शिक्षा:आज
बेटियों को सक्षम बनाने का अस्त्र
बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी,
बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं।
जिनमें खुद भगवान बसता है,
बेटियां वे वंदनाएं हैं।
त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की
बेटियां गौरव कथाएं हैं।
मुस्करा के पीर पीती हैं,
बेटी हर्षित व्यथाएं हैं।
मेलिंडा
गेट्स के अनुसार, ‘जब आप किसी लड़की को स्कूल
भेजते हैं, तो इस भले काम का असर स्थायी रहता है। यह पहल पीढ़ियों तक जनहित के
तमाम कार्यों को आगे बढ़ाने का काम करती है, स्वास्थ्य से
लेकर आर्थिक लाभ, लैंगिक समता और राष्ट्रीय समृद्धि तक।’दुनिया
भर में लगभग 132 मिलियन लड़कियां स्कूल से बाहर हैं और भारत
में लगभग 40 प्रतिशत किशोरियां स्कूल नहीं जाती हैं। दूसरे
शब्दों में, यदि स्कूल नहीं जा पा रही कुल लड़कियों की एक
देश के रूप में कल्पना करें, तो यह दुनिया का 10वां सबसे बड़ा देश होगा।
नीति निर्माता और सिविल
सोसायटी दशकों से प्रत्येक बालिका को शिक्षित करने की ज़रूरत पर चर्चा कर रहे हैं।
लेकिन लाखों लड़कियां शिक्षा के दायरे से बाहर रहने को मजबूर हैं, जबकि अध्ययनों ये पता चलता है कि लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के
नतीजे हमेशा गरीबी की कम दर और बेहतर स्वास्थ्य मानकों के रूप में सामने आते हैं।
बालिका शिक्षा का समाज और मानव विकास पर सकारात्मक प्रभाव दीर्घकालिक और दूरगामी
होता है। आगे चलकर मां बनने वाली शिक्षित बालिकाओं के अपने बच्चों को स्कूल भेजने
और उनका बेहतर पोषण सुनिश्चित करने की संभावना रहती है। स्कूली शिक्षा पूरी करने
वाली लड़कियों पर बाल विवाह और मातृत्व के दौरान मृत्यु के खतरे कम होते हैं। उनके
कम बच्चे पैदा करने की संभावना रहती है, और उन्हें स्वास्थ्य
एवं प्रसव काल के लिए उपलब्ध सेवाओं का बेहतर ज्ञान होता है। शिक्षा के सकारात्मक
प्रभावों में शोषणकारी श्रम और मानव तस्करी जैसे खतरों से बच्चों की रक्षा भी
शामिल हैं।
कई दशकों बाद जाकर हमें
समझ आया कि मानव विकास से भी आर्थिक विकास को गति मिल सकती है। फिर शिक्षा को
विकास मॉडल में केंद्रीय महत्व दिया गया और हम लैंगिक विभेद को समाप्त करने के महत्व
को पहचानने लगे। हालांकि, ये मानने की गलती की गई कि
सामान्य सर्वशिक्षा अभियान चलाने मात्र से ही लैंगिक विभेद की समस्या कम हो जाएगी।
हमारी बालिकाओं के अशिक्षित छूटने के पीछे सिर्फ गलत नीतियों और रोडमैप की ही
भूमिका नहीं है। सुरक्षा या अर्थव्यवस्था संबंधी चिंताओं पर आधारित फैसलों समेत
लैंगिक भूमिकाओं को लेकर स्थानीय नज़रिया भी लड़कियों को पीछे रखने के लिए ज़िम्मेदार
होता है। हालांकि, इस बात को लेकर आम सहमति दिखती है कि यह
समस्या मांग पक्ष की उतनी नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं कि जब स्थानीय स्तर पर
स्कूलों की उपलब्धता बढ़ाई जाती है, या ट्यूशन फीस को समाप्त
किया जाता है, तो माता-पिता उत्साहपूर्वक अपनी बेटियों को
स्कूल भेजते हैं। यह समस्या आपूर्ति पक्ष की दिखती है — यानि सुरक्षित, सुलभ, लैंगिक समता के लिए संवेदनशील स्कूलों की
उपलब्धता; परिवारों के लिए शिक्षा संबंधी जानकारी; और महिलाओं के लिए रोजगार की संभावनाओं से संबंधित।
शैक्षिक अवसरों का अभाव
और गरीबी की समस्या परस्पर संबद्ध हैं। गरीबी में बसर करने वाले बच्चों के लिए
शिक्षा में लैंगिक असमानता काफी अधिक है। इस परिस्थिति में लड़कियों को दोहरे संकट
का सामना करना पड़ता संकट है, क्योंकि उन्हें लैंगिक
विभेद और गरीबी दोनों की मार झेलनी पड़ती हैं। इसका समाधान विकास के मानवाधिकार और
विविध सेक्टरों पर आधारित मॉडल में है, जो लड़कियों की
शिक्षा में निवेश के बहुगुणक प्रभावों को अधिकतम प्रभावी बना सकेगा। कोई भी देश
मानव संसाधन और महिला सशक्तिकरण में पर्याप्त निवेश किए बिना सतत आर्थिक विकास
प्राप्त नहीं कर सकता है। मानव संसाधन सिद्धांत के अनुसार शिक्षा सरकार के लिए
उपभोग केंद्रित खर्चीला साधन नहीं, बल्कि एक ऐसा निवेश है जो
व्यक्तियों की आर्थिक उपयोगिता को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप
देश की समग्र उत्पादकता और आर्थिक प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ती है। यानि, शिक्षा हर दृष्टि से विकास के मूलभूत कारकों में से एक है। सभी के लिए
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में सफलता ने विकास को बेहतर स्वास्थ्य, गरीबी में कमी, और लैंगिक समानता से जोड़ दिया है;
और यह सभी बच्चों की ज़िंदगी और सारे राष्ट्रों के भविष्य के लिए
महत्वपूर्ण है।
और हमें आशा की किरण
नज़र आती है। यह आशा कि हमने कोविड-19 से समग्र
मानवता को पहुंचे नुकसान पर गौर करते हुए एक अधिक समतापूर्ण दुनिया बनाने की सीख
ली है — एक ऐसी दुनिया जहां अवसरों की समानता को प्राथमिकता दी जाती हो। ये
सुनिश्चित करना समय की मांग है कि हमारे बच्चों, तमाम
बालक-बालिकाएं को आसान, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ
हो और उन्हें स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के लिए बराबरी का अवसर मिले, ताकि वे 21वीं सदी की नौकरियों और उद्यमशीलता के
अवसरों का लाभ उठाकर भारत के विकास में योगदान कर सकें।
मीता गुप्ता
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