पूर्णाहुति-आचार्य चतुरसेन का कीमियागिरी का इतिहास
आचार्य चतुरसेन जी साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने किशोरावस्था में कहानी और गीतिकाव्य लिखना शुरू किया, बाद में उनका
साहित्य-क्षितिज फैला और वे जीवनी, संस्मरण, इतिहास, उपन्यास, नाटक तथा धार्मिक
विषयों पर लिखने लगे। शास्त्रीजी साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक कुशल चिकित्सक भी
थे। वैद्य होने पर भी उनकी साहित्य-सर्जन में गहरी रुचि थी। उन्होंने राजनीति,
धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास और युगबोध जैसे विभिन्न विषयों पर लिखा। आचार्य चतुरसेन जी साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने किशोरावस्था में कहानी और गीतिकाव्य लिखना शुरू किया, बाद में उनका
साहित्य-क्षितिज फैला और वे जीवनी, संस्मरण, इतिहास, उपन्यास, नाटक तथा धार्मिक
विषयों पर लिखने लगे। ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘वयं रक्षाम’ और ‘सोमनाथ’, ‘गोली’, ‘सोना और खून’
(चार खंड), ‘रक्त की प्यास’, ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’, ‘नरमेघ’, ‘अपराजिता’, ‘धर्मपुत्र’, ‘पत्थर युग के दो बुत’,’ दुखवा मैं कासे कहूं’, और ‘पूर्णाहुति’ सबसे ज्यादा चर्चित कृतियां हैं। आचार्य चतुरसेन हिंदी के ऐसे प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, जिन्होंने सैकड़ों कहानियाँ और कई चर्चित उपन्यास लिखे हैं। उनका रचनात्मक फलक बहुत विशाल था, जिसमें उन्होंने धर्म, राजनीति, समाजशास्त्र, स्वास्थ्य और चिकित्सा आदि विषयों पर लिखा। उनकी 150
से अधिक प्रकाशित रचनाएँ हैं, जो अपने में एक कीर्तिमान है।
इतिहास अपने समय की गवाही देता है। यदि ऐतिहासिक समाज को समझना हो तो और साहित्य की पाठकों की बड़ी मदद करता है। आचार्य चतुरसेन के उपन्यास ऐतिहासिक तौर पर अपने समय और समाज की बदलती हुई सामाजिक संरचना को बहुत ही बारीकी ढंग से उकेरते थे। “पूर्णाहुति” उपन्यास भी पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के प्यार और अमर बलिदान की कहानी को रेखांकित करता है। इस उपन्यास में न सिर्फ प्रेम का उच्च स्तर दिखाया गया है बल्कि देशभक्ति और वीरता की कहानी भी पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करेगी। आचार्य चतुरसेन का यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय में था।
आचार्य चतुरसेन एक ऐसे विद्वान थे, जिनका साहित्य क्षेत्र कहानी तथा उपन्यास तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्हें
चिकित्साशास्त्र एवं रसायनशास्त्र की भी ख़ास समझ थी। उपन्यास का यह अंश इस विशेषता
को पूर्णतः स्पष्ट करता जान पड़ता है-“कीमिया अर्थात् ‘रसायन’, भारत की प्राचीन
रहस्यपूर्ण विद्याओं में एक विद्या कीमिया या रसायन भी है। कीमिया केवल प्राचीन
भारत की ही विद्या नहीं है अपितु चीन, मिस्र, अरब, रोम, यूनान और यूरोप में प्राचीन काल में इस विद्या की गर्मागर्म चर्चा रही है। सच
पूछा जाए, तो कहना पड़ेगा कि अज्ञानांधकार में छटपटाते
हुए मानव मस्तिष्क के सक्रिय उत्थान का एक मनोरंजक इतिहास कीमियागिरी का इतिहास
है।”
प्रकाशक- डायमंड बुक्स
मूल्य-पेपरबैक-128/-
डॉ मीता गुप्ता
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