Sunday, 1 May 2022

आत्म दीपो भव:

 

आत्म दीपो भव:



आत्मज्ञान के तीन शब्द, केवल यही तीन शब्द हैं-आत्म दीपो भव: ॥

आत्म दीपो भव: का अर्थ है- खुद की बाती, खुद का तेल, खुद जलना,खुद को अंतर्ज्ञान से प्रकाशित करना और सबको ज्ञानसहाय से प्रकाशित करना। आत्म दीपो भव: यानी स्वयं दीप बनो, ज्योति जगाओ, ज्योति जागरण का महापर्व मनाओ ! माटी से निर्मित दीप और देह देह में विराजित सतत और शाश्वत आत्म प्रकाश को जाग्रत करो ! दीप जीवन -ऊर्जा का अनंत वाहक होता है ! हमारी आती-जाती श्वास की ऊर्जा होता है ,यही आत्म प्रकाश है, हमारे सबके लिए! समस्त मानवता के  लिए!!

बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा- अप्प दीपो भव। अपना मार्ग चुनने के योग्य बनो। अपने विवेक के प्रकाश में अपना मार्ग स्वयं तय करो। गुरु का काम एक वैचारिक दिशा देना होता है, लेकिन उस ज्ञान का परिस्थिति के अनुसार उपयोग करना शिष्य के अपने विवेक पर निर्भर करता है। कोई भी विचार अंतिम सत्य नहीं होता। देश-काल के अनुसार उसका स्वरूप और प्रयोग बदल सकता है। तभी बुद्ध कहते हैं- नदी पार करने के बाद बेड़े को लादे-लादे मत फिरो।

भले ही गीता की व्याख्या विद्वान कई तरह से करते हैं- ज्ञान, भक्ति या कर्म को केंद्र में रखकर लेकिन अंततः ज्ञान-विवेक सम्मत, भक्ति-श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म ही जीव का धर्म है। कोई भी कर्म और कर्म-फल से परे नहीं है। जो कर्म और उसके फल से परे होता है या माना जाता है वह जीव नहीं हो सकता है, वह संभवतः केवल कवि की कल्पना ही होगा। तभी तुलसी कहते हैं-

करम प्रधान विश्व रचि राखा ।।

को करि तर्क बढ़ावहि शाखा ।।

इसी तरह हमारे शास्त्र यह भी कहते हैं कि हंस अकेला आता है और अकेला जाता है, अर्थात कोई भी गुरु, मित्र, शुभचिंतक तुम्हें अपने कर्म का फल भोगने और तज्जनित कष्टों को कम करने में मदद नहीं कर सकता। जग से चाहे भाग ले प्राणी, मन से भाग न पाए। इसलिए सोच विचार कर, अपने ज्ञान, विवेक का उपयोग करते हुए कर्म करो।

सबके देशकाल, परिस्थितियाँ भिन्न होती हैं, इसलिए पूरी तरह किसी की नक़ल करके अपना कर्तव्य-कर्म निर्धारित नहीं किया जा सकता। भले ही लोग दूसरा गांधी बनने के लिए चरखा चलाते हुए फोटो खिंचवाते हैं या शिवाजी की तरह पोज़ बनाते हैं। यह सच है कि विशिष्ट व्यक्तित्त्व किसी की नक़ल करके नहीं बनते। वे अपने समय और उसकी चुनौतियों का सामना करते हुए स्वयं नियति द्वारा गढ़े जाते हैं। इसीलिए कोई दूसरा गांधी नहीं होता। गांधी और बुद्ध जैसे महापुरुष एक ही होते हैं। कहते हैं विष्णु के अवतार हुए हैं, लेकिन क्या दो अवतार एक समान हैं? उसे भी कभी मत्स्य, तो कभी कश्यप, कभी वराह, तो कभी नृसिंह बनना पड़ता है।

कोई भी व्यक्ति,  संत,  महापुरुष,  क्रांतिकारी,  समाज सुधारक अपने समय की समस्याओं की उपज होता है, अतः विशिष्ट होता है। ऐसे सभी व्यक्तियों में एक बात समान होती है कि वे अविवेकी, स्वार्थी, निर्दयी और पक्षपाती नहीं होते। ऐसे सभी व्यक्तियों के जीवन दर्शन में एक बात समान होती है कि वे सब के प्रति करुण होते हैं, इसलिए उनका किसी से बैर या प्रतियोगिता नहीं होती। हाँ, उनके नाम पर संस्थान खड़े करके स्वार्थ सिद्धि करने वाले लोग अवश्य आम जनता को अनावश्यक रूढ़ियों और भेद-भावों में बांधते हैं।

