वसंत का आगमन...
नई खुशी में, नए रंग में
मन को फिर हर्षाने दो।
न रोको मन के तारों को,
बावरे मन को गाने दो,
आज फिर चटकी हैं कलियाँ
आज वसंत को आने दो।।
वसंत तो सारे विश्व में आता है पर भारत का वसंत
कुछ विशेष है। भारत में वसंत केवल फागुन में आता है और फागुन केवल भारत में ही आता
है। गोकुल और बरसाने में फागुन का फाग, अयोध्या में गुलाल और अबीर के उमड़ते बादल, खेतों
में दूर-दूर तक लहलहाते सरसों के पीले-पीले फूल, केसरिया
पुष्पों से लदे टेसू की झाड़ियां, होली की उमंग भरी मस्ती,
जवां दिलों को होले-होले गुदगुदाती फागुन की मस्त बयार, भारत और केवल भारत में ही बहती है।
विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का दिवस 'वसंत पंचमी' देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस
दिन से धार्मिक, प्राकृतिक और सामाजिक जीवन में बदलाव आने
लगता है। वसंत पंचमी की तिथि से वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। यह तिथि खासतौर
पर विवाह मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। यही वजह है कि इस शुभ दिन का
इंतज़ार विवाह करने वाले लोगों को साल भर से रहता है। इस पर्व पर न सिर्फ मांगलिक
कार्य करना, बल्कि खरीदी−बिक्री, भूमि
पूजन, गृह प्रवेश सहित अन्य कार्य करना भी बेहद शुभ माना
जाता है। यह सिर्फ आनंद का ही नहीं बल्कि नए संकल्प लेने और उसके लिए साधना आरंभ
करने का पर्व भी है।
वसंत पंचमी ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस है। सृष्टि के
प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की पर वे अपनी सृजना से संतुष्ट नहीं
थे क्योंकि चारों ओर मौन छाया था।विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से
जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा।
इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक
चतुर्भुजी सुंदर देवी का था जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में
था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का
अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार
के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया।
पवन चलने से सरसराहट होने लगी, तब ब्रह्मा ने उस देवी को
वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती,
शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों
से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण
ये संगीत की देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात्
ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल
पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जिव्हा को प्राप्त हुई थी। वसंत
पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और
हल्दी का ही तिलक लगाने का भी विधान है। पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें
पकने वाली हैं इसके अलावा पीला रंग समृद्धि का सूचक भी कहा गया है। इस पर्व के साथ
शुरू होने वाली वसंत ऋतु के दौरान फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों
में सरसों सोने की तरह चमकने लगती है, जौ और गेहूं की
बालियां खिल उठती हैं और इधर-उधर रंग-बिरंगी तितलियां उड़ती दिखने लगती हैं। इस
पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन से फाग खेलना शुरू हो जाता है और चारों ओर
आनंद तथा भक्ति का वातावरण नजर आता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन मनुष्यों को वाणी की शक्ति मिली थी जिसके बारे में कहा जाता है कि
परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि का कामकाज सुचारू रूप से चलाने के लिए कमंडल से जल लेकर
चारों दिशाओं में छिड़का। इस जल से हाथ में वीणा धारण किए जो शक्ति प्रगट हुई,
वह सरस्वती कहलाईं। उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में
कंपन हो गया और सबको शब्द और वाणी मिल गई।
इस दिन उत्तर भारत के कई भागों में पीले रंग के
पकवान बनाए जाते हैं और लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पंजाब में ग्रामीणों को
सरसों के पीले खेतों में झूमते तथा पीले रंग की पतंगों को उड़ाते देखा जा सकता है।
पश्चिम बंगाल में ढाक की थापों के बीच सरस्वती माता की पूजा की जाती है, तो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल गुरु−का−लाहौर
में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सिख
गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था।
वसंत पंचमी के दिन कोई भी नया काम प्रारंभ करना
भी शुभ माना जाता है। जिन व्यक्तियों को गृह प्रवेश के लिए कोई मुहूर्त ना मिल रहा
हो, वे इस दिन गृह प्रवेश कर सकते हैं या फिर कोई व्यक्ति
