Sunday, 24 October 2021

ज़िंदगी के सफ़र को खूबसूरत कैसे बनाएं ?

ज़िंदगी के सफ़र को खूबसूरत कैसे बनाएं ?

 

बाधाएं आती हैं आएं,


घिरें प्रलय की घोर घटाएं


पांवों के नीचे अंगारे


सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं


निज हाथों में हंसते हंसते


आग लगा कर जलना होगा,


कदम मिला कर चलना होगा।

आज की बात की शुरूआत एक कहानी से करते हैं, एक जंगल में राजा शेर और कई तरह के जानवर रहते थे-भालू, चीता, गीदड़, बाघ, हिरण, हाथी आदि ।एक बार उस जंगल में भयानक आग लग गई। चारों तरफ लपटें आसमान का छूने लगीं। जिसको जहाँ जगह मिली, वह वहीं से भागने लगा। हिरण, शेर, गीदड़ सभी दुम दबा कर भाग रहे थे।

उसी जंगल में एक पेड़ पर चिड़िया रहती थी, भयानक आग को देखकर वह घबरायी नहीं। जल्दी से उड़कर पास के तालाब पर गई और चोंच में पानी भर-भरकर लाकर आग पर डालने लगी। चिडि़या की यह क्रियाविधि दूसरे पेड़ पर बैठा एक कौआ देख रहा था। उससे रहा नहीं गया, और वह चिड़िया से बोला- “चिड़िया रानी, तुम इतनी छोटी हो और यह तुम भी जानती हो कि तुम्हारी चोंच भर पानी से यह आग नहीं बुझने वाली है, तो फिर क्यों बार बार प्रयास कर रही हो?

तब चिड़िया ने उसे जवाब दिया- “मैं जानती हूं कि मेरे अकेले के प्रयासों से यह भयानक आग नहीं बुझने वाली है, पर जिस दिन इस जंगल का इतिहास लिखा जाएगा, उस दिन तेरा नाम देखने वालों में और मेरा नाम बुझाने वालों में लिखा जाएगा।”

यह कहानी मैंने बचपन में पढ़ी थी और आज भी इसका एक-एक शब्द दिल में बसा है। यह कहानी हमें संदेश देती है कि कठिनाई चाहे कितनी भी बड़ी हो, पर अपने हौंसले से बड़ी नहीं होती। जब कठिनाई बहुत बड़ी लग रही हो तब भी प्रयास करना ज़रूरी है। हो सकता है कि उन्हीं प्रयासों से उस समस्या का हल निकल आए।

दोस्तों, हमारा जीवन चुनौतियों का सागर है। जब तक जीवन है, छोटी-बड़ी चुनौतियां आती ही रहेंगी। इसलिए हमें अपने जीवन की हर चुनौती को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर हम जीवन-सागर में उठती-गिरती लहरों को देखकर डर गए, तो हम इसे पार कैसे करेंगे?

ज़िंदगी एक खूबसूरत एक सफ़र है। दोस्तों, अगर आपने कभी नाव में बैठकर यात्रा की होगी, तो आपने तीन तरह के लोगों को देखा होगा। एक तरह के लोग वे होते हैं, जो नदी या सागर में उठती लहरों को देखकर नाव में बैठते ही नहीं। दूसरी तरह के लोग वे होते हैं, जो डरते-डरते नाव में तो बैठ जाते हैं, परंतु वे जैसे-तैसे थरथराते हुए सफ़र को पूरा करते हैं, और तीसरे प्रकार के लोग वे होते हैं, जो उस सफ़र को इंजॉय करते हैं, जो उस सफ़र का मज़ा लेते हैं। सोचिए, आप किस श्रेणी में आते हैं ?

बुरे वक्त में भी हौसला बनाए रखिए । अब शायद आप यही सोचेंगे कि कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है। जिस इंसान के ऊपर मुसीबत आती है, उसका दर्द सिर्फ़ वही जानता है, तो ठीक है, मैं इस बात को मानती हूं, लेकिन जब हमारे पास दो ऑप्शन हों, 'लड़ो या मरोतो फिर हम लड़कर क्यों न मरें? हम लड़ने से पहले ही चुनौतियों के सामने घुटने क्यों टेकें? खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना सक्षम बनाएं कि हम विषम परिस्थितियों में भी न टूटें।

