Monday, 30 May 2022

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??

 

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??





झोली में कुछ सपने लेकर,

सपनों में कुछ अपने लेकर,

भरकर जेबों में आशाएं ।
दिल में अरमान हैं लहराएं … ।।
माना सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें,

पर दीपक भाता है मुझको..
अपना आंगन रौशन करने से,
तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं,

जिसको नदियों ने सींचा है…
बंजर माटी में पलकर मैंने,

मृत्यु से जीवन खींचा है… ।

मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ ..

शीशे से तोड़ सकोगे मुझको ?
मिटने वाला मैं नाम नहीं…
तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं,

उतने सहने की ताकत है ….
तानों  के भी शोर में रहकर,

सच कहने की आदत है ।।
मैं सागर‌-सम गहरी हूँ…

क्या कंकड़ से पाट सकोगे मुझको?
निर्भीक आगे बढ़ती मैं जाती,

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??

झुक-झुककर सीधी खड़ी हुई,

अब रीढ़ मेरी सीधी है,

अपने ही हाथों रची स्वयं..

मैंने अपनी अमिट परिधि है।
तुम हालातों की भट्टी में…

झोंक सकोगे क्या मुझको?
तपकर कुंदन बनकर निकलूंगी

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....

तुम क्या रोक सकोगे मुझको.....??

 

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