Tuesday, 22 April 2025

मैं पुस्तक हूँ

 


मैं पुस्तक हूँ





मैं विश्व की हर आवाज़ को शब्दों की स्याही में डुबोती हूँ.

दिल को छूतीज्ञान से भरपूर कई विधाओं को संजोती हूँ

मैं पुस्तक हूँ!

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

शैशवयुवावस्थाप्रौढ़ जीवन के विविध रंग उकेरती हूँ

हर तबकेहर संस्कृतिसभ्यता के अनुभव को समेटती हूँ

मैं पुस्तक हूँ!

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

मानवपशु-पक्षीपर्वत नदियों संग अठखेलियाँ करती हूँ

मुखौटे लगे चेहरों की भी शराफत बन रंगरेलियां रचती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

उत्थान पतन की लहरें,ऐतिहासिक स्मृति से उठाती गिराती हूँ

गीले रेत पर पड़े अपने ही निशाँ बनाती और फिर मिटाती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

आज कीकल कीहर पल की गाथा बन जुबां में सजती हूँ

सार्वभौमिक सत्यवैज्ञानिक रहस्य का हर लम्हा बुनती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

गंगोत्री से निकली यात्रा कोमैं ही गंगासागर ले चलती हूँ

राजा रानी के किस्सों में समा बच्चों के सपनों में पलती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

कभी सौंदर्य कुदरत काकभी ज्ञान के सागर में डुबोती हूँ

शब्दों के बादल पर बिठाभावों की बारिश से भी भिगोती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

कभी हंसाती ,कभी रुलातीकभी संजीदाविचारमग्न करती हूँ

मस्तिष्क के बंद पट कोचुपके-चुपके अहिस्ता से खोलती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

भूल जाना ना मुझे कभीदुःख सुख हर लम्हे में साथ देती हूँ

जहां कोई नहीं तुम्हारासिवा तन्हाई के,अपना हाथ देती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

इस कंप्यूटर युग में तो जैसेबनती जा रही मैं डूबती कश्ती हूँ

फट जाऊंगल जाऊं, फिर भीरहूँ स्मृति मेंएक ऐसी हस्ती हूँ

मैं पुस्तक हूँ! 

तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो

मैं पुस्तक हूँ! 

डॉ मीता गुप्ता

विचारक, साहित्यकार

जी होता कुल्फ़ी बन जाऊँ

जी करता, कुल्फ़ी  बन जाऊँ


 

जी करताकुल्फ़ी  बन जाऊँ!

श्वेतावर्णा बनकर सुख पाऊँ!

 

फुदक-फुदककर दूध-मलाई बन,

चीनी-चाशनी में बन-ठन ,

साँचे में जम-जम जाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

कितना अच्छा इसका जीवन?

आज़ाद सदा इनका तन-मन!

मैं भी इस-सी मिठास फैलाऊँ !

जी करताकुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

हर घर, हर द्वार पर खुशबू फैलाऊँ,

लू-धूसरित आंधी में भी सैर कर आऊँ,

इतराऊं-इठलाऊँ-सबको ललचाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

रीना-मीना-आभा-आरिफ़ आओ,

घर बैठे न यूँ शरमाओ,

देखो, इरम-प्रतिभा-वर्षा भी आई,

कुल्फ़ी माधुर्य-शीतलता लाई|

 

इसीलिए यह गुनती जाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 


Wednesday, 9 April 2025

शादी की सालगिरह

 शादी की ये वाली सालगिरह शुरू होने पर.... 


कुछ पुरानी तस्वीरें फिर से मुस्कुराईं,

वो पहली मुस्कान, वो हल्की सी शरमाहट, for me and the other things that we are 

जैसे वक्त की किताब फिर से पलट गई।


साल दर साल साथ चले,

कभी धूप में, कभी छांव तले,

कुछ खामोशियां थीं, कुछ हँसी के मेले,

कभी रूठना, कभी मनाना — सब रंग थे रिश्ते के इस खेल में।


पहली लड़ाई की बात याद है?

या वो पहली बार जब तुमने चाय बनाई थी?

