राष्ट्रीय आतंकवाद निषेध 21 मई के अवसर पर विशेष....
अब और नहीं
बहुत बिछा ली लाशें तुमने,
बस..बस...
और नहीं...अब और नहीं।
कहीं कोई रूदन,
कहीं कोई सिसकती बच्ची,
कहीं ज़ख्मों से टपकता खून,
कहीं सुलगते घाव,
कहीं नफ़रतों के जुनून ।
बहुत बिछा ली लाशें तुमने,
बस..बस...
और नहीं...अब और नहीं।
आज कोमल कंठ ने आग है उगली,
आग ऐसी कि बर्फ़ भी पिघली
लावा बन कर नष्ट कर रही
मानवता की आह है निकली।
तुम मरो या हम मरें
हिंदू मरे या तुर्क मरे
रूसी मरे या यूक्रेनी
मरे तो केवल मानव मरे।
बहुत बिछा ली लाशें तुमने,
बस..बस...
और नहीं...अब और नहीं।
खून-खून में फ़र्क करोगे कैसे?
सबका रंग एक-सा लगे...
चेहरे पर पुती मिट्टी एक-सी लगे...
फिर कौन है अलग?
कौन है जुदा?
और मरता कौन है?
मरता तो मानव ही है
मरती है मुर्रव्वत,इंसानियत,आदमीयत,
मरती तो मुहब्बत ही है।
बहुत बिछा ली लाशें तुमने,
बस..बस...
और नहीं...अब और नहीं।
मीता गुप्ता
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