Saturday, 25 February 2023

वैश्विक समाज के लिए वैश्विक विज्ञान



 

वैश्विक समाज के लिए वैश्विक विज्ञान

आधुनिक युग में, यदि गौर किया जाए, तो विज्ञान सबसे बड़ा सामूहिक प्रयास है। यह एक लंबे और स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करने में योगदान देता है, हमारे स्वास्थ्य की निगरानी करता है, हमारी बीमारियों को ठीक करने के लिए दवा प्रदान करता है, दर्द को कम करता है, हमें भोजन सहित हमारी बुनियादी ज़रूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराने में मदद करता है, ऊर्जा प्रदान करता है और खेल सहित जीवन को और अधिक मज़ेदार बनाता है, संगीत, मनोरंजन और नवीनतम संचार प्रौद्योगिकी, और न जाने किस-किस क्षेत्र में यह हमें संबल देता है| यह कहना सत्य होगा कि विज्ञान हमारी आत्मा का पोषण करता है।

विज्ञान रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए समाधान उत्पन्न करता है और ब्रह्मांड के महान रहस्यों का जवाब देने में हमारी मदद करता है। दूसरे शब्दों में, विज्ञान ज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण माध्यमों में से एक है। इसकी एक विशिष्ट भूमिका है, साथ ही हमारे समाज के लाभ के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य हैं: नया ज्ञान बनाना, शिक्षा में सुधार करना और हमारे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना। विज्ञान सामाजिक ज़रूरतों और वैश्विक चुनौतियों का जवाब देता है। नागरिकों को व्यक्तिगत और पेशेवर विकल्प चुनने के लिए तैयार करने के लिए विज्ञान के साथ वैश्विक समझ और जुड़ाव, और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में लोगों की भागीदारी आवश्यक है। सरकारों को स्वास्थ्य और कृषि जैसे मुद्दों पर गुणवत्तापूर्ण वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, और संसदों को सामाजिक मुद्दों पर कानून बनाने की आवश्यकता है, जो नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित हों। सरकारों को जलवायु परिवर्तन, महासागर स्वास्थ्य, जैविक विविधता के क्षरण और मीठे पानी की सुरक्षा जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों के पीछे के विज्ञान को समझने की आवश्यकता है। सतत विकास की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकारों और नागरिकों को समान रूप से विज्ञान की भाषा समझनी होगी और वैज्ञानिक रूप से साक्षर होना चाहिए। दूसरी ओर, वैज्ञानिकों को नीति-निर्माताओं की समस्याओं को समझना होगा और अपने शोध के परिणामों को समाज के लिए प्रासंगिक और बोधगम्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।

समय के साथ समाज बदल गया है, और फलस्वरूप विज्ञान भी बदल गया है। उदाहरण के लिए 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान, जब दुनिया युद्ध में उलझी हुई थी, सरकारों ने वैज्ञानिकों को युद्धकालीन अनुप्रयोगों के साथ अनुसंधान करने के लिए धन उपलब्ध कराया और इसलिए विज्ञान ने उस दिशा में प्रगति करते हुए परमाणु ऊर्जा के रहस्यों को उजागर किया। फिर बाज़ार की ताकतों ने वैज्ञानिक प्रगति की ओर अग्रसर किया है। उदाहरण के लिए, चिकित्सा उपचार, दवा उत्पादन और कृषि के माध्यम से आय की तलाश करने वाले आधुनिक निगमों के पास जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए तेजी से समर्पित संसाधन हैं, जो जीनोमिक अनुक्रमण और जेनेटिक इंजीनियरिंग में सफलता प्रदान करते हैं। और दूसरी ओर, व्यक्तियों की वित्तीय सफलता द्वारा वित्तपोषित आधुनिक फ़ाउंडेशन अपना पैसा उन उद्यमों में लगा सकते हैं जिन्हें वे सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार मानते हैं, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों जैसे विषयों पर शोध को प्रोत्साहित करते हैं। विज्ञान स्थिर नहीं है; यह समय के साथ बदलता है, बड़े समाजों में बदलाव को दर्शाता है जिसमें यह सन्निहित है

विज्ञान महंगा हो सकता है। वैज्ञानिकों का वेतन, खरीदे जाने वाले लैब उपकरण, भुगतान किए जाने वाले कार्यक्षेत्र और वित्तपोषित किए जाने वाले क्षेत्र अनुसंधान हैं। धन के बिना, समग्र रूप से विज्ञान प्रगति नहीं कर सकता है और यह धन अंततः उस समाज से आता है जो इसके लाभों को प्राप्त करने की अपेक्षा करते हैं। अनुदान कुछ विषयों पर शोध को प्रोत्साहित करके तथा अन्य से हटकर विज्ञान के मार्ग को प्रभावित करता है। यह प्रभाव अप्रत्यक्ष हो सकता है, जैसे कि जब राजनीतिक प्राथमिकताएं सरकारी फंडिंग एजेंसियों (जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान या राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन) के वित्त पोषण कार्यक्रमों को आकार देती हैं। या वह प्रभाव अधिक प्रत्यक्ष हो सकता है, जैसे कि जब व्यक्ति या निजी फाउंडेशन स्तन कैंसर जैसे विशेष विषयों पर शोध का समर्थन करने के लिए दान प्रदान करते हैं|

विज्ञान उन समाजों की ज़रूरतों और हितों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिनमें यह होता है। एक विषय जो एक सामाजिक आवश्यकता को पूरा करता है या समाज का ध्यान आकर्षित करने का वादा करता है, अक्सर बड़े प्रभाव के लिए कम संभावना वाले एक अस्पष्ट प्रश्न की तुलना में एक शोध विषय के रूप में चुने जाने की अधिक संभावना होती है। उदाहरण के लिए, पिछले 15 वर्षों में, विज्ञान ने बड़े पैमाने पर शोध प्रयास के साथ एचआईवी/एड्स महामारी का जवाब दिया है। इस शोध ने विशेष रूप से एचआईवी को संबोधित किया है, लेकिन सामान्य रूप से कोरोना वायरल संक्रमणों की हमारी समझ में भी वृद्धि हुई है। एचआईवी के प्रसार को धीमा करने और प्रभावी टीकों और उपचारों को विकसित करने की समाज की इच्छा ने वैज्ञानिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली की हमारी समझ में सुधार करता है और यह वायरस, दवाओं और द्वितीयक संक्रमणों के साथ कैसे संपर्क करता है। विज्ञान लोगों द्वारा किया जाता है, और वे लोग अक्सर अपने आसपास की दुनिया की ज़रूरतों और हितों के प्रति संवेदनशील होते हैं, चाहे वांछित प्रभाव अधिक परोपकारी, अधिक आर्थिक, या दो का संयोजन हो।

समाज कई अलग-अलग तरीकों से विज्ञान के मार्ग को आकार देता है। समाज यह निर्धारित करने में मदद करता है कि वैज्ञानिक कार्यों को निधि देने के लिए उसके संसाधनों को कैसे तैनात किया जाता है, कुछ प्रकार के अनुसंधानों को प्रोत्साहित करने और दूसरों को हतोत्साहित करने के लिए। इसी तरह, वैज्ञानिक सीधे समाज के हितों और ज़रूरतों से प्रभावित होते हैं और अक्सर अपने शोध को उन विषयों की ओर निर्देशित करते हैं जो समाज की सेवा करेंगे। और सबसे बुनियादी स्तर पर, समाज वैज्ञानिकों की अपेक्षाओं, मूल्यों, विश्वासों और लक्ष्यों को आकार देता है - ये सभी उन सवालों में कारक हैं जिन्हें वे आगे बढ़ाने के लिए चुनते हैं और वे उन सवालों की जांच कैसे करते हैं।

