Friday, 19 November 2021

भारतीय संस्कृति की पहचान : अनेकता में एकता

 

सांप्रदायिक सद्भाव सप्ताह के अंतर्गत भारतीयता को समर्पित....

भारतीय संस्कृति की पहचान : अनेकता में एकता



यूनान मिस्र रोम सब मिट गए जहां से,

है बाकी अब तक नामओ निशां हमारा!

कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौर--जहाँ हमारा!!

संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अंतर्निहित होता है। मनुष्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। वह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरंतर सुधारता और उन्नत करता रहता है। ऐसी प्रत्येक जीवन-पद्धति, रीति-रिवाज़, रहन-सहन, आचार-विचार, नवीन अनुसंधान और आविष्कार, जिससे मनुष्य पशुओं और जंगलियों के दर्ज़े से ऊपर उठता है तथा सभ्य बनता है, सभ्यता और संस्कृति का अंग है। सभ्यता (Civilization) से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है, जबकि संस्कृति (Culture) से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही संतुष्ट नहीं हो जाता। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किंतु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें संतुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं। मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौंदर्य की खोज करते हुए वह संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है। संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में अग्रणी भारतीय संस्कृति में अनेक गुण हैं, जिनमें सर्वोपरि है- अनेकता में एकता । आइए, देखते हैं कि विभिन्न संदर्भों में यह कैसे सिद्ध है ?

भौगोलिक एकता- भारत की जलवायु, वनस्पति और खनिज संपदा में भिन्नता है, फिर भी प्राकृतिक सीमाओं ने भारत को एकता के सूत्र में बाँध रखा है। हिंद महासागर के उत्तर और हिमालय पर्वत के दक्षिण में स्थित यह देश हमेशा एक माना गया है। यहाँ की प्रकृति, नदियों, पहाड़ों, पहाड़ियों, झरने और लहलहाते खेतों, घने बागों आदि स्थानों से जुड़ाव सबको रहा है। हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक हमारा देश सांस्कृतिक दृष्टि से एक ही है-

गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती

नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरूम।

इस श्लोक में उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों का स्मरण एक साथ किया गया है। इसी प्रकार पर्वतों के नाम स्मरण में भी सांस्कृतिक एकता के दर्शन होते हैं-

महेन्द्रो मलय सत्वः शक्तिमान ऋक्ष पर्वतः।

विंध्यश्च परियातुश्च सप्तैते कुल पर्वतः॥

भारत की सांस्कृतिक सप्त तीर्थ नगरियों का स्मरण भी एक साथ किया जाता है-

अयोध्या, मथुरा माया, च काशी कांची अवन्तिका ।

पुरा द्वारावती चैव सप्तैते मोक्ष दायिकाः ।।

भाषायी एकता- भारत बहुभाषी देश है। यहाँ सैकड़ों बोलियाँ बोली जाती हैं, हिंदी हमारी राजभाषा है। इन सब भाषाओं का स्रोत प्राकृत, संस्कृत और पाली है। अधिकांश भाषाओं की वर्णमाला और व्याकरण समान है। संस्कृत भाषा ने दक्षिण भारत की भाषाओं और उनके साहित्य को भी प्रभावित किया है।

सामाजिक एकता-  समूचे देश में वर्ण-व्यवस्था, जन्म-मरण और विवाह के संस्कार, अनुष्ठान आदि समान रूप से प्रचलित हैं। जो विदेशी तत्व भारत में आए, वे भी भारतीय संस्कृति में समा गए। यही कारण है कि खान-पान रहन-सहन, रीति-रिवाज़, विधि-विधान भारत के विभिन्न भागों तथा समुदायों में प्रायः समान है।

