लेषण कर लें। संक्षेप में विश्वभाषा
के लक्षण निर्मित किए जा सकते हैं:-
• उस भाषा को बोलने-जानने तथा चाहने वाले
भारी संख्या में हों और वे विश्व के अनेक देशों में फैले हों।
• उस भाषा में साहित्य-सृजन की प्रदीर्घ
परंपरा हो और प्राय: सभी विधाएँ वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हों। उस भाषा में सृजित
कम-से-कम एक विधा का साहित्य विश्वस्तरीय हो।
• उसकी शब्द-संपदा विपुल एवं विराट हो
तथा वह विश्व की अन्यान्य बड़ी भाषाओं से विचार-विनिमय करते हुए एक -दूसरे को
प्रेरित-प्रभावित करने में सक्षम हो।
• उसकी शाब्दी एवं आर्थी संरचना तथा लिपि
सरल, सुबोध एवं वैज्ञानिक हो। उसका पठन-पाठन और लेखन सहज-संभाव्य हो। उसमें
निरंतर परिष्कार और परिवर्तन की गुंजाइश हो।
• उसमें ज्ञान-विज्ञान के समस्त
अनुशासनों में वाङमय सृजित एवं प्रकाशित हों तथा नए विषयों पर सामग्री तैयार करने
की क्षमता हो।
• वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी
उपलब्धियों के साथ अपने-आपको समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो।
• वह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक
संरचनाओं, सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक
हो।
• वह जनसंचार माध्यमों में बड़े पैमाने पर
देश-विदेश में प्रयुक्त हो रही हो।
• उसका साहित्य अनुवाद के माध्यम से
विश्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में पहुँच रहा हो।
• उसमें मानवीय और यांत्रिक अनुवाद की
आधारभूत तथा विकसित सुविधा हो, जिससे वह बहुभाषिक कम्प्यूटर की दुनिया में
अपने समग्र सूचना स्रोत तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) के साथ उपलब्ध हो। साथ
ही, वह इतनी समर्थ हो कि वर्तमान प्रौद्योगिकी उपलब्धियों
मसलन ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट तथा एस.एम.एस. एवं वेब जगत में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी सक्रिय
उपस्थिति का अहसास करवा सके ।
• उसमें उच्चकोटि की पारिभाषिक शब्दावली
हो तथा वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त करते हुए
मनुष्य की बदलती ज़रूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में समर्थ हो।
• वह विश्व चेतना की संवाहिका हो। वह
स्थानीय आग्रहों से मुक्त विश्व दृष्टि सम्पन्न कृतिकारों की भाषा हो, जो
विश्वस्तरीय समस्याओं की समझ और उसके निराकरण का मार्ग जानते हों।
जब हम उपर्युक्त प्रतिमानों पर हिंदी का परीक्षण करते हैं तो
पाते हैं कि वह न्यूनाधिक मात्रा में प्राय: सभी निष्कर्षों पर खरी उतरती है। आज
वह विश्व के सभी महाद्वीपों तथा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों- जिनकी संख्या लगभग एक सौ
चालीस है- में किसी न किसी रूप में प्रयुक्त होती है। वह विश्व के विराट फ़लक पर
नवल चित्र के समान प्रकट हो रही है। आज संख्या के आधार पर चीनी भाषा के बाद विश्व
की दूसरी सबसे बडी भाषा बन गई है।
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता –
जहाँ तक देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का सवाल है तो वह
सर्वमान्य है। देवनागरी में लिखी जाने वाली भाषाएँ उच्चारण पर आधारित हैं। हिंदी
भाषा का अन्यतम वैशिष्ट्य यह है कि उसमें संस्कृत के उपसर्ग तथा प्रत्ययों के आधार
पर शब्द बनाने की अभूतपूर्व क्षमता है। हिंदी और देवनागरी दोनों ही पिछले कुछ
दशकों में परिमार्जन व मानकीकरण की प्रक्रिया से गुजरी है, जिससे
उनकी संरचनात्मक जटिलता कम हुई है। हम जानते हैं कि विश्व मानव की बदलती
चिंतनात्मकता तथा नवीन जीवन स्थितियों को व्यंजित करने की भरपूर क्षमता हिंदी भाषा
में है ।
हिंदी को माध्यम के रूप में स्वीकार्यता–
विगत कुछ वर्षों से विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित हिंदी
पुस्तकें की रचना में सार्थक प्रयास हो रहे हैं। अभी हाल ही में महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एम.बी.ए. का
पाठ्यक्रम आरंभ किया गया। इसी तरह "इकोनामिक टाइम्स' तथा
"बिजनेस स्टैंडर्ड' जैसे अखबार हिंदी में प्रकाशित होकर
उसमें निहित संभावनाओं का उद्घोष कर रहे हैं। पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में
आया कि "स्टार न्यूज' जैसे चैनल जो अंग्रेजी में आरंभ
हुए थे वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णत: हिंदी चैनल में रूपांतरित हो गए।
साथ ही, "ई.एस.पी.एन' तथा
"स्टार स्पोर्ट्स' जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री
देने लगे हैं। हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ देने में उपग्रह-चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा
यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। हाल ही में ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर भी हिंदी
अपना वर्चस्व बढ़ा रही है । नेटफ़्लिक्स, लॉयंसगेट जैसे विदेशी
प्लेटफ़ॉर्म भी हिंदी के महत्व को समझ रहे हैं और हिंदी जनसंचार-माध्यमों की सबसे