 अगर आपको लगता है कि विज्ञान आपके लिए ज्यादा मायने नहीं रखता है, तो फिर से सोचें। विज्ञान हम सभी को, साल के हर दिन, जिस क्षण से हम जागते हैं, पूरे दिन और रात के माध्यम से प्रभावित करता है। आपकी डिजिटल अलार्म घड़ी, मौसम की रिपोर्ट, जिस डामर पर आप ड्राइव करते हैं, जिस बस में आप सवारी करते हैं, फ्राइज़ के बजाय पके हुए आलू खाने का आपका निर्णय, आपका सेल फोन, आपके गले में खराश का इलाज करने वाले एंटीबायोटिक्स, इससे मिलने वाला साफ पानी और आपका नल, यह सब आपके लिए विज्ञान के सौजन्य से ही हमें मिला है। विज्ञान द्वारा प्रदान की गई सक्षम समझ और तकनीक के बिना आधुनिक दुनिया बिल्कुल भी आधुनिक नहीं होगी।विज्ञान हम सभी को, वर्ष के प्रत्येक दिन को प्रभावित करता है।  जब से दुनिया बनी है विज्ञान की भूमिका हम सबके जीवन में प्रारंभ से विद्यमान है । विज्ञान के अनेक रूप भी हमारे आसपास, हमारे सौरमंडल में विचरण करते रहे हैं । हमारे मन में कई जिज्ञासाएं  बचपन से बनी रही हैं। सौर मंडल क्या है , ब्रह्मांड क्या है धरती  कैसे बनी, चेतन और अवचेतन मन, आने वाले सपने, बादल और चमकती बिजली….अनगिन विषय  विज्ञान के दायरे में आते रहे हैं।  बचपन में जब रामायण के कई दृष्टांत सुने,  तो मुझे लगता था उस समय भी विज्ञान विद्यमान था, नहीं तो पुष्पक विमान कैसे बनता । पवन पुत्र हनुमान जी की यात्रा का उल्लेख भी मुझे बहुत जिज्ञासा में डालता था। बालपन की जिज्ञासाएं  यह जानने को सदैव इच्छुक रहती , कैसे श्रीराम और लक्ष्मण जी को अपने कंधों पर बिठाकर ले गए थे पवन पुत्र और जब राम और रावण के युद्ध की बात होती  और इसमें प्रयोग किए गएअनेक अस्त्र।  मुझे लगता  यह सब भी विज्ञान का ही चमत्कार था और विज्ञान आज का नहीं युगों युगों से इस पृथ्वी पर विद्यमान है । पारस को छूने से जब लोहा भी सोना बन जाता है, तो क्या यह  विज्ञान नहीं है । मैं तो यहां पर यह भी कहना चाहती हूं अगर कोई साधारण मनुष्य, असाधारण व्यक्तियों की छत्रछाया में आकर चमत्कार कर जाता है अपने जीवन में, यह भी तो विज्ञान है । क्या ये मनोविज्ञान हैमनोविज्ञान में भी तो विज्ञान है। ऐसा विज्ञान, जो किसी एक मनुष्य का नहीं, एक देश का नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व का है|

मीता गुप्ता

 

Tuesday, 21 February 2023

कैसे रखें मन को शांत?

 

 

कैसे रखें मन को शांत?


 

अपने भीतर

निरंतर बह रही

रूह की आवाज से

कभी कभी

ऐसे भी क्षण आते हैं

जब आप

अपने से ही

एक प्यारी-सी मुलाकात

कर पाते हैं।

 

जीवन में बहुत कुछ हैलेकिन मन अशांत है तो व्यक्ति को किसी चीज़ से ख़ुशी नहीं मिल सकती है। इसलिए भागते-दौड़ते संसार के संग भागती-दौड़ती ज़िंदगी में ख़ुद को कैसे शांत रखा जाएआइए जानते हैं...

प्रकृति से सीखिए शांत रहने का सबक़

बाहर होने वाले शोर के समान ही अंदर विचारों का शोर रहा करता है। बाहर होने वाली शांति के समान ही अंदर शांति रहा करती है। आपके आसपास जब कभी भी थोड़ी-सी भी शांति होख़ामोशी हो तो उस पर पूरा ध्यान दीजिए। बाहर की ख़ामोशी को सुनना आपके अंदर की शांति को जगा देता है क्योंकि केवल शांति के माध्यम से ही आप ख़ामोशी को जान सकते हैं। इस बारे में सावधान रहिए कि जब आप अपने आसपास की ख़ामोशी पर ध्यान दे रहे हों तब आप कुछ भी न सोच रहे हों। कभी किसी पेड़फूल या पौधे को देखिए। वे कितने शांत रहते हैं। शांत रहने का सबक़ प्रकृति से सीखिए। शायद इसीलिए पंत जी कह उठे-

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!

वर्तमान पल से कर लीजिए मित्रता

यही एक पल यानी अब यही एक ऐसी चीज़ हैजिससे आप बचकर कभी निकल नहीं सकतेयही पल आपके जीवन का स्थायी प्रतिनिधि है। भले ही आपके जीवन में कितना भी बदलाव आ जाएयही एक बात है जो कि निश्चित रूप से हमेशा ही रहती है : अब। इसलिए अब से अगर बचा ही नहीं जा सकता तो फिर इसका स्वागत क्यों न किया जाएइसके साथ मित्रवत क्यों न रहा जाए। वर्तमान पल के साथ जब आप मित्रवत रहते हैंतब आप चाहे जहां हों घर जैसा महसूस करते हैं। और आप अब के साथ घर जैसा महसूस नहीं करते हैंतब आप चाहे कहीं भी चले जाएंआप बेचैनीपरेशानीउद्विग्नताव्याकुलता में ही रह रहे होंगे। इस पल के प्रति निष्ठावान होने का अर्थ है कि अब जैसा भी है उसका अपने अंदर से विरोध न करनाउसके साथ कोई वाद-विवाद न करना। इसका अर्थ है जीवन के साथ तालमेल करना। जब आप ‘जो है’ को स्वीकार कर लेते हैं तब आप परम जीवन की शक्ति तथा प्रज्ञा के साथ सामंजस्य में रहने लगते हैं। और केवल तभी आप इस संसार में सकारात्मक बदलाव लाने वाले बन सकते हैं। इस संदर्भ में मुझे गोलमाल फ़िल्म का यह गाना याद आता है-

आनेवाला पल जानेवाला है

आनेवाला पल जानेवाला है

हो सके तो इसमें जिंदगी बिता दो

पल जो ये जानेवाला है

संबंधों को देखिए निष्कर्ष पर न पहुंचिए

किसी के बारे में राय बना लेने में हम कितनी जल्दबाज़ी करते हैं। जबकि हर व्यक्ति ख़ास तरह से सोचने और बर्ताव करने के लिए संस्कारित हुआ होता है। ये संस्कार आनुवंशिक भी होते हैं और उन अनुभवों और संस्कृति के वातावरण से भी पड़ते हैं जिनमें कि वह पला-बढ़ा होता है। इसलिए यदि किसी से शिकायत भी है तो कोई भी जब आपके पास आता हैतब अगर आप ‘अब’ में विद्यमान रहते हुए उसका स्वागत सम्मानीय अतिथि के रूप में करते हैं जब आप हर किसी को जैसा वह है वैसा रहने देते हैं। तब उनमें सुधार आने लगता है और ज़ाहिर हैख़ुद के जीवन में भी शांति आती है। यानी जज्मेंटल मत बनिए।

