एक विजेता की तरह सोचिए,
एक योद्धा की तरह काम कीजिए,तो आपकी मुट्ठी
में है जहां
चलना मुझे है बस
अंत तक चलना,
गिरना ही मुख्य
नहीं, मुख्य है सँभलना,
गिरना क्या उसका
उठा ही नहीं जो कभी ?
मैं ही तो उठा था
आप, गिरता हूं जो अभी
फिर से उठूँगा और
बढ़के रहूंगा मैं,
नर हूँ, पुरुष हूँ, चढ़ के रहूंगा
मैं।
मैं जब-जब कविवर मैथिलीशरण गुप्त जी की इन
पंक्तियों का ध्यान करती हूं, तब-तब सोचती हूं कि मनुष्य-जीवन
के मुख्य गुण क्या हैं? गिर कर उठना, उठकर
संभलना और फिर दोबारा से कोशिश करना, यही तो एक सामर्थ्यवान
की पहचान होती है। वह जीवन ही क्या, जिसमें परेशानियां,
संकट, विपरीत परिस्थितियां न हों क्योंकि
विपरीत परिस्थितियों से ही हमें अपनी क्षमताओं का पता चलता है । विपरीत
परिस्थितियां हमारे लिए एक अवसर की भांति होती हैं, जो हमें
हमारी कमियों से अवगत करवाती हैं। ऐसे में एक विजेता की तरह सोचना होगा, एक योद्धा की तरह काम करना होगा, बड़ी से बड़ी चुनौती
के लिए हमेशा तत्पर रहने की आवश्यकता है क्योंकि-
सुंदर है सुमन,
विहग सुंदर,
मानव तुम सबसे सुंदरतम ।
सफलता को हमने बहुत बड़ी चीज़ मान लिया है। सफलता
तो अच्छी आदतों को विकसित करना और प्राकृतिक के नियमों का पालन करना मात्र ही है।
कामयाब व्यक्ति और सामान्य व्यक्ति में काम करने के तरीकों का ही अंतर होता हैं।
कामयाब व्यक्ति उस समय भी काम करता है, जब सामान्य व्यक्ति
आराम कर रहा होता है। हमें अपने अंदर इन अद्भुत क्षमताओं को और ज़्यादा बेहतर बनाने
की आवश्यकता है।
जीवन सद्भावना, सौंदर्य, सहयोग, सहनशक्ति, प्रेम जैसे
अद्भुत गुणों से भरा पड़ा है। प्रकृति ने हम मनुष्यों को ही ऐसी पूंजी से युक्त
किया है इसीलिए हम इंसान सभी जीवों में श्रेष्ठ हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी में इन
महत्वपूर्ण गुणों को अनदेखा किया गया है। आगे बढ़ने की, कभी
न खत्म होने वाली दौड़, संस्कारों को इग्नोर करने की आदत,
ज़्यादा की लालसा, सफलता-प्राप्ति के लिए मेहनत
की अपेक्षा दूसरे तरीकों पर ज़्यादा निर्भर रहना आदि को महत्व देने के कारण हम जीवन
की बुनियादी चीज़ों को भूलते जा रहे हैं। प्रकृति ने हमें इतना सब कुछ दिया है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी हम
हमेशा शिकायतों, कमियों और असफलताओं को इतना महत्व देते है। ऐसा
करके हम न केवल अपने आप को पीछे धकेलने का काम करते रहते हैं, बल्कि अपनी महत्वकांक्षाओं को भी पूरा करने से भी चूक जाते हैं।
सबसे हैरानी की बात है कि ज़्यादातर मामलों में
हमें जीवन भर पता ही नहीं चलता कि हम जीवन भर गलत राह पर चलते रहे हैं और जब पता
चलता है, तब बहुत देर हो चुकी होती है। ये हमें क्या हो गया है
? आज के हालात को देखते हुए ऐसा ही प्रतीत होता हैं कि जैसे हम
सब किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। हर समय केवल अपने विषय में ही विचार करना,
दूसरों की सहायता करने से कतराना, प्रकृति से
कोई ताल्लुक ना रखना, रुपए की बढ़ती लालसा, संस्कारों से हमेशा दूरी बनाए रखना जैसी बहुत सारे विषय है जो हमारे
स्वभाव का हिस्सा बन चुके हैं।
बार-बार लक्ष्य बदलना
बिल्कुल भी समझदारी नहीं है। योजना बदल सकते हैं, मगर लक्ष्य
नहीं। एक भी क्षण बर्बाद किए लगातार सही दिशा में जुटे रहने की आवश्यकता है। यथा-
लक्ष्य प्रेरित बाण है हम ठहरने का
काम कैसा ?
