Monday, 9 May 2022

तुम एक बार आना !

 

तुम एक बार आना ! 

कभी तो ज़रूर आना !! 

जैसे पलाश के फूल आते हैं बसंत आने पर 

जैसे गुलमोहर खिलता है पतझड़ जाने पर 

जैसे कभी बिना ऋतु के  बादल यूँ ही चले आते हैं  जेठ में भी  

तप्त धरा  की पुकार  पर ! 

 

संबंधों की परिधि में तो तुम्हें कभी नहीं रखा 

किसी अदभुत सबंध में बंध कर आना!! 

जब भी आना फागुन में आना  

उस दिन जो तुम्हारे पास ही छूट गए थे रंग 

अब की बार उन्हें साथ ही लाना 

 

तुम आना....... कभी तो चले आना.... 

जैसे कृष्ण आए थे विदुर के घर 

जैसे राम आए थे साकेत लौटकर

तुम आना !

क्योंकि मैने गाँधी, ईसा और गौतम को नहीं देखा 

 मैं अनुमान लगा लूँगी उनकी श्रेष्ठता का 

तुम्हारे व्यक्तित्व को देखकर ! 

 

तुम आना ...एक दिन ज़रूर आना .! 

जैसे कुछ पल के लिए सिद्धार्थ लौटे थे  

यशोधरा के पास 

जैसे मिलने चले गए थे भरत  

वन प्रांतर में राम के पास! 

 

तुम एक बार ज़रूर आना......बस एक बार .! 

जैसे जीवन-मरण एक बार होता है !! 

ठीक उसी तरह !! 

मैं भी बस एक बार इन आँखों से पल भर के लिए 

तुम्हें देखना चाहती हूँ! 

 

और इसलिए भी तुम्हें एक बार देखना है 

क्यों कि मैंने ईश्वर को कभी नहीं देखा ।

-मीता गुप्ता, स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिंदी) 

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...