अपने नए व्यवसाय को आरंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त को तलाश रहे हों, तो वे वसंत पंचमी के दिन अपना नया व्यवसाय आरंभ कर सकता है। इसी प्रकार
अन्य कोई भी कार्य जिनके लिए किसी को कोई उपयुक्त मुहूर्त ना मिल रहा हो, वह वसंत पंचमी के दिन वह कार्य कर सकता है।
वसंत पंचमी के दिन ही होलिका दहन स्थान का पूजन
किया जाता है और होली में जलाने के लिए लकड़ी और गोबर के कंडे आदि एकत्र करना
शुरूकरते हैं। इस दिन से होली तक 40 दिन फाग गायन यानी होली के गीत गाए जाते हैं।
होली के इन गीतों में मादकता, एन्द्रिकता, मस्ती, और उल्लास की पराकाष्ठा होती है ।
भारत की छः ऋतुओं में वसंत ऋतु विशेष है। इसे
ऋतुराज या मधुमास भी कहते हैं। “वसंत पंचमी” प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य, श्रृंगार और संगीत की मनमोहक ऋतु यानी ऋतुराज के आगमन की संदेश वाहक है।
वसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन
का संचार होने लगता है। प्रकृति नवयौवना की भांति श्रृंगार करके इठलाने लगती है। पेड़ों
पर नई कोपलें, रंग-बिरंगे फूलों से भरी बागों की क्यारियों
से निकलती भीनी सुगंध, पक्षियों के कलरव और पुष्पों पर भंवरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने
लगती है। कोयलें कूक-कूक के बावरी होने लगती हैं।
वसंत ऋतु में श्रृंगार रस की प्रधानता है और रति
इसका स्थायी भाव है, इसीलिए वसंत के गीतों
में छलकती है मादकता, यौवन की मस्ती और प्रेम का माधुर्य।
भगवान् श्री कृष्ण वसंत पंचमी उत्सव के अधि-देवता हैं अतः ब्रज में यह उत्सव विशेष
उल्लास और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। सभी मंदिरों में उत्सव और भगवान् के
विशेष श्रृंगार होते हैं। वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी और शाह जी के मंदिरों के
वसंती कक्ष खुलते हैं। वसंती भोग लगाए जाते है और वसंत राग गाए जाते हैं महिलाएं
और बच्चे वसंती-पीले वस्त्र पहनते हैं। वैसे भारतीय इतिहास में वसंती चोला त्याग
और शौर्य का भी प्रतीक माना जाता है जो राजपूती जौहर के अकल्पनीय बलिदानों की
स्मृतियों को मानस पटल पर उकेर देता है।
महामना
पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने वर्ष 1996 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का
शुभारम्भ भी वसंत पंचमी के दिन ही किया था। हिंदी साहित्य की अमर विभूति और कालजयी
सरस्वती वंदना “वर दे, वीणावादिनि वर दे!; प्रिय
स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव, भारत में भर दे!” के रचियता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (28.02.1899) भी वसंत पंचमी ही
था।
वसंत पंचमी का दिन हमें वर्ष 1192 में पृथ्वीराज
चौहान के बलिदान की भी याद दिलाता है। उन्होंने मोहम्मद गौरी को तराइन के युद्ध
में पराजित किया और उदारता दिखाते हुए जीवित छोड़ दिया, पर जब दूसरी बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने
उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़
दीं। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा।
पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर
चोट करने का संकेत किया, तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संकेत
दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट
प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको
चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने
तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक
दूसरे के पेट में छुरा भोंककर आत्मबलिदान दे दिया।
भारत उत्सवों का देश है और यहाँ हर उत्सव अलग
प्रकार का है। वसंत पंचमी उत्सव है वसंत ऋतु का, जिसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक
उल्लास से भर जाते हैं। शिक्षाविद इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक
ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं, तो कलाकार, चाहें वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक,
नाटककार हों या नृत्यकार, वे सब इस दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां
सरस्वती की वंदना से करते हैं। साहित्यकारों के लिए वसंत प्रकृति के सौंदर्य और
प्रणय के भावों की अभिव्यक्ति का अवसर है तो वीरों के लिए शौर्य के उत्कर्ष की
प्रेरणा है।
कश्मीर पर मां शारदा की ऐसी महती कृपा हुई कि
शिवपुराण, कल्हण की राजतरंगणी, चरक-संहिता,
पतंजलि का अष्टांग-योग और अभिनव गुप्त का नाट्यशास्त्र जैसे महान
ग्रंथों की रचना कश्मीर में हुई। अतः हमें सरस्वती का प्राकट्य दिवस वसंत पंचमी को
जीवन के महान संकल्पों के दिवस के रूप में मनाना चाहिए।
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