"शादी के बाद करियर: उड़ान या
उलझन?"
सोचिए, एक लड़की ने अपने करियर के लिए दिन-रात मेहनत की, डिग्रियाँ लीं, अनुभव जुटाया और फिर... शादी हुई! और
शादी के बाद? अक्सर वही होता है, जो पीढ़ियों से होता आया है—करियर या
तो ठहर जाता है या धीरे-धीरे गुमनाम हो जाता है। हमारे समाज में शादी को महिलाओं
के जीवन का "मील का पत्थर" माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि यह मील का
पत्थर करियर की सड़क को आगे बढ़ाने का काम करता है या उस पर एक बड़ा ब्रेक लगा
देता है?
हमारे समाज में शादी को महिलाओं के
जीवन का "टर्निंग पॉइंट" माना जाता है। लेकिन सवाल यह है कि यह टर्निंग
पॉइंट आगे बढ़ाने के लिए होता है या पीछे धकेलने के लिए? कई बार परिवार, समाज और खुद महिलाओं की भी यह सोच बन
जाती है कि शादी के बाद करियर प्राथमिकता नहीं रह जाता। कई बार महिलाओं को यह
सोचने पर मजबूर कर दिया जाता है कि करियर और शादी साथ नहीं चल सकते। परिवार, समाज और कभी-कभी खुद महिलाएँ भी मान
लेती हैं कि शादी के बाद करियर कम प्राथमिकता वाला हो जाता है। क्या यह सही है? या यह सिर्फ एक सामाजिक धारणा है जिसे
बदलने की जरूरत है?
"अब तुम्हें घर संभालना
है!"- कितनी बार हमने सुना है कि शादी के बाद महिलाएँ करियर छोड़कर "घर
संभालने" में लग जाती हैं? अगर शादी से पहले वे एक शानदार कॉर्पोरेट जॉब में थीं, तो शादी के बाद यह सवाल उठता
है—"अब ऑफिस और घर दोनों कैसे मैनेज करोगी?" और इसका हल अक्सर यही निकलता है—"करियर छोड़ दो!" शादी के
बाद परिवार और समाज अक्सर महिलाओं से यह अपेक्षा करता है कि वे करियर की बजाय
घरेलू जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दें। यह सोच क्यों है? क्या पुरुषों से भी यही अपेक्षा की
जाती है?
महिलाओं के सपने और करियर किसी 'सेल' में रखे सामान की तरह डिस्काउंट पर चले जाते हैं— "तुम्हारा
पैशन बाद में, पहले परिवार!" "पति की जॉब ज्यादा जरूरी है, तुम्हारी तो बस टाइमपास थी!" "घर पर रहोगी तो बच्चों को बेहतर परवरिश
मिलेगी!"
मातृत्व आते ही महिलाओं के करियर को
"मॉमी ट्रैक" पर डाल दिया जाता है। यानी, प्रोमोशन की रेस से बाहर, साइड रोल में डाल दिया जाता है। वर्कप्लेस पर भी उन्हें कम महत्व
दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि अब वे
"फुल टाइम करियर" के लिए उतनी प्रतिबद्ध नहीं रहेंगी। मातृत्व के बाद कई
महिलाओं को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, जबकि पुरुषों के करियर पर इसका असर नहीं पड़ता। क्या यह लैंगिक
असमानता का एक रूप नहीं है? क्या कंपनियाँ अधिक लचीली नीतियाँ अपनाकर महिलाओं को सपोर्ट कर सकती
हैं?
क्या शादी के बाद पुरुषों से पूछा जाता
है—"अब करियर का क्या करोगे?" नहीं ना? यही
सवाल अगर महिलाओं से पूछा जाता है, तो यह खुद ही बता देता है कि समस्या कहाँ है। शादी और करियर को एक
साथ संतुलित करने वाली महिलाओं के उदाहरण भी मौजूद हैं। क्या यह संभव नहीं कि शादी
करियर के लिए नया सहयोग और समर्थन लेकर आए? कई कपल्स मिलकर एक-दूसरे के करियर को आगे बढ़ाने का काम करते हैं।
क्या यह एक नए नजरिए की जरूरत नहीं है?
