Tuesday, 22 April 2025

जी होता कुल्फ़ी बन जाऊँ

जी करता, कुल्फ़ी  बन जाऊँ


 

जी करताकुल्फ़ी  बन जाऊँ!

श्वेतावर्णा बनकर सुख पाऊँ!

 

फुदक-फुदककर दूध-मलाई बन,

चीनी-चाशनी में बन-ठन ,

साँचे में जम-जम जाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

कितना अच्छा इसका जीवन?

आज़ाद सदा इनका तन-मन!

मैं भी इस-सी मिठास फैलाऊँ !

जी करताकुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

हर घर, हर द्वार पर खुशबू फैलाऊँ,

लू-धूसरित आंधी में भी सैर कर आऊँ,

इतराऊं-इठलाऊँ-सबको ललचाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 

रीना-मीना-आभा-आरिफ़ आओ,

घर बैठे न यूँ शरमाओ,

देखो, इरम-प्रतिभा-वर्षा भी आई,

कुल्फ़ी माधुर्य-शीतलता लाई|

 

इसीलिए यह गुनती जाऊँ!

जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!

 


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