Thursday, 18 November 2021

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11 नवंबर) पर विशेष....

 

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11 नवंबर) पर विशेष....



राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के पुनीत अवसर पर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को सादर नमन करते हुए मनुष्य के जीवन में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालने जा रही हूं-

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो

धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।

सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्

तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥

अर्थात विद्या अनुपम कीर्ति है, यह भाग्य का नाश होने पर भी आश्रय देती है, यह कामधेनु है, विरह में रति के समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है, इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।

संस्कृत के 'शिक्ष' धातु में '' प्रत्यय के जुड़ने से शिक्षा शब्द का निर्माण हुआ है। जिसका अर्थ सीखना या सिखाना होता है। अर्थात जिस प्रक्रिया के माध्यम से अध्ययन और अध्यापन किया जा सके, उसे शिक्षा कहते हैं।वास्तव में शिक्षा मनुष्य जीवन का एक अनिवार्य अंग है ।  इसके बिना हमारा जीवन अधूरा है ।  शिक्षा हमें गुरू द्वारा प्राप्त एक अमृत रूपी फल है, जिससे व्यक्ति का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास होता है । स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा व्यक्ति में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।वहीं महात्मा गाँधी के अनुसार सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है।

शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बच्चों में मानवीय मूल्यों में वृद्धि और जीवन-कौशलों का विकास करना है । यह भाव हम बच्चों के जीवन में शुरूआत में ही पैदा कर सकते हैं ।  इसके बिना शिक्षा का महत्व ही शून्य हो जाएगा । शिक्षा सामाजिक बुराइयों को मिटाने का एक मात्र रास्ता हैं ।

केवल स्कूली ज्ञान से ही शिक्षा प्राप्त नहीं होती । विद्यालय से बाहर भी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है । शिक्षा व ज्ञान को सीमित शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता हैं। शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति है, जिसके लिए पात्रता और समर्पण-भाव के साथ-साथ निरंतर जिज्ञासु बने रहने की प्रवृत्ति भी परम आवश्यक है,जो बच्चों के जीवन में अनुशासन, पारिवारिक सुख-समृद्धि, पर्यावरण-जागरूकता, आर्थिक परिपक्वता, सामाजिकता एवं राष्ट्रीयता की भावना लाती है ।

शिक्षा द्वारा प्राप्त ज्ञान से हम जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार होते हैं ।  हमारे दृष्टिकोण में परिपक्वता आती है और मानसिक क्षितिज में विस्तार होता है। हम व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ते चलते हैं। शिक्षित होने से हमारा सामाजिक स्तर ऊॅंचा उठता हैं । हम परिवर्तन का स्वागत खुली बाहों से करते हैं। हम में व्यावहारिकता, आत्मविश्वास, सकारात्मकता, परिवार के सदस्यों के साथ सामंजस्य की भावना, मानव धर्म के प्रति कर्त्तव्य और उद्देश्यों की समझ व निभाव, आदि शिक्षा द्वारा ही विकसित होती है ।

शिक्षा के अभाव में व्यक्ति में आर्थिक रूप से अक्षमता, आत्मविश्वास की कमी और सामाजिक कौशलों के विकसित न होने के कारण समाज, देश व विश्व को समझने में सक्षम नहीं बन पाता।

शिक्षा से हमें हमारे जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता मिलती हैं । लक्ष्य-निर्धारण के पश्चात् हमारे कर्म, व्यवहार, दृष्टिकोण,सौंदर्यपरक परख व आचार-विचार में स्थायी सकारात्मकता प्रदर्शित होने लगती हैं । शिक्षा के बिना हमारा जीवन सकारात्मक व स्थिर नहीं रह पाता हैं । अतः शिक्षा हमारे जीवन का अति महत्वपूर्ण अंग हैं और यही लक्ष्य प्राप्त करने में हमारी सहायक होती है ।अतः अंत में यही कहा जा सकता है कि-

रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।

विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥

अर्थात रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, जो विद्याहीन होते हैं, वे सुगंधरहित किंशुक के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।

सब पढ़ें, सब बढ़ें !

मीता गुप्ता

 

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