हँसी-खुशियों से
सजी हुई जिन्दगानी चाहिए ।
सबको जो अच्छी
लगे ऐसी रवानी चाहिए ।
वक्त के संग बदल जाता सभी कुछ संसार में।
जो न बदले याद
को ऐसी निशानी चाहिए ।
नजरे हो आकाश पै
पर पैर धरती पर रहे
हमेशा हर सोच
में यह सावधानी चाहिए ।
हर नए दिन नई
प्रगति की मन करे नई कामना
निगाहों में
किन्तु मर्यादा का पानी चाहिए ।
मिल सके नई
उड़ानों के जहाँ से सब रास्ते
सद्विचारों की
सुखद वह राजधानी चाहिए ।
बाँटती हो जहाँ
सबको खुशबू अपने प्यार की
भावना को वह
महकती रातरानी चाहिए ।
हर अँधेरी
समस्या का हल, सहज जो खोज ले
बुद्धि बिजली को
चमक वह आसमानी चाहिए ।
मन ‘मीत’
निराश न हो, और हो समन्वित भावना
देश को जो नई
दिशा दे वह जवानी चाहिए ।।
.
जग में सबको
हँसाता है औ' रूलाता है वक्त ।
सुख औ' दुख के चित्र रचता औ' मिटाता है वक्त ।
है चितेरा वक्त ही संसार के श्रृंगार का
नई खबरों का सतत
हरकारा है वक्त ।
बदलती रहती ए दुनिया वक्त के सहयोग से
आशा की पैगों पे
सबको नित झुलाता है वक्त ।
नियति को, श्रम को, प्रगति को है इसी का आसरा
तपस्वी को
तपस्या का फल प्रदाता है वक्त ।
भावना मय कामना
को दिखाता है रास्ता
हर गुणी साधक को
शुभ अवसर दिलाता है वक्त ।
सखा है विश्वास
का, व्यवसाय का, व्यापार का
व्यक्ति की
पद-प्रतिष्ठा का अधिष्ठाता है वक्त ।
नियंता है विश्व
का, पालक प्रकृति परिवेश का
सखा है परमात्मा
का, युग-विधाता है वक्त ।
शक्तिशाली है, सदा रचता नया इतिहास है
किन्तु जाकर फिर
कभी वापस न आता है वक्त ।
सिखाता संसार को
सब वक्त का आदर करें
सोने वालों को
हमेशा छोड़ जाता है वक्त ।
है अनादि अनंत
फिर भी है बहुत सीमित सदा
जो वक्त को पूजते उनको बनाता है वक्त ।
हर सजग श्रम
करने वाले को है इसका वायदा
एक बार ‘मीत’
उसको यश दिलाता है वक्त ।
.
जीना है तो
दुख-दर्द छुपाना ही पड़ेगा
मौसम के साथ
निभाना-निभाना ही पड़ेगा।
देखा न रहम करती
किसी पै कभी दुनिया
हर बोझ जिंदगी
का उठाना ही पड़ेगा।
नए हादसों से रोज गुजरती है जिंदगी
संघर्ष का साहस
तो जुटाना ही पड़ेगा।
खुद सॅभल उठ के
राह पै रखते हुए कदम
दुनिया के साथ
ताल मिलाना ही पड़ेगा।
हर राह में जीवन
की, खड़ी है मुसीबतें
मिल उनसे, उनका नाज उठाना ही पड़ेगा।
दस्तूर हैं कई
ऐसे जो दिखते है लाजिमी
हुई शाम तो फिर
दीप जलाना ही पड़ेगा।
है कौन जिससे
खेलती मजबूरियाँ नहीं ?
मन माने या न
माने मनाना ही पड़ेगा।
पलकों में हों
आँसू तो ओठों को दबाके
मुँह पै बनी
मुस्कान तो लाना ही पड़ेगा।
खुद के लिए न सही, पै सबके लिए सही
जख्मों को अपने
दिल के छुपाना ही पड़ेगा।
.