आज भी उसी चाय की खुशबू

हर सुबह को खास बना जाती है।


इन सालों में हमने बहुत कुछ पाया,

कुछ खोया, कुछ सहेजा, कुछ संभाला,

पर सबसे कीमती तो ये साथ था —

जो हर मोड़ पर हमें एक-दूजे के और करीब लाता गया।


शादी की 40वीं सालगिरह शुरू होने पर,

मैं सिर्फ तुम्हारा "धन्यवाद" कहना चाहती हूँ —

कि तुमने हर तूफान में मेरा हाथ थामा,

और हर मुस्कान में मेरी आंखों में झांका।


आओ, इस नए दशक की शुरुआत करें,

फिर से एक वादा करें —

कि अगला हर साल,

प्यार में बीते, साथ में बीते, और यूँ ही खूबसूरत बीते।

स्वाद-बेस्वाद

 वह जब भी खाना पकाती

ख़ुद को पूरी तरह डुबा देती।

अपने सभी स्वाद खाने में घोल देती

उसके पास नमक, चीनी, मिर्च, हल्दी सब बेहिसाब था

अक्सर प्याज काटने के बहाने से वह ख़ूब रो लेती

और उसके भीतर का नमक आखों से बहने लगता

जल्दी ही उसका नमक, चीनी, मिर्ची और हल्दी

का संचय ख़तम होने लगा।


"क्या बेस्वाद खाना बनाती हो।

फीकी कर दी मेरी ज़िन्दगी"

(वह गुस्से से चिल्लाया)

"हाँ नमक कम हो गया तुम्हारी सब्जी में

और ज़िन्दगी में है न?

लेकिन गुंजाईश फिर भी है तुम्हारे पास

ये लो नमकदानी और चीनी जितना चाहे डालो

स्वादानुसार...

स्वाद के विकल्प छोड़े है मैंने अब भी

लेकिन सुनो...

तुमने मेरी ज़िन्दगी में इतना नमक घोल दिया कि

ज़हर हो गयी ज़िन्दगी

अब कोई गुंजाईश भी नहीं शेष...

मन समझते हैं आप?

 


मन समझते हैं आप?


यकीनन वो स्त्री नहीं थी।

सिर्फ और सिर्फ "मन " थी।

मन से बनी, मन से जनी

मन से गढ़ीऔर मन से बढ़ी।


जिससे भी मिलती मन से मिलती।

अपने मन से दूसरे के मन तक

एक पुल बना लेने का हुनर था उसके पास।

इस पुल से वो दूसरे मन तक पहुँचती थी।

उन टूटे फूटे मन की दरारें भरती , मरम्मत करती।


जानती थी, सोने चांदी से मरम्मत नहीं की जाती।

मन की दरारें मन की मिट्टी से ही भरी जाती।

उसके बनाये मन के पुल पे चलकर लोग आते

जाते समय इक मुट्ठी मन की मिट्टी भी लिए जाते।

फिर भी 

(वो इस बात पे मुस्काती और कहती मन समझती हूँ मैं )


धीरे-धीरे मन के पुल टूटने लगे।

मिट्टी की कमी से आसुओं की नमी से

रिश्ते जड़ों से छूटने लगे

अब वो पुल नहीं बना पाती|

इतनी मिट्टी वो अकेले कहाँ से लाती?

कहाँ से लाती?

धीरे धीरे उसका मन बीत गया

जैसे कोई मीठा कुआँ रीत गया।

वो राह तकती है , कोई आता होगा

साथ में इक मुट्ठी मन की मिट्टी लाता होगा।

 कोई आता होगा...

परंतु निगोड़ी अब भी मुस्काती है और कहती है

ओह, मन नहीं समझते न आप?

नाते पुराने हैं

 नाते पुराने हैं 


जो अक्सर चुप रहते हैं,

अपना प्रेम और पीड़ा मन में छिपाते हैं

वो सब एक दिन पहाड़ बन जाते हैं।

जो कहते है सुनते है और बहते है

अपने प्रेम और पीड़ा को लुटाते है

वो सब एक दिन नदी बन जाते है।


एक दिन नदियाँ पहाड़ों को हिला देंगी।

समाधि में लीन शिव को जगा देगीं।

पहाड़ों के सूखे आसूं, रेत बन झरते हैं।

इन कणों से सीपियों के गर्भ पलते हैं।


पहाड़ों की चुप से नदी के मन जलते हैं

पहाड़ों के दुःख, पीड़ा और अवसाद

पेड़ बन अपनी ही छाँव में जलते हैं

सच कहती थी नदी, अहसास भी भला कभी

मरते हैं।


पूछ बैठा कोई पहाड़ किसी नदी से किसी दिन

कितना बोलती हो, बहती हो थकती नहीं हो?

