दुनिया के सारे पेड़ ख़त्म हो जाएंगे तो क्या होगा?
जंगल
हमारी दुनिया की लाइफ़लाइऩ हैं। उनके बग़ैर हम पृथ्वी पर ज़िंदगी का पहिया घूमने
का तसव्वुर भी नहीं कर सकते हैं।"पृथ्वी को पेड़ जो सेवाएं देते हैं, उनकी फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है। वो इंसानों और दूसरे जानवरों के छोड़े हुए
कार्बन को सोखते हैं। ज़मीन पर मिट्टी की परत को बनाए रखने का काम करते हैं। पानी
के चक्र के नियमितीकरण में भी इनका अहम योगदान है। इसके साथ पेड़ प्राकृतिक और
इंसान के खान-पान के सिस्टम को चलाते हैं और न जाने कितनी प्रजातियों को भोजन
प्रदान करते हैं। इसके अलावा ये दुनिया के अनगिनत जीवों को आसरा देते हैं।
बिल्डिंग मैटीरियल यानी लकड़ी की शक़्ल में ये इंसानों को भी घर बनाने में मदद
करते हैं।
पेड़
हमारे लिए इतने काम के हैं, फिर भी हम इन्हें इतनी बेरहमी
से काटते रहते हैं, जैसे कि इनकी इस धरती के लिए कोई
उपयोगिता ही नहीं। इंसान ये सोचता है कि इनके बग़ैर हमारा काम चल सकता है। हम ये
सोचते हैं कि आर्थिक लाभ के लिए पेड़ों की क़ुर्बानी दे सकते हैं। अगर पेड़ इंसान
की सोची हुई विकास की प्रक्रिया में बाधा बनें तो इन्हें काटकर हटाया जा सकता है। जब
से मानव जाति ने आज से 12 हज़ार साल पहले खेती करना शुरू
किया, तब से हम ने दुनिया के कुल क़रीब छह ख़रब पेड़ों में
से आधे को काट डाला है। ये अनुमान विज्ञान पत्रिका 'नेचर'
ने 2015 में प्रकाशित रिसर्च में लगाया था। इनमें
से ज़्यादातर पेड़ों की कटाई हाल की कुछ सदियों में हुई है। ख़ास तौर से
औद्योगीकरण की शुरुआत के बाद, दुनिया के जंगलों की तादाद 32 प्रतिशत घट गई है। ख़ास तौर से ऊष्ण कटिबंधीय इलाक़ों में जंगलों को
बेतरह काटा गया है।
आज जो
बचे हुए क़रीब 6 ख़रब पेड़ हैं, उनकी
संख्या भी बड़ी तेज़ी से घट रही है। हर साल क़रीब 12 अरब
पेड़ काटे जा रहे हैं। अगस्त में अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस रिसर्च के
आंकड़ों से पता चला था कि ब्राज़ील के अमेज़न नदी के इर्द-गिर्द के जंगलों में आग
लगने की घटनाओं में 84 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है और ये तो
केवल 2018 के मुक़ाबले बढ़ा हुआ आंकड़ा है। पेड़ों को काट कर
जलाने की घटनाएं पूर्वी एशिया के इंडोनेशिया से अफ्रीका के मैडागास्कर तक बढ़ रही
हैं।अगर हम सभी पेड़ों को काट डालते हैं, तो हम ऐसी धरती पर
रह रहे होंगे, जो ज़िंदगी को सहारा नहीं दे सकेगी। दुनिया
इतनी भयानक होगी कि वहां किसी जीव के पनपने का तो दूर, मौजूदा
जीवों के जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर, पेड़
रातों-रात विलुप्त हो जाएंगे, तो इनके साथ धरती पर मौजूद
ज़्यादातर ज़िंदगी ख़त्म हो जाएगी। आज पेड़ों की बेतहाशा कटाई से पहले ही बहुत से
जीवों के जीने के ठिकाने ख़त्म हो रहे हैं। ऐसे में बचे हुए जंगलों के अचानक ख़त्म
हो जाने से बहुत से पौधों, फफूंद और जानवरों पर क़यामत जैसा
क़हर बरपेगा। तमाम तरह के जीवों की नस्लें विलुप्त हो जाएंगी। और ऐसा स्थानीय ही
नहीं, वैश्विक स्तर पर होगा। जीवों की प्रजातियों के विलुप्त
होने का सिलसिला केवल पेड़ों तक ही सीमित नहीं होगा। इससे जंगलों में रहने वाले
जीव भी मर जाएंगे, जो पेड़ों पर ही निर्भर हैं। खुले मैदान
में खड़ा एक अकेला पेड़ भी, कई जीवों को पनाह देता है। उन्हें
जीने के संसाधन मुहैया कराता है। इसलिए एक पेड़ गंवाने का मतलब भी कई जीवों से
धरती को महरूम करना होता है।
सारे
पेड़ ख़त्म हो जाएंगे तो धरती की जलवायु में भी बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को
मिलेगा। पेड़, जैविक पंप का काम करते हैं और हमारी पृथ्वी
के जल चक्र को नियंत्रित करते हैं। वो ज़मीन से पानी सोखते हैं और इसे भाप के तौर
पर वायुमंडल में छोड़ते हैं। ऐसा कर के जंगल बादल बनाने का काम करते हैं, जिससे बारिश होती है। इस के अलावा पेड़, भारी बारिश