त्यौहार और उत्सव- भारत उत्सवों और त्यौहारों का देश है। यहाँ पर विभिन्न धर्मों के लोग विभिन्न त्यौहार जैसे-रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा, ईदुलजुहा, मोहर्रम, क्रिसमस, दुर्गा पूजा, गणगौर, पोंगल आदि त्यौहार मनाते हैं। रामनवमी, शिवरात्रि, महावीर जयंती, बुद्ध पूर्णिमा आदि पर उत्सवों का आयोजन किया जाता है। ये सभी उत्सव एवं त्यौहार भारत की विभिन्न संस्कृतियों के परिचायक हैं, इनका देश की जलवायु, संस्कृति तथा इतिहास से अटूट संबंध है। विभिन्न धर्मावलंबी इनके आयोजनों में भाग लेते रहे हैं। इतिहास गवाह है कि रक्षाबंधन का त्यौहार धर्म संप्रदाय, भाषा, प्रांत और देश-विदेश की सीमाएं नहीं देखता, बल्कि हमें एक-दूसरे के दुःख दर्द में शरीक करके परस्पर स्नेह के बंधन में बंधने की प्रेरणा देता है।

धार्मिक एकता- जिन धर्मों का उदय भारत में हुआ (जैसे हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख आदि) वे लगभग एक ही प्रकार के मूल आध्यात्मिक तत्वों से ही निकले हैं अतएव उनके उपदेशों में आंतरिक समानता है। अन्य धर्मों ने (जैसे इस्लाम, ईसाई तथा पारसी) अपने आपको भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया है, जिससे वे धर्म भारत में फले-फूले हैं।

कितनी ही जातियाँ यहाँ घुली-मिलीं, उनकी अलग पहचान नहीं रह गई। गंगा की धारा में जितनी नदियाँ मिलीं सभी गंगा हो गईं। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परायापन नहीं देखती, न मनुष्य की किसी अन्य प्रजाति में, न जीव जगत में।

वास्तुकला- भारत की प्राचीन मूर्तिकला तथा वास्तुकला विश्वविख्यात है। हिंदुओं के मंदिर विशुद्ध भारतीय शैली के बने हुए हैं, उनमें जाति और धर्म का कोई भेदभाव नहीं है। सभी मंदिरों में मूर्तियों के लिए गर्भगृह है। खजुराहो, सोमनाथ, काशी, रामेश्वरम्, कोणार्क आदि के मंदिर उल्लेखनीय कलाओं के नमूने हैं। मध्यकाल में इस कला का संपर्क मुस्लिम वास्तुकला से हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दुर्ग, मकबरे, मजिस्दें आदि बने। इन कलाओं के संपर्क के परिणामस्वरूप फ़तेहपुर सीकरी का विश्व प्रसिद्ध बुलंद दरवाज़ा और ताजमहल का निर्माण भी भारत में ही हुआ है।

चित्रकला और संगीत- मुगलकाल में भारतीय और ईरानी चित्रकला का समन्वय हुआ। दोनों जातियों के कलाकार साथ-साथ काम करते थे।संगीत का तात्पर्य गायन,वादन और नर्तन से है। इस्लाम में संगीत को निषिद्ध माना गया है, फिर भी मध्यकाल में संगीत, विशेषतौर पर सूफ़ी संगीत का काबिले-तारीफ़ विकास हुआ है। विशेष उल्लेख के तौर पर अकबर के दरबार में उच्चकोटि के छत्तीस गायक थे, जिनमें तानसेन और बैजूबावरा उल्लेखनीय हैं। सूफ़ी संत गज़ल और कव्वाली के रूप में खुदा की इबादत करते थे, तो भक्त संतों ने भजन और कीर्तन के लिए संगीत का उपयोग किया।

और अंत में,देश को सबल बनाने के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने की जरूरत है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और घृणा से घृणा उत्पन्न होती है। हमारा पथ प्रेम और अहिंसा का होना चाहिए। घृणा एवं हिंसा सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है। सभी संतों, महात्माओं और धर्म गुरुओं का भी यही संदेश रहा है कि किसी में भी छोटे-बड़े का फ़र्क नहीं। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। प्रार्थना और आराधना की पद्धति भिन्न हो सकती है, पर लक्ष्य में एकता है इसीलिए श्री गोपाल सिंह नेपाली जी कहते हैं-

लो गंगा-यमुना-सरस्वती या लो मंदिर-मस्जिद-गिरजा
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भजो या जीवन-मरण-मोक्ष की चर्चा,

सबका यहीं त्रिवेणी-संगम, ज्ञान गहनतम, कला रसीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली ॥

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मीता गुप्ता

 

 

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