Saturday, 15 January 2022

गौरवशाली इतिहास को न भूलें युवा 16.01.2022

गौरवशाली इतिहास को न भूलें युवा 16.01.2022




 

गौरवशाली इतिहास को न भूलें युवा

   

हर चुनौती को हंसके स्वीकारा जो है, जवानी वही

ज़िंदगी को न समझे कभी भार जो, है जवानी वही,

इस समय चाल का रुख बदल दे ज़रा,

लक्ष्य को देख, उस ओर चल दे ज़रा,

राह में रोक पाएं न छाहें तुम्हें,

देखती वक्त की हैं निगाहें तुम्हें।

काट दे हर तरफ घोर अंधियारा जो, है जवानी वही,

हर चुनौती को करे हंसके स्वीकार जो, है जवानी वही

भारत आज प्रगति तो कर रहा है, लेकिन आज के युवा को भारत की प्राचीन सभ्यता और गौरवशाली इतिहास की याद दिलाई जाए, तो उसे विश्वास ही नहीं होता। युवा अपना आत्मविश्वास खो रहा है और हर समस्या के समाधान के लिए पाश्चात्य संस्कृति का सहारा ले रहा है। मुझे लगता है कि इससे भारत कभी विकसित राष्ट्र नहीं बन सकता, क्योंकि आज की सामाजिक, वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए हो सकता है कि पाश्चात्य संस्कृति कुछ समय के लिए समाधान कर दे, लेकिन वही समाधान एक अंतराल के बाद जटिल समस्या बन जाती है। भारत की युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और सभ्यता को पहचानना चाहिए और उस पर विश्वास करके समाज को संगठित करने का काम अपने हाथ में लेकर भारत को न केवल विकसित, बल्कि विश्वगुरु बनाना चाहिए। हमारे सामने दो विकसित राष्ट्र-जापान और चीन हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी सभ्यता को नहीं भुलाया और आज वे विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।

 “आँखों में वैभव के सपने, मन में तूफ़ानों-सी गति”,हृदय में उठते हुए ऐसे ज्वार, परिवर्तन की ललक, अदम्य साहस, स्पष्ट संकल्प लेने की चाहत का नाम है-युवावस्था। दुनिया का कोई भी आंदोलन, दुनिया की कोई भी विचारधारा युवाशक्ति के बिना सशक्त नहीं बन सकती। वास्तव में यह युवा शक्ति ही है, जिसके दम पर किसी निर्माण या विध्वंस की नींव रखी जाती है। विश्व में भारत सबसे ज़्यादा युवा आबादी वाला देश है। सन 2020 तक भारत की औसत आयु 29 वर्ष रही है। जबकि चीन की 37, अमेरिका की 45 और यूरोप और जापान की औसत आयु 48 वर्ष होगी। जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार भारत में 60 करोड़ से अधिक युवा हैं। अतः भारत को एक युवा राष्ट्र कहा जा सकता है। प्रश्न यह है कि कोई राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का निवेश कैसे करता है? क्या वह विशाल युवा जनसंख्या को राष्ट्र पर बोझ मानकर उसे राष्ट्र की कमज़ोरी के रूप में निरूपित करता है अथवा सशक्त, समृद्ध, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में उसका समुचित उपयोग करने के साधन उपलब्ध कराता है? यदि एक ओर देश की युवाशक्ति देश व विदेश में अपने देश का परचम लहराने में अपनी भूमिका अदा कर रही है, तो दूसरी ओर अनेक विघटनकरी और विसंगत गतिविधियों में अशिक्षित युवाओं के साथ-साथ शिक्षित युवाओं की भागीदारी भी तेज़ी से बढ़ रही है। वर्तमान में युवाशक्ति का सही उपयोग देखना चाहे तो दिल्ली मेट्रो का उदाहरण ले सकते हैं। दिल्ली मेट्रो में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों में लगभग 95% युवा हैं। उन्हें दिशा देने का काम डी एम आर सी के अनुभवी प्रबंध निदेशक ई.श्रीधरन ने किया। दिल्ली मेट्रो की युवा शक्ति ने अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय दिया है, जिसके दम पर दिल्ली की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी मेट्रो संचालन संभव हो सका। स्पष्ट है कि उचित मार्गदर्शन, उत्कृष्ट प्रबंधन और अदम्य इच्छाशक्ति युवाओं को सही रास्ते पर ले जा सकती है। अतः यह परम आवश्यक है कि विश्व में सर्वाधिक आबादी वाले भारत को उचित नेतृत्व मिले। अन्यथा यह युवा राष्ट्र विनाशकारी भी बन सकता है।