खुद को बेहतर बनाएं । बेहतरी की कोई सीमा नहीं होती । दुनिया का कोई भी इंसान अगर चाहे, तो वह खुद में अपनी इच्छानुसार बदलाव करने में सक्षम होता है। अगर आपको लगता है कि आप कमज़ोर हैं,तो जंक फ़ूड, तंबाकू,पान मसाला, और शराब जैसी हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने के बजाए,सेब अनार,केला संतरे जैसे ताज़े फलों और हरी सब्ज़ियों, दूध, घी, पनीर जैसे पौष्टिक और शक्तिवर्धक खाद्य पदार्थों का सेवन कीजिए। रोज़ाना कसरत कीजिए, योग कीजिए, दौड़ लगाइए। कुछ भी कीजिए लेकिन खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत बनाइए। अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा कीजिए क्योंकि जीवन की कठिन चुनौतियों का सामना करने के लिए आपका स्वस्थ और फ़िट रहना अति आवश्यक है।

अपने सपने को अपना बनाएं । सपने अपने होते हैं और उन्हें पूरा करने में जो आनंद आता है, वह अतुलनीय होता है । अपने सपनों को पूरा करने में लगन और परिश्रम से जुट जाइए, फिर कोई उन्हें पूरा होने से नहीं रोक सकता । जीवन में चाहे कितनी ही मुश्किल घड़ी क्यों न आ जाए,चाहे कितना भी बुरा वक्त क्यों ना आ जाए, कभी निराश न हों, कभी हिम्मत मत हारें और अगर हारना भी पड़े, तो बहादुरों की‌ तरह लड़कर हारें, कायरों की तरह आत्महत्या नहीं।

कभी उम्मीद का दामन न छोड़ें । और हां, एक बात हमेशा याद रखें, अगर आपके जीवन में कभी ऐसा वक्त आ जाए कि आपको कोई रास्ता दिखाई न दे,हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आए, तो जल्दीबाज़ी में कोई फ़ैसला न करें। थोड़ा ठहर जाएं, थोड़ा इंतज़ार करें, थोड़ा धैर्य रखें क्योंकि दुखों का कोहरा, चाहे कितना भी घना हो, सूरज की किरणों को निकालने से नहीं रोक सकता। आप बस हौसला रखें, ईश्वर पर विश्वास करें और स्वयं पर विश्वास बनाए रखें। आप देखेंगे कि उम्मीद की एक किरण अंधेरे को चीरते हुए धीरे-धीरे आपकी तरफ़ बढ़ रही है। पूर्वप्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अनुपम शब्दों को सदैव याद रखिए-

हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,


काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं,


गीत नया गाता हूं।

 


मीता गुप्ता

 

 

 

 

 


 

समस्या बनी ऑनलाइन गेमिंग की लत: पैरेंट्स के लिए है खतरे की घंटी?

 

 

समस्या बनी ऑनलाइन गेमिंग की लत: पैरेंट्स के लिए है खतरे की घंटी?







यह लेख उन करोड़ों माता-पिता के लिए है, जो अपने बच्चों की ऑनलाइन गेम खेलने की लत से परेशान हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए स्कूलों और पैरेंट्स के लिए एक एडवाइज़री जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों पर विशेष नजर रखी जाए।लॉकडाउन के बाद ऑनलाइन गेमर्स की संख्या तेज़ी से बढ़ी है । भारत में 23 वर्ष तक के 88 प्रतिशत युवा मानते हैं कि वे समय बिताने के लिए किसी भी दूसरी गतिविधि के मुकाबले ऑनलाइन गेम खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। शौक के लिए या समय बिताने के लिए कुछ देर के लिए ऑनलाइन गेम खेलने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन समस्या तब पैदा होती है, जब ये शौक एक बुरी आदत में बदल जाता है, जिसे गेमिंग एडिक्शन  कहते हैं।

ऑनलाइन गेम की इस लत का शिकार सबसे ज़्यादा बच्चे हो रहे हैं, क्योंकि वे इसके खतरों को ठीक से समझ नहीं पाते। इसलिए अगर आपके घर में भी ऑनलाइन गेम खेलने के शौकीन बच्चे हैं, तो आप उन्हें अपने पास बुला लीजिए क्योंकि हमारी अगली रिपोर्ट आपको बताएगी कि ये शौक एक बुरी आदत में बदल जाने पर कितना नुकसानदायक हो सकता है।भारत में इस समय गूगल प्लेस्टोर पर 30 लाख से ज्यादा मोबाइल फोन एप्लीकेशन मौजूद हैं। इनमें से 4 लाख 44 हजार 226 ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स हैं। इन गेमिंग ऐप्स में से 19 हजार 632 ऐप्स भारत में ही विकसित हुए हैं। वर्ष 2018 में भारत में ऑनलाइन गेम्स खेलने वाले यूजर्स की संख्या 26 करोड़ 90 लाख थी। वर्ष 2020 में ऐसे यूजर्स की संख्या बढ़ कर 36 करोड़ 50 लाख हो गई। अनुमान है कि वर्ष 2022 में ये संख्या 51 करोड़ हो जाएगी।

एडवाइजरी में क्या लिखा है?