थोड़ी देर ऊबे रहें तो शांत होगा दिमाग़

मन तो हमेशा ही अभी कमी हैअभी और चाहिए वाली अवस्था में रहता है और इसलिए वह हमेशा ही और-और की लालसा करता है। जब आप मन के साथ तादात्म्य में हो जाते हैं तब आप जल्दी ही ऊब जाते हैंजल्दी ही बेचैन हो जाते हैं। ऊबने का मतलब होता है कि मन और अधिक उद्दीपन और उत्तेजना चाहता हैकि विचार करने के लिए वह और अधिक ख़ुराक चाहता हैलेकिन मन का पेट कभी भरता नहीं है। जब ऊब होती है तो किसी से फोन पर बात करने लगते हैंसोशल मीडिया देखकर मन की भूख को शांत करने की कोशिश करते हैं। मानसिक अभाव के भाव और भूख को शरीर की ओर स्थानांतरित कर देते हैं। जबकि ऐसे वक़्त में थोड़ी देर ख़ुद को ऊबने दिया जाए, तो थोड़े समय में स्वत: शांति मस्तिष्क में आएगी। इसका अगला चरण है विचार से ऊपर उठना या विचार के पार जाना। इसका सीधा-सादा अर्थ यह है कि हम विचार के साथ पूरी तरह से तादात्म्य में न हो जाएंकि हम विचार के ग़ुलाम न हो।

निष्कर्षतः यदि हम खुद से मिलें और मिलते रहें, तो मन रहेगा शांत.......अपनी स्पेस चेक कीजिए.....क्योंकि छोटा हो बड़ा... हर मनुष्य को एक निजी स्पेस की ज़रूरत सदैव होती है....ऐसी स्पेस जहां मैं खुद से बातें कर सकूं..... खुद से मिल सकूं...आत्म-चिंतन कर सकूं....आत्म-विश्लेषण कर सकूं....क्या खोया..क्या पाया.. समझ सकूं....क्या मेरे लिए अच्छा...क्या बुरा...समझ सकूं...यदि यह कर सकूं...तो मन रहेगा शांत....!!

मिला कौन?

और मिला किससे?

मिले हम

और मिले खुद से।

 

 

मीता गुप्ता  

 

Friday, 17 February 2023

शौक है, तो ज़ौक है

शौक है, तो ज़ौक है



विन्सेन्ट प्राइस ने एक स्थान पर कहा था, "एक आदमी जो अपने शौक (रुचियों) को सीमित करता है, वह अपने जीवन को सीमित करता है।"

एक बच्चे के रूप में, मैं सदैव कुछ-न-कुछ करती रहती, मानो शरीर में कोई थिरकन-सी हो, कोई मृदंग-सा बजता हो, जैसे सब कुछ सीख लेना चाहती थी, कभी यह,तो कभी वह...चित्रकारी के साथ खेल, कपड़े सिलना सीखने के साथ हैंडी क्राफ्ट, गाने के साथ नाचना, और न जाने क्या-क्या ?( यह मत पूछिएगा कि मैं क्या सीख पाई, या क्या नहीं?) मैं अपने माता-पिता, शिक्षकों और किसी के लिए भी एक चुनौती थी, क्योंकि मुझे बहुत कुछ चाहिए था और जब वह मिल जाता, तो कुछ और चाहिए था,उन्हें मेरी बहुत देखभाल करनी पड़ती थी। एक साल, स्कूल में मेरी व्यवहार मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया, "बहुत कुछ सीखा, पर बहुत कुछ सीखना बाकी है।"

अपनी किशोरावस्था के दौरान, मैं अचानक शांत होने लगी। लेकिन मेरा मन शांत नहीं हुआ, उसमें अभी भी बहुत कुछ करने-सीखने की लालसा है। किसी भी समय जब मेरे पास कुछ मिनट होते हैं, कार में या कतार में प्रतीक्षा करते समय, उदाहरण के लिए, मैं अपना फोन निकालती हूं और पढ़ना शुरू कर देती हूं, ऐसा कुछ भी, जो भी मेरे दिमाग को व्यस्त रखता है।

मेरे कई शौक हैं। अगर मैं अपने आप को पूरी तरह से उनमें लिप्त होने दूं, तो मैं हर जगह फैल जाऊंगी, पेपर डोसे की तरह पतली होकर। सौभाग्य से, मुझे पता है कि ऐसी स्थिति में मैं अकेली नहीं हूं। क्या आपने कभी खुद से इनमें से कोई सवाल पूछा है? मुझे जो एक काम करना है, उस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मैं अपने दिमाग को शांत कैसे रख सकती हूँ? जब मैं सौ चीजें करना चाहती हूं, तो मैं एक लक्ष्य का पीछा करने और अपनी योजना का पालन करने के लिए कैसे प्रेरित रह सकती हूं? मेरे पास जो सीमित समय है, उससे मैं अपनी अनेक रुचियों को कैसे पूरा कर सकती हूँ? समय के साथ, मैंने इन चुनौतियों से निपटना सीख लिया है, और सौभाग्य से, मुझे इसका समाधान भी मिल गया है। यहाँ छह-चरणीय विधि है, जिसे मैंने वर्षों में परिष्कृत किया है। इसके साथ, मैं अपनी कई रुचियों में शामिल हो सकती  हूं और फिर भी काम पूरा करने के लिए एकाग्र रह सकती हूं। यह मुझे त्वरित परिणाम देता है और अत्यधिक लचीला है।

शब्द "शौक" सुनने में अटपटा लगता है, जैसे कि यह एक प्यारी सी छोटी सी चीज है जो आप पक्ष में करते हैं।

सांस्कृतिक रूप से, इस शब्द के कुछ नकारात्मक अर्थ हैं, जैसे शौक तुच्छ हों। लेकिन उन गतिविधियों के लिए समय समर्पित करना जिनका हम आनंद लेते हैं - जिनका हम मूल्य रखते हैं, जिनमें हम अच्छे हैं - हमारी आत्मा का पोषण करने के अलावा और कोई कारण नहीं है, हमारी स्वयं की भावना को खिलाता है और हमारे आत्म-मूल्य की भावना को प्रदर्शित करता है।

शौक हमें उद्देश्य देते हैं। वे हमें दिखाते हैं कि हम अपने आप में सुधार कर सकते हैं और कुशल बन सकते हैं। हमारे पास ऐसी नौकरियां हो सकती हैं जो हमें पसंद नहीं हैं। हमारे पास पारिवारिक दायित्व हो सकते हैं जो उतने मज़ेदार नहीं हैं, लेकिन हमारे शौक हमें खुद से जोड़ते हैं और हमें आराम और आनंद के क्षण प्रदान करते हैं।

शौक हमें आराम करने की अनुमति देते हैं, हमारे दिमाग में बकबक करते हैं, और थोड़ी देर के लिए हमारे तनावों को भूल जाते हैं। इसलिए अपने शौक के लिए समय निकालें और फिर जमकर इस समय की रक्षा करें। और किसी भी आवाज़ को चुनौती दें - आपकी या अन्य लोगों की - आपको बताए कि आपके शौक महत्वहीन हैं।

कभी-कभी, वे सबसे महत्वपूर्ण कार्य होते हैं जो आप अपने लिए कर सकते हैं।               

1. क्या है ज़रूरी?

सबसे पहले यह जानना है ज़रूरी कि आपके लिए ज़रूरी क्या है? यानी इस समय आपके जीवन में कौन-सी गतिविधि सबसे महत्वपूर्ण हैं? ऐसी गतिविधियां  जो आपके जीवन के मूल में हैं। उदाहरणतः अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, व्यायाम करना, पढ़ना, संगीत सुनना और यात्रा करना। एक अवधारणा, जो आपके व्यक्तिगत विकास का हिस्सा हैं, वे भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे आपको वह व्यक्ति बनाएगी, जो आप बनना चाहते हैं। उदाहरणतः नए कौशल सीखना, अपने मौजूदा कौशल में सुधार करना, एक साइड बिजनेस शुरू करना और अपने करियर को आगे बढ़ाना। ये सभी गतिविधियां  आपके लिए अनिवार्य हैं, आपके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और आपके जीवन पर काफी प्रभाव डाल सकती हैं। यहीं पर आप अपना पूरा ध्यान लगाएंगे। उन सभी को एक सूची में लिख लें।

2. सबसे अच्छा क्या?

