Thursday, 18 November 2021

यह कैसी दीपावली ? 3.11.2021

 

यह कैसी दीपावली ?



दीपावली का त्यौहार से पहले-

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदः ।

शत्रु-बुद्धि-विनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुते ||

अर्थात शुभ एवं कल्याणकारी, स्वास्थ्य एवं धनसंपदा प्रदान करनेवाली तथा शत्रुबुद्धि का नाश करनेवाली, हे दीपज्योति, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं ।


दीपावली का त्यौहार भारतीय संस्कृति का गौरव है, क्योंकि दीपावली रोशनी का पर्व है और दीया प्रकाश का प्रतीक है और तमस को दूर करता है। यही दीया हमारे जीवन में रोशनी के अलावा हमारे लिये जीवन की सीख भी है, जीवन निर्वाह का साधन भी है। दीया भले मिट्टी का हो, मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है, जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही। दीपावली पर्व एक, पर उसके पर्याय अनेक हैं, इसीलिए इस पर्व का प्रत्येक भारतीय उल्लास एवं उमंग से स्वागत करता है।

दीपावली का त्यौहार के बाद-

हर बार की तरह इस बार भी प्रकाश का पर्व दीपावली संपन्न हो गया। लोगों ने जमकर आनंद मनाया, घर और प्रतिष्ठान सजाए, मिठाइयां खाईं और खिलाईं, उपहार बांटे और स्वीकार किए, बच्चों ने पटाखे और फुलझड़ियां छोड़ीं और दीप-पर्व को उत्साहपूर्वक मनाया। हर बार की भांति कुछ पर्यावरणविदों ने दीपावली से कुछ दिन पहले से पटाखों के विरुद्ध अभियान छेड़ रखा था। उन्होंने इनसे होने वाले शोर और प्रदूषण की हानि गिनाते हुए लोगों से इन्हें न छुड़ाने की अपील भी की थी। उन्होंने बार-बार बताया था कि इससे बच्चों, बू़ढ़ों और बीमारों को ही नहीं, पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों को भी बहुत परेशानी होती है।

लेकिन इसके बाद भी पटाखों का शोर और प्रदूषण हर साल जैसा होता रहा है, वैसा ही इस वर्ष भी हुआ। दीवाली के बाद अखबारों ने प्रदूषणमापी उपकरणों के सौजन्य से इस बार फिर बताया कि शहर के किस क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर कितना ब़ढ़ा। कितने वृद्धों को दीवाली की रात में विभिन्न रोगों का शिकार होकर चिकित्सालय की शरण लेनी पड़ी (उल्लेखनीय है कि देश अभी भी कई बीमारियों से जूझ रहा है)।

इस बार भी दीवाली पर हर नगर और ग्राम पटाखों की आवाज़ से गूंजने लगा था। रात के तीन-चार घंटे में शोर और प्रदूषण का स्तर बहुत बढ गया था कि ऐसे में कुछ लोगों को परेशानी होना स्वाभाविक है। दीवाली की रात में जो शोर और प्रदूषण होता है, वह वातावरण में बारूदी गंध और धुआं फैला देता है और वायु और भूमि प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है ।

आखिर क्या हैं उपाय ?

     सबसे पहले लोगों को पटाखों को चलाने के मोह से निकलना होगा । कई बार लोग इसे स्टेटस सिंबल बना लेते हैं कि उन्होंने कितने रुपए के पटाखे चलाए। ऐसा करने से सख्ती से बचना चाहिए। दीपावली में सबसे ज्यादा प्रदूषण पटाखों के जलने से होता है। इसके अलावा, पटाखों को जलाने के दौरान विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन होता है। इससे निश्चित तौर पर लोगों का सांस लेना दूभर हो गया है। कई लोग जो अभी-अभी कोरोना की महामारी से ठीक हुए हैं, उनके बारे में तो सोचिए !

     इसके अलावा, पटाखों की तेज़ आवाज़ कई लोगों और जानवरों के लिए चिंता का सबब बन जाती है। इसलिए लोगों को पर्यावरण के अनुकूल पटाखों (ओर्गैनिक) का प्रयोग करना चाहिए। ये पर्यावरण के अनुकूल पटाखे कम मात्रा में शोर पैदा करते हैं। ऐसा करते समय भी यह ज़रूर सोचिएगा कि क्या ज़रूरी है पटाखे चलाना ?

     दीपावली रोशनी का त्योहार है। बिना रोशनी के दीपावली मनाना अकल्पनीय है। लेकिन रात-रात भर यूं ही बिजली फूंकते समय याद रखिएगा कि जब बिजली नहीं होती है, तो कितना कष्ट होता है ? तब हम बिजली विभाग को कोसने से बाज़ नहीं आते । बिजली के स्थान पर दीयों का उपयोग करना चाहिए। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि दीये या मिट्टी के दीपक प्राकृतिक रूप से पृथ्‍वी में पुनः घुल-मिल जाते हैं।

     दीपावली का त्योहार ढेर सारे कचरे के साथ समाप्त होता है। दीपावली के बाद सड़कें प्लास्टिक, कागज, केमिकल और दूसरे तरह के कचरे से भर जाती हैं। इसलिए सभी को दीपावली के बाद अपने घर के साथ-साथ आसपास की सफ़ाई के लिए भी पहल करनी चाहिए।

     दीपावली के दौरान प्रदूषण को रोकने का एक और तरीका हो सकता है-एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करना, लेकिन समाज का एक तबका ही इसे एफ़ोर्ड कर सकता है। दीपावली के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इसलिए, किसी को भी अपने अंदर के वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखना सुनिश्चित करना चाहिए। इस तरह  घर या कार्यालय के अंदर लोग सुरक्षित और शुद्ध हवा में सांस ले सकेंगे। लेकिन यह अवश्य याद रखिएगा कि एयर प्यूरिफ़ायर आपको प्रदूषण करने का लाइसेंस नहीं देता है।

संक्षेप में, दीपावली भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक धरोहर है। बदलते समय के साथा-साथ हमें त्योहारों को मनाने के तरीकों में भी बदलाव लाना होगा। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि खुशी का यह त्योहार पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए और हमें विवेकानुसार व्यवहार करना चाहिए, जिससे जिस पर्यावरण की हम महत्वपूर्ण इकाई हैं, वह भी खुश रह सके और खूबसूरत बना रहे और हम भी प्रसन्नता से झूमते हुए गा सकें-

दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे,

खुशी-खुशी सब हंसते आओ, आज दिवाली रे !

आओ, नाचो, खुशी मनाओ, आज दिवाली रे,

दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे !!


मीता गुप्ता

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