फल-फूल, पेड़-पौधे जो आज हरे है
आँधी में एक दिन
सभी दिखते कि झरे है।
सुख तो सुगंध
में सना झोंका है हवा का
दुख से दिशाओं
के सभी भण्डार भरे है।
नभ में जो
झिलमिलाते हैं, आशा के हैं तारे
संसार के आँसू
से, पै सागर ए भरे है।
जंगल सभी जलते
रहे गर्मी की तपन से
वर्षा का प्यार
पाके ही हो पाते हरे है।
ऊषा की किरण ही
उन्हें देती है सहारा
जो रात में गहराए
अँधेरों से डरे है।
रँग-रूप का
बदलाव तो दुनिया का चलन है
मन के रूझान की
कभी कब होते खरे है ?
सब चेहरे चमक
उठते है आशाओं के रॅग से
आशाओं के रॅग पर
छुपे परदों में भरे है।
इतिहास ने दुनिया
को दी सौगातें हजारों
पर जख्म भी
कईयों को जो अब तक न भरे है।
यादों में सजाता
है उन्हें बार-बार दिल
जो साथ थे कल आज
पै आँखों से परे है।
.
अटपटीदुनिया
साथ रहते हुए भी
घर एक ही परिवार में
भिन्नता दिखती
बहुत है व्यक्ति के व्यवहार में।।
एक ही पौधे में
पलते फूल-काँटे साथ-साथ
होता पर अन्तर
बहुत आचार और विचार में।।
आदमी हो कोई
सबके खून का रंग लाल है
भाव की पर
भिन्नता दिखती बड़ी संसार में।।
हर जगह पर
स्वार्थवश टकराव औ' बिखराव है
एकता की भावना
पलती है केवल प्यार में।।
मेल की बातें तो
कम, अधिकांश मन मे मैल है
भाईचारे का चलन
है सिर्फ लोकाचार में।।
नाम के है
नाते-रिश्ते, सच, किसी का कौन है ?
निभाई जाती है
रस्में सभी बस उपचार में।।
भुला सुख-सुविधाए
अपनी जो हमेशा साथ दे
राम-लक्ष्मण-भरत
से भाई कहाँ संसार में।।
दुनिया की गति
अटपटी है साफ दिखती हर तरफ
फर्क होता आदमी
की बात औ' व्यवहार में।।
कभी भी घुल मिल
किसी को अपना कहना व्यर्थ है
रंग बदल जाते है
अपनों के भी तो अधिकार में।।
.
'पसीने
से सिंचे बागों में ही नित फूल आते है'
बिगड़ते है बहुत
से काम सबके जल्दबाजी में
जो करते
जल्दबाजी वे सदा जोखिम उठाते है।
हमेशा छल कपट से
जिंदगी बरबाद होती है
जो होते मन के
मैले, वे दुखी कल देखे जाते है।
बिना कठिनाइयों
के जिंदगी नीरस मरूस्थल है
पसीनों से सिंचे
बागों में ही नित फूल आते है।
किसी को कहाँ
मालूम कि कल क्या होने वाला है
मगर क्या आज हो
सकता समझ के सब बताते है।
जहाँ बीहड़ पहाड़ी, घाट, जंगल खत्म हो जाते
वहीं से सम सरल
सड़कों के सुन्दर दृश्य आते है।
कभी भी
वास्तविकताए सुखद उतनी नहीं होती
कि जितने कल्पना
में दृश्य लोगों को लुभाते हैं।
निकलना जूझ
लहरों से कला है जिंदगी जीना
जिन्हें इतना
नहीं आता उन्हीं को दुख सताते हैं।
वही रोते है
रोना, भाग्य का अपने अनेकों से
परिस्थितियों को
जो अनुकूल खुद न ढाल पाते है
..