भारत सरकार ने अपनी एडवाइज़री में कहा है कि माता-पिता और टीचर्स बच्चों को ये बताएं कि कई घंटे तक लगातार ऑनलाइन गेम खेलने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। इसके अलावा बच्चों को समझाया जाए कि वे ऑनलाइन गेम खेलते हुए वेबकेम, ऑडियो, प्राइवेट मैसेज या ऑनलाइन चैट के ज़रिए किसी अंजान व्यक्ति से बात ना करें, क्योंकि इससे इंटरनेट पर होने वाली हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा पैरेंट्स को ये ध्यान रखने के लिए भी कहा गया है कि वे बच्चों को इन-ऐप परचेज़  न करने दें। अपने मोबाइल फ़ोन या स्मार्ट टीवी पर पेमेंट मोड को इस तरह से सेट करें कि बिना ओटीपी के बच्चे अपने आप कुछ भी पचेज़ ना कर पाएं।

अननोन सोर्स से डाउनलोड न करें

इन-ऐप परचेज़ का मतलब होता है कि ऐप का इस्तेमाल करते समय उसके किसी खास फीचर को डाउनलोड करने के लिए पैसे देना, जो फीचर आमतौर पर मुफ्त में उपबल्ध नहीं होता। ऑनलाइन गेम खेलते हुए गेम के एडवांस स्टेज में पहुंचने के लिए अक्सर इन ऐप परचेज़ का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा गेमिंग ऐप्स में डेबिट या क्रेडिट कार्ड को रजिस्टर करने से बचें। क्योंकि अगर ऐप में कार्ड डिटेल्स ही नहीं होगी, तो बच्चे इन-ऐप परचेज़ नहीं कर पाएंगे। टीचर्स और पैरेंट्स बच्चों को समझाएं कि वे किसी अननोन सोर्स से कोई सॉफ्टवेयर या गेम डाउनलोड न करें।

 

अपने स्क्रीन नेम का इस्तेमाल करें

इसके अलावा बच्चों को सिखाया जाए कि वे इंटरनेट पर किसी भी नए लिंक, पॉपअप या इमेज पर क्लिक न करें क्योंकि इसमें वायरस भी हो सकता है और अश्लील कंटेंट भी। इसके अलावा गेम खेलते हुए या गेम डाउनलोड करते हुए अपनी पर्सनल डिटेल्स फीड करने से बचें। क्योंकि अपराधी इनका भी गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। इस एडवाइजरी में ये भी बताया गया है कि पैरेंट्स और टीचर्स को क्या करना चाहिए। अगर गेम खेलते हुए लगता है कि कुछ गलत हो रहा है, तो तुरंत रुक जाएं और गेम का एक स्क्रीनशॉट लेकर रख लें। माता-पिता बच्चों को बताएं कि गेम खेलते हुए अपने असली नाम का इस्तेमाल करने की बजाय स्क्रीन नेम का इस्तेमाल करें, जिसे Avtar कहा जाता है।

पैरेंट्स को भी बच्चों के साथ खेलना चाहिए गेम

आपका बच्चा जो ऑनलाइन गेम खेलता है, उसकी ऐज रेटिंग जरूर जांच लें। यानी अगर कोई गेम आपके बच्चे की उम्र के लिए सही नहीं है, तो आप उसे वे गेम ना खेलने दें। अगर ऑनलाइन गेम खेलते हुए कोई आपके बच्चे को तंग कर रहा है, तो अपने बच्चे से कहें कि वे तुरंत प्रतिक्रिया न दें। बल्कि आप उस व्यक्ति के बारे में पुलिस को रिपोर्ट करें। कभी-कभी आप भी अपने बच्चे के साथ ऑनलाइन गेम खेलें, ताकि आपको पता चल सके कि गेम खेलते हुए आपका बच्चा कैसा व्यवहार करता है। इसके अलावा टीचर्स और पैरेंट्स बच्चों को ये समझाएँ कि ऑनलाइन गेम को इसी तरह से डिजाइन किया जाता है, ताकि वे ज़्यादा से ज़्यादा पैसा खर्च करें। इसलिए बच्चों को चाहिए कि वे ऑनलाइन गेम पर पैसा खर्च करने से बचें।