लक्ष्य पर पहुंचे बिना पथ में पथिक
विश्राम कैसा ?
हमें डर को खुद से दूर रखना सीखना होगा। घबराएं
बिना हम कोई भी काम बड़ी आसानी से कर सकते हैं। हम काम को देख कर घबरा जाते है, हम छोटी छोटी समस्याओं के आ जाने पर हतोत्साहित हो जाते है, दुःख, समस्या आने से पहले ही निराश होकर बैठ जाते
हैं। डर कर बैठ जाने से आज तक किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। इसकी अपेक्षा डर
जाने से छोटी समस्या बढ़ जरूर जाया करती हैं। इस तरह के तरीकों को समय-समय पर
बदलने की आवश्यकता होती है। आज हम अपनी शक्तियों को पहचान चुके हैं। फिर भी जल्दी
पाने की लालसा ने हमें बुनियादी रूप से कमजोर बना दिया है। डर हमारे अंदर तक जा
पहुंचा है, हालांकि डरना हमने बचपन में ही सीख लिया था। समय
के साथ-साथ इसको कम करने की अपेक्षा बढ़ाने का काम परिस्थितियों और आस पास के
माहौल ने कर दिया।निडर बनने की कला सीखने की आवश्यकता है।
कभी न घबराने की क्षमता को विकसित करने की
आवश्यकता है। जिस प्रकार एक पौधे को प्रतिदिन पानी से सींच कर एक विशाल वृक्ष में
बदला जा सकता है, ठीक उसी तरह अच्छी आदतों को भी विकसित किया जा सकता
है। हमें अपने अंदर मौजूद हार जाने के भय को खत्म करके धैर्य को विकसित करने की
आवश्यकता है। हमेशा धीरज बनाएं रखने की आवश्यकता है क्योंकि अच्छी और बुरी
परिस्थितियां एक दूसरे की पूरक होती है। प्रत्येक अच्छी परिस्थिति के बाद बुरी और
बुरी के बाद फिर अच्छी परिस्थिति को आना प्रकृति का अटल नियम है।
अगर हम सचमुच एक शानदार और अद्भुत जीवन जीना
चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि हम शीघ्र ही प्रयास करना शुरू कर
दें। कोशिश यह होनी चाहिए कि अच्छी बातें पढ़ें, अच्छा लिखें
और अच्छा ही सोचें। ये एक महत्वपूर्ण सूत्र है, जो हमें अपने
लक्ष्यों को प्राप्त करने में हमारी मदद करता है। अपने शब्दों में सुधार करके अपने
व्यवहार में ज़बरदस्त बदलाव लाया जा सकता है। अपनी शब्दावली को प्रतिदिन निखारने की
आवश्यकता होती है। इस तरह बार बार नियमित रूप से अच्छे शब्दों का प्रयोग करके हम
अपने जीवन में बड़ा बदलाव कर सकते हैं क्योंकि शब्दों से विचार बनते है, विचारों से भावनाएं और भावनाओं से हमारा जीवन। यथा
एक आशा जगाती रही भोर तक,
चाँदनी मुस्कुराती रही भोर तक।
माधुरी-सी महकती रही यामिनी,
और मन को लुभाती रही भोर तक।
मीता गुप्ता
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