अब तो चेहरों को
सजाने लग गए है मुखौटे
इसी से बहुतों
को भाने लग गए हैं मुखौटे।
रूप की बदसूरती
पूरी छुपा देते है ए
झूठ को सच्चा
दिखाने लग गए है मुखौटे।
अनेकों तो देखकर
असली समझते है इन्हें
सफाई ऐसी दिखाने
लग गए है मुखौटे।
क्षेत्र हो
शिक्षा का या हो धर्म या व्यवसाय का
हर जगह पर
मोहिनी से छा गए है मुखौटे।
इन्हीं का
गुणगान विज्ञापन भी सारे कर रहे
नए जमाने को सजाने छा गए हैं मुखौटे।
सचाई औ' सादगी लोगों को अब लगती बुरी
बहुतों को अपने
में भरमाने लगे है मुखौटे।
वक्त के सँग लोगों की रूचियों में भी बदलाव है
खरे तो खरे हुए
सब मधुर खोटे मुखौटे।
बनावट औ' दिखावट में उलझ गई है जिंदगी
हरेक को लगते
रिझाने जगमगाते मुखौटे।
मुखौटों का चलन
सबको ले कहाँ तक जाए गा
है ‘मीत’
विचारना क्यों चल पड़े है मुखौटे।
.
नया युग है
पुराने का हो गया अवसान है
मुखौटों का चलन
है, हर साध्य अब आसान है।।
बात के पक्के औ' निज सिद्धान्त के सच्चे है कम
क्या पता क्यों
आदमी ने खो दिया ईमान है।।
बदलता रहता
मुखौटे कर्म, सुबह से शाम तक
जानकर भी यह कि
वह दो दिनों का मेहमान है।।
वसन सम चेहरे औ' बातें भी बदल लेते हैं कई
समझते यह शायद
इससे मिलता उनको मान है।।
आए दिन उदण्डता, अविवेक बढ़ते जा रहे
आदमी की सदगुणों
से अब नहीं पहचान है।।
सजावट है, दिखावट है, मिलावट है हर जगह
शुद्ध, सात्विक कहीं भी मिलता न कोई सामान है।।
खरा सोना और
सच्चे रत्न अब मिलते नहीं
असली से भी
ज्यादा नकली माल का सम्मान है।।
ढ़ोग, आडम्बर, दिखावे नित पुरस्कृत हो रहे
तिरस्कृत, आहत, निरादृत अब गुणी इंसान है।।
योग्यता या
सद्गुणों की परख अब होती कहाँ ?
मुखौटों से आदमी
की हो रही पहचान है।।
जिसके है जितने
मुखौटे वह है उतना ही बड़ा
मुखौटे जो बदलता
रहता वही भगवान है।।
है ‘मीत’
वक्त की खूबी, बुद्धि
गई बीमार हो
पा रहे शैतान
आदर, मुखौटों का मान है।।
..
तुम्हारे सँग
बिताया जब जमाना याद आता है
तो आँसू भरी
आँखों में विकल मन डूब जाता है।
बड़ी मुश्किल से
नए -नए सोच औ' चिन्ता की उलझन से
अनेकों वेदनाओं
की चुभन से उबर पाता है।
न जाने कौन सी
गल्ती हुई कि छोड़ गई हमको
इसी संवाद में
रत मन को दुख तब काटे खाता है।
अचानक तुम्हारी
तैयारी जो यात्रा के लिए हो गई
इसी की जब भी
आती याद, मन आँसू बहाता है।
अकेले अब
तुम्हारे बिन मेरा मन भड़ भड़ाता है।
अँधेरी रातों
में जब भी तुम्हें सपनों में पाता हूँ
तो मन यह मौन रो
लेता या कुछ-कुछ बड़बड़ाता है।
कभी कुछ सोचें
करने और होने लगता है कुछ और
तुम्हारे बिन, अकेले तो न कुछ भी अब सुहाता है।
अचानक तेवहारों
में तुम्हारी याद आती है
उमड़ती भावनाओं
में न बोला कुछ भी जाता है।
बड़ी मुश्किल से
आए थे वे दिन खुश साथ रहने के
तो था कब पता यह
भाग्य कब किसको रूलाता है।
है अब तो शेष, आँसू, यादें औ' दिन काटना आगे
अँदेशा कल का
रह-रह आ मुझे अक्सर सताता है।
..