की सूरत में बाढ़ आने से भी रोकते हैं, क्योंकि ये पानी को
अपने इर्द-गिर्द रोक देते हैं और वो पानी तेज़ी से अचानक नदियों या झीलों में नहीं
जाता। तूफ़ान आने पर तटीय इलाक़े की आबादी इन पेड़ों की वजह से सीधे तूफ़ान का
सामना करने से बच जाती है। इससे मिट्टी भी बहने से रुक जाती है। वरना तेज़ बारिश
और बाढ़ की वजह से मिट्टी बह जाती है। इस मिट्टी में रहने वाले कीटाणु और दूसरे
छोटे जीव भी तबाह होने से बच जाते हैं।
बिना
पेड़ों के, पुराने जंगली इलाक़े सूख जाएंगे, वहां भयंकर सूखा पड़ने लगेगा। अगर बारिश हुई भी तो बाढ़ से भारी तबाही
होगी। मिट्टी का क्षरण होगा। जिसका सीधा असर समुद्रों पर पड़ेगा। मूंगे की
चट्टानें और दूसरे समुद्री जीवों पर क़हर बरपा होगा। बिना पेड़ों के छोटे द्वीपों
का समुद्र से बचाव नहीं हो सकेगा। धरती से पेड़ों को ख़त्म कर देने से बहुत सी
ज़मीन समंदर में समा जाएगी।जल चक्र को नियंत्रित करने के अलावा, पेड़ स्थानीय स्तर पर तापमान घटाकर ठंडक देने का भी काम करते हैं। वो बहुत
से जीवों को पनाह देते हैं और ज़मीन को साया मुहैया कराते हैं, जिससे तापमान कम रहता है। यानी, वो सूरज की गर्मी को
सोख कर तापमान भी नियंत्रित करते हैं। वाष्पीकरण के ज़रिए वो सूर्य की ऊर्जा से
पानी को भाप में बदलते हैं। पेड़ों के साथ तापमान कम करने का ये क़ुदरती सिस्टम भी
ख़त्म हो जाएगा। ऐसे में जहां जंगल हैं, वो इलाक़े गर्म हो
जाएंगे। एक और रिसर्च में प्रेवेडेलो और उनके साथियों ने पाया था कि अगर 25 वर्ग किलोमीटर से सारे पेड़ हटा दिए जाएं, तो
स्थानीय स्तर पर तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। खुले और जंगली इलाक़ों
के तापमान में फ़र्क़ का तजुर्बा पहले भी किया जा चुका है।
विश्व
स्तर पर पेड़, जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले में मददगार
होते हैं। पेड़, हवा में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख कर
अपने तनों में जमा रखते हैं। इसी लिए जंगलों की कटान से विश्व स्तर पर कार्बन
उत्सर्जन में 13 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है।इसके अलावा ज़मीन
के इस्तेमाल में बदलाव से भी कार्बन उत्सर्जन 23 प्रतिशत तक
का योगदान देता है। दुनिया के सभी पेड़ों का ख़ात्मा होने से कार्बन डाई ऑक्साइड
का उत्सर्जन बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तेज़ हो जाएगी। पेड़
समाप्त होने से 450 गीगाटन कार्बन वायुमंडल में मिल जाएगी।
ये मौजूदा कार्बन उत्सर्जन से दोगुनी होगी। हालांकि शुरुआत में छोटे पौधे और
घास-फ़ूस इस कार्बन को सोख लेंगे। लेकिन, वो इसे जल्दी से
वायुमंडल में छोड़ते भी हैं। तो कुछ दशकों में धरती का तापमान बहुत तेज़ी से
बढ़ेगा।
पेड़
के तने सड़ने लगेंगे तो ये धरती के लिए टाइम बम का काम करेंगे। बड़ी तादाद में ये
कार्बन समंदर के पानी में भी मिल जाएगा। इसकी वजह से समुद्र का पानी अम्लीय हो
जाएगा और जेलीफ़िश को छोड़कर समुद्र के सारे जीव मर जाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग से
पहले ही पेड़ न होने की वजह से इंसान की मुसीबतें बहुत बढ़ जाएंगी। बढ़ी हुई गर्मी, जल चक्र में परिवर्तन और छाया ख़त्म होने से अरबों लोगों और पालतू जानवरों
पर असर पड़ेगा। अभी दुनिया के 1।6 अरब
लोग अपनी जीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। पेड़ों से इन्हें खाना ही नहीं पनाह
और दवाएं भी मिलती हैं। ये लोग पेड़ ख़त्म होने से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।
बहुत से और लोग लकड़ी न होने से खाना पकाने या अपना घर गर्म करने का काम नहीं कर
पाएंगे। पेड़ काटने या पेपर बनाने वाले वो लोग जो पेड़ों से रोज़गार पाते हैं,
वो बेरोज़गार हो जाएंगे। इसका विश्व की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा
असर पड़ेगा। आज की तारीख़ में टिम्बर उद्योग से ही 1।32 करोड़ लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। इस सेक्टर में हर साल 600 अरब डॉलर की कमाई होती है। पेड़ न रहे, तो खेती की
व्यवस्था बेक़ाबू हो जाएगी। साए में पलने वाली फ़सलें जैसे कॉफ़ी का उत्पादन बहुत
घट जाएगा। वो पौधे भी ख़त्म हो जाएंगे, जो पेड़ों पर रहने
वाले जीवों के ज़रिए पराश्रित होते हैं।
बढ़े
तापमान और बारिश में उतार-चढ़ाव के चलते अच्छी खेती वाले इलाक़े अचानक सूखे के
शिकार होंगे। मिट्टी का कटाव ज़्यादा होगा। उपजाऊ मिट्टी बह जाएगी। इससे पैदावार
के लिए ज़्यादा रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना होगा। लंबे वक़्त में ज़्यादातर
ज़मीनें खेती के लायक़ ही नहीं रह जाएंगी। इन तबाही लाने वाले बदलावों का सेहत पर
बहुत बुरा असर पड़ेगा। पेड़ों से हवा साफ़ होती है। वो प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों
को हवा से सोख लेते हैं। उनकी पत्तियों, तनों और शाखों
में ये प्रदूषण क़ैद हो जाता है।
अमरीकी
वन सेवा की रिसर्च के मुताबिक़, अकेले अमरीका में पेड़ हर
साल 1।74 करोड़ टन वायु प्रदूषण सोख
लेते हैं। इसे साफ़ करने में 6।8 अरब
डॉलर का ख़र्च आएगा। इससे हर साल 850 लोगों की जान भी बचती
है और 6 लाख 70 हज़ार से ज़्यादा लोगों
को पेड़ सांस की बीमारी होने से बचाते हैं। जानकार कहते हैं कि पेड़ ख़त्म हुए तो
हम नई बीमारियों का सामना करने को मजबूर हो सकते हैं। इबोला, निपाह और वेस्ट नील वायरस का इंसानों पर हमला बढ़ जाएगा। इसके अलावा
मलेरिया और डेंगू के मरीज़ों की तादाद भी बढ़ सकती है।
पेड़
हमारी अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी हैं। इसीलिए, डॉक्टर
पेड़ों और हरियाली के बीच वक़्त बिताने की सलाह देते हैं। इनके बीच समय बिताने से
औसत आयु बढ़ती है। हम बीमार कम पड़ते हैं। तनाव भी कम होता है। अमरीका के
बाल्टीमोर राजय में पेड़ों की संख्या बढ़ने से अपराधों में कमी आती देखी गई है।
पेड़ों
के ख़ात्मे का हमारी सभ्यता और संस्कृति पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। बहुत से बचपन
वीरान हो जाएंगे। क्योंकि वो कला, साहित्य, संगीत और न जाने कितनी चीज़ों के लिए पेड़ों पर निर्भर होते हैं। पेड़ों
का हमारी संस्कृति से गहरा नाता रहा है। भगवान बुद्ध ने बोधिवृक्ष के नीचे 49 दिनों तक तपस्या के बाद कैवल्य प्राप्त किया था।
हिंदू
धर्म के अनुयायी पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं और उसे विष्णु का प्रतीक मानते हैं।
ईसाई धर्म की पवित्र किताब ओल्ड टेस्टामेंट में ईश्वर को क़ुदरत की रचना के तीसरे
दिन पेड़ों की उत्पत्ति करते बताया गया है। वहीं, बाइबिल
के मुताबिक़, ईसा मसीह ने लकड़ी की सलीब पर दम तोड़ा था,
जो पेड़ों से ही बना था। बहुत से लोग पेड़ों को डॉलर के तौर पर
देखते हैं। लेकिन हमें पेड़ों से जो आध्यात्मिक सुख मिलता है, उसका पैसे से मूल्यांकन नहीं हो सकता।
बिना
पेड़ों की दुनिया में जीवन बिताना इंसानों के लिए बहुत मुश्किल होगा। शहरी जीवन गए
ज़माने की बात हो जाएगी। हम में से ज़्यादातर लोग भूख से मर जाएंगे। या फिर सूखे
और बाढ़ के शिकार हो जाएंगे। बचे हुए समुदाय पारंपरिक ज्ञान की बदौलत ही बच सकेंगे
जो बिना पेड़ों के माहौल में ख़ुद को ढाल सकेंगे। जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के मूल
निवासी लोमैन जैसे जानकार कहते हैं कि तब जीवन शायद मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती
के रूप में ही बचे।वो कहते हैं, "हो सकता है कि बिना
पेड़ों की दुनिया में इंसान बचे रह जाएं। लेकिन ऐसी दुनिया में आख़िर रहना ही कौन
चाहेगा? ये ग्रह ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों से इसीलिए अलग है
कि यहां पानी है।
पेड़ हैं, तो हरियाली है।
बिना पेड़ों के तो हम ही नहीं रहेंगे।
मीता
गुप्ता
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