आज का विद्यार्थी कैसा हो?
इतिहास में 15 अक्टूबर का दिन भारत के मिसाइल और
परमाणु हथियार कार्यक्रम को फौलादी और अभेद बनाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए पी
जे अब्दुल कलाम के जन्मदिन के तौर पर दर्ज है । उन्हें याद करते हुए आज का दिन
पूरे विश्व में ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । आइए, विचार करें कि आज का विद्यार्थी कैसा होना चाहिए ?
सुखार्थीः चेत् त्यजेत् विद्याम् विद्यार्थीः चेत् त्यजेत्
सुखम् ॥
अर्थात्
यदि सुख की कामना है, तो विद्या की आशा छोड़ दें और यदि विद्या की कामना है
तो सुख का लोभ त्याग दें । यहाँ सुख से मतलब है, आलस्य से
मिलने वाला झूठा सुख । काम से भागकर, स्वयं को धोखा
देने में भी एक प्रकार का आकर्षण है । एक प्रकार का नशा है, जो व्यक्ति को
अपाहिज बना डालता है । लेकिन यदि विद्यार्थी पूर्ण रूचि लेकर अध्ययन करे, गुरुजनों की दी
हुई शिक्षा को धारण करे तो, विद्या में जो सुख मिलता है, उसकी अन्यत्र
कहीं कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
हमारे
प्राचीन ग्रन्थों में विद्यार्थी के लिए कुछ मार्गदर्शन मिलता है, जो बड़ा ही
उत्तम है । ये श्लोक हजारों वर्ष पुराना है, फिर भी आज के
संदर्भ में उतना ही सटीक, उतना ही गंभीर ।
काकचेष्टा
बकोध्यानम् श्वाननिद्रा तथैव च ।
अल्पाहारी
गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम् ॥
विद्यार्थी
के पाँच लक्षण हैं: उसकी गतिविधि कौवे के समान हो, उसका ध्यान
बगुले के समान हो, उसकी नींद कुत्ते के समान हो, उसका आहार कम
मात्रा वाला हो और उसका मन सांसारिक बंधनों से मुक्त हो ।
काकचेष्टा : कहते हैं कि
कौवा एक आँख हमेशा खुली रखता है, इसलिए संस्कृत में कौवे का एक
पर्यायवाची शब्द है – एकाक्ष यानि एक आँख वाला । यह बात कौवे के चौकन्नेपन को खूब
दर्शाती है । कौवा बहुत ही सावधान जीव होता है । ज़रा सी हलचल हुई कि कौवा तुरंत
प्रतिक्रिया करेगा । इसी प्रकार एक विद्यार्थी को अपने आस-पास की वस्तुओं, व्यक्तियों व
घटनाओं के प्रति सजग रहना चाहिए और उनसे सीखने का प्रयास करते रहना चाहिए । वास्तव
में हम पुस्तकों से उतना नहीं सीख पाते, जितना कि आसपास
के वातावरण से सीख सकते हैं । यदि आप सीखने के लिए तैयार हैं, तो पूरी
प्रकृति, प्रत्येक घटना आपको कुछ न कुछ सिखाती है । आजकल विद्यार्थी व
परीक्षार्थी से यह अपेक्षा रहती है कि वह अद्यतन रहे, यही काकचेष्टा है ।
बकोध्यानम् : ध्यान यानी एकाग्रता । विद्यार्थी जीवन का तो
मुख्य लक्ष्य ही एकाग्रता प्राप्त करना है । पहले इस पर भी विचार कर लें कि हमारा
ध्यान बगुले जैसा ही क्यों हो? आपने यदि बगुले को ध्यान से देखा हो
तो, बगुले में दो बातें बहुत खास हैं । पहली, बगुला एक टांग