कभी रोई होगी तुम ऐसी लगती तो नहीं हो

नदी मुस्काई दो बूंद उसकी आखों में छलक आई।


हम दोनों की पीड़ा,एक जैसी बस आसूं अलग हैं

तुम्हारे आसूं सूखी रेत, तो मेरे बूंदों से तरल है।


कोई "बिन कहे" पहाड़ हो जाता है

मर जाता है

कोई कह कह कर, बह बह कर

नदी बन जाता है।

दोनों के रोने के अपने बहाने हैं

पहाड़ों के नदियों से नाते पुराने हैं।

इन्हेलर

 इन्हेलर 

(कभी-कभी रिश्तों को बचाने के लिए हम इन्हेलर बन जाते है। कभी बरनोल, कभी डिस्प्रीन, कभी डस्टबीन, तो कभी-कभी बेसिन भी, रिश्ते फिर भी नहीं बचते)

तुम मेरी इमोशनल जरुरत हो यानी साँसों की जरुरत

जैसे ये इन्हेलर...

तुम इन्हेलर हो मेरी

तुम्हारा प्रेम ही तो भरा है इसमें।

जब-जब भी मेरी सांसे टूटती है,

उखड़ती हैं घुटती या अटकती है

तुम झट से इन्हेलर बन जाती हो।

तुम्हे खोजता हूँ इस दुनिया के घर में

बदहवास सा...

तुम स्पेशल हो मेरे लिए, ख़ास भी

मैं इन्हेलर के बिना साँस नहीं ले सकता।

वो बोली, हाँ... जानती हूँ...

उस दिन से वो उस इन्हेलर को खूब संभालकर रखती

और उसे कहती तू नहीं मैं ख़ास हूँ समझे?

सौ बार इन्हेलर को निहारती,

तो दो सौ बार खुद को आईने में देखती, इतराती...

फिर एकदिन वो अचानक उसे छोड़ गया,

उसका इन्हेलर भी टेबल पर ही छूट गया।

उसने पूछा था एकदिन,

फोन पर ये इन्हेलर तो यहीं रह गया।

तुम्हारी सांसों की जरुरत...

क्या परदेश में साँसों की जरुरत नहीं?

ओह प्रिये, आते ही नया खरीद लिया,

तुम तो जानती हो न


हाँ... जानती हूँ...

...इन्हेलर के बिना तुम जी नहीं सकते।



Saturday, 5 April 2025

मन की अपार शक्ति


मन की अपार शक्ति

मन की तुलना मुकुर के साथ दी जाती है, जो बहुत ही उपयुक्त है। मुकुर में हमारा मुख साफ तभी दिख पडे़गा, जब दर्पण निर्मल हो। वैसा ही मन भी जब किसी तरह के विकार से रहित और निर्मल होगा, तभी ‍मनन, जो मन का व्‍यापार है, भलीभाँति बन पड़ेगा। तनिक भी बाहर की चिंता का, कपट का, या  कुटिलाई की मैल मन पर संक्रमित रहे, तो उसके सूक्ष्‍म विचारों की स्‍फू‍र्ति चली जाती है। इसी कारण पहले के लोग मन पवित्र रखने के उद्देश्य से वन में जा बसते थे, प्रात: काल और साँझ को कहीं एकांत स्‍थल में स्‍वच्‍छ जलाशय के समीप बैठ मन को एकाग्र करने का अभ्‍यास करते थे। मन की प्रशंसा में यजुर्वेद संहिता की 34 अभ्‍यास में 5 ऋचाएँ हैं, जो ऐसे ही मन के संबंध में हैं जो अकलुषित, स्‍वच्‍छ और पवित्र है। जल की स्‍वच्‍छता के बारे में एक जगह कहा भी है 'स्‍वच्‍छं सज्‍जनचित्‍तवत्' यह पानी ऐसा स्‍वच्‍छ है, जैसा सज्‍जन का मन।