ग्रामीण भारत में शादी के बाद महिलाओं
के करियर की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। पारंपरिक सोच, शिक्षा की कमी और अवसरों की अनुपलब्धता
के कारण कई महिलाएँ शादी के बाद आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं रह पातीं। हालाँकि, सेल्फ हेल्प ग्रुप (SHG), ग्रामीण उद्यमिता और सरकारी योजनाओं के
माध्यम से अब बदलाव आ रहा है। उदाहरण के लिए: सखी मंडल और स्वयं सहायता समूह के
माध्यम से महिलाएँ छोटे व्यवसाय चला रही हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से कई
महिलाओं ने अपने स्वयं के व्यवसाय शुरू किए। डिजिटल इंडिया पहल के कारण अब महिलाएँ
ऑनलाइन बिजनेस कर रही हैं। डेयरी, सिलाई, कढ़ाई, बागवानी और कृषि आधारित व्यवसायों में
महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सिर्फ 20% महिलाएँ कार्यबल
में बनी रहती हैं,
जबकि
स्नातक स्तर पर उनकी भागीदारी पुरुषों के बराबर होती है। शादी के बाद लगभग 47%
भारतीय महिलाएँ अपना करियर छोड़ देती हैं। शादीशुदा महिलाओं की कमाई 15-20% तक कम
हो जाती है। 85% भारतीय महिलाओं का मानना
है कि शादी और बच्चों के कारण उन्हें करियर में बाधाएँ झेलनी पड़ती हैं। भारत में
30 वर्ष से ऊपर की महिलाओं की कार्यबल भागीदारी सिर्फ 18% रह जाती है, जबकि पुरुषों के लिए यह संख्या 78% है।
परिवारों को यह समझना होगा कि शादी का
मतलब महिलाओं के करियर का अंत नहीं होता। पुरुषों को घर और बच्चों की जिम्मेदारी
में बराबर भागीदारी निभानी चाहिए।
कंपनियों को महिलाओं के लिए अधिक फ्लेक्सिबल जॉब ऑप्शंस देने चाहिए। करियर
और शादी को विरोधी ध्रुवों की तरह देखने की बजाय उन्हें साथ ले चलने की जरूरत है।
पुरुषों को भी घर और बच्चों की जिम्मेदारी में बराबर भागीदार बनना चाहिए। कंपनियों
को फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑप्शंस देने चाहिए, ताकि महिलाएँ आसानी से दोनों भूमिकाएँ निभा सकें।
परंतु, कुछ प्रेरणादायक उदाहरण भी हैं, जिनमें इंद्रा नूयी शादीशुदा होने के बावजूद अपने करियर को बनाए रखने
में सफल रहीं। उन्होंने अपनी किताब "My Life in Full" में बताया है कि कैसे उन्होंने अपने
परिवार और करियर को संतुलित किया, और कैसे कंपनियों को महिलाओं के लिए सहायक कार्यस्थल बनाने की ज़रूरत
है। किरन मजूमदार शॉ (Biocon की
संस्थापक) ने शादी और समाज की अपेक्षाओं के बावजूद उन्होंने अपनी बायोटेक कंपनी
खड़ी की। उनके अनुसार, परिवार
से समर्थन मिलने पर शादी के बाद भी महिलाएँ सफलतापूर्वक अपने करियर को आगे बढ़ा
सकती हैं। टेनिस स्टार सेरेना विलियम्स और मेरी कॉम ने मातृत्व के बाद भी खेल में
वापसी की और कई खिताब जीते। उन्होंने इस मिथक को तोड़ा कि माँ बनने के बाद करियर
को छोड़ना ही एकमात्र विकल्प है।
तो क्या हल है? परिवारों को यह समझना होगा कि शादी का
मतलब महिलाओं के करियर का अंत नहीं होता। पुरुषों को घर और बच्चों की जिम्मेदारी
में बराबर भागीदारी निभानी चाहिए।
कंपनियों को महिलाओं के लिए अधिक फ्लेक्सिबल जॉब ऑप्शंस देने चाहिए। करियर
और शादी को विरोधी ध्रुवों की तरह देखने की बजाय उन्हें साथ ले चलने की जरूरत है।
पुरुषों को भी घर और बच्चों की जिम्मेदारी में बराबर भागीदार बनना चाहिए। कंपनियों
को फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑप्शंस देने चाहिए, ताकि महिलाएँ आसानी से दोनों भूमिकाएँ निभा सकें।
शादी एक नया जीवन का एक नया अध्याय हो
सकती है, "दी एंड" नहीं!