आने वाले कल से
हर एक आदमी अनजान है
किया जा सकता है
केवल काल्पनिक अनुमान है।
सोचकर भी बहुत
कुछ, कर पाता कोई कुछ भी नहीं
सफलता की राह पै' अक्सर खड़ा व्यवधान है।
करती नई आशाए नित खुशियों की मोहक सर्जना
जोड़ते जिनके लिए
सब सैकड़ों सामान हैं।
कठिन श्रम की
साधना ही दिलाती है सफलता
परिश्रम भावी
सफलता की सही पहचान है।
राह चलते जो
अकेले भी कभी थकते नहीं
वहीं कह सकते है
कि यह जिन्दगी आसान है।
हर दिशा में
क्षितिज के भी पार हैं कई बस्तियाँ
किया जा सकता
पहुँच ही कोई नव अनुसंधान है।
प्रेरणा उत्साह
जिज्ञासा का हो यदि साथ तो
परिश्रम देता
सदा मनवांछित वरदान है।
कठिन श्रम की
साधना की कला जिसको सिद्ध है
वही हर अभियान
में पाता विजय औ' मान है।
..
ए जीवन है आसान नहीं जीने को झगड़ना पड़ता है
चलने की गलीचों
पै पहले तलवों को रगड़ना पड़ता है।
मन के भावों औ' चाहो को दुनिया ने किसी के कब समझा
कुछ खोकर भी
पाने को कुछ, दर-दर पै भटकना पड़ता है।
सर्दी की चुभन, गर्मी की जलन, बरसात का गहरा गीलापन
आघात यहाँ हर
मौसम का हर एक को सहना पड़ता है।
सपनों में सजायी
गई दुनिया, इस दुनिया में मिलती है कहाँ ?
अरमान लिए बोझिल मन से संसार में चलना पड़ता है।
देखा है बहारों
में भी यहाँ कई फूल-कली मुरझा जाते
जीने के लिए औरों से तो क्या ? खुद से भी झगड़ना पड़ता
है।
तर होके पसीने
से बेहद, अवसर को पकड़ पाने के लिए
छूकर के भी न
पाने की कसक से कई को तड़पना पड़ता है।
अनुभव जीवन के
मौन मिले लेकिन सबको समझाते हैं
नए रूप में सजने को फिर से, सड़कों को उखड़ना पड़ता है।
वे हैं ‘मीत’
किस्मत वाले जो मनचाहा पा जाते है
वरना ऐसे भी कम
हैं नहीं जिन्हें बनके बिगड़ना पड़ता है।
..
जे देखा औ' समझा, सुना और जाना
किसे कहें अपना
औ' किसको बेगाना।
यहाँ कोई दिखता
नहीं है किसी का
अधिकतर है धन का
ही साथी जमाना।
कला और गुण की
बहुत कम है कीमत
जगत ने है धन को
ही भगवान माना।
धनी में ही
दिखते है गुण योग्यताए
सहज है उन्हें
सब जगह मान पाना।
गरीबों की
दुनिया में हैं विवशताए
अलग उनके जीवन
का हैं ताना-बाना।
उन्हें जरूरत तक
को पैसे नहीं हैं
धनी खेाजते खर्च
का कोई बहाना।
है जनतंत्र में
कुछ नए मूल्य विकसे
बड़ा वह जिसे आता
बातें बनाना।
सदाचार दुबका है
चेहरा छुपाए
दुराचार ने सीखा
फोटो छपाना।
विजय काँटों को
हर जगह मिल रही है
सही न्याय युग
गया हो अब पुराना।
सही क्या, गलत क्या ए कहना कठिन है
न जाने कहाँ जा
रहा है जमाना।
..