''यस्मिन्‍नृच सामयजूंषि यस्मिन्‍प्रतिष्ठिता रथनाभाविचारा: ।

यस्मिंश्चित्‍तं सर्वमोतं प्रजानां तन्‍मे मन: शिवसंकल्‍पमस्‍तु।।

सुषारथिरश्‍वानिव यन्‍मनुष्‍यान्‍नेनीयते S भीषुभि र्वाजिन।

इवहूत्‍प्रतिष्‍ठं यदजिरं जविष्‍ठं तन्‍मे मन:शिसंकल्‍पमस्‍तु।।''

अर्थात रथ के पहिए में जैसे आरा सन्निविष्‍ट रहते हैं, वैसे ही ऋग् यजु साम के शब्‍द-समूह मन में सन्निविष्‍ट हैं। पट (वस्त्र) में जैसे तंतु समूह ओत-प्रोत रहते हैं, वैसे ही सब पदार्थों का ज्ञान मन में ओत-प्रोत है। अर्थात मन जब अकलुषित और स्‍वस्‍थ है, तभी विविध ज्ञान उसमें उत्‍पन्‍न होते हैं, व्‍यग्र हो जाने पर नहीं। जैसे चतुर सारथी घोड़े को अपने अधीन रखता है और लगाम के द्वारा उनको अच्‍छे रास्‍ते पर ले चलता है, वैसे ही मन हमें चलाता है। तात्‍पर्य यह है कि मन देह-रथ का सारथी है और इंद्रियाँ घोड़े हैं| चतुर सारथी हुआ, तो घोड़े जब कुपंथ पर जाने लगते हैं, तब वह लगाम कड़ी कर उन्‍हें रोक लेता है। जब देखता है कि रास्‍ता साफ है, तो बाग की डोर ढीली कर देता है, वैसा ही मन करता है। जिन मन की स्थिति अंत:करण में है, जो कभी बुढ़ाता नहीं, जो अत्यंत वेगगामी है, वह मेरा मन शांत व्‍यापार वाला हो, ऐसी कामना इस श्लोक में की गई है|

यज्‍जाग्रतो दूरमुदैति तदु, सुप्‍तस्‍य तथैवैति।

दूरं गमं ज्‍योतिषां ज्‍योतिरेकं तन्‍मे नम: शिवसंकल्‍पमस्‍तु।।

इसी प्रकार चक्षु (आंखें) आदि इंद्रियाँ इतनी दूर नहीं जातीं, जितना जागते हुए का मन दूर से दूर जाता है और लौट भी आता है, जो दैव अर्थात दिव्‍य-ज्ञान वाला है, आध्‍यात्मिक संबंधी सूक्ष्‍म विचार जिस मन में आसानी से आ सकते हैं, प्रगाढ़ निद्रा का सुषुप्ति अवस्‍था में जिसका सर्वथा नाश हो जाता है, जागते ही जो तत्‍क्षण फिर जी उठता है, वह मेरा मन शिव संकल्‍प वाला हो, अर्थात उसमें सदा धर्म ही स्‍थान पाए, पाप मन से दूर रहे।

मन के बराबर चंचल संसार में कुछ नहीं है। पतंजलि महामुनि ने उसी चंचलता को रोक मन के एकाग्र रखने को योग दर्शन निकाला। यूरोप वाले हमारी और-और विद्याओं को तो खींच ले गए, पर इस योग-दर्शन और फलित ज्‍योतिष पर उनकी दृष्टि उसके मौलिक रूप पर नहीं गई, सो कदाचित इसीलिए कि ये दोनों आधुनिक सभ्‍यता के साथ मेल नहीं खाते। तभी तो ‘योग’ ‘योगा’ बन गया और उसका नैसर्गिक रूप ही बदल गया| इस तरह के निर्मल मन वाले सदा पूजनीय हैं, जिनके मन में किसी तरह का कल्‍मष नहीं है, द्रोह, ईर्ष्‍या, मत्‍सर, लालच तथा काम-वासना से मुक्ति जिनका मन है उन्‍हीं को जीवन्‍मुक्‍त कहेंगे।