शादी का मतलब किसी भी महिला के करियर
का "दी एंड" नहीं होना चाहिए। बल्कि यह एक ऐसा पड़ाव होना चाहिए जहाँ से
वह अपनी निजी और प्रोफेशनल ज़िंदगी को संतुलित तरीके से आगे बढ़ा सके। अगली बार जब
कोई कहे—"शादी के बाद करियर का क्या?" तो जवाब होना चाहिए—
"जो पहले था, वही रहेगा—बस अब और बेहतर होगा!"
डॉ मीता गुप्ता
शिक्षाविद
आपकी बात : शादी के बाद महिलाओं को
कॅरियर के चयन में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
पाठकों ने इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं
दी हैं। पेश हैं पाठकों के कुछ विचार
जयपुर
•
Mar 31, 2025 / 05:10 pm
•
Sanjeev Mathur
ससुराल पक्ष की विचारधारा से मेल जरूरी
शादी के बाद महिलाओं का भविष्य उनके
ससुराल पक्ष की विचारधारा पर निर्भर करता है। कॅरियर चयन भी ससुराल पक्ष की मर्जी
को ध्यान में रखकर होता है। यदि विवाहित महिला की विचारधारा से ससुराल पक्ष की
विचारधारा मेल खा जाती है तो विवाहित महिलाओं की कॅरियर चयन की राह आसान हो जाती
है।
– ओमप्रकाश श्रीवास्तव, उदयपुरा, म.प्र.
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इच्छा से कॅरियर चुनना मुश्किल
शादी के बाद कॅरियर के चयन में महिलाओं
को ससुराल पक्ष की मर्जी के अनुसार चलना होता है। जॉब और बच्चों की परवरिश के बीच
में भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कितनी ही महिलाओं को अपनी इच्छा से
कॅरियर को चुनने के नाम से, अपनी इच्छाओं का गला घोंटना पड़ता है।
– निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़, अलवर
खुद के लिए वक्त नहीं
शादी के बाद महिलाओं को कॅरियर के चयन
में सबसे बड़ी दिक्कत यह आती है कि उनके पास खुद के लिए समय ही नहीं बचता। वह सुबह
से शाम तक काम में इतनी व्यस्त रहती हैं कि खुद की प्राथमिकता को ही भूल जाती हैं।
जिसकी वजह से वे खुद के कॅरियर को ही दांव पर लगा देती हैं।
– प्रियव्रत चारण, जोधपुर
घर और बाहर दोनों जिम्मेदारियों का बोझ
शादी के बाद महिलाओं को कॅरियर के चयन
में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शादी के बाद महिलाओं की प्रगति पूर्णतया
ससुराल वालों पर ही निर्भर रह जाती है। अक्सर समाज और परिवार यह अपेक्षा रखते हैं
कि शादी के बाद महिलाएं अपने कॅरियर से ज्यादा परिवार और घर की जिम्मेदारियों को
प्राथमिकता दें। महिलाओं पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों का बोझ आ जाता है, जिससे उनके लिए कॅरियर पर ध्यान
केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। महिलाओं को अपने कॅरियर से जुड़े निर्णय लेने
के लिए अपने पति और ससुराल वालों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन चुनौतियों का सामना
करने के बावजूद,
कई
महिलाएं अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार के सहयोग से सफलतापूर्वक अपने कॅरियर को
आगे बढ़ाती हैं।
– डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
परिवार की देखरेख में लगता समय
शादी के बाद महिलाओं को कॅरियर के चयन
में मुख्यतया अपने परिवार के सदस्यों की देख-रेख और उनकी सार संभाल की समस्याओं से
जूझना पड़ता है। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों की सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के
लिए भी महिलाओं को तत्पर रहना पड़ता है। सामाजिक , मानसिक और आर्थिक समस्याएं भी कॅरियर में मुख्य बाधक तत्वों में मानी
जा सकती है।
....
क्यों शादी होने पर अक्सर महिलाओं की
नौकरी जाती है और पुरुषों का करियर संवर जाता है?
हमारे देश का सामाजिक चलन महिलाओं को
अपने परिवार को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करता है, जिसके कारण अक्सर उन्हें मजबूरन नौकरी
छोड़नी पड़ती है.
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By CNBC Awaaz
October 18, 2024, 7:08:09 AM IST (Published)
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क्यों शादी होने पर अक्सर महिलाओं की
नौकरी जाती है और पुरुषों का करियर संवर जाता है?