होता है असर, लोगों पै सदा, नए युग के सोच-विचारों का।
जब भी लेता कोई
युग करवट-परिवेशें में व्यवहारों का।।
पर जिसको अपने
बल का औ' निश्चय का होता है आदर
दिखता है उसके
चेहरे पर आलोक खुले संस्कारों का।।
खिलने वाला हर
फूल हुआ करता विकसित धीरे-धीरे
पाता रंग रूप
सुगंध सभी वह अपने ही परिवारों का।।
जो निश्चय व्रत
वाले होते पक्के अपने संकल्पों के
उन पर न असर
होता जग के इनकारों का इकरारों का।।
अन्तर्मन के
विश्वासों पर निर्भर होते परिणाम सभी
परवाह नहीं करती
दृढ़ता तूफानों के आकारों का।।
उलझन में उलझ
जाने वालों के डग रूक जाते राहों में
वे ही पाते
मंजिल अपनी जिन्हें डर न कभी अंगारों का।।
आदत से जो अपनी
होते है ढुलमुल-ढुलमुल ढीले-ढाले
उनको रह पाती
याद कहाँ। औरों के किए उपकारों का।।
शायद ही मिले कोई ऐसा जिस पर न असर हो मौसम का
भारत में सुहाने
सावन के खुशियों से भरे तेवहारों का।।
होते है अडिग
निर्णय जिनके, कुछ भी न असंभवन जीवन में
हर व्यक्ति ‘मीत’
है अधिकारी अपने कल के अधिकारों का।।
..
ए जिंदगी एक सफर है ऐसा सभी को चलना यहाँ जो आए
हर एक का पर अलग
है रास्ता, चुने वही वह उसे जो भाए
हैं फूल-काँटे
हरेक डगर पै, खुधी औ' गम के कई ठिकाने
नसीब में किसके
पर है क्या यह तो, उसकी की करनी उसे बताए ।
सुबह जो निकला
खुशी से हंसकर, कहीं न थक जाए दो पहर तक
ए भी अँदेशा है कि भटककर किसी जगह कोई अटक न जाए ।
कभी है गर्मी, कभी है सर्दी, कभी बरसती अँधेरी रातें
कड़कती बिजली, घुमड़ते बादल, डराते तूफाँ कहीं न आए ।
कहीं हैं ऊंचे
पहाड़, दर्रे, उमड़ती नदियाँ, डराते
जंगल
कहीं मरूस्थल
विशाल ऐसे, जिन्हें कभी कोई न लांघ पाए ।
मगर हैं सदियों
से ए सभी यों, बनी औ' बिगड़ी नवीन राहें।
नए मुसाफिर भी चलते आए , बढ़े कई तो बिना बताए ।
अजब ए दुनिया तो है वही पर हरेक की हैं अलग निगाहें
कई को सागर
सुहाने दिखते कई को हर दम डराते आए ।
लगा लगन कर
इरादे पक्के जिन्होंने आगे कदम बढ़ाए
‘मीत’
सब अड़चनें हटाके वे नभ से तारे भी तोड़ लाए ।
..
दिन से भी कहीं
ज्यादा रातें हमें प्यारी हैं
क्योंकि ए सदा लातीं प्रिय याद तुम्हारी हैं।
मशगूल बहुत दिन
हैं, मजबूर बहुत दिन है
रातों ने ही तो
दिल की दुनिया ए सँवारी हैं।
सूरज के उजाले
में परदा किया यादों ने
दिन तो रहे
दुनिया के, रातें पै हमारी है।
कुछ याद रहे दिन
वे भड़भड़ में गुजारे जो
है याद मगर
रातें तनहां जो गुजारी हैं।
कोई ‘मीत’
बोले, दिन में कहाँ मिलती है ?