“आत्म दीपो भव” बुद्ध का एक महत्त्वपूर्ण विचार है जिसका अर्थ है “अपना दीपक स्वयं बनो” अर्थात व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या नैतिक/अनैतिक का निर्णय स्वयं लेना चाहिए, उसे किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहिए। यह विचार एक व्यक्ति के व्यक्तित्त्व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और समाज को सही राह की ओर अग्रसर करता है। ऐसे ही समाज में ज़्यादातर नवाचार भी होते हैं, जहाँ बिना किसी भय और रोक-टोक के व्यक्ति को अपनी सृजनात्मकता का इज़हार करने का अवसर मिलता है।

गौतम बुद्ध के कहने का अर्थ यह है कि किसी दूसरे से उम्मीद लगाने की बजाए अपनी प्रेरणा स्वयं बनो, जिससे स्वयं तो प्रकाशित हों ही, साथ ही दूसरों के लिए भी एक प्रकाश स्तंभ की तरह जगमगाते रहो। भगवान गौतम बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद से उसके यह पूछने पर कि जब सत्य का मार्ग दिखाने के लिए आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा, तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे? तो भगवान बुद्ध ने ये जवाब दिया था,“अप्प दीपो भव”।

कोई भी किसी के पथ के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से ही हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं ।भगवान बुद्ध ने कहा, तुम मुझे अपनी बैसाखी मत बनाना। तुम अगर लंगड़े हो, और मेरी बैसाखी के सहारे चल लिए-कितनी दूर चलोगे? मंज़िल तक न पहुंच पाओगे।

आज मैं साथ हूं, कल मैं साथ न रहूंगा, फिर तुम्हें अपने ही पैरों पर चलना है। मेरी साथ की रोशनी से मत चलना क्योंकि थोड़ी देर को संग-साथ हो गया है अंधेरे जंगल में। तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे; फिर हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे। मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। इसलिए अपनी रोशनी पैदा करो।

जीवन के इस राह पर हर आदमी भटका हुआ है, हमेशा सही और गलत चुनने में पूरी ज़िंदगी बिता देते है। इस सफर को सरल बनाने के लिए अगर कोई एक उपाय है तो वह है अपने अंदर का ज्ञान और सही ज्ञान हमें सिर्फ शास्त्र ही दे सकता है। हमारा शास्त्र हमें स्वयं से अवगत कराता है। किसी भी कठिनाई का हल हमारे शास्त्रों के अंदर ढूंढने से मिल जाता है। उसमें जीवन का सरलतापूर्वक विश्लेषण किया गया है। किसी के व्यक्तित्व का आधार उसका शास्त्रीय ज्ञान ही हैं। इसीलिए गौतम बुद्ध कहते है…किसी दूसरे के उजाले में चलने की बजाय अपना प्रकाश ,अपनी प्रेरणा खुद बनो। खुद तो प्रकाशित हों ही, दूसरों के लिए भी एक प्रकाश पूंज की तरह जगमगाते रहो…

इसलिए अपनी रोशनी पैदा करो। मैं तो सिर्फ मार्ग बता सकता हूं ,खुद के बनाए उजाले में मंजिल तक चलना तो तुम्हें ही पड़ेगा। अपने दीपक स्वयं बनो। धम्म को अपने अनुभव से जानो, मुझसे पहले भी बुद्ध हुए और भविष्य में भी होंगे। हर व्यक्ति बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है, अतः...

 अत्त दीपो भव …

जिसने देखा, उसने जाना

जिसने जाना, वो पा गया

जिसने पाया, वो बदल गया,

और यदि नहीं बदला तो समझो कि उसके जानने में कोई कमी रह गई ।

बुद्ध ने मानव को जैसी स्वतंत्रता दी वैसी किसी और ने नहीं दी। उन्होंने किसी धर्म, संप्रदाय, पंथ की स्थापना भी नहीं की। न कभी कहा कि मैं ईश्वर हूं या उसका दूत हूं या मेरी शरण से ही तुम्हारी मुक्ति होगी। बुद्ध ने स्वयं को मार्गदाता कहा, और कोई भी विशेष दर्जा नही दिया। उन्होंने कहा।।अत्ताहि अत्तनो नाथो, कोहि नाथो परोसिया।। यानी तुम अपने स्वामी, मालिक स्वयं हो ,कोई और (ईश्वर) नहीं हो सकता। तुम ही अपने दुख दूर कर सुखी होते हो और तुम ही प्रकृति के नियमों को तोड़ कर अपने दुख पैदा कर अपनी दुर्गति बनाते हो। अन्य धर्मों में जो स्थान ईश्वर का है वही स्थान धम्म (प्रकृति के नियम ) में मनुष्य, उसका कल्याण और नैतिकता का है । अतः‘अत्त दीपो भव’… अपने दीपक स्वयं बनो।

उजाला अंदर से हो, बाहर की रोशनी से नहीं।

भीतर का अंधेरा बाहर के दीयों से नहीं कटता है।

मीता गुप्ता

 

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