प्रसिद्ध विचारक शिव खेड़ा का कहना है की युवा यदि यह प्रण कर ले कि मुझे दुनिया से जितना मिला है, उससे अधिक मैं उसे वापस करूंगा , तो वह दुनिया के हर लक्ष्य को पा सकता है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों व समाजशास्त्रियों के मतानुसार भारत आज आर्थिक व सामरिक रूप से महाशक्ति बनता जा रहा है। हाल ही में इंटरनॅशनल काउंसिल ऑफ़ यूरोपियन इंस्टिट्यूट फ़ॉर सिक्योरिटी स्टडीज़ की ग्लोबल गवर्नेंस रिपोर्ट में 2025 भारत को अमेरिका व चीन के बाद सबसे ताकतवर देश करार दिया गया है। विश्व स्तर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करके भारत के युवा आज आर्थिक विकास और राष्ट्रीय अर्थव्यस्था के लिया मेरुदंड सिद्ध हो रहे है। ऐसा नहीं है कि भारत ने अपनी वैश्विक शक्ति किसी से उधार में ली है। अतीत में भी भारत विश्व गुरु की उपाधि से विभूषित रहा है। परंतु भारत की इस प्रकृति को विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण से,  गुलामी रुपी ग्रहण लग जाने से देश को अपनी विकासोन्मुख आज़ादी के लिए सैंकड़ों वर्ष संघर्ष करना पड़ा। आज दुनिया की कोई प्रतिस्पर्धा हो, लगभग हर क्षेत्र में भारत का युवा अपना प्रभाव दिखा रहा है। भारतीय युवाशक्ति का लोहा पूर्वअमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी मानते रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि व्यक्ति जो बाल्यकाल में सीखता है, उसका कुछ-न-कुछ प्रभाव जीवनपर्यंत उसके मस्तिष्क में अवश्य रहता है। उसके आचरण में परिलक्षित होता है। भारतीय संस्कृति के मूल में ही संस्कार,मूल्य,सहिष्णुता का ही स्थान रहा है। भारत मात्र एक भूभाग नहीं है, बल्कि इसमें हमारी आत्मा बस्ती है। यदि कोई एक वर्ग या एक भूखंड किसी भी अवांछित रूप से प्रभावित होता है, तो युवाओं को चुपचाप नहीं बैठे रहना है, क्योंकि यह संपूर्ण भारत रुपी शरीर को हो प्रभावित करेगा और उसकी आत्मा को छलनी करेगा । बच्चो में उच्चतर आदर्श विकसित करने के लिया माता-पिता और गुरुओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

आइए, एक कहानी के माध्यम से इसे समझते हैं। एक गर्भवती बाघिन ने भेड़ों के झुंड पर हमला कर दिया, किंतु दुर्घटनावश बाघिन का सर पत्थर से लग गया और वह शावक को जन्म देकर मर गई। उसके पश्चात् शावक भेड़ों के बीच पलने लगा। उसका आहार और व्यवहार भेड़ों की तरह ही हो गया। कुछ दिनों बाद एक बाघ को उसे देखकर विस्मय हुआ और उसने तालाब के जल में उसके प्रतिबिंब दिखाकर उसे उसके अंदर छुपी शक्ति का बोध कराया। उसे गरजना और राजा की तरह चलना सिखाया। मेमने जैसा आचरण उसने गहन मिथ्याबोध व अज्ञान के कारण किया। निश्चित रूप से दृढ़ आत्मविश्वास हमारे दृष्टिकोण, भावों और कर्मों को प्रभावित करता है। इनको जाग्रत करने में ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है, जो आपके अंदर की अनंत शक्तियों और संभावनाओं को पहचान कर आपका मार्गदर्शन कर सके। सामान्यतः मनुष्य अपने को हाड़-मांस, नसों एवं कोशिकाओं से बना हुआ प्राणी समझता है, परंतु इससे उसे अपने भीतर छुपे हुए दिव्यत्व का अहसास नहीं होता और वह अपनी ऊर्जा से अनजान रहता है। ज़रूरत है उसे जाग्रत करने की। अतः भारत की युवाशक्ति से आह्वान है कि स्वामी विवेकानंद के “उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत” के सिंद्धांतों को अपनाकर जीवन के हर क्षेत्र में अपने को सिद्ध कर दो यानी उठो, जागो और लक्ष्य-प्राप्ति तक मत रुको। यथा-

आज पुनः राष्ट्र संस्कृति की घटाटोप बादल छाए हैं,

भ्रष्टाचार, अनय, आतंकी उठे बौखला बौराए हैं,

युगऋषि ने आवाज लगाई युवा राष्ट्र की तरुणाई को,

युवा राष्ट्र दिखला दो कैसी यौवन की आंधी होती हैं।

मीता गुप्ता

 

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