बुद्ध और ईसा आदि महात्‍मा दत्‍तात्रेय और याज्ञवल्‍क्‍य आदि योगी जो यहाँ तक पूजनीय हुए कि अवतार मान लिए गए ,उनमें जो कुछ महत्‍व था, सो इसी का कि वे मन को अपने वश में किए थे। जो मन से पवित्र और दृढ़ हैं, वे क्‍या नहीं कर सकते? संकल्‍प सिद्धि इसी मन की दृढ़ता का फल है। शत्रु ने चारों ओर से आके घेर लिया, लड़ने वाले फौज के सिपाहियों के हाथ-पाँव फूल गए, भाग के भी नहीं बच सकते, सबों की हिम्‍मत छूट गई, सब एक स्‍वर से चिल्‍ला रहे हैं, हार मन, अब' शत्रु के सुपर्द अपने को कर देने ही से कल्‍याण है, कैदी हो जाएँगे बला से, जान तो बची रहेगी। पर सेनाध्‍यक्ष 'कमांडर' अपने संकल्‍प का दृढ़ है, सिपाहियों के रोने-गाने और कहने-सुनने से विचलित नहीं होता, कायरों को सूरमा बनाता हुआ रण-भूमि में आ उतरा, तोप के गोलों का आघात सहता हुआ शत्रु की सेना पर जा टूटा, द्वंद्व युद्ध कर अंत को विजयी होता है। ऐसे ही योगी को जब उसका योग सिद्ध होने पर आता है, तो विघ्‍नरूप, जिन्‍हें अभियोग कहते हैं, होने लगते हैं, इंद्रियों को चलायमान करने वाले यावत प्रलोभन सब उसे आ घेरते हैं। उन प्रलोभनों में फँस गया, तो योग से भ्रष्‍ट हो गया। उनके प्रलोभन पर भी चलायमान न हुआ, दृढ़ बना रहा, तो अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उसकी गुलाम बन जाती हैं, योगी सिद्ध हो जाता है। ऐसे ही विद्यार्थी जो मन और चरित्र का पवित्र है दृढ़ता के साथ पढ़ने में लगा रहता है, पर बुद्धि का तीक्ष्‍ण नहीं है, बार-बार फेल होता है, तो भी ऊब कर अध्‍ययन से मुँह नहीं मोड़ता, अंत को कृतकार्य हो संसार में नाम पाता है। बड़ी से बड़ी कठिनाई में पड़ा हुआ मन का पवित्र और दृढ़ है तो उसकी मुश्किल आसान होते देर नहीं लगती। आदमी में मन की पवित्रता छिपाए नहीं छिपती, न कुटिल और कलुषित मन वाला छिप सकता है। ऐसा मनुष्य जितना ही ऊपरी दाँव-पेंच अपनी कुटिलाई छिपाने को करता है उतना ही बुद्धिमान लोग जो ताड़बाज हैं, ताड़ लेते हैं।

कहावत है 'मन से मन को राहत है' 'मनु, मन को पहचान लेता है' पहली कहावत के यह माने समझे जाते हैं कि जो तुम्‍हारे मन में मैल नहीं है, वरन तुम बड़े सीधे और सरल चित्‍त हो तो दूसरा कैसा ही कुटिल और कपटी है तुम्‍हारा और उसका किसी एक खास बात में संयोग-वश साथ हो गया तो तुम्‍हारे मन को राहत न पहुँचेगी। जब तक तुम्‍हारा ही-सा एक दूसरा पड़ तुम्‍हें निश्‍चय न करा दे कि इसका विश्‍वास करो हम इसके बिचवई होते हैं। दूसरी कहावत के मतलब हुए कि हमसे कुटिल चालबाज का हमारे ही समान कपटी चालाक का साथ होने से पूरा जोड़े बैठ जाता है।

मस्तिष्‍क, मन, चित्‍त, हृदय, अंत:करण, बुद्धि ये सब मन के पर्याय शब्‍द हैं। दार्शनिकों ने बहुत ही थोड़ा अंतर इनके जुदे-जुदे 'फंक्‍शन' कामों में माना है-अस्‍तु हमारे जन्‍म की सफलता इसी में है कि हमारा मन सब वक्रता और कुटियाई छोड़ सरल वृत्ति धारण कर, भगवद्चरणारविंद के रसपान का लोलुप मधुप बन, अपने असार जीवन को इस संसार में सारवान बनाए, तत्‍सेवानुरक्‍त महजनों की चरण रज को सदा अपने माथे पर चढ़ाता हुआ ऐतिक तथा आमुष्मिक अनंत सुख का भोक्‍ता हो, जो निश्चितमेव नाल्‍पस्‍य तपसै: फलम् है। अंत को फिर भी हम एक बार अपने वाचक वृंदों को चिताते हैं कि जो तभी होगा जब चित्‍त मतवाला हाथी-सा संयम के खूँटे में जकड़ कर बाँधा जाय। अच्‍छा कहा है -