तय करें कि आप किन अन्य गतिविधियों में शामिल होने जा रहे हैं? आपके मनोरंजन या ज्ञान के लिए आपकी लालसा के लिए क्या महत्वपूर्ण है? ये गतिविधियां  आम तौर पर आपके शौक हैं, ऐसी चीज़ें जिन्हें आप करना पसंद करते हैं जैसे फ़िल्में देखना, गेम खेलना और फिक्शन किताबें पढ़ना। अपनी अच्छी-से-अच्छी गतिविधियों को दूसरी सूची में लिखें।

3. अव्यवस्थाएं हटाएं-

हमारा दिमाग लगातार रोमांच की तलाश में रहता है। फ़ोन या लैपटॉप के नोटिफिकेशन, अंतहीन समाचार, ईमेल और टेक्स्ट के माध्यम से रोमांच हमारे मन-मस्तिष्क पर खुशी से बमबारी करेगा, किंतु ये सभी तत्काल संतुष्टि के के बाद हमें शिथिलता की ओर ले जाती हैं। अपने सिर को पानी से बाहर निकालने के लिए हमें अव्यवस्था, विशेषतौर पर डिजिटल अव्यवस्था से छुटकारा पाना होगा।

4. अपनी योजनाएं स्वयं बनाएं-

अब जब आपके पास अपनी तीन सूचियां  हैं, तो साप्ताहिक योजना में अपनी ज़रूरी  और अच्छी गतिविधियों को लिखें। प्रत्येक दिन या प्रत्येक सप्ताह आप इन गतिविधियों में से प्रत्येक के लिए कितना समय आवंटित करेंगे; उदाहरण के लिए: प्रतिदिन तीस मिनट पढ़ें या मंगलवार और गुरुवार को तीस मिनट व्यायाम करें।

आपकी आवश्यक गतिविधियों के लिए आपका समय आवंटन स्वाभाविक रूप से अधिक पर्याप्त होना चाहिए। यदि आपको पता चलता है कि ऐसा नहीं है, तो आपको चरण 1 और 2 पर वापस जाना चाहिए और स्पष्ट करना चाहिए कि क्या होना चाहिए और क्या अच्छा होना चाहिए।

5. ट्रैक करें और समायोजित करें

अब जब आपके पास अपनी साप्ताहिक योजना है, तो एक सामान्य सप्ताह के दौरान इसका पालन करें। प्रत्येक गतिविधि के लिए आपके द्वारा आवंटित समय पर टिके रहने का प्रयास करें। फिर, हर दिन, यह लिखें कि आपने वास्तव में अपनी सभी गतिविधियों पर कितना समय व्यतीत किया है।

सप्ताहांत में, अपने सप्ताह की समीक्षा करें और डेटा का विश्लेषण करें।

क्या आप अपनी योजना पर कायम रहे?

क्या आपने कुछ गतिविधियों पर योजना से अधिक समय व्यतीत किया?

क्या आप अव्यवस्था को दूर करने में कामयाब रहे, या क्या आपने उन गतिविधियों पर समय बिताया जो योजना का हिस्सा नहीं थे?

उपरोक्त प्रश्नों के आपके उत्तरों के आधार पर, अगले सप्ताह के लिए अपनी योजना में समायोजन करें। विशिष्ट गतिविधियों के लिए अधिक या कम समय आवंटित करें जहां यह समझ में आता है। एक बार फिर से अव्यवस्था को दूर करने के लिए पुनः ध्यान केंद्रित करें और प्रतिबद्ध हों।

6. प्रयोग, अन्वेषण, फेरबदल

यदि आपकी योजना स्थिर नहीं है। विधि का पूरा बिंदु उन गतिविधियों और विषयों में शामिल होना है जिनमें आप रुचि रखते हैं। इसलिए बेझिझक अपनी गतिविधियों में फेरबदल करें और नई गतिविधियों को जोड़ें।

एक्सप्लोर करें, जो कुछ भी आप कल्पना करते हैं उसे आजमाएं, यहां तक ​​कि अव्यवस्थित गतिविधियों में शामिल होने के लिए यह देखने के लिए कि यह आपको कहां ले जाता है। अन्वेषण और प्रयोग करने से, आप अपने बारे में और अधिक जानेंगे कि क्या आपको तृप्त करता है।

आपको पता चल सकता है कि एक गतिविधि जिसे आप लंबे समय से करना चाहते थे, उसमें शामिल होने के बाद वह रोमांचक और पूर्ण नहीं है। तो हो सकता है कि आप इसे आज़माने की संतुष्टि के साथ इसे छोड़ दें। समय के साथ, हमारी रुचियां और लक्ष्य बदलते हैं; यही कारण है कि आपकी विशिष्ट गतिविधियों की योजना को नियमित आधार पर अपडेट किया जाना चाहिए और होना चाहिए, आमतौर पर महीने में एक बार।

यह छह-चरणीय प्रक्रिया काफी विनियमित लग सकती है, लेकिन ऐसा होना ज़रूरी  नहीं है। एक बार जब आप अपनी योजना के साथ सहज हो जाते हैं और जो महत्वपूर्ण है और जो आपके लिए पूरा होता है, उसके लिए समय समर्पित करते हैं, तो आपको हर हफ्ते योजना के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी। तब आप अपनी योजना को न्यूनतम रख सकते हैं।

मैं वास्तव में बहुत सजग योजनाकार नहीं हूं। लेकिन मेरी दैनिक गतिविधियों पर नज़र रखने और मेरे दिमाग और जीवन को मैंने अपने लिए निर्धारित सीमा के भीतर नियोजन करना सीख लिया। योजनाएं आपको केंद्रित रखती हैं इसलिए मैं अपनी ज़रूरी चीजों के लिए एक स्पष्ट साप्ताहिक योजना का पालन करती हूं।  

प्रक्रिया का स्वामित्व लें और इसे अपने जीवन में फिट करने के लिए आकार दें। जब तक आप इस बारे में स्पष्ट हैं कि आप क्या चाहते हैं और नई गतिविधियों की कोशिश करते समय खुद को खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो आप जो चाहें करने के लिए स्वतंत्र महसूस करें।

वह करें जो आपको उत्साहित और पूर्ण रखे । मस्ती करें !