अगर ऐसा हो तो पैरेंट्स हो जाएं अलर्ट

माता-पिता के तौर पर आपको तब सावधान हो जाने की ज़रूरत है, कब? जब आपका बच्चा अपनी ऑनलाइन गतिविधियों को आपसे छिपाने लगे। आपका बच्चा अचानक से ज़रूरत से ज़्यादा समय इंटरनेट पर बिताने लगे, आपके द्वारा पूछने पर अगर वह अचानक अपने डिजिटल डिवाइस की स्क्रीन बदल दे, तो समझ जाए कि वे कुछ ऐसा कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए। अगर आपका बच्चा इंटरनेट इस्तेमाल करने के बाद अचानक चिड़चिड़ा हो जाए, तो ये भी इशारा है कि कुछ गड़बड़ है। इसके अलावा अगर आपके बच्चे की डिजिटल डिवाइस में अचानक से आपको बहुत सारे फोन नंबर्स या ईमेल एड्रेस दिखाई दें तो भी आपको सावधान होने की ज़रूरत है।

निष्कर्ष

भारत की तरह चीन भी ऑनलाइन गेमिंग का एक बहुत बड़ा बाज़ार है। लेकिन अब चीन की सरकार ने वहां के बच्चों को इसकी लत से बचाने के लिए नए नियम बना दिए हैं, जिसके मुताबिक चीन की ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे हफ्ते में तय दिनों पर तय घंटों के लिए ही ऑनलाइन गेम खेल पाएं। जो कंपनियां ऐसा नहीं करेंगी कि उनके खिलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। लगता है कि  भारत में बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचाने के लिए ऐसे ही नियमों का सख्ती से पालन करवाना होगा, नहीं तो भारत का सुनहरा भविष्य पाताल की गहरी काली गुहाओं में कहीं खो जाएगा ।

मीता गुप्ता

 

पोस्ट कोविड काल में मानसिक स्वास्थ्य: वे सबक़ जो हम सीखना नहीं चाहते

 

पोस्ट कोविड काल में मानसिक स्वास्थ्य: वे सबक़ जो हम सीखना नहीं चाहते

10 अक्टूबर को हम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाएँगे,आइए इस अवसर पर बात करें उन घावों की, जो कोविड सदैव के लिए अंकित कर गया है,जिनमें से एक है लोगों का मानसिक स्वास्थ्य। कोविड-19 महामारी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर असंख्य लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। हज़ारों लोग इस महामारी के चलते आई भयंकर मुसीबतों के शिकार हुए हैं। इनमें स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े बुनियादी ढांचे का अभाव, आर्थिक सुस्ती, प्रवासी संकट, घरेलू हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं आदि शामिल हैं। बहरहाल, महामारी के इस दौर में जिस एक मुद्दे पर अपेक्षाकृत काफ़ी कम चर्चा हुई है,वह है लोगों का गिरता मानसिक स्वास्थ्य।

स्वास्थ्य से जुड़ी व्यवस्थाओं में आई रुकावटों से आपूर्ति श्रृंखला को नुकसान पहुंचा। नतीजतन एक के बाद एक कई देशों को संपूर्ण तालाबंदी की अवस्था में जाना पड़ा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा 130 देशों में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 93 प्रतिशत देशों को मानसिक स्वास्थ्य, स्नायुतंत्रीय और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं की आपूर्ति में गंभीर रुकावटों का सामना करना पड़ा। इन देशों में ऐसी सेवाओं की आपूर्ति में बढ़ोतरी की पूरी शिद्दत से ज़रूरत महसूस की गई।