पर खड़ा होकर गज़ब का संतुलन साध लेता है । संतुलन के बिना एकाग्रता संभव ही नहीं है
। एक विद्यार्थी को भी अपनी दिनचर्या में, अपने व्यवहार
में, अपनी कार्यशैली में, अपने मन-मस्तिष्क में निरंतर एक
संतुलन रखना चाहिए । विचलित नहीं होना चाहिए । दूसरी विशेषता है स्वयं स्थिर रहकर
चंचल मछली पर दृष्टि जमाए रखना । हमारे आस पास की वस्तुएँ, घटनाएँ, यह संपूर्ण जगत
भी चंचल है, तरल है, पल-पल बदलता
रहता है, इसे वही समझ सकता है जिसका मन मस्तिष्क स्वयं स्थिर हो और सदैव बगुले
की भांति अपने लक्ष्य पर ही दृष्टि जमाए रहें । फिर लक्ष्य दूर रह ही नहीं सकता ।
तो बगुले से हमने सीखा : मानसिक संतुलन, स्थिरता और
लक्ष्य पर एकाग्र दृष्टि ।
श्वाननिद्रा : कुत्ता बहुत चौकन्ना होकर सोता है । आवश्यकता
पड़ने पर तुरंत उठ बैठता है । बहुत कम नींद में भी गुज़ारा कर सकता है । इसके अलावा, निद्रा का एक
और अर्थ भी होता है – आवश्यकता । कुत्ते की आवश्यकताएँ बहुत कम होती हैं ।
विद्यार्थी को भी ऐसा ही होना चाहिए । नींद के विषय में कुछ और जरूरी बातें हैं :
दिन
में विद्यार्थी को नहीं सोना चाहिए । इससे आलस्य बढ़ता है । बुढ़ापा जल्दी आता है और
चिंतन की क्षमता क्षीण पद जाती है ।
अधिक
नींद न लें, लेकिन कम से कम 6 घंटे की गहरी नींद अति आवश्यक
है ।
परीक्षा
के दिनों में, कुछ विद्यार्थी बहुत ही कम सोते हैं, यह बहुत ही
हानिकारक है । यह आपकी कार्य क्षमता को घटाता है, और मस्तिष्क
में निरंतर थकान भर देता है ।
सोने
से पहले किसी अच्छी पुस्तक का अध्ययन अवश्य करें, इससे नींद की
गुणवत्ता बढ़ती है ।
अल्पाहारी : बहुत लोग इसका अर्थ यह ले लेते हैं कि
विद्यार्थी को अल्प या कम आहार लेने वाला होना चाहिए । यह बड़ी भारी भूल है । शरीर
व मस्तिष्क को भरपूर पोषण देना अति आवश्यक है । भारतीय शास्त्र तो ब्रह्मचर्य आश्रम
में उपवास के लिए भी मना करते हैं । अल्प आहार का अर्थ लेना चाहिए कि भोजन मात्रा
में कम, किंतु पोषण व गुणवत्ता में भरा पूरा हो । और स्मरण रहे कि भोजन से दस
गुणा महत्त्वपूर्ण है भोजन को पचाना, और पाचन से दस
गुणा महत्त्वपूर्ण है उस ऊर्जा को सुरक्षित रखना ।
सुबह
उठाकर पानी अवश्य पीएँ, और शौच और स्नान से निवृत्त होकर
भोजन लें ।
पोषण
युक्त भोजन लें । भोजन को खूब चबाकर निगलें, चबाने का
उद्देश्य केवल भोज्य पदार्थ को पीसना नहीं, बल्कि उसमें
लार मिलाकर पाचन क्रिया को मुख में ही प्रारम्भ करना है ।
नियमित
समय पर आहार लें ।
प्रयत्न
करें कि दो ही बार भोजन करें ।
दौड़, व्यायाम, प्राणायाम, मालिश व अच्छे
से स्नान – ये सब भोजन को खूब पचा डालते हैं ।
भोजन
के तुरंत बाद दौड़ना, भारी परिश्रम, सोना, पढ़ना आदि
अनुचित है ।
गृहत्यागी : प्राचीन काल में हमारे विद्यार्थी गुरु के आश्रम