अप्‍यस्ति कश्चिल्‍लोकेस्मिन्‍येनचित्‍त मदद्विप:।

नीत: प्रशमशीलेन संयमालानलीनताम्।।

डॉ मीता गुप्ता

शिक्षाविद व साहित्यकार

स्वास्थ्य देता है समृद्धि

 

स्वास्थ्य देता है समृद्धि

स्वास्थ्य देता है समृद्धि, यह वाक्य केवल एक सूक्ति नहीं, बल्कि जीवन का मूलमंत्र है। स्वास्थ्य और समृद्धि का संबंध बहुआयामी है| यह वाक्य इस गहन सत्य को भी व्यक्त करता है कि शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक, सभी प्रकार की समृद्धि ही वास्तविक समृद्धि है| प्रति वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 विश्व स्तर पर 7 अप्रैल को मनाया जाता है, जो 1948 में स्थापित होने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की वर्षगांठ भी है। यह दिन वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सरकारों, स्वास्थ्य संस्थानों, नागरिक समाज और व्यक्तियों के बीच कार्रवाई को संगठित करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। इस वर्ष, “स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य” थीम स्वास्थ्य और समृद्धि के अटूट संबंध को उजागर करती है|

हर साल एक खास थीम चुनी जाती है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को दर्शाती है । इन थीम का उद्देश्य तत्काल स्वास्थ्य चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नीति-स्तरीय हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करना है।

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 का थीम: “स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य”

इस वर्ष का विषय, “स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य”मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित है । यह एक व्यापक, वर्ष भर चलने वाले डब्ल्यूएचओ अभियान की शुरुआत का प्रतीक है

 

 

यह कहावत सिर्फ़ एक सिद्धांत नहीं, बल्कि *वास्तविक जीवन के अनगिनत उदाहरणों* से सिद्ध होती है। नीचे कुछ ठोस उदाहरण दिए गए हैं जो दिखाते हैं कि कैसे अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति, परिवार और राष्ट्र को समृद्ध बनाता है:

 

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## *1. व्यक्तिगत स्तर पर उदाहरण* 

### *उदाहरण 1: एक स्वस्थ किसान की सफलता* 

- *स्थिति:* रामसिंह (मध्य प्रदेश का एक किसान) रोज़ सुबह योग करता है और पौष्टिक भोजन लेता है। 

- *परिणाम:* 

  - वह लंबे समय तक खेत में काम कर पाता है। 

  - बीमारियों पर खर्च न होने से उसकी बचत बढ़ती है। 

  - स्वस्थ रहने के कारण वह नई कृषि तकनीक सीखकर अपनी आय दोगुनी कर लेता है। 

 

### *उदाहरण 2: एक छात्र की पढ़ाई में सफलता* 

- *स्थिति:* प्रिया (एक मेधावी छात्रा) रोज़ 7-8 घंटे सोती है और संतुलित आहार लेती है। 

- *परिणाम:* 

  - उसकी एकाग्रता और याददाश्त अच्छी होती है। 

  - परीक्षा के समय तनाव नहीं होता, जिससे वह अच्छे अंक लाती है। 

  - आगे चलकर वह एक सफल डॉक्टर बनती है और समाज की सेवा करती है। 

 

### *उदाहरण 3: अस्वस्थता के कारण नौकरी का नुकसान* 

- *स्थिति:* राजेश (एक आईटी कर्मचारी) देर रात तक काम करता है, जंक फूड खाता है और व्यायाम नहीं करता। 

- *परिणाम:* 

  - 2 साल बाद उसे मोटापा और डायबिटीज़ हो जाता है। 

  - बार-बार मेडिकल लीव लेने के कारण उसकी नौकरी चली जाती है। 

  - इलाज पर लाखों रुपये खर्च होते हैं, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। 