मैं अपने व्यक्तिगत विकास के लिए कार में पॉडकास्ट सुनती हूं, जिसका अर्थ है कि मैं अपने दैनिक आवागमन के दौरान संगीत नहीं सुनता। संक्षेप में, मुझे चुनाव करना था, मैंने किया और मैं परिणाम से खुश हूं।

मुझे यह जानकर उत्साह होता है कि मेरी गतिविधियां समय के साथ बदलती रहेंगी। मैं यात्रा का आनंद ले सकती हूं, अपनी रुचियों में लिप्त हो सकती हूं और अपने मन को प्रसन्न रख सकती हूं।

पहले से अब में मुख्य अंतर यह है कि अब मैं अपने नियंत्रण में हूँ। मैंने अधिक आराम और ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने जीवन को विनियमित करना सीखा।

और इसके लिए मेरा मन मुझे धन्यवाद देता है।


मेरा तो रब खो गया

 

मेरा तो रब खो गया



उस दिन पूरे घर में कोहराम मचा हुआ था। दादी परेशान थी, हैरान थी, रुआंसी हो उठी थी। उनके ठाकुर जी की बंसी खो गयी थी। ठाकुर जी को तो कोई चिंता नहीं थी पर दादी बहुत दुखी थी। बहरहाल थोड़ी देर बाद  बंसी मिल ही गयी। दादी इतनी खुश की जैसे ठाकुर जी ने दर्शन दे दिए हों। रोज़मर्रा के काम और जल्दबाजी में अक्सर किसी न किसी  का कुछ न कुछ खो ही जाता। माँ, अक्सर अपनी अलमारी की चाबी खो जाने पर परेशान हो जाती। पिताजी के प्राण उनकी कलम में बसते। भाई की जान गाडी़ की चाबी में, तो बहन की साँस मोबाईल में। इन सब चीजों को ये कभी आँखों से ओझल नहीं करते, और जो ये इनकी प्रिय वस्तु खो जाए तो... इनकी दुनिया ही बेकार हो जाए। यानी सबने अपने-अपने रब बना लिए है, अपनी सुविधा, ज़रुरत और ख़ुशी के लिए अपने -अपने खुदा गढ़ लिए हैं।  अपने खुदा, जिन्हें पाकर, जिन्हें पास रखकर वो खुश हैं। जैसे  किसी व्यापारी को नोटों की हरियाली में ईश्वर दिखता है, किसी सुंदर महिला को आईना ही खुदा जैसा दिखता है, किसी प्रेमी को अपनी  प्रियतमा में। किसी दिन इनकी  ये प्रिय चीज खो जाए तो उसे  ढूँढने के लिए पागल हो जाएँ।

उस दिन किसी मंदिर के बाहर बहुत भीड़ देखी, सभी का कुछ न कुछ खोया था, किसी का धन, किसी का मन, किसी का तन (स्वास्थ्य), कोई भाग्य खोज रहा था, कोई शांति, कोई ख़ुशी, कोई हँसी, कोई आनंद, कोई शोहरत, कोई शक्ति, कोई मुक्ति और कोई दीवाना  प्रेम खोजता था। सभी अपनी अपनी मन्नत के धागे बाँध देने को आतुर थे। मन्दिर की चौखट मुझे देख हँसी, बोली तुम्हारा भी कुछ खोया है क्या?

हाँ, हाँ मेरा तो रब ही खो गया है। तुमने देखा है क्या? चौखट बोली, जाओ भीतर देखो वहीं होगा... मैं बोली भीतर इक छोटे कमरे में पत्थर की एक सुंदर मूर्ति है जिसे  चढ़ावा  चढ़ा का लोग खुश कर रहे हैं..... मेरा रब पत्थर का नहीं होगा, न उसे मेरे किसी  चढ़ावे की ज़रुरत होगी। वो यहाँ नहीं हो सकता। वो शायद उस मस्जिद में हो, किसी ने सुझाया... देखो वहाँ... जहाँ ज़ोर-ज़ोर से पुकारते हैं लोग अपने खुदा को... नहीं-नहीं, मेरे रब को ज़ोर से पुकारने की ज़रुरत नहीं, वो तो मेरी साँसों की आवाज़ को सुन कर ही आ जाता था। जब-जब उसे याद किया, वो भीतर ही महसूस हुआ।

पर वो  अभी तो यहीं था, इक पल में ना जाने कहाँ गया।  फिर किसी ने  इशारा किया, वो उस तरफ बहुत से लोग कुछ पढ़ते हैं वहाँ जाओ। वहाँ देखा तो इक मोटे  ग्रन्थ को बहुत से लोग पढ़ते दिखाई दिए। उस किताब में वो छिपा है शायद... मुझे उस किताब की भाषा बिल्कुल समझ नहीं आई। आँखें खोलो तो दिखे, बंद करो तो गायब... इसीलिए मैं उसकी कोई किताब, कहानी, कविता नहीं पढ़ सकी, वो किसी भी कहानी या गीत में नहीं मिला, उसकी किताब में भी वो कहीं नहीं था। क्या मेरा रब किसी किताब में व्यक्त हो सकता था? अपने सवालों के साथ थक कर ज़रा बैठी ही थी इक फ़कीर वहाँ से गुज़रे... उन्होंने मुस्कुरा कर पूछा, क्या खोजती हो... बाबा मेरा रब खो गया। कभी देखा था उसे? कभी मिली हो उसे? जो उसे इन बाज़ारों में खोजने चली आई... क्या करोगी उससे मिलकर?

रब जब खोता है ना, तो सब खो जाता है। फिर सारी दुनिया बेमानी लगती है। वैसे कुछ खास काम नहीं था उससे। बस चंद सवाल ही करने थे, वो जो मिल जाता तो पूछ ही लेती... लेकिन उसका कोई पता ठिकाना ही नहीं। जो भी पता वो देता है, छलिया उस पते पर कभी नहीं मिलता। ना मंदिर में दिखा, ना मस्जिद में, रहता कहीं और है, और पता कहीं और का देता है। जो दिखता नहीं, उसे कोई कैसे खोजे? जो दिखाई ना दे, सुनाई ना दे, ऐसे लापता रब को कहाँ-कहाँ खोजूँ ? उसकी  आंच में  जलना, कांच पे चलने जैसा ही कठिन है।

दो आँखें उसे क्यों खोजती हैं? जो कभी मिला ही नहीं। क्यों वो जब चाहे जी भर के हँसा जाता है हमें। और वो चाहे तो ज़ार-ज़ार रुला जाता है। ऐसे भी कोई किसी को सताता है?  कभी तो सारी दुनिया कदमों में डाल देता है तो कभी... सब कुछ ले जाता है अपने साथ... खाली हाथ उसके पीछे-पीछे चल देते हैं हम। वो जब-जब चाहे अपनी मर्ज़ी से हमें तोड़ता है। जहाँ हम नहीं चाहते वो हमें वहीं जाकर क्यों जोड़ देता है? जब वो चाहता है खुद में मिला लेता है। जिस पल हम उसे अपना हिस्सा मानने लगते हैं, जीने लगते हैं, ठीक उसी पल वो हमें छोड़ जाता है। उसके खेल निराले हैं। उसके छल अनोखे हैं। कहीं जो मिल जाए तो उससे पूछूँ कि कितना आसान है ओट में छिप कर हँस लेना। कितना मुश्किल है जीवन की कठिनाइयों का सामना करना। कितना आसान है ना परदों  में छिप जाना, गुम हो जाना, लेकिन खोजना कितना दुःख भरा है... कितना आसान है कहना कि संभल जाओ, लेकिन कितना  कठिन है ना  खुद को संभालना । कितना आसान  है दायरों में, सीमाओं में, रेखाओं में बंधने की  हिदायतें देना, लेकिन कितना कठिन है सीमाओं के भीतर पल-पल मरना।

कितना आसान है जीने का हुकुम देना... कितना कठिन है जीने का स्वांग करना। जब उसे  लापता होना ही था, गुम होना ही था, तो आया ही क्यों? ये खेल, ये छल, उसका  चैन नहीं छीनते? सदियों से तलाश है उसकी... क्यों नहीं मिलता? उसके  लिए मर-मर कर जीते हैं लोग... क्या ज़रा भी  इल्म है उसे ? उसने  हमें देह को दायरों में बाँध दिया, हदें बना दीं... खोजने वालों ने अपनी रूहें जगा ली... अब वो क्या करेगा? उसकी  खोज में रूहें जल-जल कर कुंदन बन गयी। आँखें सागर हो गयी।  इस कदर  दर्द बढ़ा कि अँधेरे  रोशनी में बदल गए, आँसू मुस्कान हो गए,  वियोग ही योग हो गया... इतना महसूस किया उसे  कि वो हर जगह हो गया... किसी रोज़ ऐसा ना हो कि लोग   उसे खोजना ही बंद कर दें। फिर क्या करेगा वो? उसे पुकारना बंद कर दें और महसूस करना भी। या  किसी दिन परेशान होकर  हम उसे भूल ही बैठे... फिर किसी दिन घबरा कर वो धरती पर आए।

अपने होने के सौ कारण गिनाए।

अपनी उपस्थिति का अहसास कराए  और कहे,  देखो मैं हूँ तुम्हारा खोया रब... और हम कहें... आप कौन?