में रहकर ही शिक्षा ग्रहण करते थे । आश्रम के निश्चित और तनाव रहित वातावरण में वे
बड़ी तन्मयता से शिक्षा ग्रहण करते थे । वे नगर व गाँव के कोलाहल से दूर रहते थे, किन्तु आज
हमारे घरों का पारिवारिक वातावरण भी अनेक बार विद्यार्थी के अध्ययन में बाधा डालता
देखा जाता है । माता-पिता की भी ये जिम्मेदारी है कि वे बालक पर अनावश्यक बोझ न
डालें । विद्यार्थी को भी घर के सामान्य कार्यों में घर वालों की मदद करनी चाहिए, इससे लाभ ही
होगा । कुछ अन्य बातें:
मित्र
मंडली में अधिक उठना बैठना भी पढ़ाई को बहुत प्रभावित करता है ।
आपके
मित्र ऐसे हों जो आपके लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हों न कि बाधक ।
विद्यार्थी
को कॉलेज बगैरह की राजनीति से दूर ही रहना चाहिए ।
आजकल
फिल्में, टी॰ वी॰, मोबाइल, आदि भी एक रोग
की भांति विद्यार्थी को जकड़ लेते हैं । इन सबका सदुपयोग भी है । लेकिन विद्यार्थी
को इनका प्रयोग अति सावधानी से ही करना चाहिए । ये सब आपके जीवन के स्वर्णिम काल
को बर्बाद न कर डालें ।
विद्यार्थी
भी तीन प्रकार के बताए गए हैं : एक, मोर के बच्चे
जैसे, जो अंडे से निकलते ही माँ के साथ चल पड़ते हैं, यानि जिनके लिए
केवल इशारा ही काफी है । इस तरह के विद्यार्थी बहुत जल्दी सीख लेते हैं । दूसरे, चिड़िया के
बच्चे जैसे, जो घोंसले में माँ की प्रतीक्षा करते हैं, और दाना पानी
लेने के लिए चोंच खुली रखते हैं । तीसरे, फाख्ता के
बच्चे जैसे, जिनके चोंच में माँ को खाना जबरदस्ती ठूँसना
पड़ता है । यदि आप मोर के बच्चे न हों तो कम से कम चिड़िया के बच्चे तो अवश्य बन
सकते हैं ।
सार
रूप से कहा जा सकता है कि विद्यार्थी जीवन एक आदर्श जीवन होता है । इसमें हमें
स्वयं को कुछ नियमों में ढालना ही पड़ता है, जो कि वास्तव
में इतने आवश्यक नियम हैं कि केवल विद्यार्थी जीवन में ही नहीं, बल्कि पूरे
जीवन को ही संतुलित, सुरक्षित और सुगंधित बना देते हैं ।
विद्यार्थी के लिए महानतम लक्ष्य केवल और केवल ज्ञान होना चाहिए और ज्ञान का
लक्ष्य होना चाहिए अपना व मानवता का कल्याण । शिक्षा से रोजगार मिल जाता है, लेकिन शिक्षा
को केवल रोज़ी रोटी का साधन मान बैठना वैसा ही है, जैसे आप किसी
तिनके को काटने के लिए कुल्हाड़ा उठा लें । शिक्षा प्राप्त करें, सीखने के लिए, स्वयं को
विकसित करने के लिए, और रही रोज़गार की बात, तो उसका ख्याल
तो ज्ञान स्वयं रख लेगा ।
जितने गुणों की चर्चा हमने अभी-अभी की है, डॉ. कलाम में ये सभी गुण थे। वे हमारे लिए अनुकरणीय हैं क्योंकि वे
जीवनपर्यंत एक शिक्षार्थी की साधना में निरत रहे और सदैव शिक्षा के प्रचार-प्रसार के
लिए दृढ़संकल्प होकर जुटे रहे । जन्म-जयंती के अवसर पर ऐसे युगपुरुष को कोटि-कोटि
प्रणाम !!
मीता
गुप्ता
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