 

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## *2. पेशेवर जीवन में उदाहरण* 

### *उदाहरण 4: सफल उद्यमी और उनकी स्वस्थ आदतें* 

- *रतन टाटा, नारायण मूर्ति, विराट कोहली* जैसे लोग *फिटनेस और संयमित जीवनशैली* को प्राथमिकता देते हैं। 

- *परिणाम:* 

  - 60-70 की उम्र में भी सक्रिय रहकर व्यवसाय चलाते हैं। 

  - तनाव प्रबंधन करके बेहतर निर्णय लेते हैं। 

 

### *उदाहरण 5: अस्वस्थता के कारण करियर का अंत* 

- *कई क्रिकेटर्स (जैसे युवराज सिंह, कैंसर से जंग लड़ी) और एथलीट्स* को बीमारी के कारण समय से पहले रिटायर होना पड़ा। 

- *परिणाम:* 

  - उनकी कमाई और प्रदर्शन प्रभावित हुआ। 

  - इलाज पर करोड़ों खर्च हुए। 

 

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## *3. राष्ट्रीय स्तर पर उदाहरण* 

### *उदाहरण 6: जापान और स्वस्थ समाज* 

- जापानी लोग *संतुलित आहार (सुशी, हरी सब्जियाँ) और सक्रिय जीवनशैली* अपनाते हैं। 

- *परिणाम:* 

  - दुनिया में सबसे अधिक औसत आयु (84 वर्ष)। 

  - कम बीमारियों के कारण स्वास्थ्य व्यय कम, जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत। 

 

### *उदाहरण 7: भारत में स्वास्थ्य संकट का आर्थिक प्रभाव* 

- *WHO के अनुसार,* भारत में हर साल *3.2% GDP* सिर्फ़ हृदय रोग, डायबिटीज़ और कैंसर पर खर्च होता है। 

- *परिणाम:* 

  - करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं क्योंकि इलाज महंगा है। 

  - कामगारों की कमी होने से उत्पादन घटता है। 

 

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## *4. ऐतिहासिक उदाहरण* 

### *उदाहरण 8: आयुर्वेद और प्राचीन भारत की समृद्धि* 

- चरक और सुश्रुत ने *"पहला सुख निरोगी काया"* का सिद्धांत दिया। 

- *परिणाम:* 

  - प्राचीन भारत में लोग लंबी उम्र जीते थे और समाज समृद्ध था। 

  - आयुर्वेद ने दुनिया को स्वास्थ्य का ज्ञान दिया। 

 

### *उदाहरण 9: महामारियों का विनाशकारी प्रभाव* 

- *कोरोना काल (2020-21) में,* अस्वस्थ लोगों (मोटापा, डायबिटीज़ वाले) की मृत्यु दर अधिक थी। 

- *परिणाम:* 

  - करोड़ों लोगों की नौकरियाँ चली गईं। 

  - पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई। 

 

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### *निष्कर्ष: स्वास्थ्य ही सच्ची पूँजी है* 

- *सकारात्मक उदाहरण:* स्वस्थ लोग धनवान, सफल और खुशहाल जीवन जीते हैं। 

- *नकारात्मक उदाहरण:* बीमार व्यक्ति का पैसा, समय और सुख सभी नष्ट हो जाते हैं। 

 

> *"जो स्वस्थ है, वही सब कुछ पा सकता है।"* 

> – इसलिए, संतुलित आहार, व्यायाम, योग और अच्छी नींद को अपनाकर ही हम वास्तविक समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

"स्वास्थ्य देगा समृद्धि" – गहन विश्लेषण* 

, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: 

 

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## *1. शारीरिक स्वास्थ्य: समृद्धि की आधारशिला* 

- *ऊर्जा और कार्यक्षमता:* स्वस्थ शरीर में ऊर्जा का स्तर उच्च रहता है, जिससे व्यक्ति लंबे समय तक काम कर सकता है। 

  - उदाहरण: एक किसान जो स्वस्थ है, वह खेत में अधिक मेहनत करके बेहतर फसल काट सकता है। 