मेरा रब तो खो गया!

मीता गुप्ता  

 

 

 

 

 

 

 

Monday, 13 February 2023

गज़ल

 

हँसी-खुशियों से सजी हुई जिन्दगानी चाहिए ।

सबको जो अच्छी लगे ऐसी रवानी चाहिए ।

वक्त  के संग बदल जाता सभी कुछ संसार में।

जो न बदले याद को ऐसी निशानी चाहिए ।

 

नजरे हो आकाश पै पर पैर धरती पर रहे

हमेशा हर सोच में यह सावधानी चाहिए ।

हर नए दिन नई प्रगति की मन करे नई कामना

निगाहों में किन्तु मर्यादा का पानी चाहिए ।

 

मिल सके नई उड़ानों के जहाँ से सब रास्ते

सद्विचारों की सुखद वह राजधानी चाहिए ।

बाँटती हो जहाँ सबको खुशबू अपने प्यार की

भावना को वह महकती रातरानी चाहिए ।

 

हर अँधेरी समस्या का हल, सहज जो खोज ले

बुद्धि बिजली को चमक वह आसमानी चाहिए ।

मन मीत’ निराश न हो, और हो समन्वित भावना

देश को जो नई दिशा दे वह जवानी चाहिए ।।

.

जग में सबको हँसाता है औ' रूलाता है वक्त ।

सुख औ' दुख के चित्र रचता औ' मिटाता है वक्त ।

है चितेरा वक्त  ही संसार के श्रृंगार का

नई खबरों का सतत हरकारा है वक्त ।

 

बदलती रहती ए  दुनिया वक्त  के सहयोग से

आशा की पैगों पे सबको नित झुलाता है वक्त ।

नियति को, श्रम को, प्रगति को है इसी का आसरा

तपस्वी को तपस्या का फल प्रदाता है वक्त ।

 

भावना मय कामना को दिखाता है रास्ता

हर गुणी साधक को शुभ अवसर दिलाता है वक्त ।

सखा है विश्वास का, व्यवसाय का, व्यापार का

व्यक्ति की पद-प्रतिष्ठा का अधिष्ठाता है वक्त ।

 

नियंता है विश्व का, पालक प्रकृति परिवेश का

सखा है परमात्मा का, युग-विधाता है वक्त ।

शक्तिशाली है, सदा रचता नया इतिहास है

किन्तु जाकर फिर कभी वापस न आता है वक्त ।

 

सिखाता संसार को सब वक्त  का आदर करें

सोने वालों को हमेशा छोड़ जाता है वक्त ।

है अनादि अनंत फिर भी है बहुत सीमित सदा

जो वक्त  को पूजते उनको बनाता है वक्त ।

 

हर सजग श्रम करने वाले को है इसका वायदा

एक बार मीत’ उसको यश दिलाता है वक्त ।          

 .

जीना है तो दुख-दर्द छुपाना ही पड़ेगा

मौसम के साथ निभाना-निभाना ही पड़ेगा।

देखा न रहम करती किसी पै कभी दुनिया

हर बोझ जिंदगी का उठाना ही पड़ेगा।

 

नए  हादसों से रोज गुजरती है जिंदगी

संघर्ष का साहस तो जुटाना ही पड़ेगा।

खुद सॅभल उठ के राह पै रखते हुए कदम

दुनिया के साथ ताल मिलाना ही पड़ेगा।

 

हर राह में जीवन की, खड़ी है मुसीबतें

मिल उनसे, उनका नाज उठाना ही पड़ेगा।

दस्तूर हैं कई ऐसे जो दिखते है लाजिमी

हुई शाम तो फिर दीप जलाना ही पड़ेगा।

 

है कौन जिससे खेलती मजबूरियाँ नहीं ?

मन माने या न माने मनाना ही पड़ेगा।

पलकों में हों आँसू तो ओठों को दबाके

मुँह पै बनी मुस्कान तो लाना ही पड़ेगा।

 

खुद के लिए  न सही, पै सबके लिए  सही

जख्मों को अपने दिल के छुपाना ही पड़ेगा।

.

फल-फूल, पेड़-पौधे  जो आज हरे है

आँधी में एक दिन सभी दिखते कि झरे है।

सुख तो सुगंध में सना झोंका है हवा का

दुख से दिशाओं के सभी भण्डार भरे है।

 

नभ में जो झिलमिलाते हैं, आशा के हैं तारे

संसार के आँसू से, पै सागर ए  भरे है।

जंगल सभी जलते रहे गर्मी की तपन से

वर्षा का प्यार पाके ही हो पाते हरे है।

 

ऊषा की किरण ही उन्हें देती है सहारा

जो रात में गहराए  अँधेरों से डरे है।

रँग-रूप का बदलाव तो दुनिया का चलन है

मन के रूझान की कभी कब होते खरे है ?

 

सब चेहरे चमक उठते है आशाओं के रॅग से

आशाओं के रॅग पर छुपे परदों में भरे है।

इतिहास ने दुनिया को दी सौगातें हजारों

पर जख्म भी कईयों को जो अब तक न भरे है।

 

यादों में सजाता है उन्हें बार-बार दिल

जो साथ थे कल आज पै आँखों से परे है।             

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अटपटीदुनिया

साथ रहते हुए भी घर एक ही परिवार में

भिन्नता दिखती बहुत है व्यक्ति के व्यवहार में।।

एक ही पौधे में पलते फूल-काँटे साथ-साथ

होता पर अन्तर बहुत आचार और विचार में।।

आदमी हो कोई सबके खून का रंग लाल है

भाव की पर भिन्नता दिखती बड़ी संसार में।।

हर जगह पर स्वार्थवश टकराव औ' बिखराव है

एकता की भावना पलती है केवल प्यार में।।

मेल की बातें तो कम, अधिकांश मन मे मैल है

भाईचारे का चलन है सिर्फ लोकाचार में।।

नाम के है नाते-रिश्ते, सच, किसी का कौन है ?

निभाई जाती है रस्में सभी बस उपचार में।।

भुला सुख-सुविधाए  अपनी जो हमेशा साथ दे

राम-लक्ष्मण-भरत से भाई कहाँ संसार में।।

दुनिया की गति अटपटी है साफ दिखती हर तरफ

फर्क होता आदमी की बात औ' व्यवहार में।।

कभी भी घुल मिल किसी को अपना कहना व्यर्थ है

रंग बदल जाते है अपनों के भी तो अधिकार में।।        

.

'पसीने से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है'

बिगड़ते है बहुत से काम सबके जल्दबाजी में

जो करते जल्दबाजी वे सदा जोखिम उठाते है।

हमेशा छल कपट से जिंदगी बरबाद होती है

जो होते मन के मैले, वे दुखी कल देखे जाते है।

बिना कठिनाइयों के जिंदगी नीरस मरूस्थल है

पसीनों से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है।

किसी को कहाँ मालूम कि कल क्या होने वाला है

मगर क्या आज हो सकता समझ के सब बताते है।

जहाँ बीहड़ पहाड़ी, घाट, जंगल खत्म हो जाते

वहीं से सम सरल सड़कों के सुन्दर दृश्य आते है।

कभी भी वास्तविकताए  सुखद उतनी नहीं होती

कि जितने कल्पना में दृश्य लोगों को लुभाते हैं।

निकलना जूझ लहरों से कला है जिंदगी जीना

जिन्हें इतना नहीं आता उन्हीं को दुख सताते हैं।

वही रोते है रोना, भाग्य का अपने अनेकों से

परिस्थितियों को जो अनुकूल खुद न ढाल पाते है

..