पारंपरिक तौर पर मानवीय आबादी के एक बड़े हिस्से में अवसादजनक अवस्था के प्रसार के पीछे कई कारण रहे हैं। इनमें संक्रमित होने और मृत्यु का डर, किसी क़रीबी की मौत, एकाकीपन, नशीले पदार्थों के सेवन की आदत को छोड़ते वक़्त होने वाली परेशानियां, हिंसा, पुरानी और असाध्य बीमारियां आदि कारण शामिल रहे हैं। बहरहाल, मौजूदा डिजिटल युग में मनोवैज्ञानिक तनाव के कई अन्य कारक भी पैदा हो गए हैं। इनमें सोशल मीडिया का दबाव, डिजिटल तकनीकी कौशल का अभाव, प्रवासी जीवन से जुड़ा तनाव, वित्तीय असुरक्षा, डिजिटल साधनों तक पहुंच होना और क़रीबी रिश्ते-नातों और संबंधों से अलगाव जैसे कारक शामिल हैं।

इस विषाणु-जनित महामारी की शुरुआत से ही ऐसे अनेक वैज्ञानिक साक्ष्य देखने को मिले हैं जिनसे पता चलता है कि मानवीय आबादी के संपूर्ण स्वास्थ्य पर इसका कैसा कुप्रभाव पड़ा है।इसकी मुख्य वजहों में एकाकीपन और कोरोना पॉजिटिव आने का डर शामिल है। इसके अलावा नशीले पदार्थों के सेवन की आदत से छुटकारा पाने में होने वाली परेशानियां, ख़ासकर शराब की दुकानों के अचानक बंद हो जाने के बाद शराब मिलने से नशे की लत झेल रहे लोगों की मौत भी इसी श्रेणी में आती है। इसके साथ ही बेहद थकावट, भूख और वित्तीय परेशानियों के चलते हुई मृत्यु भी इनमें शामिल हैं। लोगों ने चिंता, एकाकीपन, घबराहट और अवसाद जैसी परेशानियों की शिकायत की। जबकि बाक़ी लोगों ने अनियमित नींद और पहले से चली रही मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के और विकराल रूप ले लेने की बात कही।

मौजूदा डिजिटल युग में मनोवैज्ञानिक तनाव के कई अन्य कारक भी पैदा हो गए हैं। इनमें सोशल मीडिया का दबाव, डिजिटल तकनीकी कौशल का अभाव, प्रवासी जीवन से जुड़ा तनाव, वित्तीय असुरक्षा, डिजिटल साधनों तक पहुंच होना और क़रीबी रिश्ते-नातों और संबंधों से अलगाव जैसे कारक शामिल हैं।

इतना ही नहीं, लगातार सदमा, शोक और परेशान करने वाले हालातों से दो-चार होने वाले फ़्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों और कानून का पालन सुनिश्चित कराने वाली एजेंसियों से जुड़े लोगों के संदर्भ में भी चिंताजनक प्रवृत्ति देखी गई। उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), एकाकीपन, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी), क्रोध से जुड़े मामले, आत्महत्या की प्रवृति आदि लक्षण पाए गए। शुरुआती दौर में कही-सुनी बातों के आधार पर जो साक्ष्य देखने को मिले उनसे पता चलता है कि ख़ुद के या किसी क़रीबी के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद अवसाद के मामलों में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इन लोगों में अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने की एक मज़बूत प्रवृत्ति भी देखी गई। पारंपरिक तौर पर संकट के समय लोगों को मानवीय स्पर्श और सामाजिकता के ज़रिए नियमित रूप से जो मरहम पट्टी या सहानुभूतिपूर्ण माहौल मिला करता था, वह इस महामारी के दौर में पूरी तरह से नदारद रहा। ऐसे में लोगों के मन-मस्तिष्क में ऐसी विनाशकारी भावनाएं छाने लगीं। पहले से ही समाज के जो तबके अतिसंवेदनशील या असुरक्षित रहे हैं, उनमें ये ख़तरे साफ़ तौर पर ज़्यादा देखने को मिले हैं। इनमें महिलाएं, छोटे बच्चे, कलहपूर्ण हालातों का सामना करने वाले लोग, जाति और वर्ग के हिसाब से अल्पसंख्यक समाज के लोग,हाशिए पर  रहने को मजबूर लोग आदि शामिल हैं। इंसानी समाज में भौतिक रूप से होने वाले संवादों के अचानक बंद हो जाने से मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं और इन समस्याओं से उबरने वाले तंत्र तक पहुंच पाना और कठिन हो गया। पहले ही हमारे देश में इन सेवाओं तक लोगों की पहुंच मुश्किल से होती रही है और इसमें भारी विषमता व्याप्त है।

घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, घरेलू कार्यों और देखभाल करने से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के बढ़ जाने, बच्चों के पालन-पोषण और वित्तीय मोर्चे पर असुरक्षा की भावनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी ने तनाव और अवसाद को कई गुणा बढ़ा दिया है। सर्वेक्षणों में दावा किया गया है कि वैश्विक स्तर पर इस आयु वर्ग का हर दूसरा व्यक्ति विषादग्रस्त है। टालमटोल करने, तनाव, रोज़गार से जुड़ी असुरक्षा, घर से काम करने, डिजिटल माध्यमों के बेतहाशा इस्तेमाल से होने वाली थकान और डिजिटल जुड़ाव का अभाव जैसे दीर्घकालिक कारक युवाओं को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं।

वे सबक जो हम नहीं सीख रहे हैं

भारत पिछले कई वर्षों से दुनिया के सबसे अवसादग्रस्त देशों में से एक बना हुआ है। इस समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए पर्याप्त मदद के अभाव में लोग इससे उबरने के लिए घातक तरीकों का सहारा लेने लगते हैं। इनमें नशीले पदार्थों या दवाइयों का दुरुपयोग, नशे की लत और हिंसा जैसी बुराइयों का प्रसार होता है। मानसिक स्वास्थ्य की लगातार जारी अनदेखी के पीछे इसे लांछन की तरह समझने की प्रवृति और इसके बारे में लोगों के बीच जागरूकता का अभाव है।

इतना ही नहीं मानसिक विकारों के लिए परामर्श और बचाव की दूसरी सहायक सेवाएं लांछित समझी जाने वाली संस्थाओं जैसे मनोचिकिसा अस्पतालों में ही उपलब्ध हो पाती हैं। समाज में ऐसे अस्पतालों और केंद्रों को लेकर जो हिकारत का भाव है| उसके चलते कई लोग इन सेवाओं तक पहुंच ही नहीं पाते। दुर्भाग्यवश मरीज़ों की निजता भंग होने की घटनाएं भी अक्सर देखने को मिलती हैं। इसके अलावा इस कानून में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित लोगों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव किए बिना समानता के बर्ताव की बात कही गई है। बहरहाल जागरूकता और व्यवस्था पर भरोसा बनाए बिना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े लांछनों और उनके शिकार लोगों के साथ शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। स्वास्थ्य बीमा प्रदाता कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु तंत्र से जुड़े विकारों से जुड़ी मेडिकल सेवाओं पर किसी भी प्रकार का दावा देने से अब भी इनकार करती हैं। ऐसे में मानसिक विकार काफ़ी महंगी सेवाओं की श्रेणी में जाते हैं।

देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े केवल दो बड़े संस्थानों- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (एनआईएमएचएनएस), बेंगलुरु और लोकप्रिय गोपीनाथ क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, तेज़पुर को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कुल कोष का 93 प्रतिशत हिस्सा आवंटित किया गया है।

ये बात सही है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े इन कार्यक्रमों के लिए हमेशा से ही काफ़ी कम धनराशि आवंटित की जाती रही है। बहरहाल, मौजूदा समय में महामारी से पैदा हुई परिस्थितियों की पहचान कर उनसे निपटने के लिए कॉरपोरेट क्षेत्र, परोपकार के काम से जुड़े संगठनों और प्राथमिक तौर पर सरकारों को आगे आकर साझा तौर पर काम करना होगा।

भारत  कोविड-19 जैसी विकराल आपदा का सामना करने के लिए कतई तैयार नहीं था मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी महामारी से निपटने की हमारी तैयारी तो और भी लचर रही है। दुनिया भर में लंबे समय से व्याप्त इस ख़ामोश महामारी से निपटने के लिए लक्षित, बहुपक्षीय प्रयासों के साथ-साथ इससे जुड़े सभी संबद्ध पक्षों द्वारा पर्याप्त निवेश किए जाने की सख्त आवश्यकता है। वैसे इस वर्ष मानसिक स्वास्थ्य के विषय पर जानकारियां जुटाने और इसके बारे में पूछताछ करने की प्रवृति में तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई। ज़ाहिर तौर पर अनिश्चितता भरे इस दौर में लोग स्वयं-सहायता और भावनाओं पर नियंत्रण पाने के तरीके की तलाश में हैं और आशा है हमारा भविष्य में समाज के ऐसे लोगों से बना होगा जो शारीरिक और मानसिक दोनों ही ढंग से स्वस्थ होंगे |

जय हिंद ! जय भारत !

मीता गुप्ता

 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...