- *रोगों से मुक्ति:* अच्छा स्वास्थ्य बीमारियों पर होने वाले खर्च को कम करता है। 

  - आँकड़े: WHO के अनुसार, भारत में गरीबी का एक प्रमुख कारण स्वास्थ्य पर होने वाला अत्यधिक खर्च है। 

- *दीर्घायु और जीवन की गुणवत्ता:* स्वस्थ व्यक्ति न केवल लंबा जीवन जीता है, बल्कि वह उसे पूर्ण रूप से जीता है। 

 

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## *2. आर्थिक समृद्धि: स्वास्थ्य का सीधा प्रभाव* 

- *उत्पादकता में वृद्धि:* स्वस्थ कर्मचारी या उद्यमी अधिक कुशलता से काम करते हैं, जिससे आय बढ़ती है। 

  - अध्ययन: विश्व बैंक के अनुसार, स्वस्थ कार्यबल किसी देश की GDP को 5-10% तक बढ़ा सकता है। 

- *चिकित्सा खर्च में कमी:* अस्वस्थता परिवार की बचत को खत्म कर देती है। 

  - उदाहरण: एक मधुमेह रोगी का मासिक इलाज खर्च ₹2000-5000 तक हो सकता है, जो गरीब परिवारों के लिए भारी होता है। 

- *रोजगार के अवसर:* फिट और स्वस्थ लोगों को नौकरी या व्यवसाय में अधिक अवसर मिलते हैं। 

  - तथ्य: सेना, पुलिस, एथलीट्स और शारीरिक श्रम वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य अनिवार्य है। 

 

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## *3. मानसिक समृद्धि: स्वस्थ तन, स्वस्थ मन* 

- *तनाव और अवसाद में कमी:* नियमित व्यायाम और संतुलित आहार मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं। 

  - अध्ययन: योग और ध्यान से कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर कम होता है। 

- *सृजनात्मकता और निर्णय क्षमता:* स्वस्थ मस्तिष्क बेहतर निर्णय लेता है और समस्याओं का समाधान ढूँढ़ता है। 

  - उदाहरण: सफल उद्यमी अपने दिनचर्या में व्यायाम और ध्यान को प्राथमिकता देते हैं। 

- *आत्मविश्वास में वृद्धि:* फिट और स्वस्थ शरीर व्यक्तित्व को निखारता है, जिससे सामाजिक और पेशेवर जीवन में सफलता मिलती है। 

 

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## *4. सामाजिक समृद्धि: स्वास्थ्य का समाज पर प्रभाव* 

- *परिवार की सुख-शांति:* एक स्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार की देखभाल कर सकता है और उन्हें आर्थिक व मानसिक सहारा देता है। 

  - उदाहरण: यदि परिवार का मुखिया बीमार पड़ जाए, तो पूरे परिवार की आय और स्थिरता प्रभावित होती है। 

- *समाज में योगदान:* स्वस्थ लोग समाज के लिए स्वैच्छिक कार्य (जैसे रक्तदान, स्वच्छता अभियान) में भाग लेते हैं। 

- *स्वस्थ पीढ़ी का निर्माण:* एक स्वस्थ माँ-बाप स्वस्थ बच्चों को जन्म देते हैं, जो राष्ट्र के भविष्य को मजबूत करते हैं। 

 

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## *5. आध्यात्मिक समृद्धि: स्वास्थ्य और आत्मिक शांति* 

- *ध्यान और मन की शांति:* शारीरिक स्वास्थ्य के बिना ध्यान या आध्यात्मिक साधना करना कठिन होता है। 

- *सेवा और दान की भावना:* स्वस्थ व्यक्ति दूसरों की मदद करने में सक्षम होता है, जिससे आत्मिक संतुष्टि मिलती है। 

 

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### *निष्कर्ष: स्वास्थ्य ही वास्तविक समृद्धि है* 

- *स्वास्थ्य = धन + सुख + शांति + दीर्घायु* 

- *समृद्धि का सूत्र:* 

  - *संतुलित आहार* + *नियमित व्यायाम* + *पर्याप्त नींद* + *सकारात्मक सोच* = सम्पूर्ण समृद्धि 

 

> *"पहला सुख निरोगी काया"* – यदि स्वास्थ्य ही नहीं, तो धन, पद और सुख सभी निरर्थक हैं। इसलिए, स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर ही हम वास्तविक समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

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