प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है।
आज विश्व में सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले समाचार-पत्रों में
आधे से अधिक हिंदी के हैं। इसका आशय यही है कि पढ़ा-लिखा वर्ग भी हिंदी के महत्त्व
को समझ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण
पूर्व एशिया,
मॉरीशस,चीन,जापान,कोरिया, मध्य एशिया, खाड़ी
देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक में हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के ज़रिए प्रसारित
हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं। हिंदी अब नई
प्रौद्योगिकी के रथ पर आरूढ़ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट,
एस.एम.एस. एवं वेब जगत में बड़ी सहजता से पाया जा सकता है। इंटरनेट
जैसे अंतर्राष्ट्रीय माध्यम के कारण हिंदी के अखबार एवं पत्रिकाएँ दूसरे देशों में
भी विविध साइट्स पर उपलब्ध हैं।
माइक्रोसाफ्ट, गूगल, सन,
याहू, आईबीएम तथा ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय
कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाज़ार और भारी मुनाफ़े को देखते हुए हिंदी के प्रयोग को
बढ़ावा दे रही हैं। संक्षेप में, यह स्थापित सत्य है कि हिंदी
बहुत ही तीव्र गति से विश्वमन के सुख-दु:ख, आशा-आकांक्षा की
संवाहक बनने की दिशा में अग्रसर है। आज विश्व के दर्जनों देशों में हिंदी की
पत्रिकाएँ निकल रही हैं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, आस्ट्रिया जैसे
विकसित देशों में हिंदी के कृतिकार अपनी सृजनात्मकता द्वारा उदारतापूर्वक विश्व मन
का संस्पर्श कर रहे हैं। हिंदी के शब्दकोश तथा विश्वकोश निर्मित करने में भी
विदेशी विद्वान सहायता कर रहे हैं।
जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, सामाजिक,
सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय के क्षेत्र में हिंदी के अनुप्रयोग का
सवाल है तो यह देखने में आया है कि हमारे देश के नेताओं ने समय-समय पर
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर उसकी उपयोगिता का उद्घोष किया है। यदि
श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा श्री पी.वी.नरसिंहराव द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में
हिंदी में दिया गया वक्तव्य स्मरणीय है, तो श्रीमती इंदिरा
गांधी द्वारा राष्ट्र मंडल देशों की बैठक तथा श्री चंद्रशेखर द्वारा दक्षेस शिखर
सम्मेलन के अवसर पर हिंदी में दिए गए भाषण भी उल्लेखनीय हैं। यह भी सर्वविदित है
कि यूनेस्को के बहुत सारे कार्य हिंदी में संपन्न होते हैं। इसके अलावा अब तक
विश्व हिंदी सम्मेलन’ मॉरीशस, त्रिनिदाद, लंदन, सुरीनाम तथा न्यूयार्क जैसे स्थलों पर सम्पन्न
हो चुके हैं । हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और व्याप्ति प्रदान करने में भारतीय
सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा विदेशों में स्थापित भारतीय विद्यापीठों की
केंद्रीय भूमिका रही है जो विश्व के अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों में फैली हुई है।
इन विश्वविद्यालयों में शोध स्तर पर हिंदी अध्ययन अध्यापन की सुविधा है जिसका
सर्वाधिक लाभ विदेशी अध्येताओं को मिल रहा है।
हिंदी विश्व के प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण देशों के विश्व
विद्यालयों में अध्ययन अध्यापन में भागीदार है। अकेले अमेरिका में ही लगभग एक सौ
पचास से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है। हिंदी सिनेमा
अपने संवादों एवं गीतों के कारण विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुए हैं।
हिंदी
की मूल प्रकृति लोकतांत्रिक तथा रागात्मक संबंध निर्मित करने की रही है। वह विश्व
के सबसे बड़े लोकतंत्र की ही राजभाषा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश,
फिजी, मॉरीशस, गुयाना,
त्रिनिदाद तथा सुरीनाम जैसे देशों की संपर्क भाषा भी है। हिंदी
भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच खाड़ी देशों, मध्य एशियाई
देशों, रूस, समूचे यूरोप, कनाडा, अमेरिका तथा मैक्सिको जैसे प्रभावशाली देशों
में रागात्मक जुड़ाव तथा विचार-विनिमय का सबल माध्यम है।
अंत में यह कहना सर्वथा उचित होगा कि विपुल साहित्यिक वैभव
के साथ ही सरल शब्दावली के समायोजन की क्षमता के कारण हिंदी विश्व बाज़ार की भाषा
बनने का व्यापक सामर्थ्य रखती है। भूमंडलीकरण के इस दौर में हिंदी राष्ट्र अस्मिता
और पुनर्जागरण की भाषा बन गई है । यदि निकट भविष्य में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था
निर्मित होती है और संयुक्त राष्ट्र संघ का लोकतांत्रिक ढंग से विस्तार करते हुए
भारत को स्थायी प्रतिनिधित्व मिलता है, तो हिंदी यथाशीघ्र ही इस शीर्ष
विश्व संस्था की भी भाषा बन जाएगी।
सारांश
यह कि हिंदी अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने का सामर्थ्य रखती है और इस दिशा में
उत्तरोत्तर अग्रसर है।
मीता
गुप्ता
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