अब तो चेहरों को सजाने लग गए  है मुखौटे

इसी से बहुतों को भाने लग गए  हैं मुखौटे।

रूप की बदसूरती पूरी छुपा देते है ए

झूठ को सच्चा दिखाने लग गए  है मुखौटे।

अनेकों तो देखकर असली समझते है इन्हें

सफाई ऐसी दिखाने लग गए  है मुखौटे।

क्षेत्र हो शिक्षा का या हो धर्म या व्यवसाय का

हर जगह पर मोहिनी से छा गए  है मुखौटे।

इन्हीं का गुणगान विज्ञापन भी सारे कर रहे

नए  जमाने को सजाने छा गए  हैं मुखौटे।

सचाई औ' सादगी लोगों को अब लगती बुरी

बहुतों को अपने में भरमाने लगे है मुखौटे।

वक्त  के सँग लोगों की रूचियों में भी बदलाव है

खरे तो खरे हुए सब मधुर खोटे मुखौटे।

बनावट औ' दिखावट में उलझ गई है जिंदगी

हरेक को लगते रिझाने जगमगाते मुखौटे।

मुखौटों का चलन सबको ले कहाँ तक जाए गा

है मीत’ विचारना क्यों चल पड़े है मुखौटे।            

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नया युग है पुराने का हो गया अवसान है

मुखौटों का चलन है, हर साध्य अब आसान है।।

बात के पक्के औ' निज सिद्धान्त के सच्चे है कम

क्या पता क्यों आदमी ने खो दिया ईमान है।।

बदलता रहता मुखौटे कर्म, सुबह से शाम तक

जानकर भी यह कि वह दो दिनों का मेहमान है।।

वसन सम चेहरे औ' बातें भी बदल लेते हैं कई

समझते यह शायद इससे मिलता उनको मान है।।

आए  दिन उदण्डता, अविवेक बढ़ते जा रहे

आदमी की सदगुणों से अब नहीं पहचान है।।

सजावट है, दिखावट है, मिलावट है हर जगह

शुद्ध, सात्विक कहीं भी मिलता न कोई सामान है।।

खरा सोना और सच्चे रत्न अब मिलते नहीं

असली से भी ज्यादा नकली माल का सम्मान है।।

ढ़ोग, आडम्बर, दिखावे नित पुरस्कृत हो रहे

तिरस्कृत, आहत, निरादृत अब गुणी इंसान है।।

योग्यता या सद्गुणों की परख अब होती कहाँ ?

मुखौटों से आदमी की हो रही पहचान है।।

जिसके है जितने मुखौटे वह है उतना ही बड़ा

मुखौटे जो बदलता रहता वही भगवान है।।

है मीत’ वक्त  की खूबी, बुद्धि गई बीमार हो

पा रहे शैतान आदर, मुखौटों का मान है।।

 ..

तुम्हारे सँग बिताया जब जमाना याद आता है

तो आँसू भरी आँखों में विकल मन डूब जाता है।

बड़ी मुश्किल से नए -नए  सोच औ' चिन्ता की उलझन से

अनेकों वेदनाओं की चुभन से उबर पाता है।

न जाने कौन सी गल्ती हुई कि छोड़ गई हमको

इसी संवाद में रत मन को दुख तब काटे खाता है।

अचानक तुम्हारी तैयारी जो यात्रा के लिए  हो गई

इसी की जब भी आती याद, मन आँसू बहाता है।

अकेले अब तुम्हारे बिन मेरा मन भड़ भड़ाता है।

अँधेरी रातों में जब भी तुम्हें सपनों में पाता हूँ

तो मन यह मौन रो लेता या कुछ-कुछ बड़बड़ाता है।

कभी कुछ सोचें करने और होने लगता है कुछ और

तुम्हारे बिन, अकेले तो न कुछ भी अब सुहाता है।

अचानक तेवहारों में तुम्हारी याद आती है

उमड़ती भावनाओं में न बोला कुछ भी जाता है।

बड़ी मुश्किल से आए  थे वे दिन खुश साथ रहने के

तो था कब पता यह भाग्य कब किसको रूलाता है।

है अब तो शेष, आँसू, यादें औ' दिन काटना आगे

अँदेशा कल का रह-रह आ मुझे अक्सर सताता है।

..

आने वाले कल से हर एक आदमी अनजान है

किया जा सकता है केवल काल्पनिक अनुमान है।

सोचकर भी बहुत कुछ, कर पाता कोई कुछ भी नहीं

सफलता की राह पै' अक्सर खड़ा व्यवधान है।

करती नई आशाए  नित खुशियों की मोहक सर्जना

जोड़ते जिनके लिए  सब सैकड़ों सामान हैं।

कठिन श्रम की साधना ही दिलाती है सफलता

परिश्रम भावी सफलता की सही पहचान है।

राह चलते जो अकेले भी कभी थकते नहीं

वहीं कह सकते है कि यह जिन्दगी आसान है।

हर दिशा में क्षितिज के भी पार हैं कई बस्तियाँ

किया जा सकता पहुँच ही कोई नव अनुसंधान है।

प्रेरणा उत्साह जिज्ञासा का हो यदि साथ तो

परिश्रम देता सदा मनवांछित वरदान है।

कठिन श्रम की साधना की कला जिसको सिद्ध है

वही हर अभियान में पाता विजय औ' मान है।

..

 जीवन है आसान नहीं जीने को झगड़ना पड़ता है

चलने की गलीचों पै पहले तलवों को रगड़ना पड़ता है।

मन के भावों औ' चाहो को दुनिया ने किसी के कब समझा

कुछ खोकर भी पाने को कुछ, दर-दर पै भटकना पड़ता है।

सर्दी की चुभन, गर्मी की जलन, बरसात का गहरा गीलापन

आघात यहाँ हर मौसम का हर एक को सहना पड़ता है।

सपनों में सजायी गई दुनिया, इस दुनिया में मिलती है कहाँ ?

अरमान लिए  बोझिल मन से संसार में चलना पड़ता है।

देखा है बहारों में भी यहाँ कई फूल-कली मुरझा जाते

जीने के लिए  औरों से तो क्या ? खुद से भी झगड़ना पड़ता है।

तर होके पसीने से बेहद, अवसर को पकड़ पाने के लिए

छूकर के भी न पाने की कसक से कई को तड़पना पड़ता है।

अनुभव जीवन के मौन मिले लेकिन सबको समझाते हैं

नए  रूप में सजने को फिर से, सड़कों को उखड़ना पड़ता है।

वे हैं मीत’ किस्मत वाले जो मनचाहा पा जाते है

वरना ऐसे भी कम हैं नहीं जिन्हें बनके बिगड़ना पड़ता है।          ..

जे देखा औ' समझा, सुना और जाना

किसे कहें अपना औ' किसको बेगाना।

यहाँ कोई दिखता नहीं है किसी का

अधिकतर है धन का ही साथी जमाना।

कला और गुण की बहुत कम है कीमत

जगत ने है धन को ही भगवान माना।

धनी में ही दिखते है गुण योग्यताए

सहज है उन्हें सब जगह मान पाना।

गरीबों की दुनिया में हैं विवशताए

अलग उनके जीवन का हैं ताना-बाना।

उन्हें जरूरत तक को पैसे नहीं हैं

धनी खेाजते खर्च का कोई बहाना।

है जनतंत्र में कुछ नए  मूल्य विकसे

बड़ा वह जिसे आता बातें बनाना।

सदाचार दुबका है चेहरा छुपाए

दुराचार ने सीखा फोटो छपाना।

विजय काँटों को हर जगह मिल रही है

सही न्याय युग गया हो अब पुराना।

सही क्या, गलत क्या ए  कहना कठिन है

न जाने कहाँ जा रहा है जमाना।

..

