जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ
जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!
श्वेतावर्णा बनकर सुख पाऊँ!
फुदक-फुदककर दूध-मलाई बन,
चीनी-चाशनी में बन-ठन ,
साँचे में जम-जम जाऊँ!
जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!
कितना अच्छा इसका जीवन?
आज़ाद सदा इनका तन-मन!
मैं भी इस-सी मिठास फैलाऊँ !
जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!
हर घर, हर द्वार पर खुशबू फैलाऊँ,
लू-धूसरित आंधी में भी सैर कर आऊँ,
इतराऊं-इठलाऊँ-सबको ललचाऊँ!
जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!
रीना-मीना-आभा-आरिफ़ आओ,
घर बैठे न यूँ शरमाओ,
देखो, इरम-प्रतिभा-वर्षा भी आई,
कुल्फ़ी माधुर्य-शीतलता लाई|
इसीलिए यह गुनती जाऊँ!
जी करता, कुल्फ़ी बन जाऊँ!
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