रातों के
अँधेरों में जो मीठी खुमारी है।
..
दर्द को दिल में
अपने छुपाए आज महफिल में आए हुए हैं।
क्या बताए कि अपनों के गम से किस तरह हम सताए हुए हैं।
अपनों को
खुशियाँ देने को हमने जिंदगी भर लड़ीं है लड़ाई
पर बताए क्या हम दूसरों को, अपनों से भी भुलाए हुए हैं।
जिस तरफ भी
नजरें घुमाई, कहीं भी कोई मिला न सहारा
राह चलता रहा
आँख खोले, फिर की कई चोट खाए हुए हैं।
गर्दिशों में भी
लब पै तबसुम्म लिए हम आगे बढ़ते रहे हैं
अन कहें सैंकड़ों
दर्द लेकिन अपने दिल में छुपाए हुए हैं।
काट दी उम्र सब
झंझटों में, पर कभी उफ न मुंह से निकाली
अपनी दम पै
तूफानों से लड़के इस किनारे पै आए हुए हैं।
शायद दुनिया का ए
ही चलन है कोई शिकवा गिला क्या किसी से
हमको लगता है हम
शायद अपने दर्द के ही बनाए हुए है।
जो गुजारी न
उसका गिला है, खुश हैं उससे ही जो कुछ मिला है
बन सका जितना
सबको किया है, चोट पर सबसे खाए हुए हैं।
है भरोसा ‘मीत’
हमें अपनी टॉगों पर जिनसे चलते रहे हैं
आगे भी राह चल
लेंगे पूरी, इन्हीं से चलते आए हुए हैं।
..
है हवा कुछ
जमाने की ऐसी, लोग मन की छुपाने लगे हैं।
दिल में तो बात
कुछ और ही है, लब पै कुछ और बताने लगे हैं।
ए जमाने की खूबी नहीं तो और कोई बताए कि क्या है ?
जिसको छूना भी
था पहले मुश्किल, लोग उसमें नहाने लगे हैं।
कौन अपना है या
है पराया, दुनिया को ए बताना है मुश्किल
जिनको पहले न
देखा, न जाना, अब वो अपने कहाने लगे हैं।
जब से उनको है
बागों में देखा, फूल सा मकहते मुस्कुराते
रातरानी की
खुशबू से मन के दरीचे महमहाने लगे हैं।
बालों की घनघटा
को हटा के चाँद ने झुक के मुझको निहारा
डर से शायद नजर
लग न जाए , वे भी नजरें चुराने लगे हैं।
रंग बदलती ‘मीत’
ऐसा दुनिया कुछ भी कहना समझना है मुश्किल
जिनको हमने था
चलना सिखाया, अब से हमको चलाने लगे हैं।
..
जो भी मिली
सफलता मेहनत से मैंने पायी
दिन रात खुद से
जूझा किस्मत से की लड़ाई
जीवन की राह
चलते ऐसे भी मोड़ आए
जहाँ एक तरफ
कुआँ था औ' उस तरफ थी खाई।
कांटों भरी सड़क
थी, सब ओर था अँधेरा
नजरों में सिर्फ
दिखता सुनसान औ' तनहाई।
सब सहते, बढ़ते जाना आदत सी हो गई अब
किसी से न कोई
शिकायत, खुद की न कोई बड़ाई।
लड़ते मुसीबतों
से बढ़ना ही जिन्दगी है
चाहे पहाड़ टूटे, चाहे हो बाढ़ आई।
आँसू कभी न टपके, न ही ढोल गए बजाए
फिर भी सफर है
लम्बा, मंजिल अभी न आयी।
दुनिया की देख
चालें, मुझको अजब सा लगता
बेबात की बातों
में दी जाती जब बधाई।
सुख में ‘मीत’
मिलते सौ साथ चलने वाले
मुश्किल दिनों
में लेकिन, कब कौन किसका भाई ?
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