दुनिया भर में शादी को जीवन में एक नई
शुरुआत के रूप में देखा जाता है. लेकिन भारत में यह अक्सर महिलाओं के लिए उनके
करियर की उड़ान को रोकने की वजह बन जाती है. वर्ल्ड बैंक के हालिया आंकड़ों से
पता चलता है कि भारतीय महिलाओं के लिए शादी (Marriage) के बाद रोजगार दर में एक तिहाई तक की गिरावट आती है. यह बात हमारे
समाज में जारी लैंगिक असमानता यानी जेंडर इनइक्वैलिटी को उजागर करती है. 'मैरिज पेनाल्टी' (विवाह दंड) कहे जाने वाले इस घटनाक्रम
को आंकड़ों से परे जाना जाता है. यह हमारे समाज पर पितृसत्तात्मक सोच हावी होने की
बात को दर्शाता है, जो
महिलाओं की प्रोफेशनल और प्राइवेट लाइफ दोनों को बुरी तरह प्रभावित करती है.
चाइल्ड पेनाल्टी
यही नहीं, हमारे समाज में महिलाओं को मैरिज
पेनाल्टी के साथ-साथ 'चाइल्ड
पेनाल्टी'
(Child Penalty) को भी भुगतना पड़ता है, क्योंकि बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उन पर होने के कारण अक्सर
उन्हें अपना काम छोड़ना पड़ता है. इस रिपोर्ट में एक और परेशान करने वाला आंकड़ा
पेश किया गया है. रिपोर्ट बताती है कि शादी के बाद महिलाओं की रोजगार दर में 12
फीसदी की गिरावट आती है. यह बच्चे का जन्म होने से पहले देखने को मिलता है.
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शादी के बाद बढ़ती है पुरुषों की
रोजगार दर
इसके विपरीत उनके पुरुष सहकर्मियों को
शादी से कोई नुकसान होने के बजाय 'मैरिज प्रीमियम' (Marriage Premium) का फायदा होता दिखाई देता है. क्योंकि शादी के बाद पुरुषों की रोजगार
दर में 13 फीसदी की बढ़ोतरी होती है. यह विरोधाभास हमारे समाज में लैंगिक असमानता
को उजागर करता है. इसकी वजह यह है कि महिलाएं घर-परिवार की देखभाल करने वाली और
गृहिणी के रूप में पारंपरिक भूमिकाओं का बोझ उठाती हैं. समाज उनकी इस भूमिका को
उनके करियर और प्रोफेशनल महत्वाकांक्षाओं से ऊपर रखता है.
कैसे बदल सकते हैं ये हालात?
इस सवाल का जवाब एक बहु आयामी सोच यानी
मल्टी लेयर अप्रोच से मिल सकता है. यह मैरिज पेनाल्टी के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों का समाधान कर
सकती है. इसके लिए सबसे पहले हमारे देश में एक सांस्कृतिक बदलाव लाना जरूरी है.
हमारे समाज में पारंपरिक लिंग भूमिकाओं यानी ट्रेडिशनल जेंडर रोल्स को फिर से
परिभाषित करने की आवश्यकता है. यानी एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था हो, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों ही
घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने समान रूप से योगदान देते हों. यह बदलाव सामाजिक
चेतना के लिए जागरूकता अभियान, सामुदायिक जुड़ाव और शिक्षित महिलाओं को परंपरागत दकियानूसी भूमिकाओं
में फंसाये रखने वाले सदियों से चले आ रहे पूर्वाग्रहों को खत्म करके ही लाया जा
सकता है.
इसके लिए सरकार की ओर से नीतिगत स्तर
पर कदम उठाया जाना भी उतने ही जरूरी है. इसके लिए सरकारी और प्राइवेट सेक्टर को
मिल कर देश में एक ऐसा माहौल बनाने के लिए काम करना चाहिए, जो महिलाओं की प्रोफेशनल ग्रोथ को
प्रोत्साहित करे. इसके लिए जरूरी नीतिगत कदमों में इसमें पुरुषों को सशुल्क पैतृक
अवकाश यानी पेड पैटर्नल लीव देना, महिलाओं के वर्किंग आवर्स यानी काम के समय में लचीलापन लाना और बच्चों
की देखभाल के लिए सस्ती चाइल्ड केयर सेवाएं मुहैया कराया जाना शामिल है. इस तरह के
कदम सभी कामकाजी माताओं पर घरेलू काम के बोझ को कम करने में मदद करेंगे, जिससे वह अपने करियर पर फोकस बनाए रख
पाएंगी.
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