होता है असर, लोगों पै सदा, नए  युग के सोच-विचारों का।

जब भी लेता कोई युग करवट-परिवेशें में व्यवहारों का।।

पर जिसको अपने बल का औ' निश्चय का होता है आदर

दिखता है उसके चेहरे पर आलोक खुले संस्कारों का।।

खिलने वाला हर फूल हुआ करता विकसित धीरे-धीरे

पाता रंग रूप सुगंध सभी वह अपने ही परिवारों का।।

जो निश्चय व्रत वाले होते पक्के अपने संकल्पों के

उन पर न असर होता जग के इनकारों का इकरारों का।।

अन्तर्मन के विश्वासों पर निर्भर होते परिणाम सभी

परवाह नहीं करती दृढ़ता तूफानों के आकारों का।।

उलझन में उलझ जाने वालों के डग रूक जाते राहों में

वे ही पाते मंजिल अपनी जिन्हें डर न कभी अंगारों का।।

आदत से जो अपनी होते है ढुलमुल-ढुलमुल ढीले-ढाले

उनको रह पाती याद कहाँ। औरों के किए  उपकारों का।।

शायद ही मिले कोई  ऐसा जिस पर न असर हो मौसम का

भारत में सुहाने सावन के खुशियों से भरे तेवहारों का।।

होते है अडिग निर्णय जिनके, कुछ भी न असंभवन जीवन में

हर व्यक्ति मीत’ है अधिकारी अपने कल के अधिकारों का।।      

..

 जिंदगी एक सफर है ऐसा सभी को चलना यहाँ जो आए

हर एक का पर अलग है रास्ता, चुने वही वह उसे जो भाए

हैं फूल-काँटे हरेक डगर पै, खुधी औ' गम के कई ठिकाने

नसीब में किसके पर है क्या यह तो, उसकी की करनी उसे बताए ।

सुबह जो निकला खुशी से हंसकर, कहीं न थक जाए  दो पहर तक

 भी अँदेशा है कि भटककर किसी जगह कोई अटक न जाए ।

कभी है गर्मी, कभी है सर्दी, कभी बरसती अँधेरी रातें

कड़कती बिजली, घुमड़ते बादल, डराते तूफाँ कहीं न आए ।

कहीं हैं ऊंचे पहाड़, दर्रे, उमड़ती नदियाँ, डराते जंगल

कहीं मरूस्थल विशाल ऐसे, जिन्हें कभी कोई न लांघ पाए ।

मगर हैं सदियों से ए  सभी यों, बनी औ' बिगड़ी नवीन राहें।

नए  मुसाफिर भी चलते आए , बढ़े कई तो बिना बताए ।

अजब ए  दुनिया तो है वही पर हरेक की हैं अलग निगाहें

कई को सागर सुहाने दिखते कई को हर दम डराते आए ।

लगा लगन कर इरादे पक्के जिन्होंने आगे कदम बढ़ाए

मीत’ सब अड़चनें हटाके वे नभ से तारे भी तोड़ लाए ।          

..  

दिन से भी कहीं ज्यादा रातें हमें प्यारी हैं

क्योंकि ए  सदा लातीं प्रिय याद तुम्हारी हैं।

मशगूल बहुत दिन हैं, मजबूर बहुत दिन है

रातों ने ही तो दिल की दुनिया ए  सँवारी हैं।

सूरज के उजाले में परदा किया यादों ने

दिन तो रहे दुनिया के, रातें पै हमारी है।

कुछ याद रहे दिन वे भड़भड़ में गुजारे जो

है याद मगर रातें तनहां जो गुजारी हैं।

कोई मीत’ बोले, दिन में कहाँ मिलती है ?

रातों के अँधेरों में जो मीठी खुमारी है।

..

दर्द को दिल में अपने छुपाए  आज महफिल में आए  हुए हैं।

क्या बताए  कि अपनों के गम से किस तरह हम सताए  हुए  हैं।

अपनों को खुशियाँ देने को हमने जिंदगी भर लड़ीं है लड़ाई

पर बताए  क्या हम दूसरों को, अपनों से भी भुलाए  हुए  हैं।

जिस तरफ भी नजरें घुमाई, कहीं भी कोई मिला न सहारा

राह चलता रहा आँख खोले, फिर की कई चोट खाए  हुए हैं।

गर्दिशों में भी लब पै तबसुम्म लिए  हम आगे बढ़ते रहे हैं

अन कहें सैंकड़ों दर्द लेकिन अपने दिल में छुपाए  हुए हैं।

काट दी उम्र सब झंझटों में, पर कभी उफ न मुंह से निकाली

अपनी दम पै तूफानों से लड़के इस किनारे पै आए  हुए हैं।

शायद दुनिया का ए  ही चलन है कोई शिकवा गिला क्या किसी से

हमको लगता है हम शायद अपने दर्द के ही बनाए  हुए है।

जो गुजारी न उसका गिला है, खुश हैं उससे ही जो कुछ मिला है

बन सका जितना सबको किया है, चोट पर सबसे खाए  हुए हैं।

है भरोसा मीत’ हमें अपनी टॉगों पर जिनसे चलते रहे हैं

आगे भी राह चल लेंगे पूरी, इन्हीं से चलते आए  हुए हैं।          

..

है हवा कुछ जमाने की ऐसी, लोग मन की छुपाने लगे हैं।

दिल में तो बात कुछ और ही है, लब पै कुछ और बताने लगे हैं।

 जमाने की खूबी नहीं तो और कोई बताए  कि क्या है ?

जिसको छूना भी था पहले मुश्किल, लोग उसमें नहाने लगे हैं।

कौन अपना है या है पराया, दुनिया को ए  बताना है मुश्किल

जिनको पहले न देखा, न जाना, अब वो अपने कहाने लगे हैं।

जब से उनको है बागों में देखा, फूल सा मकहते मुस्कुराते

रातरानी की खुशबू से मन के दरीचे महमहाने लगे हैं।

बालों की घनघटा को हटा के चाँद ने झुक के मुझको निहारा

डर से शायद नजर लग न जाए , वे भी नजरें चुराने लगे हैं।

रंग बदलती मीत’ ऐसा दुनिया कुछ भी कहना समझना है मुश्किल

जिनको हमने था चलना सिखाया, अब से हमको चलाने लगे हैं।

 

..

जो भी मिली सफलता मेहनत से मैंने पायी

दिन रात खुद से जूझा किस्मत से की लड़ाई

जीवन की राह चलते ऐसे भी मोड़ आए

जहाँ एक तरफ कुआँ था औ' उस तरफ थी खाई।

कांटों भरी सड़क थी, सब ओर था अँधेरा

नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ' तनहाई।

सब सहते, बढ़ते जाना आदत सी हो गई अब

किसी से न कोई शिकायत, खुद की न कोई बड़ाई।

लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिन्दगी है

चाहे पहाड़ टूटे, चाहे हो बाढ़ आई।

आँसू कभी न टपके, न ही ढोल गए  बजाए

फिर भी सफर है लम्बा, मंजिल अभी न आयी।

दुनिया की देख चालें, मुझको अजब सा लगता

बेबात की बातों में दी जाती जब बधाई।

सुख में मीत’ मिलते सौ साथ चलने वाले

मुश्किल दिनों में लेकिन, कब कौन किसका भाई ?       

 

 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...